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स्मृतिः नृत्य कला का ध्रुव तारा

नृत्य की जादूगर यामिनी का सांवला, शांत, गंभीर व्यक्तित्व अपने में ही खोया हुआ नजर आता था
यामिनी कृष्णमूर्ति 20 दिसंबर 1940 - 3 अगस्त 2024

बीते तीन अगस्त को भारतीय नृत्य के आकाश का चमीकला सितारा अस्त हो गया। भरतनाट्यम नृत्य की साधना में जीवन अर्पित कर नृत्य के रस कलश को भरने वाली यामिनी कृष्णमूर्ति का जाना भारतीय नृत्य जगत की अपूरणीय क्षति है। इसे चिरकाल तक महसूस किया जाता रहेगा। सर्वाधिक लोकप्रिय और अनूठी नृत्यांगना के पच्चासी साल नृत्य में उनके विलक्षण अवदानों से भरे हैं। तकरीबन सात दशक तक उनके नृत्य की कीर्ति पताका देश-देशातंर में लहराती रही। इस परंपरागत भरतनाट्यम नृत्य की धारा को उनमें अपना नवोन्मेष मिला और इस नृत्य की लोकप्रियता अपने में एक जनधारा बनी। भारतीय नृत्य विद्या चिर ऋणी रहेगी अपनी इस प्रियदर्शी प्रज्ञा शिल्पी की।

नृत्य की जादूगर यामिनी का सांवला, शांत, गंभीर व्यक्तित्व अपने में ही खोया हुआ नजर आता था। पर उसके पीछे जैसे एक समुद्र की आहट सुनी जा सकती थी। यामिनी कृष्णमूर्ति दूसरी नृत्यागंनाओं की तरह प्रदर्शन प्रिय नहीं थीं। वे अपनी कला की विक्रेता नहीं थीं। भरतनाट्यम उनके लिए सिर्फ ऩृत्य नहीं, एक जीवित उपस्थिति था।

किसी भी कलाकार के लिए सबसे बड़ी बात यह होती है कि वह अपने जीवनकाल में ही लीजेंड बन जाए। सही मायने में नृत्य जगत में यामिनी कृष्णमूर्ति अपने में एक संस्था थीं। नृत्य और संगीत में उनकी दृष्टि बहुत तीव्र और व्यापक थी। यामिनी ने अपने जादुई प्रस्तुतियों से नृत्य को जो अनूठा अंदाज और आयम दिया, वह अपने में इतनी बड़ी उपलब्धि है जिसे छूना तो दूर उसके आसपास भी कोई कलाकार नहीं पहुंच पाया। इसलिए यामिनी भरतनाट्यम की दुनिया में श्रेष्ठतम थीं। जब मंच पर नृत्य करने के लिए वे उतरती थीं, तो उनके कलात्मक, सृजनशील आयामों और थिरकती लय में नृत्य की गति देखकर दर्शक विस्मित से हो जाते थे। भरतनाट्यम के अलावा वे कुचिपुडी नृत्य में भी पारंगत थी। यामिनी के पिता एम. कृष्णमूर्ति संस्कृति और कर्नाटक संगीत नृत्य में उच्चकोटि के विद्वान थे। उन्होंने ही यामिनी को नृत्य सीखने के लिए प्रेरित किया। उन्‍हीं की बदौलत यामिनी भरतनाट्यम नृत्य के सबसे ऊंचे पायदान पर आसीन हुईं।

 तमिलनाडु के मदनपल्ले में जन्मीं यामिनी का नृत्य सीखने का सफर चिदंबरम शहर में शुरू हुआ। 1957 में यामिनी ने चेन्नै में पहली नृत्य प्रस्तुति से दर्शकों को मोह लिया। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। नृत्य में प्रवेश करते ही उनके अनूठे और कलात्मक नृत्य प्रदर्शन ने एक क्रांति ला दी। नृत्य प्रस्तुति में उन्होंने अलग शैली ईजाद की। नृत्य में उनकी आभा और आंखों की चितवन में बहुत ही उत्कृष्ट और चुबंकीय आकर्षण था। वे कर्नाटक गायन में भी  पारंगत थीं। यामिनी का पौराणिक कथाओं और शास्‍त्रों में भी गहन अध्ययन था। पिता के अलावा, विद्वान लक्ष्मी नारायण शास्त्री, वेणुगोपाल आदि कई गुरु उनके मार्गदर्शक थे।

कुचिपुड़ी नृत्य की थिरकती लय पर सत्यभामा का चित्रण करने में शृंगारिक और भक्ति भाव में मुग्ध करने वाली जो लकीरें उनके नृत्य में उभरती थीं, उसे देखकर दर्शक उनके कायल हो जाते थे।

मनुष्य के जीवन चक्र में कई तरह के उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। यामिनी भी उससे अछूती नहीं रहीं। जब वे नृत्य के क्षेत्र में अपनी बुलंदी पर थीं उस समय वे घरेलू कलह की शिकार हो गईं। कुछ कारणों से उनका अपने पिता से गहरा मतभेद हो गया। पिता उनका घर छोड़कर चले गए। पिता की गैर-हा‌जिरी में वे अकेलेपन से विचलित और निराश होने लगीं। उसी दौरान दूसरा संकट इनकम टैक्स के मामले में आया। विवाद मुकदमे तक पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट के वकील संतोख सिंह उनकी मदद को आगे आए। इसी दरम्यान यामिनी और संतोख सिंह के बीच नजदीकियां बढ़ीं। आखिर में दोनों ने शादी कर ली। चर्चित समाजवादी नेता मधु लिमये ने यामिनी का कन्यादान किया। कुछ समय बाद अचानक यामिनी के पिता आ गए। वे यह देखकर दुखी हुए कि यामिनी ने साधारण वकील से शादी कर ली है। उन्होंने यामिनी को शादी तोड़ने के लिए राजी कर लिया। इससे संतोष सिंह को गहरा सदमा लगा। कुछ साल बाद उनकी मृत्यु हो गई।

बहरहाल, नृत्य के क्षेत्र में अनहद छू गई विदूषी यामिनी कृष्णमूर्ति ने भरतनाट्यम और कुचिपुडी नृत्य में जो उत्कर्ष और कीर्तिमान का स्तंभ स्थापित किया, वह अजेय है। नृत्य में उनके इस अमूल्य योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। पद्मश्री, पद्मभूषण के अलावा हाल ही में पद्मविभूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

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