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स्मृति: ‘बुलंद तस्वीर’ का जाना

राहुल उन विरले उद्योगपतियों में भी थे जिन्होंने अपने बच्चों को उसी स्कूल में भेजा जहां कर्मचारियों के बच्चे पढ़ते थे
राहुल बजाज: (10 जून 1938 – 12 फरवरी 2022)

राहुल बजाज कैसे थे? उनकी शख्सियत दो उदाहरणों से समझ सकते हैं। बहुत कम उद्यमी होंगे जिनके अंतिम संस्कार में उनकी कंपनी से वर्षों पहले रिटायर हुए कर्मचारी भी शिरकत करें और आंसू बहाएं। राहुल उन विरले  लोगों में थे। उनका अंतिम दर्शन करने आए कुछ पुराने कर्मचारी तो इतने बूढ़े हो चुके थे कि ठीक से चल भी नहीं सकते थे। राहुल उन विरले उद्योगपतियों में भी थे जिन्होंने अपने बच्चों को उसी स्कूल में भेजा जहां कर्मचारियों के बच्चे पढ़ते थे।

उनके निधन के बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो खूब चला। उसमें वे गृह मंत्री अमित शाह से सीधे कहते हैं, “यहां कोई भी उद्योगति दोस्त खुलकर नहीं कहेगा... यूपीए-2 में तो हम किसी को भी गाली दे सकते थे... हम आपकी खुल कर आलोचना करें, कॉन्फिडेंस नहीं है कि आप उसे पसंद करेंगे।”

ये दोनों उदाहरण राहुल बजाज के व्यक्तित्व को बखूबी बताते हैं। एक से उनके मृदु और दोस्ताना व्यवहार का पता चलता है तो दूसरे से उनकी निर्भीकता का। उन्होंने कांग्रेस सरकार के समय भी तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के सामने नीतियों की आलोचना की थी। मेक इन इंडिया का उनसे बड़ा प्रतीक शायद ही मिले जिन्होंने कहा था, “बिजनेस अर्थपूर्ण होना चाहिए। आप पहले कुआं खोदिए, फिर उसे भर दीजिए और कहिए कि मैंने लोगों को रोजगार दिया है तो उसका कोई मतलब नहीं है।”

अनेक लोगों के लिए राहुल ‘मुंबई क्लब’ का पर्याय थे। 1991 में उदारीकरण की शुरुआत के बाद उनके मुंबई क्लब बनाने की आलोचना भी हुई। कहा गया कि वे सुधारों के खिलाफ हैं। सुधारों के नाम पर आयात शुल्क में काफी कटौती कर दी गई थी और विदेशी निवेश के नियम उदार बना दिए गए थे। राहुल सिर्फ इतना चाहते थे कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों से मुकाबला करने के लिए भारतीय कंपनियों को समान प्लेइंग फील्ड मिले। वे उनमें नहीं थे जो घरेलू इंडस्ट्री को संरक्षण के नाम पर ज्यादा मुनाफा काटते थे, बल्कि अपनी कंपनी में अंतरराष्ट्रीय मानक लागू किए।

उन्होंने मध्य वर्ग को एक बेहतर जीवन का सपना दिखाया था। 1970 और 1980 के दशक में लाखों लोगों ने पहला वाहन बजाज चेतक और बजाज सुपर स्कूटर ही खरीदा था। यह मध्य वर्ग का प्रतीक बन गया था। स्कूटर की मांग इतनी बढ़ी कि एक समय वेटिंग पीरियड 10 साल हो गया था। राहुल उत्पादन बढ़ाना चाहते थे, लेकिन सरकार ने इजाजत नहीं दी। इसके पीछे वजह यह थी कि कंपनी का बाजार में एकाधिकार था। फिर भी उन्होंने बजाज ऑटो को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी स्कूटर कंपनी बनाई।

‘हमारा बजाज’ कंपनी से जुड़े लोगों में ही नहीं, लाखों ग्राहकों को भी गौरव की अनुभूति देता था। स्कूटर बिजनेस उनके दिल के करीब था। इसलिए जब बड़े बेटे राजीव ने 2009 में इसे बंद करने का फैसला किया तो उन्हें बड़ी तकलीफ हुई। यह पूछने पर कि स्कूटर बनाना क्यों बंद किया, उनका तल्ख जवाब होता, “जिसने बंद किया उससे पूछिए।”

कमलनयन बजाज और सावित्री बजाज के बेटे राहुल के दादा जमनालाल बजाज, महात्मा गांधी के करीबी थे। गांधी उन्हें अपना पांचवां बेटा कहते थे। कहा जाता है कि जवाहरलाल नेहरू ने उनका नाम राहुल रखा था। लेकिन वे दूसरे दलों के नेताओं के भी उतने ही करीबी रहे। छोटे भाई शिशिर के साथ बंटवारे का समझौता करने में उन्होंने स्वदेशी जागरण मंच के एस गुरुमूर्ति की मदद ली थी। स्कूटर उत्पादन बढ़ाने की अनुमति न मिलने पर एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था, हमारा परिवार स्वाधीनता संग्राम में शामिल जरूर था, लेकिन उन संबंधों का इस्तेमाल कभी बिजनेस में नहीं किया।

इंडस्ट्री में अनेक लोग उन्हें गुरु, बड़ा भाई और दोस्त मानते थे। वे एकमात्र शख्स हैं जो दो बार सीआइआइ के प्रेसिडेंट रहे। उन्हें 2001 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। नई पीढ़ी के उद्योगपतियों के साथ भी उतनी ही सहृदयता से मिलते थे। हालांकि भतीजे कुशाग्र ने उन पर राजा जैसा बर्ताव करने, आत्म केंद्रित और पुत्र केंद्रित होने के भी आरोप लगाए। शायद भाई शिशिर के साथ बंटवारे को लेकर झगड़े की वजह से ही उन्होंने अपने जीवन काल में दोनों बेटों राजीव और संजीव के बीच बिजनेस का बंटवारा कर दिया था।

अक्सर मालिक और यूनियन लीडर के बीच रिश्ता खटास भरा होता है। लेकिन राहुल के अंतिम संस्कार में पहुंचे एक पुराने यूनियन लीडर ने कहा, वे आपला मानुस (हमारे आदमी) थे। कर्मचारियों से ही पूछते, “क्या कर सकते हैं? कुछ आइडिया दो यार।” बजाज ऑटो फैक्ट्री में करीब 50 साल से कैंटीन चल रही है। वहां पहले एक प्लेट थाली 50 पैसे में मिलती थी, अब एक रुपये में मिलती है।

आमतौर पर कॉरपोरेट बोर्ड की मीटिंग बड़े तनाव भरे माहौल में होती है, लेकिन उनके करीबियों का कहना है कि अगर मीटिंग में राहुल होते थे तो आपको कभी बोरियत महसूस नहीं होती थी। आम भारतीय की तरह उन्हें नाचना भी बहुत पसंद था। इंडस्ट्री के इस शेर का दिल खोलकर हंसने का अंदाज हमेशा याद रहेगा।

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