उन्नाव में सेंगर कांड के बाद एक और वीभत्स बलात्कार कांड की पीड़िता को सरेआम जिंदा जलाने की कोशिश और उसकी दर्दनाक मौत से पूरा देश सन्न रह गया। उन्नाव में ही कुलदीप सिंह सेंगर कांड में पहले बड़ी फजीहत झेल चुकी उत्तर प्रदेश की आदित्यनाथ सरकार के शासन-प्रशासन को दुरुस्त रखने के दावों पर गंभीर सवाल उठे। प्रदेश में कानून-व्यवस्था के हालात क्या हैं और राज्य मशीनरी कैसे काम कर रही है, इसकी गवाही चीख-चीखकर यह कांड दे रहा है। उन्नाव की गैंगरेप पीड़िता ने पिछले साल 12 दिसंबर को रायबरेली के लालगंज में मुकदमा दर्ज करवाने की कोशिश की थी। लेकिन फाइलों में अपराध पर काबू दिखाने वाली लालगंज की पुलिस ने उसे तब तक टरकाया जब तक अदालत ने आदेश नहीं दिए। न्यायिक मजिस्ट्रेट की ओर से रायबरेली पुलिस को 10 जनवरी 2019 को मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिए जाने के बावजूद मामला तीन महीने बाद 5 मार्च 2019 को दर्ज हो पाया। पीड़िता का संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। आरोपी ग्राम प्रधान के परिवार से ताल्लुक रखते थे, इसलिए पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने के बावजूद गिरफ्तारी नहीं की। पीड़िता ने मुख्यमंत्री के जनता दरबार में दस्तक दी तब 22 सितंबर को आरोपियों ने अदालत में सरेंडर कर दिया। लेकिन इंसाफ की लड़ाई तब और कमजोर हो गई जब पुलिस के ढुलमुल रवैए से आरोपियों को हाइकोर्ट से जमानत मिल गई।
पीड़िता के घरवालों का आरोप है कि जेल से बाहर आते ही आरोपियों ने पीड़िता और घरवालों को केस वापसी के लिए धमकाना शुरू किया। वे पीड़िता को जला देने की धमकी दे रहे थे, और 5 दिसंबर की सुबह जब पीड़िता रेलवे स्टेशन जा रही थी, तब आरोपियों ने उसे जला दिया। वह लपटों में घिरी कुछ दूर तक दौड़ी। कुछ देर बाद पुलिस ने उसे अस्पताल पहुंचाया। आखिर 90 फीसदी जली लड़की ने तीन दिनों बाद दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया।
उसके बाद सरकार की यह हड़बड़ी साफ दिखी कि इस मामले में आगे कोई कोताही न हो। पीड़ित परिवार की ओर से अंतिम संस्कार से पहले मुख्यमंत्री को बुलाने की मांग आई तो आदित्यनाथ ने कैबिनेट के दो साथियों स्वामी प्रसाद मौर्य और कमला रानी वरुण को भेज दिया। लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी और सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ पहुंच चुके थे। सरकार के मंत्रियों को नारेबाजी का सामना करना पड़ा।
सबसे पहले कांग्रेस की ओर से इस लड़ाई को धार देते हुए प्रियंका गांधी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू और पूर्व सांसद अन्नू टंडन के साथ पीड़िता के गांव पहुंच गईं। इधर लखनऊ में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मोर्चा संभाल लिया था। कांग्रेस सेवादल और महिला विंग के कार्यकर्ताओं ने पार्टी मुख्यालय से मुख्यमंत्री आवास की ओर कूच किया। लेकिन वे रास्ते में ही रोक लिए गए। पुलिस ने उन पर जमकर लाठियां बरसाईं।
बाद में प्रियंका गांधी ने कहा, “उन्नाव में पिछले 11 महीने में 90 बलात्कार हुए हैं। सेंगर के मामले में सरकार ने अपराधियों की तब तक सुरक्षा की, जब तक पीड़ित परिवार नष्ट नहीं हो गया। इसके बावजूद वह लड़ रहा था।” कांग्रेस महासचिव ने मुख्यमंत्री को सलाह दी है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए सभी जिलों में एक सेल बनाया जाए, एसपी का नंबर दिया जाए और वारदात होने के 24 घंटे के भीतर मामला दर्ज किया जाए।
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को भी लगा कि इस घटना के बाद उन्हें सड़क पर उतरना चाहिए। उधर कार्यकर्ताओं को सपा सुप्रीमो के धरने की खबर मिली तो उनकी चहल-पहल बढ़ने लगी। विधान भवन के सामने ही भाजपा का मुख्यालय है। वहां प्रदर्शन की कोशिश कर रहे सपा कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच मुठभेड़ भी हुई। अखिलेश यादव ने कहा, “सरकार बहू-बेटियों की सुरक्षा और सम्मान से जीने की गारंटी देने में पूरी तरह विफल हो गई है। हर दिन प्रदेश में बच्चियों-छात्राओं की बलात्कार और हत्या की घटनाएं हो रही हैं। मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव गृह और डीजीपी को जाना होगा, वरना प्रदेश की जनता को मुक्ति नहीं मिलेगी।” सपा प्रमुख ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी इस मामले में न्याय मिलने तक चुप नहीं बैठेगी। सपा के युवा नेता और परिषद सदस्य सुनील साजन ने आउटलुक से कहा, “इस परिवार को इंसाफ मिलने तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा। हम ये भी भरोसा चाहते हैं कि सरकार अदालत में उन दरिंदों की कोई पैरवी न करे, उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचाए। दबंगों के गांव में यह परिवार बेहद गरीब है, उनकी सुरक्षा बड़ी चुनौती है। सरकार ने जो वादे उस परिवार से किए हैं, वे पूरे होने चाहिए।”
बसपा सुप्रीमो ने भी सियासी माहौल को भांपते हुए राजभवन का रुख किया और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से मिलने पहुंचीं। राज्यपाल से किसी मसले की शिकायत लेकर मायावती के पहुंचने की खबर अपने आप में अनूठी है, क्योंकि लंबे समय के बाद वे ऐसी किसी सियासी गतिविधि में सक्रिय हुई हैं। विपक्ष की सक्रियता के बीच अच्छी बात यह रही कि सरकार ने भी कार्रवाई तेज कर दी। यह बात और है कि सितंबर में पीड़िता की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जनता दरबार में मुलाकात और आश्वासन को अफसरों ने गंभीरता से लिया होता तो ये दिन नहीं देखने पड़ते।
पूर्व आइपीएस और प्रदेश के डीजी, होमगार्ड रहे सूर्य कुमार शुक्ला कहते हैं, “साफ है कि उन्नाव के पुलिस अफसरों ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया।” शुक्ला के मुताबिक, अदालतों के तौर-तरीकों में भी व्यापक बदलाव जरूरी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालत से कराने की बात कही है, लेकिन पीड़ित परिवार को लगता है कि सीबीआइ जांच से ही उन्हें इंसाफ मिल सकता है।
मुख्यमंत्री के निर्देश पर परिजनों से मिलने पहुंचे स्वामी प्रसाद मौर्य ने उनसे वादा किया है कि वे जैसा चाहेंगे, वैसी ही जांच कराई जाएगी। परिवार अपनी बेटी के लिए इंसाफ की मांग कर रहा है। बहुत समझाने पर ही उसने सरकार की ओर से दी गई 25 लाख रुपये की सहायता राशि स्वीकार की है। परिवार को हथियार का लाइसेंस देने के साथ ही एक सदस्य को नौकरी का भी आश्वासन मिला है। अब तक के घटनाक्रम से साफ है कि विपक्ष कानून-व्यवस्था या किसी और मसले पर सरकार की विफलता को अब हल्के में लेने के मूड में नहीं है।
साहित्य की धरती पर बलात्कार का सिलसिला
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, भगवती शरण वर्मा, डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’, डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ‘राजहंस’, आचार्य नंद दुलारे बाजपेयी- साहित्य और हिंदी आलोचना के ये वो प्रखर नाम हैं जिनकी पहचान उन्नाव से जुड़ी है। लेकिन इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि बलात्कार और उत्पीड़न की लगातार घटनाओं ने इस शहर को बदनामी की ओर धकेल दिया है। देश की युवा पीढ़ी के मानस में उन्नाव से अब जो पहला नाम ध्यान में आता है वह है बलात्कार और उत्पीड़न के आरोप में जेल में बंद भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर। ताजा घटना में गैंगरेप के आरोपी शुभम त्रिपाठी, शिवम त्रिपाठी व अन्य पांच लोगों पर आरोप है कि उन्होंने अपना पाप छिपाने के लिए पीड़िता को आग के हवाले कर दिया। इस कांड के बाद उन्नाव के आपराधिक इतिहास पर शोध होने लगा है। प्रियंका गांधी ने भी अपने बयान में कहा कि उन्नाव प्रदेश का ऐसा जिला बन गया है, जहां 11 महीने में 90 बलात्कार दर्ज किए गए। इससे पहले मीडिया में यह भी आया कि इस जिले में हर महीने बलात्कार की औसतन छह घटनाएं दर्ज हो रही हैं। इन आंकड़ों की प्रामाणिकता पर भले सवाल उठाए जाएं, लेकिन यह इस जिले के लोगों के लिए चिंता का विषय है कि उसकी ऐतिहासिक पहचान पर कालिख पोती जा रही है।