Advertisement

पंजाबः प्रतिशोध के सरकार

आम आदमी पार्टी पर भी पुलिस और राज्य एजेंसियों का वैसा ही इस्तेमाल करने का आरोप जैसे भाजपा के खिलाफ लग रहा
कानून या मनमानीः पुलिस कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन

राजनीति में प्रतिशोध का सुख ही शायद सबसे बड़ा सुख है। कोई यह मौका गंवाना नहीं चाहता। इतिहास में राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ फर्जी आरोपों के आधार पर अथवा मामूली मामलों में भी बढ़ा-चढ़ा कर कार्रवाई करने की अनेक घटनाएं मिल जाएंगी। परंतु जब ऐसी घटनाएं एक सीमा के बाहर चली जाती हैं तो फिर तंत्र राजनीतिक सत्ता का गुलाम लगने लगता है। हाल के दिनों में इसके दो बड़े उदाहरण देखने को मिले और दोनों में काफी समानता भी है। पहला मामला गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी का है, तो दूसरा दिल्ली के भारतीय जनता पार्टी के नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा का। दोनों के खिलाफ दूर किसी प्रदेश में मुकदमा दर्ज होता है और अचानक उस प्रदेश की पुलिस आकर उन्हें उठा ले जाती है। दोनों मामलों में पुलिस तंत्र का जैसा दुरुपयोग हुआ वैसा कम ही देखने को मिलता है। बग्गा प्रकरण में तीन राज्यों की पुलिस के बीच जो खींचतान हुई वैसा कोई दूसरा उदाहरण स्वतंत्र भारत के इतिहास में नहीं मिलता है। वैसे तो बग्गा दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अक्सर तू-तड़ाक की भाषा का इस्तेमाल करते रहते हैं। केजरीवाल के खिलाफ एक ट्वीट पर मोहाली में 1 अप्रैल को उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। शुक्रवार 6 मई की सुबह पंजाब पुलिस की एक टीम ने उन्हें दिल्ली के जनकपुरी स्थित उनके निवास से गिरफ्तार किया और उन्हें पंजाब लेकर जाने लगी। दिल्ली और पंजाब के बीच हरियाणा पड़ता है जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में वहां की पुलिस ने पंजाब पुलिस की टीम को रोक लिया। फिर दिल्ली पुलिस की एक टीम कुरुक्षेत्र गई और बग्गा को लेकर लौट आई। कल्पना कीजिए, असम पुलिस गुजरात से जिग्नेश मेवाणी को गिरफ्तार कर रेल या सड़क मार्ग से लेकर जाती, बीच में कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी के शासन वाला राज्य होता और वहां की पुलिस असम पुलिस को रोक लेती, फिर क्या होता?

बग्गा मामले में तीनों राज्यों के बयान अलग-अलग हैं। पंजाब पुलिस ने आम आदमी पार्टी के पंजाब के प्रवक्ता सनी सिंह अहलूवालिया की शिकायत पर केस दर्ज किया। अहलूवालिया का आरोप है कि बग्गा ने ट्विटर पर केजरीवाल और अन्य आप नेताओं को मारने की धमकी दी। पंजाब पुलिस के अनुसार उसने बग्गा को पांच नोटिस भेजे लेकिन वे पूछताछ के लिए हाजिर नहीं हुए। पंजाब पुलिस का यह भी कहना है कि उन्होंने दिल्ली पुलिस को बग्गा को भेजे नोटिस के बारे में बताया था और उनकी गिरफ्तारी की कार्रवाई के दौरान भी हमेशा लूप में रखा।

दिल्ली पुलिस का कहना है कि पंजाब पुलिस ने बग्गा को घर से उठाने के बाद उन्हें जानकारी दी। बग्गा के पिता की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने पंजाब पुलिस अधिकारियों के खिलाफ बग्गा को अगवा करने की एफआइआर भी दर्ज कर ली और मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट से बग्गा को कोर्ट में पेश करने का आदेश भी ले लिया। उधर पंजाब सरकार पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट पहुंच गई और कहा कि हरियाणा और दिल्ली में उसके अधिकारियों को हिरासत में रखा गया है, जिसे दोनों राज्यों ने गलत बताया। फिलहाल हाईकोर्ट ने 10 मई तक बग्गा के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने का आदेश दिया है।

आदेश गुप्ता के साथ बग्गा

आदेश गुप्ता के साथ बग्गा

बग्गा का कहना है कि उनका केजरीवाल को शारीरिक नुकसान पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, “मेरे खिलाफ एफआइआर में लिखा गया है कि मैं केजरीवाल की हत्या करना चाहता था। मैंने तो सिर्फ इतना कहा था कि द कश्मीर फाइल्स पर अपने बयान के लिए वे माफी मांगें वरना मैं उन्हें चैन से रहने नहीं दूंगा। इसका यह मतलब नहीं कि मैं उन्हें शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाना चाहता था।”

दरअसल, फिल्म को टैक्स फ्री करने की भाजपा की मांग पर केजरीवाल ने विधानसभा में कहा था कि फिल्म निर्माता फिल्म को यू ट्यूब पर डाल दें सब फ्री में देख लेंगे। उन्होंने यह भी कहा, “फिल्म बनाने वाले तो करोड़ों कमा रहे हैं दूसरी तरफ भाजपा नेताओं को फिल्म के पोस्टर लगाने का काम दे दिया है।” इस पर बग्गा ने केजरीवाल के खिलाफ कथित रूप से गाली-गलौज से भरा ट्वीट किया जिसका दिल्ली भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने भी विरोध किया था। बाद में वह ट्वीट डिलीट कर दिया गया। बग्गा ने दूसरा ट्वीट किया, “एक नहीं 100 एफआइआर करना, लेकिन केजरीवाल अगर कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार को झूठा बोलेगा तो मैं बोलूंगा, अगर केजरीवाल कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार पर ठहाके लगाएगा तो मैं बोलूंगा, चाहे उसके लिए मुझे जो अंजाम भुगतना पड़े मैं तैयार हूं। मैं केजरीवाल को छोड़ने नहीं वाला, नाक में नकेल डाल के रहूंगा।”

भाजपा बग्गा के खिलाफ कार्रवाई को राजनीतिक प्रतिशोध बता रही है। तो जिग्नेश मेवाणी के खिलाफ कार्रवाई को क्या कहेंगे? हाल के वर्षों में भाजपा शासित राज्य में राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई के मामले बढ़े हैं। दुर्भाग्यवश दूसरी पार्टियां भी उसी राह जाती दिख रही हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार होने के बावजूद यहां की पुलिस सरकार के हाथ में नहीं है बल्कि भाजपा शासित केंद्र के हाथ में है। लेकिन जब से पंजाब में वह सत्ता में आई है तब से पंजाब पुलिस पूर्व आप नेता और केजरीवाल के आलोचक कुमार विश्वास, कांग्रेस की अलका लांबा और दिल्ली भाजपा के नवीन जिंदल के दरवाजे पर दस्तक दे चुकी है। बग्गा को तो उसने बिना वारंट के गिरफ्तार किया।

बग्गा प्रकरण ने पंजाब में विपक्षी दलों को नया मुद्दा दे दिया है। इसे राजनीतिक बदला बताते हुए विपक्षी दल आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार को यह कहकर घेर रहे हैं कि आप का ‘दिल्ली मॉडल’ पंजाब में चलेगा या नहीं यह तो बाद में पता चलेगा, पर भगवंत मान सरकार जरूर दिल्ली से चल रही है। विपक्ष का आरोप है कि मान सरकार के पहले 50 दिन के सभी फैसले दिल्ली में बैठे ‘आका’ के इशारे पर हुए हैं।

बग्गा से मिलने आए गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत

बग्गा से मिलने आए गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत 

पिछले दिनों मुख्यमंत्री मान या उनके किसी मंत्री के बगैर पंजाब के अधिकारी दिल्ली गए थे। इस पर मान ने सफाई दी, “पंजाब के अफसरों को ट्रेनिंग के लिए दिल्ली ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों में भी भेजेंगे।” सरकार के 50 दिन के कामकाज पर सवाल उठाते हुए शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने आउटलुक से कहा, “गैंगवार में जान गंवाने वाले दो दर्जन से अधिक लोगों के हत्यारों को पकड़ने की बजाय पंजाब पुलिस केजरीवाल के इशारे पर उनके खिलाफ टिप्पणी करने वालों को दबोचने में लगी है। दिल्ली पुलिस पर नियंत्रण न होने के मलाल में केजरीवाल पंजाब पुलिस को अपने विरोधियों के खिलाफ हथियार बना रहे हैं। इससे पंजाब पुलिस की फजीहत हो रही है।”

जवाब में आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता मालविंदर सिंह कंग ने आउटलुक से कहा, “पंजाब में विधानसभा चुनाव के दौरान सांप्रदायिक हिंसा फैलाने के आरोपी तेजिंदरपाल बग्गा को बचाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित दिल्ली पुलिस और हरियाणा की भाजपा सरकार की पुलिस ने कानून की धज्जियां उड़ाई हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इशारे पर ही दिल्ली और हरियाणा पुलिस बग्गा को जबरन पंजाब पुलिस की हिरासत से छुड़ाकर ले गई।” पंजाब पुलिस की हिरासत से निकले बग्गा के खिलाफ मोहाली कोर्ट ने अरेस्ट वारंट जारी किए हैं।

चुनावी वादों पर अमल कब

आम आदमी पार्टी भले राजनीतिक विरोधियों के साथ स्कोर बराबर करने में लगी हो, लेकिन सरकार बनने के लगभग दो महीने पूरे होने पर लोग अब सवाल पूछने लगे हैं कि पार्टी ने जो चुनावी वादे किए, उन पर अमल कब होगा। पार्टी ने प्रत्येक परिवार को हर महीने 300 यूनिट मुफ्त बिजली, 18 और उससे अधिक आयु की महिलाओं को 1000 रुपये मासिक भत्ता जैसे वादे किए थे। लेकिन अब उसे उन पर अमल करना भारी लग रहा है। सत्ता के साथ तीन लाख करोड़ रुपए का कर्ज विरासत में पाने वाली आप सरकार ने एक जुलाई से 300 यूनिट मुफ्त बिजली की गारंटी पूरी करने के लिए अब कई शर्तें जोड़ दी हैं। चुनाव से पहले पार्टी ने ऐसी कोई शर्त नहीं रखी थी, जिससे लोगों में सरकार के प्रति रोष है। पंजाब बिजली उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष रणधीर वर्मा ने कहा, “सरकार सामान्य वर्ग के उपभोक्ताओं को हर दो महीने के अंतराल पर आने वाले बिल में 600 यूनिट से एक यूनिट भी अधिक खर्च करने पर पूरा बिल वसूलेगी। अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग और गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों के लिए शर्त लगाई गई है कि वे आयकरदाता की श्रेणी में न हों और उनका कनेक्शन एक किलोवाट से अधिक का न हो। उन्हें तो पहले ही हर महीने 200 यूनिट मुफ्त बिजली मिलती थी।” बिजली मंत्री हरभजन सिंह का कहना है कि आरक्षित वर्ग के उपभोक्ताओं का एक किलोवाट से ज्यादा का कनेक्शन होने पर 600 यूनिट से अधिक खपत पर पूरा बिल देना होगा।

अकाली दल के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा ने कहा, “पंजाब में मुफ्त बिजली के लिए सरकार गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, हरियाणा में भी विज्ञापन दे रही है। इस तरह आम आदमी पार्टी पंजाब की जनता के टैक्स के पैसे का दुरुपयोग दूसरे राज्यों में अपने सियासी फायदे के लिए कर रही है। ये लोग बदलाव की बात करते थे लेकिन इस तरह का प्रचार तो रिवायती पार्टियां भी नहीं करतीं।”

मुफ्त बिजली और महिलाओं को एक हजार रुपये महीना भत्ता, इन दो चुनावी वादों को ही पूरा करने के लिए सरकार को सालाना 20,000 करोड़ रुपये चाहिए। दूसरी तरफ जीएसटी में कमी का भी अंदेशा है। 1 जुलाई 2017 को जब जीएसटी लागू हुआ तो उसके साथ राज्यों को मुआवजे के लिए अलग कानून बना था। इसके मुताबिक राज्यों के कर संग्रह में कमी होने पर केंद्र सरकार पांच साल तक उसकी भरपाई करेगी। यह अवधि 30 जून 2022 को खत्म हो रही है और राज्यों की मांग के बावजूद इसे बढ़ाने से इनकार कर दिया है।

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल

सूबे की खस्ता माली हालत के नाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहली मुलाकात में मुख्यमंत्री मान ने एक लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की मांग की थी। इस पर विरोधियों ने खिंचाई की तो पलटवार करते हुए मान ने विरासत में मिले तीन लाख करोड़ रुपये के कर्ज की जांच की बात कह दी। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ ने कहा, “झूठे सपने बेचकर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री का प्रधानमंत्री के पास कटोरा लेकर पहुंचना हास्यास्पद है। आप का दावा था कि शराब, खनन और केबल माफिया का खात्मा कर पैसा जुटाएंगे लेकिन अब मान सरकार देशभर में अपने प्रचार के लिए विज्ञापनों पर खजाना लुटा रही है।”

हालांकि मान सरकार का एक विधायक-एक पेंशन का फैसला काबिलेतारीफ है। इससे पड़ोसी राज्य हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के विधायकों की टेंशन बढ़ गई है। इससे पहले विधायक जितनी बार जीतते थे उतनी बार के कार्यकाल की पेंशन जोड़कर मिलती थी। अब एक विधायक चाहे जितनी बार चुनाव जीते, वह केवल एक पेंशन का हकदार होगा। सरकार के ऐलान से पहले पांच बार मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल ने 5.50 लाख रुपये मासिक पेंशन छोड़ने की घोषणा कर दी। बादल के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल, मंत्री लाल सिंह, सरवन सिंह फिल्लौर जैसे नेता 3.25 लाख रुपये मासिक पेंशन ले रहे थे। पूर्व विधायक रवि इंदर सिंह, बलविंदर सिंह को 2.75 लाख रुपये मासिक पेंशन मिल रही थी।

पूर्व मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, विधायकों, नौकरशाहों और वीवीआइपी मिलाकर 184 लोगों की सुरक्षा में लगे 224 पुलिसकर्मियों को वापस लिए जाने पर भी बवाल मचा है। सालाना करीब 12 करोड़ रुपये वेतन लेने वाले ये पुलिसकर्मी अब थानों में अपनी सेवाएं देंगे। सुरक्षा वापस लिए जाने के सवाल पर खड़ा करते हुए अकाली नेता विरसा सिंह वल्टोहा ने कहा, “आखिर मुख्यमंत्री की बहन और मां को सुरक्षा क्यों दी गई है?”

कर्ज डिफॉल्टर 2000 किसानों के नाम गिरफ्तारी वारंट के मुद्दे पर भी सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। बीकेयू उगरांहा द्वारा पंजाब को सिंघु बॉर्डर बनाने की चेतावनी के बाद वित्त मंत्री एवं सहकारिता मंत्री हरपाल चीमा ने सफाई दी कि ये वारंट पिछली कांग्रेस सरकार ने जारी किए थे, जिन्हें रोक दिया गया है। पंजाब में किसी किसान की गिरफ्तारी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि जितने भी वारंट जारी हुए थे, सब वापस ले लिए हैं। आम आदमी पार्टी ने प्रदेश की 117 में से 92 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस और भाजपा जैसी रिवायती पार्टियों को 25 सीटों पर समेट दिया था। बदलाव के नाम पर वह पंजाब में दिल्ली मॉडल लागू कर रही है। इस मॉडल को वह इस साल हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनाव में कितना बेच पाएगी, यह भगवंत मान सरकार के अगले छह महीने के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा।

Advertisement
Advertisement
Advertisement