लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाला सत्ताधारी महायुति गठबंधन खुद को फंसा हुआ पा रहा है। इसमें दरार उभरना शुरू हो चुकी है। शिव सेना से टूटे एकनाथ शिंदे और राष्ट्रवादी कांग्रेस से टूटे अजित पवार, दोनों के साथ एक के बाद एक गठबंधन कर भाजपा ने महाराष्ट्र की परंपरावादी जनता के बीच छवि बिगाड़ ली है। यही वजह रही कि कुल 48 संसदीय सीटों में से इन तीनों को मिलाकर मात्र 17 सीटें मिलीं। महायुति के इस नुकसान को महाविकास अघाड़ी ने लाभ में बदल लिया। यह इसलिए अहम है क्योंकि विधानसभा चुनाव में अब तीन महीने से भी कम का वक्त बचा है।
दोनों गठबंधनों के घटक उसमें बने रहने या अलग हो जाने के विकल्प पर मंथन कर रहे हैं। सभी बेहतर दांव खेलना चाहते हैं ताकि सत्ता में भागीदारी कायम रह सके। कुल 288 विधानसभा सीटों पर इन दो गठबंधनों के छह घटक दलों के अलावा वंचित बहुजन पार्टी और निर्दलियों की भी दावेदारी है। महाविकास अघाड़ी के नेताओं ने तय किया है कि वे गठबंधन को कायम रखेंगे और मिलकर चुनाव लड़ेंगे। दिक्कत महायुति के साथ है, जिसके घटकों के बीच आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो चुका है।
भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र में हुआ है, जहां मराठा आरक्षण और कृषि उत्पादों का न्यूनतम मूल्य मुद्दा था। मराठा आंदोलन को कम आंकने का ठीकरा अब उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री देवेंद्र फणनवीस के सिर फोड़ा जा रहा है। दोनों क्षेत्रों की कुल आठ सीटों में से एक पर भी पार्टी नहीं जीती है। फणनवीस ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए पहले ही इस्तीफा दे दिया था।
जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से भाजपा के एनसीपी के साथ गठजोड़ पर उंगलियां उठीं, तब कठघरे में अजित पवार आ गए। संघ प्रचारक रतन शारदा ने संगठन के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में लिखा कि पवार के एनसीपी धड़े के भाजपा के साथ आने से ‘‘भाजपा की ब्रॉन्ड वैल्यू घटी और इसने बाकी दलों से उसके अंतर को खत्म कर डाला।’’ संघ के सवाल उठाने के बाद से ही भाजपा नेता फणनवीस के साथ खड़े हो गए हैं और पवार की कुर्बानी मांग रहे हैं। कुछ नेता चाहते हैं कि गठबंधन जस का तस कायम रहे।
पवार ने कहा है कि वे गठबंधन में बने रहेंगे, लेकिन उनके कार्यकर्ता चाहते हैं कि एनसीपी गठबंधन से बाहर आ जाए। कार्यकर्ता और समर्थक पवार के गृहजिले बारामती में हार से भी बौखलाए हुए हैं। एनसीपी के एक कार्यकर्ता ने बताया, ‘‘यहां के लोग भाजपा के खिलाफ हैं। लग रहा है कि भाजपा के कारण ही लोगों ने हमें ठुकरा दिया।’’
छगन भुजबल जैसे पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता मान रहे हैं कि पवार यदि गठबंधन के साथ बने रह गए तो एनसीपी को असेंबली चुनाव में 90 सीटें लड़ने के लिए मिल सकती हैं। पार्टी को भरोसा है कि वह अपने 42 मौजूदा विधायकों की सीट को बचा लेगी, इसके अलावा अतिरिक्त 40 सीटों पर उसे समर्थन मिलेगा। असेंबली चुनाव इस लिहाज से अजित पवार की एनसीपी के लिए जीवन-मरण का खेल साबित होने जा रहा है।
उधर शिव सेना के नेता भाजपा के खिलाफ इसलिए भड़के हुए हैं कि उसने पार्टी के आंतरिक सर्वेक्षणों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करते हुए अहम सीटों पर उसे दावेदारी नहीं दी। शिंदे को इन सीटों पर भाजपा प्रत्याशी के लिए समझौता करना पड़ा और नतीजतन वहां गठबंधन की शर्मनाक हार हुई। शिंदे की शिव सेना ने जिन तेरह सीटों पर प्रत्याशी उतारे उनमें सात पर जीत हासिल की। इस तरह शिंदे की न सिर्फ मतदाताओं में बल्कि पार्टी के भीतर भी स्वीकार्यता बढ़ी और उनकी सौदेबाजी की ताकत में भी इजाफा हुआ है। शिव सेना के वरिष्ठ नेता रामदास कदम ने पार्टी के स्थापना दिवस आयोजन में शिंदे से कहा कि वे टिकट बंटवारे में अपनी मांग पर अड़े रहें। असेंबली चुनाव के लिए उनके मुताबिक शिव सेना को कम से कम 100 सीटें मिलनी चाहिए। इनमें 90 सीटों पर उनके मुताबिक जीत पक्की है। दिल्ली में एनडीए के विजय समारोह में शिंदे को प्रधानमंत्री मोदी की भी सराहना मिली थी।
भाजपा और शिव सेना महाराष्ट्र की सत्ता को किसी भी कीमत पर अपने पास रखना चाहते हैं। ऐसे में भाजपा के पास टिकट बंटवारे और गठबंधन कायम रखने की दोहरी जिम्मेदारी होगी।