उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने नई कार्यकारिणी की घोषणा की, तो कलह भी सड़क पर उतर आई। पार्टी में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के गुट ने फौरन विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा ह्रदयेश को हटाने की मांग मुखर कर दी है। प्रदेश अध्यक्ष इस मामले में गेंद कांग्रेस आलाकमान के पाले में डालने की कोशिश कर रहे हैं। लगभग ढाई साल पहले विधायक प्रीतम सिंह को प्रदेश संगठन की कमान मिली थी। लेकिन अंदरूनी कलह के चलते वे कार्यकारिणी नहीं बना सके। अब चुनाव नजदीक देख उन्होंने लगभग 240 लोगों की टीम का ऐलान किया, तो कलह सड़क पर आ गई। रावत खेमे के नेताओं और विधायकों का कहना है कि प्रीतम और डॉ. इंदिरा ह्रदयेश ने मिलकर हरीश रावत को उत्तराखंड की सियासत में हाशिए पर धकेलने की कोशिश की है।
दरअसल, कांग्रेस पहले से ही दो धड़ों में बंटी दिख रही थी। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदेश कांग्रेस ने प्रदर्शन किया, तो उसमें रावत नजर नहीं आए। रैली में उनके पोस्टर न होने पर उनके समर्थकों ने एतराज जताया था। विधानसभा में भी कई मौके ऐसे आए जब नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष (बतौर विधायक) तो साथ दिखे, लेकिन हरीश समर्थक विधायकों का साथ नहीं मिला। दूसरी ओर रावत अपने ही अंदाज में राज्य सरकार का विरोध करते रहे। इतना ही नहीं, हरीश रावत सोशल मीडिया को भी हथियार बनाकर हमले करते रहे। एक बार तो उन्होंने यहां तक लिख दिया कि वे सार्वजनिक जीवन से संन्यास भी ले सकते हैं।
लेकिन अब रावत खेमा खुलकर मैदान में उतर आया है। रावत खेमे के धारचुला से विधायक हरीश धामी ने तो नई कार्यकारिणी में मिले सचिव पद से इस्तीफा तक दे दिया। धामी कहते हैं कि नेता प्रतिपक्ष का वजूद विधायकों से होता है। अगर विधायक ही उनके साथ नहीं हैं, तो उन्हें तत्काल पद से हटा देना चाहिए। इस मांग को लेकर वे आलाकमान से भी मिलेंगे। उनकी बात नहीं सुनी गई तो वे कोई भी फैसला लेने को आजाद होंगे। इसके बाद धामी ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के सलाहकार से मिलकर अपने इरादों का एहसास भी दूसरे खेमे को करा दिया। उधर, इंदिरा हृदयेश ने कहा कि अनुशासनहीनता करने वालों के लिए कांग्रेस में कोई जगह नहीं है। हालांकि हरीश रावत कहते हैं, “सूची में शामिल या बाहर रह गए सभी हमारे हैं। अगर कोई असंतोष है, तो उसे दूर करने के प्रयास जल्द होने चाहिए। वैसे भी कोई लिस्ट परफेक्ट नहीं होती है।”
नेता प्रतिपक्ष और हरीश रावत के रिश्तों में दरार निकाय चुनाव के दौरान आई। हल्द्वानी नगर निगम में मेयर पद के लिए इंदिरा ने अपने बेटे सुमित को खड़ा किया। तमाम कोशिशों के बाद भी सुमित को भाजपा प्रत्याशी से हार का सामना करना पड़ा। उसी वक्त इंदिरा ने हरीश रावत का नाम लिए बगैर कहा कि कुछ अपनों ने ही हरवाया। ये वही इंदिरा हैं, जो 2016 में कांग्रेसी विधायकों की बगावत के दौरान हरीश रावत के साथ चट्टान की तरह खड़ी रहीं। उस वक्त बगावत की सूत्रधार रही भाजपा के नेताओं ने इंदिरा पर भी डोरे डालने की कोशिश की। निकाय चुनाव के बाद इंदिरा और प्रीतम करीब आते गए। डॉ. इंदिरा कहती हैं, “कांग्रेस एक बड़ा परिवार है। हर समस्या आपस में सुलझा ली जाएगी। वैसे अब कोई समस्या नहीं रह गई है।”
प्रीतम सिंह को शायद यह एहसास पहले से था कि उनकी कार्यकारिणी का विरोध हरीश खेमा जरूर करेगा। इसी वजह से वे डेढ़ साल तक पुरानी टीम से काम चलाते रहे। अब टीम की घोषणा हुई, तो वह भी राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) वेणुगोपाल के हस्ताक्षरों से। लेकिन मामला तूल पकड़ गया। अब प्रीतम कह रहे हैं कि उन्होंने सूची प्रदेश प्रभारी के माध्यम से पार्टी अध्यक्ष को भेजी थी। उनकी मंजूरी के बाद ही इसे जारी किया गया है। आउटलुक से बातचीत में प्रीतम यह भी जोड़ते हैं कि उनकी सूची में धामी का नाम विशेष आमंत्रित सदस्यों में था। उनका नाम सचिवों की सूची में कैसे आ गया, इस बारे में जानकारी करके ही पता चलेगा।
बहरहाल, स्थानीय नेताओं को 2022 की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन से ज्यादा चिंता अपने अहं और वजूद को कायम रखने की है।
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आलाकमान से बात की जाएगी कि प्रदेश प्रभारी के माध्यम से भेजी गई सूची में किस स्तर पर फेरबदल हुआ
प्रीतम सिंह
अध्यक्ष, उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस