भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली उत्तर प्रदेश की योगी सरकार एक साथ कई मोर्चों पर घिरती दिख रही है। प्रदेश में 69 हजार सहायक शिक्षकों की भर्ती को लेकर कानूनी दांवपेच चल ही रहा था, कि इस बीच प्रयागराज में कुछ गिरफ्तारियों के बाद परीक्षा माफियाओं की भूमिका को लेकर सवाल उठने लगे। आरोप है कि परीक्षा माफियाओं ने अभ्यर्थियों से शिक्षक भर्ती परीक्षा में पास कराने के लिए 10 से 12 लाख रुपये लिए। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इसकी तुलना मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से करके इसे सियासी सनसनी बना दिया। शुरुआती दिनों में पुलिस भी सक्रिय दिखाई पड़ी। प्रयागराज की सोरांव पुलिस की सक्रियता से परीक्षा माफिया के कई प्रमुख कर्ताधर्ता गिरफ्त में आ गए, जिला पुलिस की वाहवाही होने लगी लेकिन इसके साथ ही परीक्षा माफियाओं की वजह से सत्ता में बैठे उनके आकाओं की ओर भी उंगलियां उठने लगीं। कहानी यहीं से बदल गई। एक रात अचानक कुछ आइपीएस अफसरों के तबादले की सूची जारी हुई और प्रयागराज के एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज का तबादला कर दिया गया।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के उपाध्यक्ष अखिलेश यादव ने आउटलुक से बातचीत में कहा कि एसएसपी सत्यार्थ का तबादला सच को छुपाने की कोशिश है। वे परीक्षा माफियाओं के खिलाफ तेजी से कार्रवाई कर रहे थे। इलाके के शिक्षा माफियाओं की बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ गहरी साठगांठ है। इस मामले में गिरफ्तार एक आरोपी कृष्णा पटेल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट का दावेदार था। इस मामले में प्रयागराज बीजेपी के कुछ और प्रभावशाली कार्यकर्ता शामिल हैं, जो लखनऊ दरबार में अच्छी पहुंच रखते हैं। उनके आकाओं के इशारे पर एसएसपी को प्रयागराज से हटाया गया है। अखिलेश कहते हैं, “हमें उम्मीद थी कि एसएसपी सत्यार्थ इस गिरोह का पर्दाफाश करेंगे और सहायक शिक्षक की परीक्षा में शामिल हजारों नौजवानों को इंसाफ मिलेगा। लेकिन योगी सरकार ने इंसाफ का गला घोंटा है। हम इसके खिलाफ लगातार आवाज उठा रहे हैं।”
प्रयागराज के इस मामले से सरकार की खासी किरकिरी हुई है। फिलहाल स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई है। आइजी एसटीएफ अमिताभ यश ने प्रयागराज पहुंचकर तफ्तीश को आगे बढ़ाया है। आउटलुक ने इस प्रकरण पर प्रयागराज के एसएसपी रहे सत्यार्थ अनिरुद्ध से बात करने की कोशिश की, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।
प्रयागराज प्रकरण के बीच पशुधन विभाग से गड़बड़ी की एक और बड़ी शिकायत ने योगी सरकार की परेशानी बढ़ा दी। दरअसल, ये मामला और गंभीर इसलिए हो गया क्योंकि पूरा मामला सरकार की नाक के नीचे सचिवालय में पशुधन विभाग के दफ्तर से जुड़ा था। दरअसल, यह मामला इतना बड़ा था कि इसे शुरुआत में ही एसटीएफ को सौंप दिया गया। एसटीएफ ने जब कार्रवाई शुरू की तो चौंकाने वाले राज सामने आए।
मामला दर्ज होने के महज 12 घंटे के भीतर एसटीएफ ने जालसाजी के इस खेल की परतें उधेड़नी शुरू कर दी। इसमें शामिल अपराधियों ने फर्जी टेंडर के जरिए इंदौर के कारोबारी को लखनऊ बुलाया और उसे 9.72 करोड़ रुपये का चूना लगा दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने उसे अपने रसूख का डर दिखाते हुए चुप रहने की भी हिदायत दी। ठगी और जालसाजी करने वाले गिरोह के इन सदस्यों पर लखनऊ के हजरतगंज थाने में कई धाराओं में मामले दर्ज किए गए हैं। इसमें विभागीय मंत्री के प्रधान निजी सचिव रजनीश दीक्षित के साथ ही सचिवालय में कांट्रेक्ट पर नौकरी करने वाले धीरज कुमार देव, खुद को पत्रकार बताने वाले ए.के. राजीव और खुद को पशुपालन विभाग का उपनिदेशक बताने वाले आशीष राय को इस पूरी योजना का मास्टरमाइंड बताया गया है। इस मामले में शक की सुई एक आइपीएस अधिकारी से लेकर राजधानी में तैनात कुछ पुलिस अफसरों की ओर भी जा रही है। 12 गिरफ्तारियों के बाद तफ्तीश आगे बढ़ाई गई है लेकिन इस पूरे मामले पर सियासी तीर चलाते हुए प्रदेश कांग्रेस ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को निशाने पर लिया है।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने आउटलुक से बातचीत में कहा कि भ्रष्टाचार पर योगी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। किसी विभाग के प्रधान निजी सचिव के इस तरह भ्रष्टाचार में लिप्त होने के बावजूद विभागीय मंत्री के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं होना यह बताता है कि ऐसे भ्रष्टाचारियों को सरकार के नेतृत्व की शह मिली हुई है। लल्लू कहते हैं, “योगी सरकार भ्रष्टाचार में आकंठ डूब चुकी है। 69 हजार शिक्षकों की भर्ती में गड़बड़ी का मामला हो या पशुधन विभाग में भ्रष्टाचार का, सरकार का नियंत्रण कहीं नहीं दिखता। भर्तियों में पारदर्शिता पूरी तरह खत्म हो चुकी है। पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार की बाढ़ आई हुई है। महाराजगंज में बिना सड़क बनाए विभाग की ओर से रुपये का भुगतान कर दिया गया। कांग्रेस इस मसले पर चुप नहीं बैठने वाली। हमने योगी सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ चरणबद्ध आंदोलन की योजना बनाई है। पूरे प्रदेश में हमारे कार्यकर्ता इस लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे। पहले चरण में हमने सभी जिलों में जिलाधिकारियों को ज्ञापन देकर भ्रष्टाचार को लेकर आगाह किया है। हम लगातार लोगों के बीच जाकर भ्रष्टाचार को लेकर आवाज उठाएंगे और सरकार की कलई खोलेंगे।”
समाजवादी पार्टी ने भी भ्रष्टाचार पर वार करते हुए भाजपा और योगी सरकार को निशाने पर लिया है। पार्टी की ओर से जारी बयान में कहा गया, “69 हजार शिक्षक भर्ती घोटाले का मास्टरमाइंड बीजेपी से जुड़ा बताया जाता है। बेसिक शिक्षा में अनामिका और प्रियंका जैसी कितनी ही फर्जी शिक्षिकाओं की भर्ती हुई है।” खबर है कि लखनऊ विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों में भी कुछ अनामिकाएं हैं। बिना ऊपरी साठगांठ के ऐसा घोटाला संभव नहीं। भाजपा राज में भ्रष्टाचार घरेलू उद्योग बन गया है। सचिवालय के भीतर बड़े चेहरे और बड़े अफसर भी नौकरियां और बड़े ठेके दिलाने के नाम पर लोगों को ठगने का धंधा चला रहे हैं। हैरत वाली बात है कि सचिवालय के भीतर एक फर्जी कार्यालय भी खुल गया और सरकार को खबर तक नहीं लगी।”
इस पूरे मामले में सरकारी पक्ष जानने की तमाम कोशिश विफल रही। बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश द्विवेदी से संपर्क की कोशिश फेल हो गई। दूसरे वरिष्ठ नेता भी इस मामले में बोलने को तैयार नहीं हैं। योगी सरकार ने इस भ्रष्टाचार की जांच को एसटीएफ के हवाले तो कर दिया है, लेकिन विपक्ष को इस जांच पर भरोसा नहीं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट कर इसपर अपनी प्रतिक्रिया जता दी है, “उत्तर प्रदेश में एसटीएफ की मनमानी जांच का खेल शुरू हो गया है। चाहे 69 हजार शिक्षकों की भर्ती का मामला हो या एक नाम से अनेक नौकरी करने का या पशुधन मंत्री के निजी सचिव द्वारा ठेकेदारी घोटाला या रामपुर में मो. आजम साहब की जांच। भाजपा की अपनों को बचाने और दूसरों को फंसाने की नीति के लिए भी एक एसटीएफ जांच हो।”
कोरोना संक्रमण से लड़ रहे प्रदेश में भ्रष्टाचार एक अलग दंश के रूप में सामने आया है। बुद्धिजीवी प्रदेश के इस कुचक्र से निकलने की उम्मीद छोड़ चुके हैं। उनका कहना है कि पूरा सिस्टम सड़ चुका है। इसमें आमूलचूल बदलाव के बिना ऐसी घटनाओं को रोका नहीं जा सकता। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, “एक पूरा दलाल तंत्र सक्रिय है। सरकार चाहे जिस पार्टी की हो, वे उसमें अपने लिए जगह बना लेते हैं। एक-दूसरे की जरूरत पर आधारित यह व्यवस्था चली आ रही है। इस दुष्चक्र को तोड़े बगैर भ्रष्टाचार पर लगाम संभव नहीं। योगी जी का नियंत्रण प्रशासन पर नहीं है और संभवत: पार्टी की ओर से भी उन्हें पूरा सहयोग नहीं मिल रहा है। मुख्यमंत्री के काम करने की अपनी शैली तो है, लेकिन पूरा सिस्टम इस तरह का बन चुका है कि अचानक उसमें बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। भर्ती बोर्ड और तमाम संस्थाओं में अपनी पार्टी के लोगों को बिठाकर व्यवस्था को कैसे बदला जा सकता है? व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए मुख्यमंत्री को बड़े बदलाव करने होंगे और ईमानदार लोगों के लिए इसमें जगह बनानी होगी। लेकिन सियासत में उपकृत करने की जो होड़ चल पड़ी है उसमें अपने लोगों को हर जगह सहूलियत देने की वजह से ऐसी चीजें फलती-फूलती हैं। भर्ती बोर्ड ही नहीं, प्रमुख स्थानों पर ईमानदार और योग्यता के आधार पर लोगों को बैठाना होगा और साथ ही पूरी प्रक्रिया में भी बदलाव करना होगा। इसके बगैर इस व्यवस्था को सुधारा नहीं जा सकता है।”
----------------
सरकार का नियंत्रण कहीं नहीं दिखता। भर्तियों में पारदर्शिता पूरी तरह खत्म हो चुकी है। पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार की बाढ़ आई हुई है। महाराजगंज में बिना सड़क बनाए विभाग की ओर से भुगतान कर दिया गया
अजय कुमार लल्लू
अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश कांग्रेस
-------------
व्यवस्था पर सवालः परीक्षा में इस तरह नकल करवाना आम बात हो गई है