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उद्धव हुए सख्त

भाजपा नेतृत्व के बारे में उद्धव का बयान संकेत है कि अपने ऊपर हमले को वे चुपचाप स्वीकार करने वाले नहीं
उद्धव ठाकरे

दशहरे के दिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का एक नया रूप देखने को मिला। उन्होंने भाजपा-नीत केंद्र सरकार पर जबरदस्त हमला किया। उद्धव ने कहा, “जबसे मुख्यमंत्री बना हूं, यही सुन रहा हूं कि मेरी सरकार अमुक तारीख को गिर जाएगी। अभी तक तो ऐसा हुआ नहीं, अगर हिम्मत है तो सरकार गिराकर दिखाओ।” राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र विकास अघाडी बनाने वाले उद्धव नवंबर के अंत में मुख्यमंत्री का एक साल का कार्यकाल पूरा करने वाले हैं।

मुख्यमंत्री ने यह बयान किसी आवेग में आकर नहीं, बल्कि सोच-समझकर दिया। मुंबई के मशहूर शिवाजी पार्क में शिवसेना के पारंपरिक ‘दशहरा मेलावा’ में उन्होंने ये शब्द कहे। यह संदेश सिर्फ महाराष्ट्र में विपक्षी पार्टी भाजपा के लिए नहीं था, बल्कि लाखों शिवसैनिकों के लिए भी था। इसका एक मतलब यह भी था कि अपने ऊपर हो रहे हमले को वे चुपचाप स्वीकार करने वाले नहीं हैं।

आम तौर पर मृदुभाषी उद्धव ने लगातार हमलों के बाद यह आक्रामक रुख अपनाया है। भाजपा एक साल से कोविड-19 महामारी और प्रवासी मजदूर संकट से निपटने में सरकार के प्रयासों से लेकर सुशांत सिंह राजपूत खुदकुशी मामले की जांच तक, अनेक मुद्दों पर उन पर लगातार प्रहार करती रही है। जब राज्य सरकार ने कोरोना से बचाव के लिए मंदिर खोलने की अनुमति नहीं दी, तो उद्धव के हिंदुत्व पर भी सवाल उठाए गए। इन मुद्दों से जुड़े और विषय भी थे, जिनकी वजह से केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव बढ़ा। इनमें अभिनेत्री कंगना रनौत को लेकर विवाद, टीआरपी घोटाला, जिसमें रिपब्लिक टीवी को भी आरोपी बनाया गया है और सीबीआइ जांच के लिए राज्य सरकार की तरफ से दी गई सामान्य सहमति वापस लेना शामिल हैं।

महाराष्ट्र सरकार और भाजपा के बीच यह टकराव जल्दी खत्म होने के आसार नहीं हैं। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद कुमार केतकर कहते हैं कि अपने पूर्व सहयोगी शिवसेना के हाथों महाराष्ट्र की लड़ाई हारना भाजपा को हजम नहीं हो रहा है। वरिष्ठ पत्रकार  केतकर कहते हैं, “भाजपा ने अपने आप को इतना अधिक प्रचारित किया कि अभी तक वह समझ नहीं पा रही है कि सत्ता में क्यों नहीं है। शिवसेना 1980 से उसके साथ थी, और 1985 से तो उनका गठबंधन काफी मजबूत था। अयोध्या समेत ज्यादातर मुद्दों पर दोनों की राय एक थी। इसलिए यह बात भाजपा की समझ से बाहर है कि तलाक हुआ तो क्यों।”

केतकर को लगता है कि महाराष्ट्र में भाजपा की लड़ाई काफी हद तक व्यक्तिगत है। वे कहते हैं, “भाजपा की सबसे बड़ी दुश्मन कांग्रेस या खासतौर से नेहरू परिवार हो सकता है, लेकिन महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे उसके सबसे बड़े शत्रु बन गए हैं। यहां तक कि शिवसेना भी दूसरे नंबर पर है। भाजपा ठाकरे और शिवसेना के बीच शत्रुवत स्थिति पैदा करना चाहती है, इसलिए उन पर व्यक्तिगत हमले करती है।” भाजपा के ज्यादातर हमले ठाकरे पर होते हैं, गठबंधन के अन्य नेता उसके निशाने पर नहीं होते।

केतकर के अनुसार शिवसेना के अनेक सांसद और विधायक भाजपा के साथ साझा सीटों पर जीते थे, कांग्रेस उनकी विरोधी पार्टी थी। इनमें अनेक नेताओं को लगता है कि अगले चुनाव में वे शिवसेना के टिकट पर जीत सकेंगे या नहीं। भाजपा यह जानती है और इसका मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रही है।

इस वजह से भाजपा आगे भी व्यक्तिगत हमले जारी रख सकती है। पार्टी के नेता नारायण राणे ने 26 अक्टूबर को फिर कहा कि सुशांत सिंह राजपूत की हत्या हुई थी और इसमें मुख्यमंत्री के बेटे आदित्य ठाकरे के शामिल होने का भी आरोप लगाया। केतकर सोशल मीडिया पर भाजपा के 80,000 फर्जी अकाउंट को सस्ती राजनीति का उदाहरण मानते हैं। ये अकाउंट तथाकथित रूप से आदित्य और उद्धव ठाकरे को बदनाम करने के लिए खोले गए थे। मुंबई पुलिस इनकी जांच कर रही है। केतकर के अनुसार भाजपा काफी उद्विग्न है, खासकर वरिष्ठ नेता एकनाथ खड़से के राकांपा में शामिल होने से। उनका मानना है कि भाजपा इस उम्मीद में इस रणनीति पर काम करती रहेगी कि आंतरिक मतभेदों के कारण गठबंधन सरकार गिर जाएगी।

राकांपा नेता नवाब मलिक के अनुसार गठबंधन सरकार को गिराने के लिए भाजपा हर मुमकिन कोशिश कर रही है। खड़से के पार्टी छोड़ने के बाद उसे डर है कि दूसरे नेता भी साथ न छोड़ जाएं। मलिक के अनुसार, “हालत यह है कि भाजपा के अनेक विधायक बात करने के लिए तैयार हैं। हमारी सरकार कहीं नहीं जा रही है। सच तो यह है कि भाजपा सरकार पर जितने हमले कर रही है, हम उतने ज्यादा करीब आते जा रहे हैं।”

हालांकि प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता माधव भंडारी को विश्वास है कि 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के कारण यह गठबंधन सरकार गिर जाएगी। वे कहते हैं, “अगर कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में लड़ना है तो उसे यहां गठबंधन से अलग होना पड़ेगा। वह उत्तर प्रदेश का चुनाव शिवसेना की सहयोगी के रूप में नहीं लड़ सकती।”

भंडारी इस बात से इनकार करते हैं कि भाजपा गठबंधन सरकार को गिराने की कोशिश में है। उनके मुताबिक सरकार गिराने के लिए जरूरी है कि कम से कम 30 से 35 विधायक या गठबंधन में शामिल कोई एक पार्टी अलग हो। वे कहते हैं, “हम गठबंधन में अब सरकार नहीं बनाना चाहते। हम न तो कांग्रेस के साथ सरकार बना सकते हैं, न ही राकांपा के साथ। पार्टी एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाना चाहती है।” भंडारी का दावा है कि सक्रिय विपक्ष के कारण ही महाराष्ट्र सरकार चल रही है।

ठाकरे की प्रशासनिक और संकट हल करने की क्षमता पर सवाल उठाते हुए भंडारी कहते हैं कि राज्य में कोविड-19 महामारी से भाजपा ने निपटा है। उनका दावा है, “जिम्मेदार विपक्ष की तरह हमारे कार्यकर्ता पूरे प्रदेश में गए और लोगों की मदद की। अगर हमने ऐसा न किया होता तो प्रदेश में कोविड-19 महामारी से मरने वालों की संख्या 300 गुना अधिक होती।”

भाजपा के अनुसार उद्धव इसलिए नाराज हैं क्योंकि वे दरकिनार कर दिए गए हैं। भंडारी कहते हैं, “उनकी स्थिति काफी पेचीदा है। राज्य सरकार ने सीबीआइ जांच की सामान्य सहमति वापस ले ली है, इससे पता चलता है कि वे डरे हुए हैं। उन्हें चिंता है कि उनके परिवार के गड़े मुर्दे उठेंगे।” वे उद्धव के इस आरोप को भी खारिज करते हैं कि केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू करने में गलतियां कीं। उन्होंने कहा, “हां, महाराष्ट्र के 38,000 करोड़ रुपये बकाया हैं लेकिन ऐसा सभी राज्यों के साथ है। मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों को भी जीएसटी का बकाया नहीं मिला है। पैसा कहां है? इसलिए केंद्र ने सभी राज्यों से कर्ज लेने के लिए कहा है।”

कंगना रनौत

हालांकि ठाकरे पीछे हटने के मूड में नहीं हैं और उनका आक्रामक तेवर जल्दी जाने वाला नहीं। शिवसेना के एक नेता कहते हैं, “वे नहीं चाहते कि उनकी शांत छवि को उनकी कमजोरी माना जाए। भाजपा केंद्र में अपनी सरकार का दुरुपयोग कर रही है। राज्य में गठबंधन की सरकार बनते ही केंद्र ने भीमा कोरेगांव मामला एनआइए को ट्रांसफर कर दिया। इसके लिए उसने महाराष्ट्र सरकार की सहमति लेने की भी जरूरत महसूस नहीं की। मुख्यमंत्री के परिवार को सुशांत सिंह मामले में घसीटना ठीक नहीं था। राज्यपाल के जरिए धर्मनिरपेक्षता की बात कहलाना तो आखिरी कील थी।” राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मंदिरों को खोलने की भाजपा की मांग खारिज होने के बाद मुख्यमंत्री को चिट़्ठी लिखी थी कि सेकूलर रंग के कारण उनका हिंदुत्व कमजोर तो नहीं पड़ रहा है। शिवसेना नेता के अनुसार ठाकरे पीछे नहीं हटेंगे और बराबर जवाब देंगे। वे वही करेंगे जो उन्होंने दशहरा के मौके पर कहा था। ‌िशवसेना नेता ने यह भी कहा कि गठबंधन के सभी घटक ठाकरे के साथ हैं।

केतकर के अनुसार दशहरा मुख्यमंत्री के लिए टर्निंग प्वाइंट है। वे कहते हैं, “उनका हिंदुत्व मंदिर खोलने के बारे में नहीं, राष्ट्रवाद के बारे में है। उन्होंने गोबर और गोमूत्र को लेकर उन परंपराओं पर भी सवाल उठाए हैं जिनका भाजपा समर्थन करती है। उद्धव के विचार उनके पिता बाला साहब ठाकरे जैसे नहीं, बल्कि उनके दादाजी प्रबोधनकर ठाकरे जैसे हैं, जो रूढ़िवादी विचारों के विरोधी, परंपरा विरोधी और ब्राह्मणवाद विरोधी थे।” लगता है, उद्धव अपना नया रास्ता बना रहे हैं। सवाल है कि वे भाजपा की तरफ से आने वाली चुनौतियों से पार पाते हैं या नहीं।

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