शीतयुद्ध के दो पुराने विरोधियों के बीच संबंधों को नया मोड़ देने की कोशिश में बीती 18 फरवरी को अमेरिकी और रूसी अधिकारियों के बीच हुई रियाध वार्ता अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की एक अप्रत्याशित कवायद थी, जिसके बाद से घटनाक्रम में काफी तेजी आई है। रूस और अमेरिका ने यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के उद्देश्य से वार्ता शुरू करने के लिए एक उच्चस्तरीय टीम बनाई है और अपने-अपने दूतावासों में कर्मचारियों की संख्या बहाल करने के साथ निकट आर्थिक सहयोग की दिशा में काम करने के लिए दोनों सहमत हो गए हैं। ट्रंप ने यूक्रेन पर समझौता करने की दिशा में काम करने के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलने की इच्छा जताई है। यह प्रयास जो बाइडेन के प्रशासन द्वारा अपनाई गई नीतियों के विपरीत है, जिसके चलते अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगाए थे और यूक्रेन को वित्तीय और सैन्य सहायता मुहैया करवाई थी।
विश्लेषकों का कहना है कि यह बदलाव इसलिए आया है क्योंकि ट्रंप युद्ध का अंत यूक्रेन के पक्ष में होता नहीं देख रहे हैं और सैन्य व तकनीकी श्रेष्ठता के मामले में रूस के बजाय वे चीन को अमेरिका के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखते हैं। तर्क दिया जा रहा है कि रूस के साथ पहले से तय संबंध अमेरिका को अपने सभी संसाधनों का उपयोग लंबे समय तक करने में, और शायद आने वाले समय में दुनिया में नंबर एक की स्थिति की ओर चीन को बढ़ने से रोकने में सक्षम बनाएगा। रूस के साथ युद्ध में अपने क्षेत्र का 20 प्रतिशत गंवा चुके युक्रेन की उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में सदस्यता का मसला अब भी अमेरिका-रूस वार्ता की मेज से दूर है। अमेरिका ने यूक्रेन को विशिष्ट सुरक्षा की गारंटी से इनकार करते हुए कहा है कि अगर वह अमेरिका के साथ खनिज निष्कर्षण समझौते पर हस्ताक्षर करता है, तो उसकी सुरक्षा अपने आप तय हो जाएगी।
अटलांटिक पार संबंधों में एक और नाटकीय बदलाव तब देखने को मिला जब अमेरिका ने अपने यूरोपीय सहयोगियों का साथ छोड़कर यूक्रेन युद्ध की तीसरी बरसी पर संयुक्त राष्ट्र में रूस के पक्ष में मतदान किया। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव का मसौदा तैयार किया और उस पर मतदान किया, जिसमें "संघर्ष का तेजी से अंत" करने को कहा गया था, लेकिन इसमें रूस की कोई आलोचना नहीं थी।
जब अमेरिकी और रूसी अधिकारियों ने आपस में बात की, तब यूक्रेन का प्रतिनिधित्व उसमें नहीं था, न ही यूरोपीय संघ (ईयू) से कोई मौजूद था। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की, राष्ट्रपति ट्रम्प और उनके सहयोगियों के बीच वाशिंगटन में ओवल ऑफिस में हुई विध्वंसक बैठक के बाद खनिज समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए जा सके और अमेरिका ने यूक्रेन से सहायता और खुफिया सूचनाएं साझा करने का समझौता निलंबित कर दिया। ईयू ने इसके बाद यूक्रेन युद्ध को एक महीने तक चलाए रखने के लिए पांच करोड़ यूरो की घोषणा की और यूरोपीय सुरक्षा के लिए आठ अरब यूरो जुटाने का वादा किया, लेकिन यूक्रेन दीवार पर लिखी इबारत को पढ़ चुका था। अलग-थलग पड़ चुके जेलेंस्की को वापस रियाध आना पड़ा। उन्होंने वहां एक शांति समझौते पर वार्ता को फिर से शुरू करने और अमेरिका के साथ संसाधन निष्कर्षण और लाभ-साझाकरण समझौते पर हस्ताक्षर करने का वादा किया। बावजूद इसके उन्हें अमेरिका की ओर से सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं मिली।
रिपोर्टों से पता चलता है कि यूरोप के लिए रूसी गैस पाइपलाइन नॉर्ड स्ट्रीम 2 को पुनर्जीवित किया जा सकता है, और अमेरिकी निवेशक इसके संचालन पर अपना दावा ठोंक सकते हैं, जिससे यूक्रेन में युद्धविराम के बाद प्रतिबंधों में ढील दिए जाने पर रूसी गैस के प्रवाह का रास्ता खुल सकता है। ट्रम्प, जिन्होंने एक बार परियोजना को निपटाने की कोशिश की थी, अब इस पाइपलाइन के सहारे जर्मन ऊर्जा बाजार पर लाभ गांठने का मौका देख रहे हैं। अमेरिकी विदेश और ट्रेजरी विभागों को रूस पर लगे ऐसे प्रतिबंधों की एक सूची तैयार करने का निर्देश दिया गया है जिन्हें हलका किया जा सकता हो, और उन रूसी संस्थाओं और पूंजीपतियों की सूची बनाने को भी कहा गया है जिन्हें इस व्यावस्था का लाभ मिल सकता हो।
अमेरिका और रूस के बीच समीकरणों का ऐसा पलटाव पहले भी देखा गया है। जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश के राज में स्टार्ट 1 और नन-लुगर कोऑपरेटिव थ्रेट रिडक्शन प्रोग्राम के तहत शुरू हुआ सहयोग तब समाप्त हो गया था जब पहला चेचन संघर्ष भड़का और रूस ने ट्रांसनिस्ट्रिया में युद्ध शुरू कर दिया। बिल क्लिंटन द्वारा स्टार्ट 2 संधि और नाटो-रूस पहल के बाद दूसरा चेचन युद्ध भड़क गया। फिर रूस जी-8 और यूरोपीय परिषद का सदस्य बन गया। जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने भी रूस के साथ संबंधों में नए सिरे से गढ़ने की कोशिश की थी- आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सहयोग पर उन्होंने जोर दिया तथा नाटो-रूस परिषद और जी -20 के माध्यम से बातचीत का प्रयास किया। रूस ने यूरोपीय देशों और अमेरिका पर फिर से हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया, जिसके परिणामस्वरूप जॉर्जिया में 2008 में युद्ध छिड़ गया।
2009 में बराक ओबामा के प्रयासों के परिणामस्वरूप नई स्टार्ट संधि हुई और ईरानी परमाणु कार्यक्रम को अवरुद्ध करने पर सहयोग हुआ। रूसियों को चुनाव में हस्तक्षेप और सीरिया में सैन्य हस्तक्षेप के लिए दोषी ठहराया गया। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी सुलह की मांग की थी, बावजूद इसके कि रूसी साइबर युद्ध, कुसूचना अभियानों और चुनावों में रूसी हस्तक्षेप को लेकर अमेरिका में चिंता जताई गई थी।
अमेरिका में इस पक्ष में मजबूत राय है कि ट्रम्प प्रशासन इस भ्रम में है कि वह रूस और चीन के बीच एक अड़ंगा लगा सकता है जबकि रूस-चीन साझेदारी ठोस है। यह संभावना कम ही है कि ट्रम्प की रणनीति चीन के साथ रूस की समृद्ध साझेदारी को कम कर पाएगी, लेकिन अमेरिकी प्रशासन के कुछ अधिकारियों का मानना है कि चीन पर रूस की निर्भरता अपने आप ही कम हो जाएगी; और अगर कुछ नहीं, तो अमेरिका रूस-चीन संबंधों के भीतर गुणवत्ता और सहयोग के स्तर के साथ छेड़छाड़ करने में सक्षम होगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति के पास नई नीति बनाने के लिए सिर्फ दो साल हैं जबकि रूसी राष्ट्रपति और अधिकारियों का कार्यकाल लंबा होता है। इसीलिए रूस के प्रति एक व्यापक रणनीति विकसित करना अन्य देशों से निपटने की तुलना में अधिक जटिल माना जाता है क्योंकि पारंपरिक नुस्खे अब काम नहीं आते हैं। रूस के साथ संबंधों को दोबारा गढ़ने के किए गए लगातार प्रयास अमेरिका के लिए संतोषजनक साबित नहीं हो सके हैं। अपने से पहले के अमेरिकी राष्ट्रपतियों की तरह, ट्रम्प भी एक तंग ढांचे के भीतर काम करते दिख रहे हैं। उनके मुख्य चुनावी वादों में से एक युद्ध समाप्त करना था। उनका घरेलू एजेंडा भी बहुत महत्वाकांक्षी है। इसलिए ट्रम्प को अपनी विरासत पीछे छोड़ जाने और अन्य दबाव वाले मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए रूस के साथ एक समझौते की सख्त दरकार है। ऐसे में भविष्य की तस्वीर कैसी होगी?
यूक्रेन में रूस एक ऐसे शांति समझौते की तलाश करेगा जो उसकी अपनी दीर्घकालिक सुरक्षा के हक में हो और वह संघर्ष में अब तक मिले लाभ से भी पीछे नहीं हटने वाला है। यूक्रेन के शांति प्रस्ताव में रूस से उन सभी क्षेत्रों को छोड़ने का आह्वान किया गया है जिन पर उसका कब्जा है। रूस का कहना है कि वह उन सभी जमीनों को अपने पास रखेगा जिन पर वह अपना दावा करता है। यूरोपीय संघ का विचार है कि रूस को जब्त की गई भूमि को रखने की अनुमति देना हमलावर को पुरस्कृत करने और पीड़ित को दंडित करने जैसा होगा, जो आगे रूसी विस्तार को प्रोत्साहित करेगा। रूस ने अब तक यूक्रेन के दावों को खारिज किया है कि वह एक शांति योजना पेश करेगा जो मिसाइल और ड्रोन हमलों को रोकने का प्रस्ताव रखे, साथ ही काले सागर में सैन्य गतिविधि को निलंबित कर दे। संघर्ष विराम प्रस्ताव में भी रूस की कम दिलचस्पी है। नाटो में शामिल होने की यूक्रेन की मांग पर भी कोई समझौता नहीं होने वाला - और वैसे भी यूरोप इस मुद्दे पर विभाजित है।
अनिश्चय में फंसे यूरोप के बीच फ्रांस और ब्रिटेन द्वारा यूक्रेन से लड़ने का आग्रह, साथ ही यूक्रेन के हक में फ्रांसीसी परमाणु सुरक्षा का विस्तार करने के बेचैन संकेतों को पुतिन ने नजरंदाज किया है। ट्रम्प प्रशासन के अधिकारियों का रवैया भी ऐसा ही तिरस्कारपूर्ण रहने वाला है। ऐसा लगता है कि यूक्रेन और यूरोप की कीमत पर अमेरिका-रूस का नया समीकरण अपने तार्किक अंजाम तक पहुंचेगा। यह समीकरण रूस-चीन संबंधों को प्रभावित करेगा या नहीं, अभी यह स्पष्ट नहीं है।
(अनिल वाधवा ने इटली, ओमान, थाईलैंड और पोलैंड में भारत के राजदूत के रूप में काम किया है और विदेश मंत्रालय में सचिव रह चुके हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)