आपकी हैसियत चाहे जो हो, हाल के महीनों में महंगाई की चुभन आपने जरूर महसूस की होगी। अगर आप निम्न आय या मध्य वर्ग से हैं तो क्या कहने। संभव है कि आपकी थाली में दो की जगह एक सब्जी रह गई हो, या किसी दिन वह भी नसीब न होती हो। सरकारी आंकड़े भले रिकॉर्ड महंगाई बता रहे हों, लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इसे भी नकारने के अंदाज में कहती हैं, “यह बहुत ज्यादा नहीं है।” पर आप यह सोचकर अपनी हताशा दूर कर सकते हैं कि इस बार समस्या विश्वव्यापी है। अमेरिका में भी महंगाई चार दशक के रिकॉर्ड स्तर पर है। हां, यह जरूर है कि भारत में लोगों को पांच वर्षों से लगातार कठिन परिस्थितियों से जूझना पड़ रहा है। पहले तो नोटबंदी और जीएसटी के कारण 93 फीसदी रोजगार देने वाले असंगठित क्षेत्र पर मार पड़ी। फिर दो साल पहले आई महामारी ने भी सबसे अधिक नुकसान इसी क्षेत्र को पहुंचाया। अब जब रूस-यूक्रेन युद्ध ने महंगाई को पलीता लगाया है तो आइएमएफ और वर्ल्ड बैंक ने यह कह कर जले पर नमक छिड़कने का काम किया है कि भारत में गरीबी घट गई है।
खुदरा महंगाई मार्च 2022 में 6.95 फीसदी हो गई जो 17 महीने में सबसे ज्यादा है। रिजर्व बैंक ने इसकी ऊपरी सीमा 6 फीसदी तय कर रखी है लेकिन यह तीन महीने से इसके ऊपर है। थोक महंगाई मार्च में 14.55 फीसदी पहुंच गई और यह अप्रैल 2021 से दहाई अंकों में है। थोक महंगाई के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि उसमें सबसे अधिक योगदान कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, खनिज तेल और मेटल का है जिनकी सप्लाई रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बाधित हुई है। वैसे तो हर साल गर्मियों में फल-सब्जियां महंगी होती हैं लेकिन इस बार बात इससे ज्यादा है। इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में मैल्कम आदिशेषैया चेयर प्रोफेसर अरुण कुमार आउटलुक से कहते हैं, “थोक महंगाई लगातार 12 महीने दहाई अंकों में रहना सामान्य नहीं है।”
महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन करते कांग्रेस कार्यकर्ता
इस महंगाई के पीछे कई कारण हैं। एक तो महामारी की वजह से विश्व स्तर पर जो सप्लाई बाधित हुई, वह अभी तक सामान्य नहीं हो पाई है। दुनिया के मैन्युफैक्चरिंग हब चीन के शहरों में फिर लॉकडाउन लगने से वहां से निर्यात प्रभावित हुआ है। मेटल और कच्चे तेल के दाम विश्व बाजार में लगातार ऊंचे बने हुए हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध ने स्थिति को और बिगाड़ा है। भारत पेट्रोलियम पदार्थ, खाद्य तेल, उर्वरक, मेटल आदि के मामले में काफी हद तक आयात पर निर्भर है और रुपया कमजोर होने से भी आयात महंगा हुआ है।
प्रो. अरुण एक और वजह बताते हैं, “असंगठित क्षेत्र को परेशानी से संगठित क्षेत्र को बहुत फायदा हुआ। डिमांड संगठित क्षेत्र में शिफ्ट हो गई जिसने दाम बेतहाशा बढ़ाए हैं। रिजर्व बैंक के 1,500 कंपनियों के सर्वे के अनुसार इनका मुनाफा 24 फीसदी तक बढ़ गया है, जबकि अर्थव्यवस्था में उतनी तेजी नहीं आई है। बात सिर्फ फल-सब्जियों या ईंधन की नहीं, कॉरपोरेट के पास काफी प्राइसिंग पावर काफी आ गई है। कंपनियां दाम बढ़ाकर ज्यादा मुनाफा कमा रही हैं।” एक सर्वे के मुताबिक मार्च तिमाही में कंपनियों का रेवेन्यू 15 फीसदी तक बढ़ा, लेकिन उनका मुनाफा 26 फीसदी बढ़ गया।
रिजर्व बैंक ने भी कहा है कि महंगे ईंधन और खाद्य पदार्थों ने आम लोगों की जेब पर दबाव डाला है और युद्ध के कारण जोखिम बढ़ा है। सूरजमुखी तेल, गेहूं और अन्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने का अंदेशा है। एल्युमीनियम और निकेल के दाम एक दशक की ऊंचाई पर हैं। रूस एल्युमिनियम के सबसे बड़े उत्पादकों में है जिसका इस्तेमाल ट्रांसपोर्टेशन और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में होता है। निकेल का ज्यादा इस्तेमाल हाई ग्रेड स्टील बनाने और बैटरी में किया जाता है। रिजर्व बैंक के अनुसार भू-राजनीतिक तनाव से चिप की कमी बढ़ेगी जिससे वाहन और इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट के दाम बढ़ेंगे।
वैसे, महंगाई की समस्या पिछले साल से चली आ रही है। मार्केट रिसर्च फर्म नीलसन-आइक्यू के अनुसार दिसंबर तिमाही में दाम बढ़ने से एफएमसीजी उत्पादों की बिक्री मात्रा के लिहाज से 2.6 फीसदी घट गई, लेकिन मूल्य के लिहाज से 9.6 फीसदी बढ़ गई। कारण यह है कि कमोडिटी, पैकेजिंग और ट्रांसपोर्टेशन का खर्च बढ़ने के कारण हिंदुस्तान यूनिलीवर, आइटीसी, मेरिको, प्रॉक्टर एंड गैंबल, ब्रिटानिया, टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स जैसी सभी प्रमुख कंपनियों ने अपने उत्पादों के दाम लगातार बढ़ाए हैं। रिटेल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म बाइजोम के सर्वे के अनुसार महंगाई के कारण मार्च तिमाही में भी एफएमसीजी प्रोडक्ट की बिक्री धीमी हुई है।
रूस पर अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिबंध का असर भी महंगाई पर है। युद्ध लंबा खिंचने के आसार दिख रहे हैं, तो महंगाई भी जल्दी नीचे आती लग नहीं रही है। युद्ध के कारण यूक्रेन में गेहूं, मक्का और सूरजमुखी की नई फसल की बुवाई नहीं हो पा रही है। इसलिए आने वाले दिनों में विश्व स्तर पर इनकी कमी होगी। विश्व गेहूं बाजार में भारत कुछ हद तक रूस और यूक्रेन की भरपाई करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इससे घरेलू बाजार में गेहूं महंगा हो गया है। मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत कई राज्यों में गेहूं एमएसपी (2015 रुपये प्रति क्विंटल) से 700 रुपये तक ऊपर बिक रहा है।
यही हाल तिलहन का है। सरसों एमएसपी से काफी ऊपर बिक रही है। भारत अपनी जरूरत का लगभग 60 फीसदी खाद्य तेल आयात करता है। 90 फीसदी सूरजमुखी तेल यूक्रेन और रूस से आयात होता आया है। आयात किए जाने वाले खाद्य तेलों में इसका स्थान पाम तेल के बाद दूसरा है। 2021 में भारत ने 18.9 लाख टन सूरजमुखी तेल आयात किया था, जिसका 70 फीसदी यूक्रेन से, 20 फीसदी रूस से और 10 फीसदी अर्जेंटीना से खरीदा गया। अब पाम तेल की भी किल्लत होने की आशंका है क्योंकि इसके सबसे बड़े निर्यातक इंडोनेशिया ने अपने यहां दाम बढ़ने के कारण इसके निर्यात पर रोक लगा दी है।
कच्चा तेल महंगा होने और रुपया सस्ता होने का असर इसके आयात बिल से समझा जा सकता है। भारत जरूरत का लगभग 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। पेट्रोलियम प्लानिंग ऐंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के अनुसार भारत ने 2021-22 में 21.2 करोड़ टन कच्चा तेल 119.2 अरब डॉलर में खरीदा, जबकि 2020-21 में 19.6 करोड़ टन आयात के लिए सिर्फ 62.2 अरब डॉलर खर्च करने पड़े थे। यानी मात्रा के लिहाज से तो आयात आठ फीसदी बढ़ा, लेकिन रकम लगभग दोगुनी चुकानी पड़ी। एक तो विश्व बाजार में दाम ज्यादा, ऊपर से टैक्स का बोझ। इंडियन ऑयल के 16 अप्रैल के प्राइस बिल्डअप के अनुसार दिल्ली में पेट्रोल की 105.41 रुपये खुदरा कीमत में केंद्र की एक्साइज ड्यूटी 27.90 रुपये और राज्य का वैट 17.13 रुपये (कुल 45.03 रुपये) है। इसी तरह डीजल की खुदरा कीमत 96.67 रुपये में एक्साइज 21.80 रुपये और वैट 14.12 रुपये (कुल 35.92 रुपये) है।
विशेषज्ञ इस वैश्विक महंगाई के लिए केंद्रीय बैंकों को भी दोषी मान रहे हैं। अमेरिका में महंगाई दर 8.5 फीसदी और यूरोप में 7.5 फीसदी तक पहुंच गई, जबकि उनकी ऊपरी सीमा दो फीसदी है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए महंगाई दर बढ़ाने की कोशिश कर रहा था। इसके लिए उसने ब्याज दरें शून्य के आसपास कर रखी थीं। इसलिए जब महंगाई दर दो फीसदी के ऊपर गई तो फेड रिजर्व ने उस पर खुशी जताई। महंगाई और बढ़ी तो उसने कहा कोई बात नहीं, औसत महंगाई दर दो फीसदी होनी चाहिए। अब जब महंगाई चार दशकों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है तो फेड ब्याज दरें बढ़ाने जा रहा है। फेड प्रमुख जेरोम पॉवेल ने कहा है कि मई से तेजी से ब्याज दरें बढ़ाई जाएंगी। माना जा रहा है कि दरें 0.5 फीसदी बढ़ सकती हैं। भारतीय रिजर्व बैंक भी उसी रास्ते पर चल सकता है। मौद्रिक नीति की पिछली समीक्षा (6 से 8 अप्रैल) में रिजर्व बैंक ने भी महंगाई पर फोकस करने की बात कही। आरबीआइ गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपनी टिप्पणी में लिखा कि परिस्थितियां महंगाई को प्राथमिकता देने के लिए बाध्य कर रही हैं। लेकिन सवाल है कि क्या कर्ज महंगा करने से महंगाई कम होगी। प्रो. अरुण ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है कि महंगाई ज्यादा डिमांड के कारण होती तो ब्याज दरें बढ़ाने से फर्क पड़ता, लेकिन यहां तो सप्लाई की दिक्कतों से दाम बढ़े हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध, रूस पर पाबंदी, चीन में लॉकडाउन इन सब वैश्विक परिस्थितियों के कारण निकट भविष्य में महंगाई कम होने के आसार नहीं लग रहे हैं।
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ज्यादा महंगाई का सीधा असर लोगों के रहन-सहन पर पड़ता है, क्योंकि उनकी कमाई महंगाई की रफ्तार से नहीं बढ़ती। अभी तो महामारी के कारण गई सभी नौकरियां ही वापस नहीं आई हैं। ऐसे में तार्किक बात तो यही है कि गरीबी बढ़ेगी। लेकिन आइएमएफ और वर्ल्ड बैंक ने भारत में गरीबी घटने की बात कही है। आइएमएफ का तो आकलन है कि भारत में ‘अत्यधिक गरीबी’ लगभग खत्म हो चुकी है। इसने एनएसओ के उपभोक्ता खर्च सर्वेक्षण के आधार पर कहा है कि 2019 में 0.77 फीसदी और 2020 में 0.86 फीसदी भारतीय ही अत्यधिक गरीब रह गए थे। वर्ल्ड बैंक के अनुसार 2011 से 2019 के दौरान भारत में अत्यधिक गरीबी 12.3 फीसदी कम हो गई। यह 22.5 फीसदी से घटकर 10.2 फीसदी रह गई। वर्ल्ड बैंक और आइएमएफ दोनों ने परचेजिंग पावर पैरिटी के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रति दिन 1.9 डॉलर कमाई के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है।
इन वैश्विक संगठनों के विपरीत नीति आयोग ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आधार पर बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआइ) में निष्कर्ष निकाला कि 2015 में भारत में गरीबी 25 फीसदी थी। इस सूचकांक में शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण जैसे 12 पैमानों पर परखा जाता है।
वैश्विक एजेंसियों के आंकड़ों को नए संदर्भों में देखने की जरूरत है। ये आंकड़े 2019 के हैं, जब महामारी का असर नहीं हुआ था। मार्च 2020 के बाद सभी इंडिकेटर गिरावट का ही संकेत देते हैं। जनवरी में आया पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी (प्राइस) का सर्वे भी बताता है कि 2015-16 से 2020-21 के दौरान सबसे गरीब 20 फीसदी लोगों की आमदनी 52.6 फीसदी, उनसे ऊपर 20 फीसदी (निम्न मध्य वर्ग) की 32.4 फीसदी और मध्य वर्ग की 8.9 फीसदी घट गई। दूसरी तरफ उच्च मध्य वर्ग की कमाई सात फीसदी और सबसे अमीर 20 फीसदी लोगों की कमाई 39 फीसदी बढ़ गई। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी का आकलन है कि 2020 के बाद 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए। यानी कहा जा सकता है कि 2019 तक गरीबी जितनी कम हुई, महामारी के कारण वह फिर पुरानी स्थिति में आ गई।
2050 तक कोई भूखा नहीं!
अडाणी समूह के चेयरमैन गौतम अडाणी ने कहा है कि अगर भारत 2050 तक 30 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाए तो यहां किसी को भूखे पेट नहीं सोना पड़ेगा। फोर्ब्स की रियल टाइम बिलियनेयर लिस्ट के अनुसार 127 अरब डॉलर संपत्ति वाले अदानी दुनिया के पांचवें सबसे अमीर व्यक्ति हैं। 2021 में उनकी संपत्ति 49 अरब डॉलर बढ़कर 81 अरब डॉलर हो गई। इतनी वृद्धि दुनिया के दो सबसे अमीर व्यक्तियों, टेस्ला के इलोन मस्क और अमेजन के जेफ बेजोस की संपत्ति में भी नहीं हुई।