अमेरिका और ईरान के बीच हाल के दिनों में तनाव काफी बढ़ गया है। तेल समृद्ध लेकिन अशांत पश्चिम एशिया में इस झगड़े के पूरी तरह से युद्ध में तब्दील होने की आशंका 8 जनवरी को काफी बढ़ गई। ईरान ने इराक में अमेरिकी सेना के दो बेस पर एक दर्जन से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें दाग दीं। ईरान ने अपने सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के जवाब में यह कार्रवाई की। अमेरिकी ड्रोन हमले में 3 जनवरी को सुलेमानी की मौत हो गई थी। इस हमले की मंजूरी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दी थी। सुलेमानी ईरान में काफी सम्मानित शख्सियत थे। सुलेमानी के अंतिम संस्कार में उनकी लोकप्रियता दिखी थी। उसमें शामिल लाखों लोग भावुक हो उठे थे और वहां माहौल पूरी तरह से अमेरिका विरोधी बन गया था।
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने भी माना है कि इरबिल और अल असद में उसके बेस पर हमला हुआ है। हालांकि उसने किसी नुकसान की जानकारी नहीं दी। ईरानी सेना के रिवोल्यूशनरी गार्ड ने कहा कि यह हमला सुलेमानी की हत्या की जवाबी कार्रवाई थी। रिवोल्यूशनरी गार्ड ने पश्चिम एशिया के दूसरे देशों को चेतावनी के साथ इस बात के संकेत भी दिए हैं कि आने वाले दिनों में विवाद दूसरे क्षेत्रों में भी फैल सकता है। ईरान ने ‘अमेरिका की आतंकवादी सेना को अपनी जमीन पर पनाह देने वाले' उसके सहयोगी देशों को चेतावनी भी दे डाली है। उसने कहा है कि जिस जमीन से ईरान के खिलाफ हमले की कार्रवाई होगी, उस जमीन को ईरानी सेना अपना लक्ष्य बनाएगी। खाड़ी में अभी स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि उक्रेन के यात्री विमान के तेहरान से उड़ान भरते ही दुर्घटनाग्रस्त होने की जांच इस नजर से भी की जा रही है कि कहीं इसका संबंध मौजूदा तनाव से तो नहीं है। इस दुर्घटना में विमान में सवार सभी 170 यात्रियों की मौत हो गई।
इस घटनाक्रम के चलते कच्चे तेल के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। इसकी कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है। अब सबको यह डर सताने लगा है कि अगर अमेरिका और ईरान द्वारा एक-दूसरे पर हमले जारी रहे, तो पश्चिम एशिया के दूसरे देशों में भी इसके गंभीर नतीजे देखने को मिलेंगे। खाड़ी के बाहर भी इसका बड़ा असर दिख सकता है। ईरान के विदेश मंत्री जवद जरीफ ने स्पष्टीकरण दिया कि ईरान की तरफ से यह मिसाइल हमला आत्मरक्षा में किया गया था। जरीफ ने इस आशंका से इनकार किया कि ईरान मौजूदा हालात को युद्ध में बदलना चाहता है। जरीफ के बयान को ईरान की तरफ से एक रेखा खींचे जाने के तौर पर देखा जा रहा है ताकि स्थिति आगे और न बिगड़े। लेकिन बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं।
भारत के लिए अमेरिका और ईरान दोनों रणनीतिक साझेदार रहे हैं। इनके साथ संतुलन बनाना कभी भारत के लिए आसान नहीं रहा। अमेरिका और ईरान के बीच जब-तब तनाव की स्थिति उत्पन्न होती रहती है, और हर बार भारत को राजनीतिक सूझबूझ का रास्ता अपनाना पड़ता है ताकि दोनों पक्षों को खुश रखा जा सके। पहले कई बार भारत के सामने ऐसी परिस्थितियां बनीं, जब उसे दोनों में से किसी एक को चुनना पड़ा। उदाहरण के लिए 2009 में परमाणु समझौते के लिए भारत को अमेरिका का साथ देना पड़ा था और ईरान के खिलाफ वोटिंग करनी पड़ी थी। यह वोटिंग संयुक्त राष्ट्र के संगठन इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एसोसिएशन की तरफ से ईरान के विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करने पर थी।
जनरल सुलेमानी की हत्या के बाद पश्चिम एशिया में जो तनाव बढ़ा है, उसकी वजह से मौजूदा हालात बिलकुल अलग हैं। इन हालात में भारत के लिए चुनौती काफी बढ़ गई है। अमेरिका के पूर्व राजनयिक और काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशंस के अध्यक्ष रिचर्ड हास मानते हैं कि 2003 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश द्वारा इराक के खिलाफ युद्ध शुरू करने के बाद मध्य पूर्व में यह सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। अमेरिकी उद्यमी डेविड गार्डनर ने फाइनेंशियल टाइम्स में अपने लेख में कहा है कि अमेरिका, उसके साथी देशों और ईरान के बीच छाया युद्ध अमेरिकी हवाई हमलों से तेज हो गया। यह पूरे मध्य पूर्व में फैल सकता है।
वहीं, भारत पश्चिम एशिया के हालात पर करीबी नजर रखे हुए है। ईरान के मिसाइल हमले के बाद भारत ने अपने नागरिकों को इराक नहीं जाने की सलाह दी है। जो भारतीय इराक में हैं उन्हें भी बाहर कम निकलने की सलाह दी गई है। चिंता की बात यह है कि अमेरिका और ईरान का एक दूसरे पर हमला लंबे समय तक चला, तो दूसरे देश भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। राष्ट्रपति ट्रंप ने विश्व के दूसरे नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी फोन पर बात की और सुलेमानी के खिलाफ अमेरिकी कार्रवाई की वजह बताई। भारत ने दोनों नेताओं की बातें भले सुन ली हों, लेकिन उनकी बातों पर अपनी सहमति नहीं जताई है।
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि हालात कब तक सामान्य होंगे। सुलेमानी कोई साधारण जनरल नहीं थे। वे ईरान ही नहीं, इराक, सीरिया, लेबनान और यमन जैसे पड़ोसी देशों में भी मशहूर थे। क्षेत्रीय सैनिक कमांडर होने के नाते इस क्षेत्र में सक्रिय विभिन्न मिलिशिया के बीच समन्वय का जिम्मा उनके पास ही था। उनके हस्तक्षेप के बाद ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सीरिया में बशर अल असद के समर्थन में अपनी सेना भेजने पर राजी हुए। सुलेमानी क्षेत्र के ज्यादातर शीर्ष नेताओं को व्यक्तिगत तौर पर जानते थे। ईरान के हितों की रक्षा के लिए बातचीत में कई बार उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अमेरिका में भी कई लोग इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में उनकी अहम भूमिका को स्वीकार करते हैं। 1980 के दशक में आठ साल चले इराक-ईरान युद्ध में ईरानियन रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कोर (आइआरजीसी) की विशिष्ट कुद्स सेना ने उन्हें पहचान दिलाई। कुद्स फोर्स का प्रमुख होने के नाते वह ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह खमेनी के भी बहुत करीबी थे। कुछ लोग यह भी अटकलें लगाते थे कि वह ईरान के राष्ट्रपति बन सकते हैं। ऐसे में एक सवाल अधिकांश लोगों के मन में चल रहा है कि अमेरिका ने उन्हें निशाना क्यों बनाया।
एक जवाब हमले के समय को जोड़कर दिया जा रहा है कि यह हमला अमेरिकी सीनेट में अपने खिलाफ चल रही महाभियोग की प्रक्रिया से ध्यान भटकाने के लिए ट्रंप का प्रयास हो सकता है। इस कार्रवाई से ट्रंप की स्थिति मजबूत हो सकती है। विशेषज्ञ क्षेत्र की दो घटनाओं को भी सुलेमानी की हत्या से जोड़कर देख रहे हैं। इस साल के शुरू में रूस, चीन और ईरान ने अमेरिका को चिढ़ाने के लिए ओमान की खाड़ी में त्रिपक्षीय नौसैनिक अभ्यास किया। दूसरी वजह यह बताई जा रही है कि सुलेमानी सऊदी अरब और ईरान के बीच तल्ख रिश्तों को सामान्य बनाने के मकसद से पर्दे के पीछे की वार्ता के लिए बगदाद में आए थे।
एक अन्य थ्योरी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति सुलेमानी पर कार्रवाई करने से हिचकिचा रहे थे लेकिन पांपियो ने हमले के लिए उन्हें राजी कर लिया। लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री यह पूर्वानुमान लगाने में विफल रहे कि सुलेमानी कितने लोकप्रिय हैं। उनकी हत्या किए जाने से इराक में अमेरिका की स्थिति इतनी खराब हो गई कि उसे आतंकवादी कहा जाने लगा।
तनाव कैसे खत्म होगा
एक आशंका यह है कि एक के बाद एक भड़काने वाली घटनाओं से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है, जिससे पूर्ण युद्ध की शुरुआत हो जाए। दूसरी संभावना है कि ईरान को अमेरिकी प्रतिबंधों से उत्पन्न आर्थिक कठिनाइयां खत्म करने का अवसर मिले। यह भी हो सकता है कि अमेरिका और ईरान आगामी दिनों में दोबारा वार्ता के लिए तैयार हो जाएं। खाड़ी क्षेत्र में 80 लाख से ज्यादा भारतीय रहते हैं और यह क्षेत्र भारत के लिए प्रमुख ऊर्जा स्रोत है। ऐसे में भारत निश्चित ही उम्मीद करेगा कि इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में तनाव जल्द से जल्द खत्म हो जाए।