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जनादेश 2022/उत्तर प्रदेश: पूर्वांचल के मुद्दे और मूड

किसान आंदोलन, बेरोजगारी, आवारा पशुओं का संकट और कानून-व्यवस्था के बदतर हालात के बीच भाजपा के सामने संकट, विपक्ष की भी परीक्षा
देवरिया में प्रधानमंत्री मोदी और अन्य भाजपा नेता

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए एक लिटमस टेस्ट की तरह भी हैं और सत्ता के पक्ष या विपक्ष में अवधारणा बनाने का कारगर हथियार भी। पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और सपा के गठबंधन के बावजूद भाजपा ने जिस तरह का प्रचंड बहुमत हासिल किया था, उसने ही वह अनुकूल माहौल बनाया था जिसमें भाजपा लोकसभा में अपना प्रदर्शन दोहराने या कहें बेहतर करने में सफल हुई थी। इस बार इलाके में घूमते हुए एक बात बहुत स्पष्ट नजर आती है कि लहर तो किसी की दिखाई नहीं दे रही है। चौराहों-दुकानों पर पहले जैसी सरगर्मी नहीं दिखाई देती। चुनाव आयोग की सख्ती ने चुनाव प्रचार इतना फीका कर दिया है कि दूर-दराज के इलाकों में तो पता ही नहीं चलता कि चुनाव चल रहा है। जब तक आप भरोसा न जीत लें, खास तौर पर वंचित समाज के लोग खुलकर बोलने से कतरा रहे हैं।

किसान आंदोलन, बेरोजगारी, आवारा पशुओं का संकट और कानून-व्यवस्था के बदतर हालात के बीच मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भीतर और बाहर, दोनों तरह के संकटों से जूझ रहे हैं। भाजपा का सारा जोर धार्मिक ध्रुवीकरण पर है और उसकी वापसी इसी की सफलता-असफलता पर निर्भर करती है। पिछले एक महीने में आरएसएस ने कमान हाथ में ली है और उसके कार्यकर्ता घर-घर जा रहे हैं।

उधर, स्वामी प्रसाद मौर्य और ओमप्रकाश राजभर के पाला बदलने के बाद अखिलेश यादव गैर-यादव पिछड़ा वोटों के साथ आने की संभावना के साथ पूरी ताकत से भाजपा सरकार पर हमला बोल रहे हैं तथा खास तौर पर रोजगार का मुद्दा उठाकर युवा मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने का प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस संगठन की हालत में ज्यादा सुधार न हो पाने के बावजूद प्रियंका गांधी की रैलियों में जबरदस्त उत्साह दिख रहा है, उनका नारा ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ घर-घर पहुंच रहा है और सीएए विरोधी आंदोलन तथा किसान आंदोलन के समर्थन के अलावा हाथरस से उन्नाव तक की उनकी सक्रियता ने जनता में सकारात्मक संदेश दिया है। संभव है, इन चुनावों में बहुत सफलता नहीं मिले लेकिन भविष्य के लिए अच्छे संकेत स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। मायावती इन चुनावों में पहले की तरह सक्रिय नहीं दिख रहीं, लेकिन उन्हें खारिज करना अपरिपक्वता और जल्दबाजी होगी, दलित वोटर अब भी उनके साथ खड़ा है और टिकट वितरण में खास तरह की सोशल इंजीनियरिंग करके वे चुनावों में काफी उलट-पुलट करती नजर आ रही हैं। पूर्वांचल का दौरा करते हुए मैंने पाया कि लड़ाई इस बार दिलचस्प है और कोई भविष्यवाणी करना मुश्किल है। हालांकि यह तो साफ है कि इस बार भाजपा अपना पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा रही है। सपा बेहतर स्थिति में है और कांग्रेस पूर्वांचल की कम से कम बारह सीटों पर सीधी लड़ाई में है।

बलरामपुर में प्रियंका

बलरामपुर में प्रियंका

किसान आंदोलन वैसे तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही केंद्रित रहा और पूरब में इसकी कोई बड़ी धमक सुनाई नहीं देती, लेकिन टिकैत अब पूर्वांचल में भी जाना-पहचाना नाम बन चुके हैं। किसान आंदोलन में सक्रिय रहे शिवाजी राय बताते हैं कि पूर्वांचल का किसान इस हालत में नहीं था कि आंदोलन में सीधी भागीदारी कर सके, लेकिन अब वह एमएसपी को लेकर पहले से अधिक जागरूक है। फिर गन्ने का मसला तो है ही। कभी सर्वाधिक चीनी मिलों वाले देवरिया में अब ज्यादातर मिलें बंद हो चुकी हैं, किसानों को गन्ना लेकर दूर जाना पड़ता है और बकाया लगातार बढ़ने से लोगों ने गन्ने की खेती बंद कर दी है। जिले की सबसे पुरानी प्रतापपुर चीनी मिल इस साल गन्ने की आपूर्ति के अभाव में सिर्फ दो महीने पेराई कर सकी, किसान मिल के वर्तमान मालिक बजाज ग्रुप द्वारा समय पर भुगतान न कर पाने और सरकार की तरफ से कोई कदम न उठाने से नाराज थे। आखिर इलाके की इकलौती कैश क्रॉप से महरूम होना उनके लिए बड़ी चुनौती है। लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी है आवारा पशुओं से और यह मुद्दा पूर्वांचल में सत्ता पक्ष के लिए साइलेंट किलर जैसा बन सकता है।

कर्मचारी वर्ग पुरानी पेंशन को लेकर काफी संवेदनशील नजर आता है। राजस्थान सहित कुछ जगहों पर पुरानी पेंशन बहाली की घोषणाओं के बाद अखिलेश यादव के वादे को लेकर थोड़ा और उत्साह नजर आ रहा है। इसका असर चुनावी गणित को बिगाड़ सकता है और पहले से बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं को सत्ता पक्ष से और दूर कर सकता है। यह खास तौर पर शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी को इटवा में काफी नुकसान पहुंचा सकता है।

हालांकि खास तौर पर सवर्ण मतदाताओं के बीच धार्मिक ध्रुवीकरण में कोई खास कमी दिखाई नहीं देती। क्षत्रिय मतदाता तो योगी को अपना निर्विवाद नेता मानता है, ब्राह्मणों में भी, खास तौर पर युवाओं में भाजपा को लेकर उत्साह में बहुत कमी नहीं आई है। लेकिन इसका असर अलग-अलग सीटों पर स्थानीय समीकरणों के आधार पर कम-ज्यादा दिखाई देता है। उदाहरण के लिए, देवरिया शहर की सीट पर पिछले उपचुनाव में विजयी रहे डॉ. सत्यप्रकाश मणि त्रिपाठी का टिकट काटकर आदित्यनाथ के करीबी शलभमणि त्रिपाठी को दिए जाने से ब्राह्मणों के हिस्से में नाराजगी साफ दिखाई देती है। पूर्व विधायक जनमेजय सिंह की मृत्यु के बाद उनके लड़के पिंटू सिंह भी भाजपा की टिकट के लिए दावेदार थे लेकिन अब वे सपा उम्मीदवार हैं तो सैंथवार, यादव और मुस्लिम वोटों के साथ अगर ब्राह्मणों का एक हिस्सा उनके साथ चला गया तो शलभमणि के लिए देवरिया टेढ़ी खीर हो सकता है।

ऐसे ही रूद्रपुर में कांग्रेस के अखिलेश प्रताप सिंह की छवि विकास-पुरुष की है और वहां अपनी जाति के मतदाता काफी कम होने के बावजूद वे फिलहाल सबसे आगे नजर आ रहे हैं। पथरदेवा में सूर्य प्रताप शाही और ब्रह्माशंकर तिवारी जैसे कद्दावर नेताओं के बीच पूर्व विधायक शाकिर अली के पुत्र जावेद अली बसपा से मैदान में हैं और यहां सारा समीकरण उलझा हुआ लग रहा है। तमकुही से तीसरी बार विधायक बनने के प्रयास में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने पूरा दम लगाया हुआ है लेकिन सपा से सजातीय उम्मीदवार की चुनौती ने थोड़ी मुश्किल पैदा कर दी है। देवरिया की तरह यहां भी स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा गरम है। सलेमपुर में भाजपा बेहतर स्थिति में है तो रामपुर कारखाना में सपा की स्पष्ट बढ़त दिखाई देती है।

इन सबके बीच सबसे रोचक है राम मंदिर के मुद्दे का चुनावों से लगभग गायब होते जाना। चुनावों से पहले लग रहा था कि राम मंदिर भाजपा का सबसे बड़ा ट्रम्प कार्ड होगा, शुरुआत में नारा लगा भी ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लेकर आएंगे।’ लेकिन राम की परंपरागत भक्ति वाले इलाके में यह नारा चला नहीं, उलटे लोग नाराज हुए। फिर, आदित्यनाथ को अयोध्या की जगह गोरखपुर भेज दिया गया और राम मंदिर चुनावी पोस्टरों-भाषणों से ही बाहर होता गया। अब अयोध्या से भाजपा की सीट खतरे में है और गोरखपुर में राधामोहन दास अग्रवाल के सीधे बागी न होने से आदित्यनाथ तो जीत जाएंगे लेकिन बाकी सीटों पर सपा काफी मजबूत है। चंद्रशेखर आजाद गए तो बहुत जोर-शोर से थे लेकिन पूर्वांचल छोडि़ए, गोरखपुर में भी उनका कोई असर दिख नहीं रहा है। एक चर्चा यह है कि मोदी अयोध्या से अगला लोकसभा चुनाव लड़ने के मूड में हैं और इस मुद्दे को लोकसभा के लिए सुरक्षित रखना चाहते हैं।

(हिंदी के चर्चित लेखक पूर्वांचल के कई जिलों में दौरे पर थे। यहां व्यक्त विचार निजी हैं)

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