हम आपके आइएएस बनने का सपना पूरा करेंगे, आइएएस बनना है, तो हमारे बारे में सोचिए, हमारे साथ बनिए आइएएस जैसे सपने बेचने वाले ढेरों कोचिंग संस्थान आपको दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, पटना, चेन्नई जैसे शहरों में मिल जाएंगे। इनका मकसद यही है कैसे हर साल उन 7-8 लाख छात्र-छात्राओं को अपने साथ जोड़ा जाए जो “बाबू” बनने का सपना देख रहे हैं। असल में अब भी देश में आइएएस की नौकरी, छोटे शहर, कस्बे और गांव में बैठे युवाओं को लुभाती है। उनके इस आकर्षण ने देश में 2500-3000 करोड़ रुपये के कोचिंग कारोबार को खड़ा कर दिया है। परंपरागत रूप से चलने वाले इस कारोबार में अब तकनीक ने दस्तक दी है, जिसका फायदा छोटे शहरों, कस्बों और गांवों के युवा उठा रहे हैं। कोचिंग संस्थाओं के अनुसार पिछले 8-10 साल में 40-50 फीसदी छात्र इन्हीं इलाकों से सिविल सर्विसेज में डंका बजा रहे हैं।
तकनीक कैसे फायदा पहुंचा रही है, इस पर दिल्ली स्थित एएलएस कोचिंग संस्थान के चीफ एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर जोजो मैथ्यू कहते हैं, “पिछले 10 साल में कोचिंग संस्थाओं का विकेंद्रीकरण हो गया है। इसकी वजह से छोटे शहरों, कस्बों और गांवों से परिणाम दिखने लगे हैं। पहले छात्र-छात्राओं के पास दिल्ली या ऐसे बड़े शहर ही तैयारी के विकल्प थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। ऑनलाइन कंटेट काफी आसानी से उपलब्ध है। हमारे संस्थान में 8 ऐसे उम्मीदवार सफल हुए हैं, जिन्होंने दिल्ली आकर कोई कोचिंग नहीं ली, और वे हमारे सेटेलाइट कोचिंग सेंटर के जरिए सफल हुए हैं। अब यह ट्रेंड धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। इस समय हमारे 93 सेटेलाइट सेंटर काम कर रहे हैं। बदलते ट्रेंड को देखते हुए ऐसा अनुमान है कि अगले दो-तीन साल में लोग दिल्ली आकर कोचिंग करना कम कर देंगे। इस बार एएलएस से 172 उम्मीदवाल सफल हुए हैं और उसमें से करीब 50 फीसदी ऐसे हैं, जो छोटे शहर, कस्बे और गांवों में रहते हैं।”
असल में सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए दिल्ली, चेन्नई, लखनऊ, इलाहाबाद, पटना, कोटा जैसे शहरों का ही बोलबाला रहा है। दस साल पहले तक जिसे भी तैयारी करनी होती थी, उसके पास यही विकल्प था कि वह इन शहरों में पहुंचे, कोचिंग करे, वहीं पर कमरा किराए पर लेकर या फिर हॉस्टल में रहकर तैयारी करे। वह अपनी सुविधा अनुसार मेट्रो शहरों या फिर प्रदेश की राजधानियों में पहुंचकर तैयारी करता था। इंटरनेट ने इसे बदल दिया है। लेकिन एक ट्रेंड यह भी सामने आ रहा है कि हिंदी माध्यम या क्षेत्रिय भाषाओं से छात्रों के चयन में कमी आई है।
इस पर कोचिंग संस्थान दृष्टि आईएएस के प्रबंध निदेशक डॉ. विकास दिव्यकीर्ति का कहना है, “2013 में परीक्षा के तरीके में बदलाव का असर यह हुआ है कि हिंदी भाषी उम्मीदवारों के चयन में कमी आई है। एक समय सफल उम्मीदवारों में हिंदी भाषी उम्मीदवारों की संख्या 8-10 फीसदी हुआ करती थी, जो गिरकर 2-3 फीसदी पर आ गई है। हालांकि सिविल सर्विसेज के प्रति आकर्षण में कोई कमी नही है। खास तौर से छोटे शहरों, गांव, कस्बों से लोग ज्यादा रुचि ले रहे हैं। इस बार भी हमारे संस्थान से 18-20 उम्मीदवार हिंदी माध्यम से चयनित हुए हैं। इसी तरह, अंग्रेजी माध्यम में 300 से ज्यादा सफल उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन्होंने दृष्टि से साक्षात्कार के लिए मार्गदर्शन लिया था।” हिंदी में कंटेट की उपलब्धता पर लखनऊ के कोचिंग संस्थान सार्थक आइएएस के डायरेक्टर रवि मोहन श्रीवास्तव का कहना है, “इंटरनेट की वजह से कंटेट की उपलब्धता बढ़ गई है, लेकिन यह बात भी सही है कि अंग्रेजी की तुलना में हिंदी में उतनी गुणवत्ता वाला कंटेट नहीं है। इसी वजह से आप देखिए टॉप 200 में अकसर हिंदी माध्यम के उम्मीदवार बहुत कम होते हैं।” फिर भी इंटरनेट का फायदा यह हुआ है कि अब लोगों को सस्ता कंटेट मिल रहा है। साथ ही वह अपने घर बैठकर पढ़ाई भी कर सकते हैं। रवि एक बात पर जोर देते हुए कहते हैं, “अभी भी भारत में छात्रों के मन में कोचिंग का मतलब, अध्यापक के सामने बैठकर पढ़ाई करना है। जबकि अब ऑनलाइन कंटेट की कोई कमी नहीं है। बस जरूरत है, गाइडेंस की। इस सोच में भी बदलाव की जरूरत है। अगर ऐसा होता है तो आने वाले दिनों में आपको इसके बेहतर परिणाम दिखेंगे।”
कोरोना ने किया ठप
भले ही तकनीक ने छात्रों की राह आसान की है लेकिन कोरोना संकट ने फिलहाल अगले साल की तैयारी का रास्ता बिगाड़ दिया है। सभी कोचिंग संस्थाएं पूरी तरह से बंद हैं। इस साल अभी सिविल सर्विसेज के तहत होने वाली प्रारंभिक परीक्षा भी नहीं हो पाई है। यही नहीं इन संस्थाओं में काम करने वाले हजारों लोगों के सामने रोजगार का भी संकट खड़ा हो गया है। मैथ्यू के अनुसार पांच महीने से सब-कुछ बंद है। न कोई एडमिशन हुआ और न ही कक्षाएं चल रही हैं। जबकि सामान्य दिनों में इस समय तक 90 फीसदी एडमिशन हो जाते थे। विकास भी ऐसी ही स्थिति बताते हैं। उनके अनुसार, “अभी तो सब-कुछ ठप है। मेरा अनुमान है कि दिसंबर 2020 के बाद ही स्थितियां सामान्य हो पाएंगी।”
बड़े शहरों की तुलना में छोटे शहरों में कोचिंग संस्थाओं की ज्यादा बुरी स्थिति हैं। रवि बताते हैं “लखनऊ की 90 फीसदी कोचिंग संस्थाएं बंद होने की कगार पर हैं।” इसका असर इन संस्थानों में काम कर रहे कर्मचारियों पर भी पड़ा है। मसलन एएलएस ने 50 फीसदी तक कर्मचारियों की संख्या में कटौती कर दी है, जबकि दूसरे कोचिंग संस्थानों ने कर्मचारियों के वेतन में कटौती की है। इसी तरह दृष्टि के विकास का कहना है, “जहां तक कर्मचारियों की संख्या में कमी करने का सवाल है, हमने इसमें कोई कटौती नहीं की है। हमारे सभी 650 कर्मचारी अभी भी हर माह वेतन प्राप्त कर रहे हैं, हालांकि वित्तीय संकट के मद्देनजर सभी के वेतन में तात्कालिक कटौती की गई है।” बदली परिस्थितियों में कोचिंग संस्थानों ने कुछ समय के लिए अब पूरी तरह से ऑनलाइन कक्षाओं पर फोकस रखा है। मैथ्यू कहते हैं, “अभी तो हम अपने सेटेलाइट सेंटर पर भी कोविड के कारण कक्षाएं नहीं शुरू कर सकते। ऐसे में हम ऑनलाइन कक्षाएं दे रहे हैं।” इसी तरह दृष्टि भी ऑनलाइन कक्षाएं शुरू करने जा रही है। सार्थक के रवि कहते हैं, “आने वाला समय ऑनलाइन का है, ऐसे में हम तो ऑनलाइन कक्षाओं पर ही फोकस कर रहे हैं।” ऑनलाइन कक्षाओं का सबसे बड़ा फायदा यह है कि एक तो छात्र-छात्राओं को घर बैठे कंटेट मिल जाता है। वहीं जिन प्रमुख शिक्षकों से पढ़ने के लिए वह अपना घर छोड़कर बड़े शहर आते थे, उन्हें भी वह ऑनलाइन मिल जा रहे हैं। इसके अलावा फीस में भी 40-50 फीसदी तक कमी आ जाएगी। अभी सामान्य तौर पर अगर कोई छात्र फुल टाइम कोर्स करता है तो उसे 1.5-2.0 लाख रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं। लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई में पैसे आधे हो जाएंगे।
जाहिर है, तकनीक और कोविड-19 ने कोचिंग संस्थानों को अपना बिजनेस मॉडल बदलने पर मजबूर कर दिया है। जिसका फायदा अब छोटे शहरों, कस्बों और गांव के छात्रों ने उठाना शुरू कर दिया है। हालांकि क्षेत्रीय भाषाओं में बेहतर कंटेट की कमी जरूर एक समस्या बनी हुई है। अब इसका रास्ता उन्हीं लोगों को निकालना होगा, जिनके ऊपर इस मॉडल को सफल बनाने की जिम्मेदारी है।