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महाराष्ट्र : देशमुख के बहाने निशाना

पूर्व गृहमंत्री के खिलाफ सीबीआइ जांच से जो भी निकले मगर असली निशाना तो शायद मराठा क्षत्रप और अघाड़ी सरकार
महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख

फरवरी महीने में जब मुंबई में मुकेश अंबानी के निवास एंटीलिया के पास बेहद सामान्य किस्म के विस्फोटक सामग्री से भरी संदिग्ध एसयूवी गाड़ी मिली थी, तो किसी को अंदाजा नहीं रहा होगा कि चक्र ऐसा घूमेगा कि मूल घटना पीछे रह जाएगी और महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख घेरे में आ जाएंगे।

मुंबई हाइकोर्ट के फैसले के बाद वे इस्तीफा दे चुके हैं और 13 अप्रैल को सीबीआइ उनसे एक दौर की पूछताछ कर चुकी है। विपक्षी भाजपा की मानें तो इस चक्र की फांस राकांपा-कांग्रेस-शिवसेना महाविकास अघाड़ी की उद्धव ठाकरे सरकार पर भी बदस्तूर बनी हुई है।

राजनैतिक हलकों में चर्चा यह भी है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकंपा) के सुप्रीमो शरद पवार के करीबी माने जाने वाले अनिल देशमुख पर इस फांस का मकसद मराठा क्षत्रप को कमजोर करना भी है। पवार और महाविकास अघाड़ी सरकार शुरू से ही भाजपा और केंद्र को खटकती रही है। शिवसेना के संजय राउत कहते भी हैं, ‘‘यह तो ताजा हमला भर है। इसके पहले भी कई दौर के प्रयास में भाजपा नाकाम रही है, इस बार भी होगी।’’ लेकिन भाजपा विधायक दल के नेता, पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस का दावा है, ‘‘इस सरकार की उम्र ज्यादा नहीं है। हम इसके कारनामे उजागर करते रहेंगे और जनता सब देख रही है।’’

देशमुख के खिलाफ मामला मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्रर परमबीर सिंह की मुख्यमंत्री को लिखी चिट्ठी में लगाए तथाकथित भ्रष्टाचार से जुड़ा है, जो उन्होंने पद से हटाए जाने के बाद लिखा था। दरअसल एंटीलिया के पास गाड़ी और उसके दो दिन बाद कथित गाड़ी मालिक की संदिग्ध हत्या के मामले में मुंबई पुलिस की एटीएस ने एपीआइ सचिन वाझे को गिरफ्तार किया तो इस मामले में लापरवाही बरतने के लिए परमबीर सिंह का तबादला होम गार्ड महानिदेशक के तौर पर कर दिया गया। उसके बाद परमबीर सिंह ने चिट्ठी लिखी और उसमें आरोप लगाया कि देशमुख ने वाझे से हर महीने 100 करोड़ रुपये वसूली कर सौंपने को कहा था। उन्होंने समर्थन में कुछ ह्वाट्सऐप चैट का भी हवाला दिया। इस बीच केंद्र ने विस्फोटक भरी गाड़ी और संदिग्ध हत्या का मामला एनआइए को सौंप दिया। एनआइए ने एक निचली अदालत से एटीएस की जांच रोक देने और जांच के कागजात उसे सौंप देने का आदेश हासिल कर लिया। अब वाझे एनआइए की हिरासत में हैं।

शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत के अनुसार ऐसे आरोप साजिश के तहत लगाए जाते हैं, सरकार सभी का इस्तीफा लेना शुरू कर दे तो फिर ठाकरे सरकार कैसे चलेगी

उधर, परमबीर सिंह अपनी चिट्ठी के आरोप पर सीबीआइ जांच की मांग लेकर वकील मुकुल रोहतगी के मार्फत सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। शीर्ष अदालत ने कहा कि मामला तो गंभीर है मगर पहले हाइकोर्ट जाइए। बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने निर्देश में कहा, ‘‘सीबीआइ के निदेशक प्रारंभिक जांच पूरी करने के बाद आगे की कार्रवाई अपने विवेक पर करेें।’’ आदेश के तीन घंटे बाद देशमुख ने नैतिकता का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया। हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ उद्धव ठाकरे सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची, जहां राहत नहीं मिली।

हालांकि हाइकोर्ट ने पहली बार परमबीर सिंह से पूछा था, ‘‘आप पूर्व पुलिस कमिश्नर हैं। आपके लिए कानून क्यों अलग होना चाहिए। कानून के मुताबिक आपको मामले के संज्ञान में आने के तुरंत बाद एफआइआर दर्ज करनी चाहिए थी, जो आपने नहीं की। क्या पुलिस और नेता कानून से ऊपर हैं।’’ आउटलुक से बातचीत में रिटायर्ड आइपीएस आधिकारी डॉ. एन.सी. अस्थाना कहते हैं, ‘‘हाइकोर्ट ने पहले दिन सही कहा था कि सिंह को पता चला कि राज्य का गृह मंत्री वसूली करवा रहा है तो उन्हें सबसे पहले एफआइआर दर्ज कर जांच शुरू करनी चाहिए थी। मामले में उन्हें किसी से इजाजत लेने की जरूरत नहीं थी।’’ राकांपा नेता और राज्य के मंत्री नवाब मलिक ने कहा, ‘‘जब परमबीर सिंह मुंबई पुलिस कमिश्नर पद पर थे तब उन्होंने क्यों नहीं ये बातें सामने लाईं।’’

अब परमबीर सिंह के खिलाफ ठाकरे सरकार ने भी जांच के आदेश दे दिए हैं। इसका जिम्मा परमबीर सिंह के कट्टर विरोधी माने जाने वाले वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी संजय पांडे को दिया गया है। जांच एंटीलिया केस में सिंह की लापरवाही, महाराष्ट्र सरकार की छवि को खराब करने की कोशिश और अनुशासनहीनता जैसे आरोपों के सिलसिले में होगी।

परमबीर सिंह और अनिल देशमुख के बीच सचिन वाझे एक ऐसे किरदार हैं जो इस पूरे प्रकरण में रहस्य बने हुए हैं। एनआइए की हिरासत में सचिन वाझे ने एक और दावा किया है, जिसमें अब महाराष्ट्र के मंत्री अनिल पारव पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। हालांकि, पारव ने कहा है कि इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। निराधार आरोप लगाए जा रहे हैं। एनआइए को लिखे पत्र में सचिन वाझे ने कहा है, ‘‘देशमुख ने उनसे फिर से बहाली किए जाने को लेकर दो करोड़ रुपये की मांग की थी। इतनी रकम देने में असमर्थता जताई तो देशमुख ने कहा कि बाद में दे देना।’’ वाझे और परमबीर सिंह के दावे को लेकर अस्थाना आउटलुक से कहते हैं, ‘‘कई बार ऐसा देखा गया है कि आरोप लगाने वाला व्यक्ति कोर्ट में अपने बयान से पलट जाता है। दिलचस्प यह है कि क्या कोई मंत्री इस तरह की मांग एक अदने-से अधिकारी से कर सकता है। वाझे और परमबीर सिंह ने इसके कुछ ठोस प्रमाण भी अब तक नहीं दिए हैं।’’

वाझे मुकेश अंबानी के घर के बाहर मिली कार मामले में जांच कर रहे थे, जिसमें उन पर सबूत मिटाने के आरोप लगे। 1990 बैच के पुलिस अधिकारी और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट सचिन वाझे को 2004 में गिरफ्तार भी किया गया था और उनके खिलाफ तथ्य छुपाने के संबंध में मामला दर्ज हुआ था। 2002 के घाटकोपर बम विस्फोट मामले में ख्वाजा यूनुस को पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। पुलिस ने बताया था कि जब यूनुस को औरंगाबाद ले जाया जा रहा था, तब वह फरार हो गया था लेकिन सीआइडी ने जांच में कहा कि पुलिस हिरासत में ही ख्वाजा की मौत हो गई थी। 2004 में यूनुस मामले में सचिन वाझे की कथित भूमिका की वजह से उन्हें निलंबित कर दिया गया था, जिसके बाद वे 2008 में शिवसेना में शामिल हो गए थे। लेकिन, सचिन वाझे की फिर से बहाली भी सवालों के घेरे में है।

देशमुख पर लगे वसूली के आरोप के बाद भाजपा हमलावर है। वहीं, शिवसेना गठबंधन का कहना है कि ये महाराष्ट्र सरकार को गिराने की साजिश है। शुरुआत में गठबंधन में भी रार के संकेत मिले थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा था कि भविष्य में पार्टी अकेले चुनाव लड़ने की सोच रही है। मामले के तुरंत बाद जब देशमुख के इस्तीफे की मांग उठी थी तो शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा था, ‘‘ऐसे आरोप साजिश के तहत लगाए जाते हैं और सरकार सभी का इस्तीफा लेना शुरू कर दे तो फिर ठाकरे सरकार कैसे चलेगी।’’ आउटलुक से बातचीत में पूर्व केंद्रीय मंत्री, शिवसेना प्रवक्ता और लोकसभा सांसद अरविंद सावंत कहते हैं, ‘‘आरोप लगाए जाने से कोई अपराधी नहीं हो जाता। हमें जांच पर भरोसा है। लेकिन, एजेंसी की छवि खराब हो गई है। हमने सुशांत मामले में देखा है, अब तक क्या हुआ। ये उस पार्टी (भाजपा) की साजिश है जो हर राज्य में विपक्षी दलों की सरकार गिराने में लगी रहती है।’’ आगे सावंत कहते हैं, ‘‘हमने येदियुरप्पा मामले में देखा कि कैसे उन्हें सीबीआइ कोर्ट ने बरी किया। आरोप किसी पर कोई भी लगा सकता है। इसमें कोई सच्चाई नहीं है। अभी राज्य में कोरोना का मामला सबसे अहम मुद्दा है।’’ दरअसल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा को अवैध खनन मामले में भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद 2011 में इस्तीफा देना पड़ा था। 2016 में विशेष सीबीआइ कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया।

सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामला और टीआरपी घोटाले के बाद से परमबीर सिंह सुर्खियों में आए थे। करीब एक साल से सुशांत मामले में सीबीआइ, ईडी और एनसीबी जांच कर रही है। लेकिन, अभी तक जांच एजेंसियां किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंची हैं। महाराष्ट्र सरकार वाकई परमबीर सिंह के दुष्चक्र में फंसती नजर आ रही है। अब इंतजार जांच रिपोर्ट का है, जिसे एजेंसी को हाइकोर्ट में 15 दिनों में पेश करना है।

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