जब साल 2000 में टीवी पर कौन बनेगा करोड़पति शुरू हुआ तो उसे भारतीय मीडिया और मनोरंजन जगत में गेमचेंजर के तौर पर देखा गया। उसमें न सिर्फ आम आदमी को महानायक अमिताभ बच्चन के सामने हॉट सीट पर बैठने का मौका मिलता था, बल्कि विजेताओं को करोड़ों रुपये का पुरस्कार भी मिलता था। मशहूर ब्रिटिश गेम शो ‘हु वांट्स टु बी ए मिलियनेयर’ से प्रेरित केबीसी का सामाजिक असर भी पड़ा था। आम लोगों में शो की लोकप्रियता बढ़ने के साथ उसकी टीआरपी बढ़ती जा रही थी। बच्चन, शाहरुख खान और सलमान खान जैसी मशहूर शख्सीयतों के करीब आना आम लोगों का हमेशा सपना रहा है। केबीसी तो उनके लिए दोहरा इनाम जैसा था। महानायक के सामने हॉट सीट पर बैठ कर समाज में उनका दर्जा तो ऊंचा होता ही था, पैसा मिलना बोनस की तरह था।
आठ साल बाद इंडियन प्रीमियर लीग (आइपीएल) आया। वह भी केबीसी की तर्ज पर था क्योंकि उसका मकसद भी आम लोगों का मनोरंजन करना और पैसा कमाना था। यह प्राइम टाइम टेलीविजन पर हो रहा था और बॉलीवुड भी इसमें शामिल था। केबीसी और आइपीएल दोनों लंबा रास्ता तय कर चुके हैं। दुनिया का सबसे बड़ा टी-20 लीग आइपीएल आज भी लोकप्रिय है, हालांकि इसकी तुलना उस टूर्नामेंट से नहीं की जा सकती जिसमें दुनिया के हर क्षेत्र से सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी आते हैं।
केबीसी के 13 सीजन में 25 से ज्यादा लोग करोड़पति बने। बच्चन का करिश्मा और उनके सवाल-जवाब वाले इस गेम में इन लोगों ने एक करोड़ से लेकर सात करोड़ रुपये तक जीते। 21 वर्षों में केबीसी के 1000 से ज्यादा एपिसोड हो चुके हैं और करीब इतने ही लोग हॉट सीट पर बैठ चुके हैं। अगर बॉलीवुड और गेमिंग के नए तरीके के मिश्रण ने छोटे पर्दे पर मनोरंजन की परिभाषा बदली, तो आइपीएल 10 कदम आगे निकल गया। आइपीएल 2008 में लांच किया गया तो वह सोची-समझी रणनीति का नतीजा था। वह अमेरिका में खेले जाने वाले दुनिया की सबसे बड़ी बास्केटबॉल लीग एनबीए और दुनिया की सबसे लोकप्रिय फुटबॉल लीग इंग्लिश प्रीमियर लीग के सफल फॉर्मूले के साथ क्रिकेट और बॉलीवुड का मिश्रण था। पुराना होने के साथ आइपीएल न सिर्फ परिपक्व हुआ, बल्कि साल दर साल और मजबूत और बड़ा होता गया।
आइपीएल के पहले सीजन में भारत की 2008 की अंडर-19 वर्ल्ड कप टीम के 13 खिलाड़ी रातों-रात करोड़पति बन गए थे। फरवरी और मार्च 2008 में दो चरणों में खिलाड़ियों की नीलामी हुई थी। उन 13 खिलाड़ियों में आठ 50 हजार डॉलर (करीब दो करोड़ रुपये) में बिके थे। विराट कोहली (रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूरू), रवींद्र जडेजा (राजस्थान रॉयल्स), सौरभ तिवारी (मुंबई इंडियंस) और प्रदीप सांगवान (दिल्ली डेयरडेविल्स) उन मशहूर खिलाड़ियों में हैं जिन्हें पहले आइपीएल में भाग लेने वाली आठ टीमों ने खरीदा था। आइपीएल 2008 की सबसे कम बोली 1.2 करोड़ रुपये की थी। विदर्भ के विराज कदाबे पहले रणजी खिलाड़ी थे जिन्हें चेन्नई सुपर किंग्स ने 1.2 करोड़ रुपये में खरीदा था।
महेंद्र सिंह धोनी ने ताजा-ताजा 2007 का टी-20 वर्ल्ड कप भारत को दिलाया था। वे सबसे महंगे बिकने वाले भारतीय खिलाड़ी थे। उन्हें चेन्नै सुपर किंग्स ने करीब 6 करोड़ रुपये में खरीदा था। उनके लिए चेन्नै किंग्स और मुंबई इंडियंस के बीच तगड़ी बोली लगी थी। उसके बाद धोनी हमेशा चेन्नै टीम की तरफ से खेलते रहे। वे आज भी आइपीएल की पुरानी चैंपियन टीम का नेतृत्व कर रहे हैं और नई पीढ़ी के क्रिकेटरों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं।
आइपीएल में सेलिब्रिटी का तड़का तो बड़ा था ही, वह भारतीय क्रिकेटरों का भाव बढ़ाने जैसा भी था। हालांकि सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग से दुनिया के सबसे बड़े टी-20 क्रिकेट ब्रांड की छवि को धक्का जरूर लगा, फिर भी अमेरिकी फाइनेंशियल सलाहकार फर्म डफ एेंड फेल्प्स ने 2019 में आइपीएल की ब्रांड वैल्यू 6.8 अरब डॉलर आंकी थी। यह टूर्नामेंट पैसा, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा तीनों मामले में युवा खिलाड़ियों की जिंदगी बदल रहा था।
आइपीएल नीलामी के नियम बाद के वर्षों में बदले हैं। ज्यादा से ज्यादा घरेलू और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी इससे जुड़ना चाहते है। इसलिए नीलामी पर खर्च किए जा सकने वाले पैसे और खिलाड़ियों को बनाए रखने की नीतियों में बदलाव हुए हैं। साल 2022 मेगा नीलामी का साल था। इससे पहले 2018 में ऐसी नीलामी हुई थी। बीच में छोटी नीलामी होती हैं जिनमें टीमें जितना चाहे पुराने खिलाड़ियों को बनाए रख सकती है। मेगा नीलामी में टीमें सिर्फ चार पुराने खिलाड़ियों को बरकरार रख सकती हैं। इसलिए बड़ी संख्या में खिलाड़ी नीलामी के लिए उपलब्ध होते हैं। 2021 के ट्वेंटी-20 विश्व कप के बाद इस वर्ष हुई आइपीएल की नीलामी में 1214 खिलाड़ियों ने रुचि दिखाई। इनमें अनेक खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल के एसोसिएट मेंबर देशों नामीबिया, अमेरिका, नेपाल और भूटान के भी थे।
बड़ी नीलामी से पहले खिलाड़ियों को बनाए रखना दोधारी तलवार की तरह है। एक ओर टीमें अच्छा प्रदर्शन करने वाले अनेक खिलाड़ियों को रिलीज करने पर मजबूर होती हैं, तो दूसरी ओर उनके सामने नए मौके भी होते हैं। दिल्ली कैपिटल्स के पूर्व कप्तान श्रेयस अय्यर से पूछिए जिन्हें नीलामी के लिए रिलीज किया गया। अय्यर उन खिलाड़ियों में हैं जिन्हें नीलामी का सबसे अधिक फायदा हुआ। कोलकाता नाइट राइडर्स ने उन्हें 12.25 करोड़ रुपये में खरीदा। उनकी बेस प्राइस सिर्फ दो करोड़ रुपये थी। यही स्थिति कर्नाटक के बाएं हाथ के सलामी बल्लेबाज 21 वर्षीय देवदत्त पडिक्कल के साथ थी, जो रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूरू टीम के चहेते खिलाड़ी बन गए थे। बेंगलूरू टीम ने उन्हें रिलीज किया तो राजस्थान रॉयल्स ने 7.75 करोड़ रुपये में खरीदा।
आइपीएल 2022 की नीलामी की सबसे खास बात युवा खिलाड़ियों पर भरोसा जताना है। ईशान किशन इसके बेहतरीन उदाहरण हैं। मुंबई इंडियंस ने नीलामी के लिए उन्हें रिलीज तो कर दिया, लेकिन पांच बार की चैंपियन इस टीम ने उन्हें खरीदने के लिए जैसे अपना खजाना खोल दिया। बाएं हाथ का यह बल्लेबाज किसी भी पोजीशन में खेल सकता है। मुंबई इंडियंस ने पंजाब किंग्स, सनराइजर्स हैदराबाद और नई टीम गुजरात टाइटन्स की बोली को पीछे छोड़ते हुए ईशान किशन को अपने साथ बनाए रखने का फैसला किया। नतीजा यह हुआ कि इस प्राइस वार में पटना में जन्मे 23 साल के ईशान की बोली 15.25 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। यह मुंबई इंडियंस की तरफ से सबसे बड़ी बोली तो है ही, ईशान किशन युवराज सिंह (16 करोड़ रुपये) के बाद आइपीएल के इतिहास में दूसरे सबसे कीमती भारतीय खिलाड़ी भी बन गए हैं।
दीपक चाहर को भी नए नियमों का फायदा मिला। रिटेंशन नीति के चलते चेन्नै सुपर किंग्स को इस ऑलराउंडर को नीलामी के लिए रिलीज करना पड़ा। लेकिन चेन्नै की टीम ने नीलामी के दौरान तय किया कि 29 वर्षीय चाहर उसके साथ बने रहें, जो अब भारतीय टीम का हिस्सा बन चुके हैं। दिल्ली, हैदराबाद और राजस्थान ने उन्हें चाहर के लिए दस करोड़ से अधिक की बोली लगाई थी। उसके बाद चेन्नै ने 14 करोड़ की बोली लगाकर उन्हें टीम में वापस ले लिया। उनकी बेस प्राइस दो करोड़ थी।
नीलामी में एक और खास बात दिखी कि जिन खिलाड़ियों की उम्र 20 साल से कुछ अधिक है उनकी बोली अधिक लगी। हर्षल पटेल, प्रसिद्ध कृष्ण और अवेश खान जैसे भारतीय खिलाड़ी करोड़ों रुपये में बिके। उन्हें खरीदने वाली टीमों को भरोसा है कि इसका रिटर्न मिलेगा। रोचक बात यह है कि पैसा और प्रदर्शन हमेशा साथ नहीं रहा है। युवराज सिंह और क्रिस मॉरिस (जिन्हें राजस्थान रॉयल्स ने 2021 में 16.25 करोड रुपये की रिकॉर्ड कीमत पर खरीदा था) दो बेहतरीन उदाहरण हैं। सबसे महंगा बिकने के बावजूद उनका प्रदर्शन औसत रहा।
लेकिन आइपीएल बड़ा पैसा लगाने और उम्मीदों का ही तो खेल है। नई अंडर-19 विश्व कप विजेता भारतीय टीम के दो हरफनमौला खिलाड़ी राज बावा और राजवर्धन हंगरगेकर क्रमशः दो करोड़ और डेढ़ करोड़ रुपये में बिके। बावा को पंजाब किंग्स ने और राजवर्धन को चेन्नै ने खरीदा। उनकी बेस प्राइस क्रमशः 20 लाख और 30 लाख रुपये थी।
आइपीएल नीलामी में सभी टीमें डाटा साइंटिस्ट और ऐसे सॉफ्टवेयर लेकर आती हैं जो विश्लेषण कर सके और खिलाड़ियों के प्रदर्शन का अनुमान लगा सके। इसके बावजूद कई बार नीलामी तर्कों से परे हो जाती है। मुद्दे की बात यह है कि इस पूरी प्रक्रिया में खिलाड़ी रातोरात अमीर बन रहे हैं।
(लेखक आउटलुक के खेल संपादक हैं)