बारामती की रैली में उद्धव ठाकरे जैसे मंच पर आए तो देर रात में उंघती भीड़ में जैसे बिजली-सी दौड़ गई। पवार कुनबे की यह पारंपरिक सीट महाराष्ट्र के राजनैतिक माहौल की मानो प्रतीक और प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है। शरद पवार और उद्धव इसे मराठा गौरव से जोड़ते हैं। उद्धव लोगों से कहते हैं कि क्या मराठा स्वाभिमान को आहत करने वालों को माफ करेंगे और भीड़ में गर्जना उठती हैः गद्दार मुर्दाबाद।
दरअसल यहां की सांसद, पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ अजित पवार की पत्नी को खड़ा किया गया है। ठाकरे लोगों से कहते हैं कि अजित दादा से बड़े दोषी वे लोग हैं जो परिवार को बांटना चाहते हैं, जिन्हें मराठा संस्कृति, मर्यादा का ख्याल नहीं है।
दरअसल ज्यादातर चुनाव विशेषज्ञों का अनुमान है कि भाजपा ने जिस तरह शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में टूट करवाई, वह लोगों को शायद नहीं सुहाया। शायद यह भावना न सिर्फ राकांपा के अजित गुट और शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट पर ही भारी नहीं पड़ेगी, बल्कि भाजपा को भी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
इसके अलावा किसानों, युवाओं के मुद्दे भी गरमी पैदा कर रही है। संकेत ये भी हैं कि संविधान बदलने का मुद्दा भी दलितों को प्रभावित कर रहा है। यही वजह है कि विदर्भ और मराठवाड़ा की जिन सीटों पर पहले, दूसरे, तीसरे चरण में वोट पड़े हैं, उनमें हवा भाजपा और एनडीए के विपरीत बहती नजर आ रही है। मसलन, कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण को भाजपा ने इस उम्मीद में पाला बदलवाकर राज्यसभा सदस्य बनाया हो सकता है कि नांदेड में उनके असर का फायदा उठाया जा सके। लेकिन वहां से आ रही खबरों से पता चलता है कि कई जगह लोगों ने सरेआम विरोध किया।
वैसे भी मराठा कुनबी, दलित और अल्पसंख्यकों के वोट विपक्ष की ओर गए तो भाजपा को मुश्किल हो सकती है। विदर्भ और कुछ आदिवासी सीटों पर भी हवा भाजपा के विपरीत बहती लगती है। अब यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर है कि वे इस हवा कितना बदल पाते हैं। उनकी रैलियां भी वहां लगातार हो रही हैं।
बहरहाल, इस जंग में भाजपा से ज्यादा ठाकरे और पवार की परीक्षा होनी है। मोदी के उन्हें नकली राकांपा और नकली शिवसेना कहने का क्या असर होता है, यह देखना होगा। हाल में उन्होंने पवार को भटकती आत्मा कहा। उधर से भी मराठी-गुजराती विवाद उठाने की कोशिश हो रही है। यानी जंग तीखी होती जा रही है।