महाराष्ट्र में उद्योगपति को लॉकडाउन में पास दिलाने पर वहां के गृह सचिव पर कार्रवाई हुई, लेकिन उत्तराखंड की भाजपा सरकार ऐसे ही मामले में अपने अपर मुख्य सचिव का बचाव कर रही है। अपर मुख्य सचिव ने अपने चेहेते दबंग विधायक को पास दिलाने के लिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम का इस्तेमाल किया। हो-हल्ला होने के बाद अब मुख्य सचिव का कहना है कि इस मामले में एक थाने में जांच चल रही है। लेकिन सवाल है कि क्या एक दारोगा सूबे के अपर मुख्य सचिव और डीएम से पूछताछ करने की हिम्मत जुटा पाएगा?
पिछले दिनों कर्णप्रयाग के एसडीएम ने तीन वाहनों को रोका तो पता चला कि काफिला यूपी के महाराजगंज जिले में नौतनवा के विधायक अमनमणि त्रिपाठी का है। इन लोगों ने देहरादून के जिलाधिकारी का एक पास भी दिखाया। इसमें नौ लोगों को तीन वाहनों में बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ धाम जाने की अनुमति दी गई थी। अधिकारियों ने उन्हें बताया कि बद्रीनाथ धाम बंद है और केदारनाथ जाने की अनुमति नहीं है। ऐसे में, आगे जाने नहीं दिया जाएगा। विधायक ने पहले अपना रसूख दिखाया। लेकिन एसडीएम ने कोई तवज्जो नहीं दी और वापस लौटा दिया। बाद में टिहरी जिले में इन लोगों को लॉकडाउन तोड़ने पर गिरफ्तार किया गया लेकिन तत्काल ही निजी मुचलकों पर छोड़ दिया गया।
खास बात यह है कि पास देहरादून प्रशासन के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) ओमप्रकाश के पत्र के आधार पर जारी हुआ। एसीएस ने लिखा कि विधायक के साथ 10 लोगों को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता जी आनंद सिंह बिष्ट के पितृकार्य से बद्रीनाथ जाना है। वहां से केदारनाथ जाना है।
यूपी के मुख्यमंत्री का नाम आते ही मामला सुर्खियों में आ गया। कहा गया कि चहेते रसूखदारों को पास देने के लिए अफसरों ने सीएम के नाम का बेजा इस्तेमाल किया। इस मामले में कई सवाल हैं। पहला कि, क्या अफसरों ने योगी के नाम का बेजा इस्तेमाल किया? आखिर अमनमणि का योगी के परिवार से क्या वास्ता है, जिसके कारण उन्हें बद्रीनाथ धाम में उनके पिता जी का पितृकार्य करना था? यहां बता दें कि बद्रीनाथ धाम में पितृ विसर्जन मृतक के परिजन ही करते हैं। दूसरा सवाल यह भी है कि अभी बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ धाम जाने की इजाजत ही नहीं है, तो फिर इन लोगों को अनुमति कैसे मिल गई?
यह मामला लखनऊ में भी गूंजा तो उत्तराखंड सरकार ने जांच की बात कही। लेकिन सरकार ने इसमें अफसरों की चूक बताकर इसे हल्का कर दिया। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बेहद नजदीकी एसीएस ओमप्रकाश ने यह कहते हुए गेंद देहरादून डीएम के पाले में डाल दी कि उन्होंने तो रुटीन पत्र लिखा। डीएम कार्यालय को तमाम बिंदुओं पर विचार करके ही पास जारी करना चाहिए था।
इस मामले में और भी पेंच हैं। मसलन, पास की पैरवी के लिए एसीएस की चिट्ठी में 12 लोगों की सूची में त्रिपाठी के बाद दूसरे नंबर पर जयप्रकाश तिवारी का नाम है। नौवें और दसवें नंबर पर दो गनर अजय यादव और श्रीप्रकाश पासवान के अलावा 11वें नंबर पर विनय सिंह का नाम है। देहरादून प्रशासन ने पास में दोनों गनर और एक अन्य का नाम शामिल नहीं किया। लेकिन कर्णप्रयाग में रोके जाने पर तीन वाहनों में 12 लोग थे। जबकि बिजनौर में यूपी पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया तो काफिले में सात लोग और दो वाहन रह गए। बिजनौर पहुंचने से पहले एक वाहन और पांच लोग कहां गायब हो गए? पास देहरादून के डीएम ने जारी किया, जबकि ये लोग पौड़ी जिले के कोटद्वार में दाखिल हो गए। एसीएस के पत्र में दर्ज देहरादून के नंबर वाली गाड़ी (यूके 07बीबी 4033) का मालिक जय प्रकाश तिवारी कौन है?
सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने पहले जांच की बात की। लेकिन बाद में मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने किसी जांच कमेटी या अधिकारी को नामित करने से इनकार कर दिया। स्पष्ट है, सरकार मामले को थाने में मुकदमा दर्ज करने तक ही सीमित रखना चाहती है। टिहरी जिले के मुनि की रेती थाने में केवल लॉकडाउन तोड़ने वालों पर ही केस दर्ज किया गया न कि मदद करने वालों पर।
अगर पुलिस लॉकडाउन तोड़ने का मौका देने वाले कारणों की जांच करती भी है, तो क्या दारोगा स्तर का जांच अधिकारी एसीएस और डीएम से जवाब तलब करेगा? सवाल यह भी है कि योगी का नाम सबसे पहले किसने लिया? विधायक ने या फिर एसीएस ने? अगर जांच हुई तो कई चेहरों से नकाब उतरेगा।