केरल में इन दिनों हंगामा बरपा है। हेमा आयोग की एक रिपोर्ट कहती हैं, ‘‘मलयालम सिनेमा पर शक्तिशाली पुरुषों के एक समूह का राज है, जो महिलाओं का शोषण करते हैं।” खुलासे में आगे कहा गया, युवा लड़कियों सहित महिलाओं को यौन उत्पीड़न और शोषण का सामना करना पड़ता है और विरोध करने पर काम करने का मौका नहीं दिया जाता है। फिल्म उद्योग से जुड़ी महिलाओं की लंबी लड़ाई के बाद 19 अगस्त को यह रिपोर्ट जारी की गई है। रिपोर्ट पुष्ट करती है कि मलयालम सिनेमा उद्योग महिलाओं के लिए असुरक्षित है और यहां कम भुगतान जैसी भी कई समस्याएं हैं। उसके बाद कई आवाजें उठ रही हैं और नए-नए आरोप उछल रहे हैं।
मलयालम सिनेमा के एएमएमए (अम्मा) और एफईएफकेए जैसे संगठनों ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन आरोपों के मद्देनजर एएमएमए के अध्यक्ष और सचिव के इस्तीफे हो चुके हैं। हालांकि रिपोर्ट में किसी खास व्यक्ति का नाम लेकर कुछ नहीं लिखा गया है, लेकिन इसके संदर्भों से ही समझा जा सकता है कि यह ‘प्रतिष्ठित सितारों’ के लिए कहा जा रहा है, जो महिलाओं से संपर्क बनाने की मांग करते हैं और उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। करिअर खत्म हो जाने के डर से पीड़ित अक्सर उद्योग में ‘बड़े कलाकारों’ की व्यवस्था के सामने घुटने टेक देती हैं। साथ ही उत्पीड़न और न्याय की मांग के लिए शिकायत दर्ज कराने की कोई सही व्यवस्था भी नहीं है। इस कारण प्रभावित व्यक्ति के लिए बोलना मुश्किल हो जाता है। मलयालम फिल्म उद्योग में पारिश्रमिक को लेकर लिखित अनुबंध की भी कमी है। इस कारण पारिश्रमिक को लेकर विवाद होता है, जिसमें व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं को किए गए वादे के हिसाब से पैसे दिए ही नहीं जाते। रिपोर्ट में कहा गया है कि भुगतान में पारदर्शिता और काम में शामिल सभी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए लिखित अनुबंध जरूर होने चाहिए।
आयोग ने यह भी पाया कि महिलाओं को शौचालय और चेंजिंग रूम जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित किया जाता है। महिलाओं ने भी स्वीकारा कि उन्हें पेड़ों के पीछे कपड़े बदलने के लिए मजबूर किया जाता है। जूनियर कलाकारों से ‘गुलामों’ की तरह व्यवहार किया जाता है। एसोसिएशन ऑफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट्स (एएमएमए) उन्हें कलाकारों के रूप में मान्यता नहीं देता न केरल के फिल्म कर्मचारी फेडरेशन (एफईएफकेए) तकनीशियनों के रूप में। अक्सर कोई एजेंट या कहें ठेकेदार जूनियर कलाकारों को सेट तक पहुंचाते हैं, जिससे अनुबंध पर हस्ताक्षर करने का सवाल ही नहीं पैदा होता, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही खुद-ब-खुद कम हो जाती है।
उद्योग के लोग ऐसे कलाकारों और तकनीशियनों पर ‘अनौपचारिक प्रतिबंध’ लगा देते हैं, जो यौन उत्पीड़न और शोषण का विरोध करते हैं। यह बात पुरुषों पर भी लागू होती है। रिपोर्ट में इन लोगों को ‘माफिया’ कहा गया है, जो अभिनेता, निर्माता और निर्देशकों सहित 10 से 15 व्यक्तियों का एक समूह है। ये लोग उद्योग को अपनी मर्जी से नियंत्रित करते हैं। हेमा आयोग आंतरिक शिकायत समितियों के गठन को समाधान नहीं मानता। आयोग का मानना है कि ये समितियां ‘माफिया’ से प्रभावित होंगी और सिनेमा में महिलाओं की मुश्किलें बढ़ा देंगी। हालांकि कुछ निर्माता-निर्देशक हैं, जो इन ‘मौखिक तानाशाही’ का विरोध करना चाहते हैं और ‘प्रतिबंधित लोगों’ को मौका देना चाहते हैं लेकिन वे ऐसा करने से डरते हैं और चुपचाप ‘प्रतिबंध सिद्धांत’ को मानते रहते हैं।
एक युवा अभिनेत्री के अपहरण और यौन उत्पीड़न के बाद 2017 में वुमेन इन सिनेमा कलेक्टिव (डब्ल्यूसीसी) का गठन किया गया था। डब्ल्यूसीसी के लगातार दबाव के कारण हेमा आयोग की स्थापना की गई थी। हालांकि डब्ल्यूसीसी की एक सदस्य गवाही के दौरान यौन उत्पीड़न से मुकर गई थी।
केरल हाइकोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश हेमा की अध्यक्षता में गठित आयोग में पूर्व वरिष्ठ अभिनेता शारदा और तत्कालीन सदस्य सचिव के. वलसलाकुमारी शामिल हैं। आयोग ने 2019 में ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। रिपोर्ट में आरोप इतने विस्फोटक थे कि इसे गोपनीय रखा गया। यहां तक कि डब्ल्यूसीसी सदस्यों को भी डर था कि गवाही सार्वजनिक करने से उनकी गोपनीयता से समझौता हो सकता है और यह उनके जीवन के लिए खतरा बन सकता है। उसके बाद सरकार ने रिपोर्ट को संशोधित करने के लिए एक और कमेटी बनाई। फिर संपादित रिपोर्ट जारी की गई, जिसमें मूल रिपोर्ट से लगभग 55 पृष्ठ हटा दिए गए हैं।
मलयालम सिनेमा उद्योग काफी हद तक चुप है। डब्ल्यूसीसी सदस्यों की प्रतिक्रिया आई है। सदस्यों का कहना है, ‘‘उनका काम अब शुरू होता है।’’