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आवरण कथा/सात साल का हाल : सातवां अध्याय

भारत में महामारी की दूसरी लहर ने कैसा विध्वंस मचाया है। सरकार को वैक्सीन का निर्यात रोकना पड़ा और ऑक्सीजन तथा वेंटिलेटर का आयात करना पड़ा।
शेषाद्रिचारी के अनुसार टीम के लोगों को फैसला  लेने की आजादी नहीं है। प्रधानमंत्री होने के नाते उन्हें अपनी टीम पर भरोसा करना पड़ेगा

देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने 7 मार्च को कोविड-19 महामारी पर विजय का ऐलान करते हुए कहा था, “भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ाई आखिरी चरण में है।” उन दिनों भारत कोविड-19 वैक्सीन का निर्यात भी कर रहा था, जिसकी प्रशंसा करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने कहा था, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया की फार्मेसी बनकर उभरा है।” स्वास्थ्य मंत्री का तात्पर्य यह था कि भारत वैक्सीन के मामले में न सिर्फ आत्मनिर्भर है, बल्कि दूसरे अनेक देशों की मदद भी कर रहा है। सरकार में अन्यत्र से भी ऐसी तारीफें आने लगीं। विदेश सचिव हर्ष वी. शृंगला ने 30 मार्च को स्तुतिगान करते हुए विश्व स्तर पर दवाओं और अब वैक्सीन की मांग पूरी करने में भारत की भूमिका का जिक्र किया था। उन्होंने इसे प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत मिशन का बेहतरीन उदाहरण बताया।

एक महीना भी नहीं बीता था कि देश के स्वास्थ्य ढांचे के मलबे में ये सब दावे दफन हो गए। ऑक्सीजन के लिए हांफते मरीज, अस्पतालों में बेड के लिए यहां से वहां भागते लोग और जीवन रक्षक दवाओं के लिए हताश लोगों की सोशल मीडिया पर गुहार ने बताया कि भारत में महामारी की दूसरी लहर ने कैसा विध्वंस मचाया है। सरकार को वैक्सीन का निर्यात रोकना पड़ा और ऑक्सीजन तथा वेंटिलेटर का आयात करना पड़ा। अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोप, जापान और विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से अधिकृत कोविड-19 वैक्सीन का आयात कर उनके इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति देनी पड़ी।

सड़कों पर दम तोड़ते मरीजों के परिजनों की हृदय विदारक चीखें और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में लाशों के ढेर के अंतिम संस्कार की तस्वीरें आने के बाद जब लगने लगा कि हालात काबू से बाहर हो रहे हैं, तो भाजपा ने अपने प्रचार तंत्र को कई गुना बढ़ा दिया। पार्टी की मीडिया टीम के सदस्य प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ में लेख पर लेख लिखे जा रहे हैं। हाल ही पार्टी प्रवक्ता सुदेश वर्मा का एक लेख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था, ‘पीएम मोदी कड़ी मेहनत कर रहे हैं, विपक्ष के झांसे में मत आइए’।

भाजपा आइटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने इसे ट्वीट करते हुए लिखा कि सिर्फ कोविड-19 से मरने वालों की खबरें बताई जा रही हैं। बीमारी से ठीक होने वालों के बारे में नहीं बताया जा रहा है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को खुला पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि ‘कांग्रेस के नेता लोगों को गुमराह करना बंद करें’। भाजपा के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने नकारात्मक वातावरण का विरोध करने के लिए ‘पॉजिटिविटी अनलिमिटेड’ कार्यक्रम के साथ अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर दिया है। इसका समापन संघ प्रमुख मोहन भागवत के भाषण से होगा, जिसमें वे लोगों को सकारात्मक कहानियों के जरिए मनोबल ऊंचा रखने के लिए कहेंगे।

वैसे, सरकार जिस तरह से कोविड-19 महामारी से निपट रही है, उससे संघ के भीतर भी असंतोष कम नहीं है। इसके बावजूद अगले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को देखते हुए संघ ने कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया है। उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ भाजपा नेता चेतावनी देते हुए कहते हैं, “अगर हालात नहीं सुधरे तो यह प्रदेश पार्टी के हाथ से निकल सकता है। योगी आदित्यनाथ मोदी नहीं कि इतना सबके बाद भी लोग उन्हें पसंद करेंगे।”

हालांकि मोदी की इस तथाकथित अपराजेय छवि को लेकर सभी सहमत नहीं हैं। मोदी सरकार के तमाम दावों की हकीकत को महामारी ने उजागर कर दिया है। हालात से खिन्न एक भाजपा नेता कहते हैं, “2014 में सत्ता में आने के बाद सरकार लोगों में अपनी छवि को मैनेज करने में कामयाब रही। किसी ने भी तीखे सवाल नहीं पूछे। मेक इन इंडिया का क्या हुआ? स्मार्ट सिटी कहां है? डिजिटल इंडिया कहां है? महामारी ने न सिर्फ देश के कमजोर स्वास्थ्य ढांचे को उजागर किया है बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था की खामियां भी सामने आई हैं। लाखों छात्रों का भविष्य अनिश्चितता के भंवर में फंसा हुआ है।” भाजपा के ये नेता और उनके परिवार के कई सदस्य पिछले दिनों कोरोना संक्रमित हो गए थे।

विश्लेषकों के अनुसार समस्या प्रधानमंत्री पर पार्टी की अत्यधिक निर्भरता है। पार्टी उन्हें दबंग शासक और हर मौके पर तारणहार के रूप में पेश करती है। उक्त भाजपा नेता ने कहा, “क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि सीबीएसई की परीक्षाएं स्थगित करने का फैसला भी शिक्षा मंत्री स्वयं नहीं कर सकते। उसके लिए भी प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की जरूरत पड़ती है।”

‘ऑर्गेनाइजर’ के पूर्व संपादक शेषाद्रिचारी के अनुसार मोदी ने ज्यादातर क्षेत्रों में बढ़िया काम किया है, लेकिन सात वर्षों में वे अच्छी टीम नहीं बना पाए। चारी के अनुसार, “इसी का नतीजा वन मैन आर्मी है। उनकी टीम के लोगों को फैसला लेने की आजादी नहीं है। प्रधानमंत्री होने के नाते आपको अपनी टीम पर भरोसा करना पड़ेगा।”

चारी मानते हैं कि वित्त समेत बहुत से मंत्रालयों में काबिल लोग नहीं थे। वे कहते हैं, “कोई भी बुद्धिमान विपक्षी पार्टी इस खामी का फायदा उठाती।” एक व्यक्ति पर ज्यादा निर्भरता और उसकी दबंग छवि की वजह से आम राय बनाने में भी बाधा आई, जबकि महामारी जैसे संकट से निपटने के लिए इसकी बहुत जरूरत थी।

चारी के अनुसार हमारा राजनीतिक वर्ग आम राय बनाने और विपक्ष से बात करने को कमजोरी समझता है। मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा में भी ऐसा ही है, जबकि सोचने का यह तरीका बिल्कुल गलत है। वे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी का उदाहरण देते हुए कहते हैं, “एक समय लोकसभा में लालकृष्ण आडवाणी समेत भाजपा के सिर्फ दो सांसद थे। एक बार जब सदन में आडवाणी कुछ सुझाव देने के लिए खड़े हुए तो राजीव गांधी ने कहा, हम किसकी बात सुनेंगे जिनके दो सदस्य हैं?” चारी के अनुसार नेताओं को राजनीतिक लाइन से परे जाना होगा।

चारी के अनुसार अब भी मोदी का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए सरकार के पास गलतियां सुधारने का मौका है। यह मौका यूपीए के पास नहीं था। जब यूपीए का पतन शुरू हुआ तो वह भी उसका सातवां साल था। 2011 में लोकपाल बिल को लेकर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन शुरू हुआ तो यूपीए को कभी संभलने का मौका ही नहीं मिला, क्योंकि भाजपा उसकी मजबूत प्रतिद्वंद्वी थी। लेकिन आज कांग्रेस, भाजपा की वैसी मजबूत प्रतिद्वंद्वी नहीं जान पड़ती है।

2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के बारे में वे कहते हैं कि कोविड-19 की दूसरी लहर से निपटने में भाजपा को जो भी नुकसान हुआ, उसकी वह भरपाई कर सकती है। लेकिन इसके साथ ही वे सवाल करते हैं, “क्या शीर्ष नेतृत्व गलतियां सुधारने के लिए तैयार है? क्योंकि इसका मतलब होगा एक बेहतर टीम तैयार करना जिसके पास फैसले लेने की आजादी हो, और विपक्ष को साथ लेना।”

दबंग छवि वाले मोदी जैसे व्यक्ति के लिए ऐसा करना मुश्किल होगा। कोरोना संकट से निपटने में हुई आलोचना और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में पराजय ने ब्रांड मोदी को काफी नुकसान पहुंचाया है। पूर्व राज्यसभा सदस्य पवन वर्मा कहते हैं कि मोदी की अपराजेय छवि दरक तो गई, लेकिन पूरी तरह टूटी नहीं है। उन्होंने कहा, “अब इस धारणा पर सवाल उठने लगे हैं कि मोदी कोई गलती नहीं कर सकते, और चाहे जो हो जाए लोग उन्हें ही पसंद करेंगे। कोविड-19 की दूसरी लहर का अनुमान लगाने और उससे निपटने में जिस तरह का कुप्रबंधन सामने आया, उससे लोगों में काफी नाराजगी है।”

इस नाराजगी का असर विपक्ष पर निर्भर करता है। वर्मा के अनुसार सरकार के खिलाफ इस रोष को भुनाने और उसे चुनाव तक नए स्तर पर ले जाने के लिए एक संगठित विपक्ष की दरकार है। ऐसा विपक्ष जिसके पास भरोसेमंद चेहरा हो, न्यूनतम साझा कार्यक्रम और स्पष्ट विचारधारा हो, जो सरकार के खिलाफ मुहिम खड़ी कर सके। विपक्षी नेताओं के एक साथ फोटो खिंचवाने मात्र से कुछ नहीं होगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सलाहकार रह चुके वर्मा विपक्ष को चेताते हुए कहते हैं, “लोकतंत्र में किसी को भी चुनी हुई सरकार की क्षमता को कम नहीं आंकना चाहिए। माहौल अपने पक्ष में करने के लिए तीन साल का वक्त बहुत होता है। विपक्ष के पुनर्गठित होने के लिए भी इतना समय काफी है। अभी मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि 2024 की लड़ाई काफी मजेदार होगी।”

वर्मा के अनुसार भाजपा की ध्रुवीकरण की नीति की भी एक सीमा है, यह बात अब जाहिर हो चुकी है। यह नीति अब विफल होने लगी है। लेकिन यह बात भी सच है कि कोई भी पार्टी अब हिंदुत्व की अनदेखी नहीं कर सकती है, जिसे इस केसरिया पार्टी ने देश के राजतंत्र में भली-भांति पिरो दिया है।

ध्रुवीकरण के अलावा और भी बातें हैं जिससे भाजपा को वांछित नतीजे नहीं मिल रहे हैं। अनेक नेताओं का मानना है कि सत्ता में लंबे समय तक बने रहने से एक तरह का अहंकार आ जाता है। कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा कहते हैं कि यूपीए के दूसरे शासनकाल में भी ऐसा देखने को मिला था। झा के अनुसार भाजपा की तरह कांग्रेस भी दूसरी बार ज्यादा सीटें लेकर सत्ता में आई थी। उसके बाद उसमें यह अभिमान और भाव घर करने लगा कि कोई हमें हटा नहीं सकता है। लेकिन 2011 में जनलोकपाल आंदोलन की लहर पर सवार होकर मोदी आए। भाजपा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लगातार कांग्रेस पर प्रहार करती रही और जीत गई। अगर कांग्रेस महामारी के दौरान काम करे और सरकार की विफलताओं को लगातार उजागर करती करे तो मोदी का खेल खत्म हो सकता है। पार्टी की खुली आलोचना के लिए कांग्रेस से निलंबित किए गए झा कहते हैं, “भाजपा 2024 से पहले कुछ न कुछ बड़ा करने की कोशिश अवश्य करेगी। राम मंदिर का उद्घाटन होगा। मीडिया तो है ही। विदेश दौरे होंगे, चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर कुछ शोर होगा। वे कुछ न कुछ करने की कोशिश जरूर करेंगे।”

पूर्व राज्यसभा सदस्य पवन वर्मा के अनुसार अब इस धारणा पर सवाल उठने लगे हैं कि मोदी कोई गलती नहीं कर सकते, और चाहे जो हो जाए लोग उन्हें ही पसंद करेंगे

झा इस बात को लेकर तो आश्वस्त नहीं हैं कि मोदी के खिलाफ अभियान में कांग्रेस विपक्ष का नेतृत्व कर सकेगी, लेकिन वे यह जरूर मानते हैं कि पार्टी की मजबूत मौजूदगी बनी रहेगी। वे कहते हैं, “राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो अब भी कांग्रेस एकमात्र पार्टी है जो भाजपा का मुकाबला कर सकती है।”

कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी का मानना है कि कोविड-19 की दूसरी लहर मोदी सरकार के लिए नया मोड़ साबित हो सकती है। वे कहती हैं, “अफसोस की बात है कि ऐसा सरकार के कुप्रबंधन के चलते लाखों लोगों की मौत के बाद होगा। महामारी ने किसी को भी नहीं बख्शा है। लोगों के दिलो-दिमाग पर इसकी छाप हमेशा बनी रहेगी।”

महामारी के समय सरकारी तंत्र के बिखरने के लिए नेताओं के आत्मसंतोष से ज्यादा उनका अहंकार जिम्मेदार है। मुखर्जी के अनुसार इस समय पूरे देश को साथ खड़ा होने की जरूरत है। सरकार को विपक्ष से बात करनी चाहिए थी और दलगत सोच से ऊपर उठकर मनमोहन सिंह जैसे अनुभवी लोगों की राय लेनी चाहिए थी। ऐसा करने के बजाए सत्तारूढ़ दल के नेता चुनावों में व्यस्त थे।

राजनीतिक विश्लेषक आनंद रंगनाथन इस बात से तो सहमत हैं कि सरकार ने अपने फोकस खो दिया, लेकिन उनके मुताबिक, यह कहना मुश्किल है कि ऐसा विधानसभा चुनावों में व्यस्तता के कारण हुआ। वे कहते हैं, “उनका फोकस तो इन चुनावों की तैयारी शुरू होने से बहुत पहले ही बिगड़ गया था। इसका दूरगामी प्रभाव हुआ। राज्यों ने केंद्र का अनुसरण किया और जल्दी ही सब चुपचाप बैठ गए। इसमें कोई संदेह नहीं कि केंद्र और राज्य दोनों ने गलतियां कीं, अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटे और नागरिकों को उनके हाल पर छोड़ दिया।”

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्पेशल सेंटर फॉर मॉलेक्युलर मेडिसिन के प्रो रंगनाथन, राजनीति से इतर सरकार की अन्य खामियां भी गिनाते हैं। उनके मुताबिक, वायरस के भारतीय म्यूटेंट (महाराष्ट्र में) और इंग्लैंड के म्यूटेंट (दिल्ली और पंजाब में) ने दूसरी लहर में कहर बरपाने का काम किया है। उन्होंने बताया, “हमने भारतीय स्ट्रेन की सीक्वेंसिंग पिछले साल अक्टूबर में ही कर ली थी। हमें उसी समय कांटेक्ट रेसिंग करने और इस वायरस से ग्रसित लोगों को आइसोलेट करने की जरूरत थी, ताकि शुरू में ही उसे रोका जा सके। लेकिन हमने ऐसा नहीं किया। हमारे पास जिनोम सीक्वेंसिंग तेज करने के लिए पैसे ही नहीं थे। कुछ संकेत स्पष्ट थे फिर भी सरकार उन्हें देखने में नाकाम रही। जिन देशों ने पहली लहर को झेला उन्होंने यह भी देखा कि दूसरी लहर ज्यादा बड़ी थी। अमेरिका में दिसंबर और जनवरी के दौरान कैलिफोर्निया को ऑक्सीजन की भीषण किल्लत से जूझना पड़ा था। हमारी टास्क फोर्स इस बात का अनुमान क्यों नहीं लगा सकी कि दूसरी लहर में ऑक्सीजन की बड़ी मांग होगी। न तो किसी नेता, न ही किसी स्वास्थ्य अधिकारी के पास इस बात की कोई जानकारी थी कि हमें कितनी ऑक्सीजन की जरूरत पड़ेगी।”

वैक्सीन के मुद्दे पर प्रो. रंगनाथन कहते हैं, “वैक्सीन का मैन्युफैक्चरिंग हब होने के बावजूद भारत ने तीन महीने देरी से वैक्सीन हासिल की। अब भी हम रोजाना सिर्फ 10 लाख लोगों को वैक्सीन की पहली डोज लगा रहे हैं। बीते चार महीने में हम सिर्फ एक दिन एक बार 60 लाख वैक्सिनेशन तक पहुंच सके। बाकी दिन तो उससे आधी वैक्सीन भी नहीं लगा पा रही हैं। यह स्थिति तब है जब हम सब जानते हैं कि सिर्फ वैक्सीन लोगों की जान बचा सकती है।”

वे कहते हैं, “यह स्पष्ट है कि विधानसभा चुनाव से बहुत पहले सरकार का फोकस बिगड़ गया था। बल्कि सच तो यह है कि उन्होंने विधानसभा चुनाव का इस्तेमाल उस बिगड़े फोकस को सुधारने के लिए किया। इसके लिए उन्होंने ‘कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई अंतिम चरण में है’ जैसे बयान दिए, कोविड नियमों का उल्लंघन किया, बड़ी-बड़ी रैलियां कीं, धार्मिक आयोजनों और किसान प्रदर्शनों से आंखें मूंद लीं। आज लोगों की इस दुरावस्था और रोजाना हो रही हजारों मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है? आखिर यह कब रुकेगा?

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