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विधानसभा चुनाव’24 कश्मीर: ‘इल्तिजा’ सुने जाने का इंतजार

महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा युवाओं में तो लोकप्रिय मगर कड़े मुकाबले में फंसीं
नई बाजीः चुनाव प्रचार के दौरान इल्तिजा मुफ्ती

मतदान के पहले चरण में 18 सितंबर को अपना वोट डालकर मतदान केंद्र से बाहर निकलते ही इल्तिजा मुफ्ती ने कश्‍मीरी में एक नारा लगाया, जिसका अर्थ था, ‘हम जीत गए, हम जीत गए।’ नारे का उच्‍चारण हालांकि गलत था। उनकी मां महबूबा मुफ्ती अपनी चुनावी सभाओं में कश्‍मीरियत की पहचान के अभिन्‍न अंग के तौर पर जब लगातार कश्‍मीरी भाषा पर जोर दे रही हों, ऐसे में इल्तिजा के गलत तलफ्फुज की ओर ध्‍यान जाना स्‍वाभाविक ही है। दिलचस्‍प है कि 20 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घाटी के अपने दौरे पर जब कई कश्‍मीरी शब्‍द बोले, तो कई लोग बेसाख्‍ता यह कह पड़े कि उनका उच्‍चारण तो उमर अब्‍दुल्‍ला और इल्तिजा से भी बेहतर है।

इल्तिजा बिजबेहरा से चुनाव लड़ रही हैं। यह उनकी मां का गृहजिला है। यहीं पर उनके नाना मुफ्ती मोहम्‍मद सईद पले-बढ़े और अपना सियासी जीवन शुरू किया था। यहां से 2008 से ही पीडीपी के नेता अब्‍दुल रहमान वीरी उम्‍मीदवार रहते आए थे। अबकी बार पार्टी ने उन्‍हें बदल कर इल्तिजा को इस उम्‍मीद में टिकट दे दिया कि यहां से महबूबा के रिश्‍तों का उन्‍हें फायदा मिलेगा और वे जीत जाएंगी। इल्तिजा का कठिन मुकाबला नेशनल कॉन्‍फ्रेंस के प्रत्‍याशी डॉ. बशीर अहमद वीरी से है।

इल्तिजा से मिलने ज्‍यादातर लड़कियां और औरतें आई थीं। वे गीत गा रही थीं, जिसका अर्थ था, आप ही अगली मुख्‍यमंत्री बनेंगी। एक गांव से दूसरे गांव उनके काफिले के सफर के दौरान ज्‍यादातर औरतों का ही समर्थन उन्‍हें मिलता दिखा। अपनी सभाओं में राजनैतिक मुद्दों के अलावा इल्तिजा ने स्‍थानीय मसलों पर भी बात की, जैसे साफ पानी, रोजगार के मौके और बिजली बिल में छूट। भाषण के दौरान जब कभी अजान होती, वे बोलना बंद कर देती थीं। उन्‍हें कभी अपने सरकते पल्‍लू को करीने से संभालते तो कभी बेपरवाही से नजरअंदाज करते देखा गया।

हुसुनपुरा में इल्तिजा के भाषण से पहले माहौल बनाने के लिए एक मशहूर कलाकार आहिल रजा के बैंड का कार्यक्रम करवाया गया। एक नाबालिग लड़की ने कहा, ‘‘उनके बोलने का तरीका मुझे पसंद है। पता नहीं मेरे परिवार वाले किसे वोट देंगे लेकिन अगर मैं वोट देने लायक होती तो इन्‍हें ही वोट देती।’’ बारहवीं का एक छात्र असीम गनई बहुत खुश दिखा, हालांकि उसे पता नहीं था कि वह रैली में क्‍यों आया है। उसने अपने फोन से इल्तिजा की तस्‍वीरें खींचीं।

अपने प्रचार अभि‍यान के दौरान इल्तिजा की मुख्‍य चिंता यह थी कि जो भारी भीड़ उनकी रैलियों में उमड़ रही है वह वोट में तब्‍दील हो पाएगी या नहीं। एक बुजुर्ग गुलाम मोहम्‍मद पीरी कहते हैं कि उन्‍हें इल्तिजा को वोट देने में कोई दिक्‍कत नहीं है, ‘‘लेकिन मैं पक्‍का कह नहीं सकता कि वीरी साहब की तरह इनके दरवाजे भी हम मजदूरों के लिए खुले रहेंगे या नहीं।’’

इल्तिजा कहती हैं कि बिजबेहरा से अपनी उम्‍मीदवारी पर वे खुद चौंक गई थीं, ‘‘शुरू में तो मुझे लगा कि ये मैं कहां फंस गई। मैं कार्यकर्ताओं को नहीं जानती, इलाके को नहीं जानती। मुझे असेंबली के बारे में भी कुछ नहीं पता था। यह मेरा पहला चुनाव है और यह मेरे नाना का घर है, बस इतना ही खयाल मेरे दिमाग में था। मुझे लगता है कि मुझे टिकट देना मेरी मां और पार्टी का फैसला है क्‍योंकि अबकी असेंबली में कुछ मजबूत आवाजें चाहिए। लोगों ने देखा है मुझे बोलते हुए, जब कोई नहीं बोल रहा था।’’ 

इल्तिजा पिछले छह साल से अपनी मां की मीडिया और राजनैतिक सलाहकार रही हैं। राजनैतिक बंदियों से लेकर अपनी मां की गिरफ्तारी, अनुच्छेद 370, आदि तमाम मुद्दे उन्‍होंने उठाए हैं। जब महबूबा 16 सितंबर को बिजबेहरा प्रचार करने आई थीं तब उन्‍होंने लोगों से कहा था कि वे इसलिए इल्तिजा को वोट न दें कि वह उनकी बेटी हैं बल्कि इसलिए दें क्‍योंकि अनुच्‍छेद 370 की समाप्ति के बाद इल्तिजा कश्‍मीर की इकलौती प्रवक्‍ता रही हैं। महबूबा ने भीड़ से सवाल पूछा, ‘‘आप लोगों ने उसे टीवी पर पूरी ताकत से आपकी चिंताओं को उठाते हुए नहीं देखा है क्‍या?”

प्रचार के आखिरी दिनों में इल्तिजा बिजबेहरा शहर में लोगों के दरवाजे तक गईं। आसपास के गांवों के मुकाबले यहां शहर में मतदाता ज्‍यादा हैं। शहर ही उनकी किस्‍मत को तय करेगा। यहां से मिली प्रतिक्रियाओं से इल्तिजा संतुष्‍ट हैं। प्रचार के बाद श्रीनगर के नौगाम में मुफ्ती मोहम्‍मद सईद के बनवाए हुए अपने घर पर आराम से बैठकर उन्‍होंने अपने प्रचार अभियान के हलके पलों पर बात की।      

हंसते हुए उन्‍होंने बताया, ‘‘कुछ जगहों पर तो औरतों ने मुझे इतना कस कर गले लगाया कि मुझे लगा मेरी हड्डी टूट जाएगी। मेरी मां का कहना था कि दशकों बाद इस तरह की प्रतिक्रिया और अभिवादन नेताओं को लोगों से मिल रहा है। वास्‍तव में मुझे ऐसी गर्मजोशी की उम्‍मीद नहीं थी। एक औरत मेरे पास पहुंच नहीं पा रही थी। वह इतना खीझ गई कि उसने मेरा कुर्ता लगभग फाड़ ही डाला था। कई औरतें मेरा हाथ चूमने को बेताब थीं। छोटी लड़कियां तो मुझमें खुद को देख पा रही थीं।’’

राजनीति में अपनी भूमिका को लेकर उन्‍हें कोई भ्रम नहीं है। वे कहती हैं, ‘‘कोई भी कश्‍मीर में बहुत बड़ा नेता होने नहीं जा रहा। मैंने कई लोगों से कहा है कि मेरी इकलौती चाहत बस इतनी है कि मेरी कब्र की कोई पहरेदारी न करे, जैसी शेख साहब (शेख अब्‍दुल्‍ला) या मुफ्ती साहब (मुफ्ती मोहम्‍मद सईद) की वे करते हैं। मेरी उम्‍मीदें बहुत छोटी हैं।’’

इल्तिजा कहती हैं, ‘‘प्रचार के दौरान महसूस किया कि बुनियादी चीजों का अभाव है। कुछ औरतें मुझे एक गंदी नहर तक ले गईं जहां से उन्‍हें पानी भरना पड़ता है। एक छोटी सी लड़की बोली कि वह पानी भरे या स्‍कूल जाए। कई औरतों ने मुझसे अपने पतियों और बेटों का जिक्र किया जिन्‍हें पुलिस ने उठाया है। मेरा खयाल है कि गिरफ्तारियों के मामले में हालात नब्‍बे के दशक वाले हैं। लोग इतना कुछ सह चुके हैं कि उन्‍हें नेताओं से परहेज है। इसे रातोरात दूर नहीं किया जा सकता। इसीलिए मुझे जननेता जैसा कुछ बनने का कोई मुगालता नहीं है।’’

अंत में अपने कश्‍मीरी लहजे को लेकर वे कहती हैं कि भाषा उनके लिए कोई अड़चन नहीं है, ‘‘वास्‍तव में मैं जब कश्‍मीरी बोलती हूं तो लोग मुझे प्‍यार करते हैं।’’

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