पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की प्रचंड जीत की खुमारी आप नेताओं के ही नहीं, लोगों के सिर चढ़कर भी बोल रही है। 10 मार्च को चुनाव नतीजे घोषित होने के दिन से लेकर अभी तक यह खुमारी राज्य के मालवा इलाके के शादी-ब्याह समारोहों में भी देखी जा सकती है। डीजे डांस फ्लोर पर हाथों में झाड़ू लिए लोग ‘तेरे याद नूं दबण नूं फिरदे है पर दबदा कित्थे है’ पर जमकर भांगड़ा कर रहे हैं। इसी गीत का इस्तेमाल पंजाब विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री भगवंत मान के प्रचार के लिए किया गया।
पंजाब में सियासी बदलाव के किरदार भांगड़ा में झूम उठने वाले ये आम लोग ही हैं जिन्होंने शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस जैसे पारंपरिक दलों से बरसों का साथ छोड़ इस बार ‘आप’ पर भरोसा जताया है। बदलाव की बयार में पंजाब की सत्ता पर काबिज सात दशक पुराने तमाम सियासी दिग्गज धराशायी हो गए। इन्हीं आम लोगों ने कुल 117 सदस्यीय विधानसभा में 92 सीटें आप को दे दीं, जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस को 18, अकाली दल-बसपा गठबंधन को चार और भाजपा को दो सीटों पर समेट दिया। एक सीट निर्दलीय को मिली।
इस अप्रत्याशित जीत ने आप और उसके नेता, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को राष्ट्रीय स्तर पर भी स्थापित कर दिया है। आप एक से ज्यादा राज्यों में सत्ता में इकलौती गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस पार्टी हो गई है। ये अटकलें भी शुरू हो गई हैं कि क्या केजरीवाल 2024 में विपक्षी गठजोड़ का नेतृत्व कर सकते हैं। हालांकि आप के खिलाफ यह बात जा सकती है कि दिल्ली और पंजाब को मिलाकर सिर्फ 20 लोकसभा सीटें बनती हैं। इसके अलावा आप की विधानसभा चुनावों में कामयाबी संसदीय चुनावों में नतीजा नहीं दिखा पाई है। दिल्ली में दो लोकसभा चुनावों में वह एक भी सीट नहीं जीत पाई और पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनावों में 20 सीटें जीतने के बावजूद 2019 के लोकसभा चुनाव में महज एक सीट जीत पाई, जबकि 2014 में वहां से उसके चार सांसद थे। आप की असली परीक्षा अब इसी साल आखिर में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनावों में होगी, जहां वह भाजपा-कांग्रेस के बीच दोतरफा लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की उम्मीद कर रही है।
हालांकि पंजाब की जीत के रंग वाकई आप को नई ऊंचाई देते हैं। उसकी लहर में कभी चुनाव न हारने वाले पांच बार के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल 94 साल की उम्र में ‘लंबी’ रेस हार गए। राजसी शहर पटियाला में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का अभेद्य किला भी ढह गया। इन दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा आप की सूनामी में दो और पूर्व मुख्यमंत्रियों राजिंदर कौर भट्टल, चरणजीत सिंह चन्नी और तीन पुरानी पार्टियों के अध्यक्षों में अकाली दल के सुखबीर बादल, कांग्रेस के नवजोत सिंह सिद्धू, बसपा के जसवीर सिंह गढ़ी की सियासी जमीन खिसक गई। किसान आंदोलन में जीत के बाद सियासी पारी शुरू करने वाले किसान संगठनों के संयुक्त समाज मोर्चा के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल जमानत भी नहीं बचा पाए। कांग्रेस, अकाली-बसपा गठबंधन और भाजपा गठबंधन के 68 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई।
जाति, धर्म, पंथ और डेरावाद में गुंथी पंजाब की सियासत मानो ‘एक मौका केजरीवाल नूं,एक मौका भगवंत मान नूं’ के नारे पर मुग्ध हो गई। ‘आप’ ने पंजाब में अपने आठ साल के सियासी सफर में 137 साल पुरानी कांग्रेस और इस वर्ष स्थापना शताब्दी मना रही शिरोमणि अकाली दल को हाशिए पर धकेल दिया है। 1966 में हरियाणा के अलग होने के बाद 56 वर्ष में यह पंजाब में किसी एक सियासी दल की अब तक की सबसे बड़ी जीत है। इससे पहले, 1992 में पंजाब में आतंकवाद के दौरान कांग्रेस ने अपने बूते 87 सीटें जीती थीं, लेकिन उस समय अकाली दल ने चुनाव का बहिष्कार किया था। 1997 में शिरोमणि अकाली दल और भाजपा गठबंधन ने 93 सीटें जीतीं। 1947 में देश की आजादी के बाद पंजाब में यह किसी अकेली पार्टी की अपने दम पर तीसरी सबसे बड़ी जीत है। 1952 में महापंजाब (पंजाब, हरियाणा, हिमाचल) में हुए पहले विधानसभा चुनाव में 126 में से कांग्रेस ने 96 सीटें जीती थीं। 1957 में शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब विधानसभा चुनाव का बहिष्कार किया तो कांग्रेस ने 154 में से 120 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में कांग्रेस का पहला दलित मुख्यमंत्री देने का कार्ड पंजाब की 32 फीसदी दलित आबादी को अपने पाले में नहीं खींच पाया। 34 दलित सीटों में से कांग्रेस के हाथ सिर्फ 5 लगीं, एक सीट शिरोमणि अकाली दल को और आप के हिस्से 28 सीटें आईं। किसान आंदोलन का केंद्र रहे मालवा क्षेत्र की 69 सीटों में 66 पर आप की जीत ने साबित कर दिया कि भारतीय किसान यूनियन (उगरहां)जैसे राज्य के सबसे बड़े किसान संगठन का साथ भी आप के साथ रहा। यहां डेरा सच्चा सौदा भी आप के पाले में डोल गया।
करारी हार के बाद कांग्रेस में घमासान मचा है। ठीकरा सिद्धू और चन्नी के सिर फोड़ा जा रहा है। कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने और फिर चुनाव में सीएम उम्मीदवार बनाए जाने पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने आउटलुक से कहा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ही कांग्रेस में रहते तो ऐसी हालत नहीं होती। कादियां से चुनाव जीते प्रताप बाजवा ने कहा, ‘‘कांग्रेस आलाकमान अनुभव, वफादारी और वरिष्ठता को नजरअंदाज न करे।’’ बाजवा की बात में दम है क्योंकि दलित कार्ड के चक्कर में चन्नी को सीएम उम्मीदवार और छह महीने पहले सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से कांग्रेस बेदम हो गई। पार्टी में शामिल होने के चार साल के भीतर ही सिद्धू को अध्यक्ष पद की अहम जिम्मेदारी सौंपने की बात पुराने कांग्रेसियों के गले नहीं उतरी।
आठ साल के सियासी सफर में सत्ता
आप ने 2014 के आम चुनाव में पंजाब से चार सांसदों के साथ लोकसभा में प्रवेश किया था। यह 2017 के विधानसभा चुनाव में करीब 24 फीसदी वोट शेयर और 20 विधायकों के साथ विपक्ष की भूमिका में आई। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में सात फीसदी वोट शेयर के साथ आप के इकलौते सांसद भगवंत मान रह गए। इस बार के चुनाव में आप की लहर इस कदर रही कि अकाली दल और कांग्रेस मिलकर भी उसके बराबर वोट नहीं पा सके। आप को 42 प्रतिशत वोट मिले। अकाली के 18.4 प्रतिशत और कांग्रेस के 23 प्रतिशत मिलाकर 41.4 प्रतिशत मत बनते हैं। कांग्रेस को इस चुनाव में 2017 के मुकाबले 15.5 प्रतिशत मतों का नुकसान हुआ। वहीं अकाली दल को 6.8 प्रतिशत जबकि आम आदमी पार्टी के मत प्रतिशत में 18 प्रतिशत का उछाल आया।
2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भले ही पार्टी के 9 विधायक दूसरे दलों में जा मिले पर आप के 92 विधायकों में करीब 40 पारंपरिक पार्टियों के बागी भी शामिल हैं। इनमें लंबी से प्रकाश सिंह बादल को हराने वाले गुरमीत खुड्डियां और जलालाबाद से सुखबीर बादल को हराने वाले जगदीप गोल्डी कंबोज कांग्रेस से आए। बठिंडा में पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत बादल को हराने वाले जगरूप गिल और लुधियाना पश्चिम में कैबिनेट मंत्री भारत भूषण आशू को हराने वाले गुरप्रीत गोगी भी कांग्रेस से आए नेता हैं।
आप के विधायकों में छोटे कामगारों से लेकर वकील, पूर्व आइएएस-आइपीएस अफसर और डॉक्टर तक शामिल हैं, जो अपने पेशे के साथ समाज सेवा के रास्ते सियासत में आए हैं पर सरकार चलाने का उन्हें अनुभव नहीं हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के ‘दिल्ली मॉडल’ के सहारे पंजाब फतह करने वाली आप की पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री भले ही भगवंत मान हैं, पर रिमोट कंट्रोल दिल्ली में बैठे सुपर सीएम अरविंद केजरीवाल और सहप्रभारी राघव चड्डा के हाथ रहने वाली है। आप ने युवाओं को ‘रंगीले पंजाब’ के सपने दिखाए हैं, उस पर खरा उतरना बड़ी चुनौती हो सकती है। उसे किसानी बचाने की चुनौती के बीच स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसी मूलभूत सेवाएं दुरुस्त करने के साथ नशा, रेत-शराब-ट्रांसपोर्ट माफिया से निपटना होगा। पड़ोसी पाकिस्तान की हरकतों पर तिरछी नजर रखना आप के लिए और भी चुनौती भरा हो सकता है जब उस पर आरोप खालिस्तानियों से फंडिग के लगे हों।
आप की अप्रत्याशित जीत पर पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने आउटलुक से कहा, ‘‘आठ साल में दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव लड़ चुकी आप भी पंजाब में अन्य रिवायती दलों से अलग नहीं रह गई। 117 सीटों में से उसके 40 से अधिक उम्मीदवार कांग्रेस, अकाली दल और अन्य दलों को छोड़कर आए हैं।’’ जाखड़ ने कहा कि महिलाओं को 1000 रुपये महीना भत्ता, 300 यूनिट मुफ्त बिजली जैसे वादे कैसे पूरे होंगे, जब प्रदेश तीन लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा हो, सरकारी कर्मचारियों को समय पर वेतन-पेंशन भुगतान का संकट हो। यह भी देखना होगा कि पंजाब का दिलचस्प नतीजा आप को राष्ट्रीय मंच पर कहां स्थान दिलाता है।
पंजाब की सियासत का ‘जुगनू’ : भगवंत मान
करीब 11 वर्ष पहले 2011 में पंजाब पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) से सियासी सफर शुरू करने वाले भगवंत मान सिर्फ 11 साल में ही मुख्यमंत्री बन गए। कॉमेडी सकर्स और लॉफ्टर चैलेंज जैसे टीवी शो और पंजाबी फिल्मों में अपनी कॉमेडी के जरिए सियासी लोगों पर व्यंगबाण छोड़ने वाला ‘कॉमेडी किंग’ एक दिन सियासी दिग्गजों के किले ढहा कर ‘पंजाब का किंग’ बन जाएगा, यह किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। सपने कैसे हकीकत में बदले, संक्षिप्त बातचीत में भगवंत मान ने आउटलुक से कहा, ‘‘महलों और राजभवनों से निकलकर सत्ता अब सेवा बनकर आम आदमी के हाथ है। राजनीतिक खानदानों को जनता ने धूल चटा दी है। पंजाब के 70 साल पुराने किले ढह गए। सियासी दिग्गज अब सम्मान से सेवानिवृत्त हो जाएं, नए लड़कों को काम करने दें।’’
16 मार्च को पंजाब के 17वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले भगवंत मान अपनी मां के जुगनू (प्यार से मां हरपाल कौर का रखा नाम) सीएम पद पर अपनी सियासत चमका रहे हैं। दलित सीएम चरणजीत सिंह चन्नी से पहले ओबीसी ज्ञानी जैल सिंह को छोड़कर पंजाब के जट्ट सिखों के हाथ रही सीएम की कुर्सी के लिए आप ने भी जट्ट सिख भगवंत मान को ही आगे बढ़ाया है।
17 अक्टूबर 1973 को पंजाब के संगरूर जिले के सतोज गांव में जन्मे भगवंत मान 2019 में लगातार दूसरी बार संगरूर सीट से सांसद बने। राजनीतिक करियर की शुरुआत मनप्रीत सिंह बादल की पार्टी पंजाब पीपुल्स पार्टी से हुई। 2012 में पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल के खिलाफ पहली बार लहरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए। मनप्रीत बादल कांग्रेस में शामिल हो गए और भगवंत मान ने 2014 में आम आदमी पार्टी की राह पकड़ी।
2014 के संसदीय चुनावों में तत्कालीन सांसद विजय इंद्र सिंगला व राज्यसभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींडसा के मुकाबले आम आदमी पार्टी का चेहरा बनकर उतरे भगवंत मान राजनीति के मंझे हुए खिलाडि़यों को हराकर संसद पहुंचे। इसके बाद जब 2019 में पूरे देश में आम आदमी पार्टी का कोई सांसद नहीं जीत पाया था, तब भी सांसद भगवंत मान ने जीत हासिल की और दोबारा संसद पहुंचे।
सियासत के चक्कर में परिवार छोड़ा
भगवंत मान की शादी इंदरप्रीत कौर से हुई थी हालांकि 2015 में दोनों अलग हो गए। दोनों के दो बच्चे हैं। एक इंटरव्यू में भगवंत मान ने खुद बताया था कि वह राजनीति के चक्कर में अपने परिवार को समय नहीं दे पाते थे, इसलिए उनकी पत्नी और वह सहमति से अलग हो गए। आजकल परिवार कनाडा में रह रहा है।
विवादों से रहा नाता
भगवंत मान का विवादों से पुराना नाता रहा है और उन पर अधिकतर समय सार्वजनिक स्थलों पर शराब पीने के आरोप लगते रहे हैं। मान पर उन्हीं की पार्टी के सांसद साथी हरिंदर सिंह खालसा ने संसद में शराब पीकर आने का आरोप लगा लोकसभा अध्यक्ष से अपनी सीट मान से दूर करने की गुहार लगाई थी। अपने बचाव और पलटवार में भगवंत मान ने एक रैली में कहा था कि उन्हें बेवजह बदनाम करने वाले सांसदों का भी डोप टेस्ट होना चाहिए। भगवंत मान के शराब पीने का मामला इतना उछला कि आप नेता और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने एक ट्वीट कर लिखा था, ‘‘बरनाला रैली में भगवंत मान ने संकल्प लिया है कि वे अब शराब को हाथ नहीं लगाएंगे, उन्होंने मंच पर अपनी माताजी और पंजाब की जनता के सामने वादा किया कि अपना तन मन धन पंजाब की सेवा के लिए लगाएंगे।’’ जुलाई 2016 में संसद की कार्रवाई का फेसबुक पर लाइव वीडियो चलाने के आरोप में लोकसभा अध्यक्ष ने उन्हें सत्र से पहले निष्कासित, फिर निलंबित किया।
‘खास’ को पटखनी देने वाले ‘आम’
सफाईकर्मी मां के बेटे लाभ सिंह
भदौड़ सीट से पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी को 37,558 वोटों से हराने वाले लाभ सिंह उगोके को अपनी जीत का भरोसा था, पर जीत इतनी बड़ी होगी यह यकीन नहीं था। आज भी सरकारी स्कूल में पहले की तरह सफाईकर्मी का काम कर रही लाभ की मां बलदेव कौर कहती हैं, ‘‘झाड़ू ने हम गरीबों की किस्मत बदल दी। बेटा चाहे विधायक हो गया पर मैं झाड़ू नहीं छोड़ूंगी।’’ 12वीं तक पढ़े लाभ ने प्लंबर का डिप्लोमा करने बाद मोबाइल फोन रिपेयर करने वाली एक दुकान पर हेल्पर का काम किया। 2014 में लाभ सिंह ने संगरूर लोकसभा से आप उम्मीदवार भगवंत मान के पोलिंग एजेंट की जिम्मेदारी संभाली। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी लाभ सिंह, भगवंत मान के ही साथ थे। ड्राइवर पिता दर्शन सिंह ने सोचा न था कि 8 साल पुरानी होंडा मोटरसाइकिल पर घूमने वाला गरीब बेटा एक दिन सूबे के सीएम को हराकर विधायक बन जाएगा।
स्कूटी पर प्रचार करने वाली नरिंदर
संगरूर से पूर्व कैबिनेट मंत्री विजेंद्र सिंगला को 36,430 मतों से पराजित करने वाली नरिंदर कौर भराज ने 2014 के लोकसभा चुनाव के समय आम आदमी पार्टी से सियासी सफर शुरू किया। तब नरिंदर महज 19 साल की थीं। चुनाव आयोग को दाखिल हलफनामे के मुताबिक 24,000 रुपये बैंक बैलेंस और एक स्कूटी की मालिक नरिंदर ने पूरा चुनाव प्रचार स्कूटी पर किया।
‘पैड वुमन’ जीवनजोत
2015 में समाज सेवा के रास्ते आम आदमी पार्टी से जुड़ी अमृतसर पूर्वी से आप की जीवनजोत कौर ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को 6,750 और शिअद के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व कैबिनेट मंत्री बिक्रम मजीठिया को 16,408 मतों से हराया। अमृतसर और आसपास के इलाकों में ‘पैड वुमन’ के नाम पर पहचान बना चुकीं जीवनजोत ने महिला कैदियों को सैनिटरी पैड मुहैया करवाने के लिए पंजाब भर की जेलों के दौरे किए। ग्रामीण महिलाओं को सैनिटरी पैड मुहैया कराने के साथ जीवनजोत ने स्कूलों, झुग्गियों, मलिन बस्तियों में भी पैड बांटने का काम बड़े स्तर पर किया।