छत्तीसगढ़ में फिर आदिवासी आक्रोश उफान पर है। विधानसभा घेराव की मंशा से बस्तर के अलग-अलग इलाकों से राजधानी रायपुर की ओर कूच कर रहे आदिवासी फिलहाल तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के वादे पर लौट गए हैं, मगर महीने भर में मांगें न मानने पर बड़े आंदोलन की चेतावनी दी है। ‘सर्व आदिवासी समाज’ के बैनर तले इकट्ठा हुए आदिवासी सारकेगुड़ा, एडसमेटा न्यायिक जांच रिपोर्ट सार्वजनिक कर दोषियों पर सख्त कार्रवाई करने सहित 10 सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलित हैं। दरअसल बीजापुर के एडसमेटा कांड की न्यायिक जांच रिपोर्ट 14 मार्च को विधानसभा में पेश हुई तो उस पर जल्द कार्रवाई की मांग जोर पकड़ रही है।
नक्सल ग्रस्त बीजापुर जिले में 17 मई 2013 को एडसमेटा मुठभेड़ की जांच के लिए गठित न्यायिक जांच आयोग ने निष्कर्ष निकाला है कि सुरक्षा बलों ने निहत्थे लोगों की भीड़ पर घबराहट में गोलियां चलाई थीं। सुरक्षाबलों की कार्रवाई में तीन नाबालिग समेत नौ आदिवासी मारे गए थे। तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी सरकार ने तब दावा किया था कि मारे जाने वाले लोग माओवादी थे। कांग्रेस के प्रवक्ता सुशील आंनद शुक्ला कहते हैं, ‘‘जब हम विपक्ष में थे तब हमारे ही दबाव के चलते तत्कालीन भाजपा सरकार को न्यायिक जांच के आदेश देने पड़े थे। लिहाजा कार्रवाई करने को लेकर कोई संदेह की बात ही नहीं है।’’ मुख्यमंत्री बघेल ने भी आंदोलनकारी आदिवासियों से यही वादा किया है। लेकिन मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं को विश्वास नहीं है कि सरकार इस पर कोई ठोस कदम उठाएगी। आदिवासियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के मन में अविश्वास के पीछे उनका पुराना अनुभव है।
विधानसभा में 2 दिसंबर 2019 को बीजापुर के सारकेगुड़ा में हुई मुठभेड़ की न्यायिक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। 2012 के 28-29 जून की रात बीजापुर के सारकेगुड़ा क्षेत्र में सीआरपीएफ और सुरक्षाबलों के हमले में 17 लोगों की मौत हुई थी। सरकार ने उस दौरान दावा किया था कि सुरक्षाबलों ने 17 माओवादियों को ढेर किया है। मगर न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट ने इसके उलट इस पूरे दावे को फर्जी ठहराया था। रिपोर्ट के मुताबिक मारे जाने वाले लोग निर्दोष आदिवासी थे और पुलिस की एकतरफा गोलीबारी का शिकार बने थे। मगर दोषियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इसी तरह ताड़मेटला मामले की जांच में आयोग किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाया। 2011 में ताड़मेटला में करीब 259 आदिवासियों के घर जला दिए गए थे। आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार कहते हैं, ‘‘2019 में सारकेगुड़ा मुठभेड़ की न्यायिक जांच की रिपोर्ट आई तब मैं दंतेवाड़ा गया था। हम लोग परसागुड़ा थाने भी गए लेकिन हमारी एफआइआर दर्ज नहीं हुई। मुख्यमंत्री बघेल के सलाहकार ने फोन करके कहा कि दो महीने के भीतर कार्रवाई करेंगे....तीन साल बीत गए हैं मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब एडसमेटा की रिपोर्ट भी आ गई है, मगर सरकार ग्रामीणों के विरोध करने के अधिकार को कुचल रही है।’’
बीजापुर के एडसमेटा कांड पर न्यायिक जांच आयोग की 354 पृष्ठ की रिपोर्ट में कहा गया है ‘‘सुरक्षा बलों ने शायद ग्राम एडसमेटा के समीप आग के आस-पास एकत्रित लोगों को देखकर उन्हें नक्सली समझा और घबराहट में गोलियां चला दीं।’’
बस्तर अंचल में लंबे समय से आदिवासियों के बीच सक्रिय मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील बेला भाटिया का मानना है कि यहां फर्जी मुठभेड़ कोई नई बात नहीं है। वे कहती हैं, ‘‘रमन सरकार में भी फर्जी मुठभेड़ होते थे और भूपेश सरकार में भी। लेकिन पुलिस एफआइआर तक दर्ज नहीं करती है।’’
कांग्रेस ‘आदिवासी हितैषी’ सरकार का तमगा लेकर सत्ता में आई थी। अब उस पर ठोस कदम उठाने का दबाव बढ़ रहा है। 2018 में सरकार के गठन के फौरन बाद टाटा संयंत्र के लिए अधिग्रहीत भूमि किसानों को वापस करने के फैसले से लेकर, वनाधिकार अधिनियम 2006 के तहत भूमिहीन आदिवासियों और परंपरागत वनवासियों को भूस्वामित्व देने में तेजी लाने जैसे कदमों ने आदिवासियों में विश्वास पैदा किया था। लेकिन फर्जी मुठभेड़ के आरोप, बस्तर में लगातार सुरक्षाबलों के कैंप खुलने और पेसा कानून के अनुपालन नहीं होने से खास तौर पर बस्तर के आदिवासी खफा हैं।
प्रमुख मांगें
. एडसमेटा और सरकेगुड़ा घटना की न्यायिक जांच रिपोर्ट को सार्वजानिक करके दोषियों पर कार्रवाई की जाए
. बस्तर में पुलिस कैंप बंद हो, फर्जी मुठभेड़ रुके, आदिवासियों की गिरफ्तारी बंद हो
. जेलों में सजा भोग रहे निर्दोष आदिवासियों की तत्काल रिहाई हो
. संविधान सम्मत पेसा कानून धारा 4(घ) एवं 4 (ण) के तहत हर गांव में ‘ग्राम सरकार’ एवं हर जिले में ‘जिला सरकार ‘ गठन की प्रशासकीय व्यवस्था लागू हो
. संविधान की 5वीं अनुसूची तहत आंध्र प्रदेश के अनुसूचित क्षेत्र भूहस्तांतरण विनियम कानून की तर्ज पर छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता में संशोधन हो
. संविधान के मुताबिक ग्रामसभा के निर्णय का पालन हो
. छत्तीसगढ़ सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 2005 खारिज हो
. अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों को अनारक्षित घोषणा करना बंद हो। अनुसूचित क्षेत्र में संविधान का अनुच्छेद 243 (य, ग) का पालन करते हुए सारे गैर-कानूनी नगर पंचायतों, नगर पालिका को भंग करते हुए पेसा कानून के तहत पंचायती व्यवस्था लागू की जाए