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इस ‘सामान्य’ में वादी बदहाल

स्थिति सामान्य होने के गृह मंत्री के दावे के विपरीत घाटी में पाबंदी बरकरार, तीन माह बाद भी मुख्यधारा के नेता हिरासत में
बंद का माहौलः श्रीनगर के बाजार सिर्फ सुबह खुलते हैं, बाकी दिनभर बंद रहते हैं

श्रीनगर के रेजिडेंसी रोड स्थित एमएलए हॉस्टल के बाहर 19 नवंबर को मुख्यधारा की पार्टियों के नेताओं के रिश्तेदारों ने पत्रकारों से बात करना शुरू ही किया था कि पुलिस हस्तक्षेप करने आ गई। पुलिसकर्मी हॉस्टल के बाहर ही तैनात थे। उन्होंने नेताओं के रिश्तेदारों से आग्रह किया कि मीडिया से बात न करें। मीडियाकर्मियों से भी उनसे बात न करने की अपील की। यह वाकया उस दिन का है जिस दिन गृह मंत्री अमित शाह संसद में बयान दे रहे थे कि घाटी में पाबंदी हटा ली गई है। स्कूल, अस्पताल और अन्य संस्थान सामान्य रूप से काम कर रहे हैं। श्रीनगर में कुछ दिनों से संस्थान धीरे-धीरे खुलने लगे थे, लेकिन उस दिन वहां बंदी थी। उसके बाद से घाटी में बंदी जारी है। सरकार ने 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 में संशोधन करते हुए जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने का फैसला किया। तब से मुख्यधारा के नेता हिरासत में हैं। इन्हें हाल ही सेंटूर होटल से एमएलए हॉस्टल शिफ्ट किया गया है। सरकार ने 5 अगस्त की सुबह जम्मू-कश्मीर में कर्फ्यू लगाते हुए तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों डॉ. फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सहित हजारों लोगों को हिरासत में ले लिया। सूत्रों के मुताबिक, सरकार ने 227 नेताओं सहित 6,300 लोगों को हिरासत में लिया। इनमें आइएएस अधिकारी से नेता बने शाह फैसल, अलगाववादी से मुख्यधारा के नेता बने सज्जाद लोन और पीडीपी के युवा नेता वहीद पर्रा भी शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती का आरोप है कि एमएलए हॉस्टल में लाने के दौरान सज्जाद लोन, शाह फैसल और वहीद पर्रा के साथ हाथा-पाई की गई। पीडीपी से सिर्फ इल्तिजा मुफ्ती ही हैं जो 5 अगस्त के बाद कश्मीर को लेकर मुखर रही हैं।

हिरासत में रखे गए कुछ नेताओं के रिश्तेदार उनके लिए सेब और दूसरे फल लेकर आए थे। उन्होंने पत्रकारों को बताया कि एमएलए हॉस्टल असुरक्षित जगह है। कोई फोन पर बात न कर सके, इसलिए जैमर्स लगाए गए हैं। पूर्व मंत्री और पीडीपी नेता नईम अख्तर की बेटी शहरयार खानम ने कहा, “कमरे गंदे हैं। उन्हें अच्छा खाना नहीं मिलता। वॉशरूम की सफाई नहीं होती।” नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता बशीर अहमद वीरी के भाई तनवीर वीरी ने कहा, “इससे बेहतर है कि इन नेताओं को सेंट्रल जेल भेज दिया जाए।” पीडीपी के एक पूर्व विधायक के रिश्तेदार ने इस संवाददाता को बताया, “मेरा भतीजा सिर्फ इतना चाहता है कि उसे जेल में शिफ्ट कर दिया जाए। उसने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने कश्मीरियों को उनकी हैसियत बता दी है। इस बात से केंद्र को कोई फर्क नहीं पड़ता कि कश्मीरी देशभक्त हैं या नहीं, उन्होंने कश्मीर में भारत के लिए गोलियां चलाई हैं या खाई हैं। उनके लिए कुछ भी मायने नहीं रखता है।”

जो नेता हिरासत में नहीं हैं, वे अपने नेताओं की रिहाई का इंतजार कर रहे हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के दविंदर सिंह राणा का कहना है कि पार्टी अपने नेताओं की रिहाई के बाद प्रतिक्रिया देगी। यही स्थिति पार्टी के सांसदों हसनैन मसूदी और मोहम्मद अकबर लोन की है। पीडीपी की भविष्य की योजनाओं को लेकर इल्तिजा भी मां की रिहाई का इंतजार कर रही हैं। उन्होंने ने आउटलुक को बताया कि उनकी मां से एक बॉन्ड पर दस्तखत करने को कहा गया था कि अगर रिहा किया गया तो वे राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लेंगी। उनकी मां ने इससे इनकार कर दिया।

मुख्यधारा के नेता अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं हैं। जेल से रिहाई के बाद यह भी देखना होगा कि वे मुख्यधारा में रहेंगे या नहीं। वहीं, अलगाववादी पूरी तरह खामोश हैं। 5 अगस्त के बाद से अधिकांश अलगाववादियों ने अनुच्छेद 370 के बारे में कुछ नहीं बोला। वरिष्ठ अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक हिरासत में हैं, जबकि मोहम्मद यासीन मलिक तिहाड़ जेल में हैं। दूसरी पंक्ति के अलगाववादी नेताओं को या तो गिरफ्तार कर लिया गया है या वे उचित समय का इंतजार कर रहे हैं। अलगाववादी नेता प्रो. अब्दुल गनी भट अनुच्छेद 370 के बारे में बात नहीं करना चाहते। उनका कहना है कि मीरवाइज उमर फारूक की रिहाई के बाद ही अनुच्छेद 370 पर टिप्पणी करेंगे। हालांकि, वे भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत का आग्रह करते हैं “क्योंकि जंग कोई विकल्प नहीं है।” उनका मानना है कि यदि कश्मीर में हालात बिगड़ने दिया गया तो यह इस क्षेत्र के लिए घातक होगा।

घाटी में लोग खुद ही पांबदी लागू करके केंद्र सरकार के फैसले पर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। 5 अगस्त के बाद लगभग दो महीने तक घाटी में पाबंदी लगी थी। सरकार ने धीरे-धीरे संचार सेवाओं पर प्रतिबंध हटाना शुरू किया। पहले लैंडलाइन, फिर पोस्ट-पेड मोबाइल सेवा बहाल की गई। सड़कों पर आवागमन से भी प्रतिबंध हटा लिया गया, लेकिन नुकसान काफी हुआ है। घाटी में इंटरनेट बंद होने से भारती एयरटेल ने जम्मू-कश्मीर में जुलाई-सितंबर में 25 से 30 लाख ग्राहकों को खो दिया। यहां इंटरनेट और प्री-पेड मोबाइल पर पाबंदी अब भी जारी है।

जमीनी हकीकत देखें, तो पांच अगस्त से दुकानें बंद हैं, सड़कों पर निजी गाड़ियां नहीं चल रही हैं और छात्र स्कूल नहीं जा रहे हैं। छात्रों के न आने से शिक्षण संस्थानों का बंद रहना वहां की गंभीर स्थिति को दर्शाता है। एक स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा, “सरकार हमें स्कूल बसें भेजने को कहती है, लेकिन अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने को तैयार नहीं हैं। सरकार भले हालात सामान्य होने का दावा कर रही हो, कोई भी अपने बच्चे की जान जोखिम में नहीं डालना चाहता।” दुकानदार सुबह के समय दुकानें खोलते हैं, फिर पूरे दिन बंद रखते हैं। होटल लगभग बंद हैं। सरकार ने 2 अगस्त को पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को घाटी छोड़ने का आदेश जारी किया था। इससे पर्यटन ठप है। एक टूर ऑपरेटर ने कहा, “सरकार ने 2 अगस्त का आदेश हाल में वापस ले लिया, लेकिन हालात नहीं बदले। कोई पर्यटक कश्मीर नहीं आ रहा। जगह छोड़ने के आदेश से एक संदेश जाता है, जिसके नतीजे वर्षों तक दिखेंगे।”

अशांत दक्षिण कश्मीर में बाहरी ट्रक चालकों को सेब के बक्से लादने के लिए पुलिस गांवों की ओर जाने नहीं दे रही है। इनके ट्रक पार्क करने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर जगह चिह्नित की गई है। सेब उत्पादक सेब के बक्से लेकर वहीं आते हैं। कुलगाम के एक किसान ने कहा, “7 नवंबर को भारी बर्फबारी की वजह से हमारे सेब के बाग पहले ही तबाह हो चुके हैं। इसके बाद जो थोड़ा-बहुत उत्पादन हुआ, उसे हमें छोटी गाड़ियों में हाइवे तक लाना पड़ता है और उसके बाद ट्रक में लादना पड़ता है। इस तरह मजदूरी बढ़ जाने से हमें नुकसान हो रहा है।”

पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद घाटी के कुछ इलाकों में पोस्टर दिखे, जिनमें आतंकियों ने सेब बागान मालिकों को अगले निर्देश का इंतजार करने को कहा था। इससे घाटी में सेब की फसल में देरी हुई। बाद में, जब कुछ दिनों तक आतंकी शांत रहे, तो लोगों ने रात के वक्त सेब की तुड़ाई और उन्हें बाहर भेजना शुरू किया। लेकिन अक्टूबर में पांच ट्रक ड्राइवरों सहित 11 बाहरी लोगों की हत्या से भय का माहौल बन गया है। इन हत्याओं के बाद राजस्थान के अधिकांश ट्रांसपोर्टर अपने ट्रक कश्मीर नहीं भेज रहे हैं। कई ड्राइवर खाली ट्रक लेकर ही अपने राज्य लौट गए। शोपियां जिले में स्थानीय लोगों के लगभग 250 ट्रक हैं, जबकि सेब की ढुलाई के लिए सीजन में करीब 7,500 ट्रकों की जरूरत होती है।

7 नवंबर की भारी बर्फबारी में घाटी में सेब की फसल को काफी नुकसान हुआ है। एक फल उत्पादक ने कहा, “समस्या यह है कि सरकार कहती है सबकुछ सामान्य है। नुकसान 90 प्रतिशत हुआ जबकि सरकार 35 प्रतिशत नुकसान की बात कहती है। इसका जवाब देने के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं है।” कुछ किसानों ने इस तबाही को ‘तकदीर का हिस्सा’ मान लिया है। एक सेब उत्पादक ने कहा, “हम बदकिस्मत लोग हैं। हम कुछ नहीं कर सकते। 5 अगस्त के बाद यह उम्मीद भी नहीं है कि सरकार की तरफ से कोई हमारी मदद के लिए आएगा।”

 

कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स के प्रमुख शेख आशिक का कहना है कि तीन महीने में बिजनेस को लगभग 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इंटरनेट और ट्रांसपोर्ट बंद है, अनिश्चितता बढ़ रही है, इसलिए घाटा बढ़ता जा रहा है। आशिक ने आउटलुक से कहा, “कश्मीर में व्यापार की बातें करना आसान है, व्यापार करना मुश्किल। इंटरनेट चल नहीं रहा, फिर भी सरकार ने जीएसटी और आयकर रिटर्न फाइल करने की समय सीमा तय कर दी है। लाखों कारोबारी जीएसटी जमा करने के लिए उपायुक्त दफ्तर के बाहर लाइन में नहीं लग सकते। जीएसटी रिटर्न दाखिल करने के लिए ओटीपी एसएमएस से आता है, और जम्मू-कश्मीर में एसएमएस सेवा बंद है। व्यापारी नुकसान की वजह से जीएसटी रिटर्न दाखिल करने में छूट मांग रहे हैं।”

लद्दाखवासियों में बढ़ रही बेचैनी

एक तरफ कश्मीर उबल रहा है, तो दूसरी तरफ अपनी जमीन और अनूठी संस्कृति खोने को लेकर लद्दाखी लोगों में चिंताएं बढ़ रही हैं। रेमन मैग सायसाय तथा रोलेक्स अवार्ड्स विजेता सोनम वांगचुक कहते हैं, “लोगों को डर है कि चीन ने जो तिब्बत में किया, अगर भारत वैसा ही लद्दाख में करता है तो क्या होगा।” एक वायरल वीडियो में पारंपरिक लद्दाखी पोशाक पहने वांगचुक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ‘लद्दाख के मन की बात’ सुनने की अपील की है। वह कहते हैं, “मैं पांच वर्षों से प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ सुन रहा था। आज उनको ‘लद्दाख के मन की बात’ बताना चाहता हूं।” वांगचुक को मशहूर फिल्म थ्री-इडियट्स का ‘वास्तविक जीवन का फुनसुख वांगडू’ भी कहा जाता है। वे कहते हैं, “लद्दाख के लोग दिल्ली या मुंबई जाते हैं, तो लोग उन्हें चिंकी और चीनी कहते हैं, लेकिन लद्दाखी हमेशा जयहिंद कहकर जवाब देते हैं। देश ने लद्दाख को बहुत कुछ दिया है और इसे केंद्रशासित बनाने की 72 साल पुरानी मांग को माना है। हालांकि, अब ऐसी अफवाहें हैं कि क्षेत्र का पर्यावरण, विशेष पहचान और संस्कृति सुरक्षित नहीं रहेगी। लोग यह पूछने लगे हैं कि क्या लद्दाख के विशाल संसाधनों का दोहन करने के लिए इसे केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है?”

वांगचुक ने केंद्र से लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की अपील की है। वे कहते हैं, “हम कोई नया कानून बनाने के लिए नहीं कह रहे, बल्कि छठी अनुसूची में पहले से मौजूद कानून को लागू करने के लिए कह रहे हैं। तीन महीने बाद भी इस बारे में कोई घोषणा नहीं होने से अब लोगों में बेचैनी और भ्रम पैदा होने लगा है। लद्दाख को जल्द छठी अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए, नहीं तो लोगों में अलगाव की भावना आएगी।” करगिल पहले ही लद्दाख का हिस्सा बनाए जाने के खिलाफ है। वहां जब-तब इसे लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन वांगचुक द्वारा इस तरह की चिंता व्यक्त किए जाने के बाद लोगों को लगने लगा है कि संवैधानिक गारंटी खत्म करने का क्या मतलब होता है।

जम्मू स्थित एक राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, “पिछले कुछ वर्षों में जम्मू और लद्दाख में कुछ वर्गों को यह समझाया गया कि सिर्फ कश्मीरियों को अनुच्छेद 370 का लाभ मिल रहा है, और इसके खत्म होने पर वही प्रभावित होंगे। लेकिन अब लोगों को लग रहा है कि अनुच्छेद 370 और 35ए के तहत संवैधानिक गारंटी जम्मू-कश्मीर के सभी क्षेत्र के लिए थी। पर अब बहुत देर हो चुकी है। जम्मू में लोग खामोश हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे 5 अगस्त के फैसले से खुश हैं।”

पूर्व मंत्री और जम्मू में पैंथर्स पार्टी के प्रमुख हर्षदेव सिंह कहते हैं, “भाजपा ने डरा-धमका कर जम्मू के लोगों को चुप करा दिया है। भाजपा ने जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बना कर जम्मू की पीठ में खंजर घोंपा है। आज हम इसका विरोध कर रहे हैं, कल पूरा जम्मू हमारे साथ होगा।” उधर भाजपा महासचिव राम माधव ने कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया “बहुत जल्द शुरू करने” की बात कही है। हालांकि बंदी, कारोबारी नुकसान और मुख्यधारा के राजनीतिक कैदियों द्वारा खुद को सेंट्रल जेल भेजे जाने के आग्रह के बीच यह देखना होगा कि राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने के लिए वहां कौन बचता है।

 

-- एक स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा, सरकार भले हालात सामान्य होने का दावा कर रही हो, कोई भी अपने बच्चे की जान जोखिम में नहीं डालना चाहता है

--  लद्दाखियों को भी अपनी विशेष पहचान की चिंता सताने लगी है। लोग पूछने लगे हैं कि क्या संसाधनों के दोहन के लिए इसे केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है

-- चौकसीः श्रीनगर के बाजारों में चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मी तैनात हैं

-- बंद का माहौलः श्रीनगर के बाजार सिर्फ सुबह खुलते हैं, बाकी दिनभर बंद रहते हैं

 

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हरियाणा-पंजाब में भी कारोबार बंद

इन राज्यों से कश्मीर को हौजरी और वूलन कपड़ों तथा पोल्ट्री की सप्लाई ठप, ट्रांसपोर्टर भी प्रभावित

चंडीगढ़ से हरीश मानव

जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हुए तीन महीने से भी अधिक हो चुके हैं, लेकिन जनजीवन अभी सामान्य नहीं हो पाया है। 5 अगस्त के बाद दो महीने तक वाहन फंसने की वजह से नुकसान उठाने वाले कारोबारी फिलहाल और जोखिम उठाने को तैयार नहीं हैं। पंजाब और हरियाणा से चावल, चिकन, अंडे, ब्रेड-बेकरी, दूध, सब्जियों, पेट्रोल, डीजल और एलपीजी के साथ वूलन गारमेंट्स की आपूर्ति भी ठप है। जम्मू-कश्मीर में वूलन गारमेंट्स की आपूर्ति करने वाले लुधियाना के कारोबारियों का कहना है कि दो महीने बाद कुछ सामान जम्मू तक जाने लगा, लेकिन अब भी कश्मीर घाटी तक सामान भेजना मुश्किल है। लुधियाना के ट्रांसपोर्टर चरणजीत लौहरा का कहना है कि अगस्त में कश्मीर गए सैंकड़ों ट्रक बड़ी मुश्किल से दिवाली तक लौटे हैं। अब भी कई ट्रकों और ड्राइवरों का पता नहीं है। कश्मीर दौरे से लौटे माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने आउटलुक को बताया, “100 दिन से भी अधिक लंबे ‘लॉकडाउन’ से वहां भारी नुकसान हुआ है। सेब उत्पादक किसानों और पर्यटन को ही 10,000 करोड़ रुपये से अधिक का घाटा हुआ। 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान अन्य कारोबार का हुआ है।”

ट्रक ऑपरेटर अवतार सिंह लहौरिया ने कहा, “दो महीने से भी ज्यादा समय तक कश्मीर में ट्रकों के फंसने से व्यापार तो बंद हुआ ही, हम कर्ज पर खरीदे गए ट्रकों की किस्तें भी नहीं दे पाए।” पंजाब के दोआबा के चावल कारोबारी विराट गुप्ता के मुताबिक, घाटी में चावल की सप्लाई नहीं हो रही है। घाटी के लिए भेजे ट्रक जम्मू में खाली करने पड़े। पोल्ट्री उत्पादों की आपूर्ति करने वाले जालंधर के मदान फूड एंड सीड्स कंपनी के अशोक मदान ने बताया कि जम्मू और उधमपुर तक आपूर्ति सामान्य हो गई, लेकिन घाटी के लिए अभी सप्लाई शुरू नहीं हो पाई है। पोल्ट्री के बड़े कारोबारी लुधियाना के सतबीर निर्झर ने बताया कि घाटी में सर्दियों से पहले, अगस्त से लोग खाने-पीने का सामान इकट्ठा करने लगते हैं। इस बार अगस्त में ही आपूर्ति ठप होने से उनके पास सर्दियों में खाने का स्टॉक नहीं है।

कश्मीर के हालात ने लुधियाना के होजरी उद्योग की हालत भी पतली कर दी है। वूलन गारमेंट्स कारोबारी विनोद थापर कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर के लिए माल गर्मियों में बुक होना और बनना शुरू हो जाता है। माल तो बनकर तैयार है, पर अगस्त से आपूर्ति नहीं हो रही है। वूलन कारोबारी करण मेहरा ने बताया कि घाटी के दुकानदारों को जुलाई तक की गई आपूर्ति का भुगतान अभी तक फंसा है। अमृतसर के पावरलूम उद्योग से जुड़े जोगेंद्र मोंगा के अनुसार, उनके पास 20-20 पावरलूम की दो यूनिट हैं। लेकिन इन्हें एक शिफ्ट में ही चला रहे हैं। शॉल की बिक्री भी ठप हो गई है। शॉल कारोबारी विजय पाहवा के मुताबिक, कश्मीर बंद ने समूचे व्यापार पर बुरा असर डाला है।

पंजाब स्मॉल इंडस्ट्रीज एंड एक्सपोर्ट कॉरपोरेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि आतंकवाद, बाढ़ और पाकिस्तान के साथ युद्ध की आशंकाओं के बीच हालात पहले भी बिगड़ते रहे हैं, लेकिन इतनी बदतर स्थिति पहली बार हुई है। दशहरा और दिवाली जैसे त्योहारों में भी कश्मीर से फल, ड्राई फ्रूट्स और हस्तशिल्प की आपूर्ति ठप रही। जालंधर में क्रिकेट बल्ले का भी उत्पादन प्रभावित है। बल्ले के हैंडल से नीचे लगने वाली लकड़ी- कश्मीरी विलो (फायरवुड) की आपूर्ति बंद है। नाम जाहिर न करने की शर्त पर एक कारोबारी ने बताया कि उनके देश-विदेश के ऑर्डर रद्द हो रहे हैं। अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद यह शोर तो बहुत हुआ था कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और मुंबई के कारोबारी वहां निवेश कर सकेंगे, पर तनाव के कारण कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। फिर भी व्यापारियों का एक प्रभावी तबका खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। लुधियाना में गारमेंट्स के कारोबारी अजित लाकड़ा ने कहा कि इस कार्रवाई से कारोबारियों को नुकसान स्वाभाविक था। लेकिन हालात सामान्य होने पर नुकसान की भरपाई हो जाएगी।

सेब और ड्राइफ्रूट का भी कारोबार प्रभावित हुआ है। नेशनल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (नेफेड) को कश्मीरी किसानों से 5,000 करोड़ रुपये के 13 लाख टन सेब खरीदने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, पर पर्याप्त खरीदारी न होने से किसानों को भारी नुकसान हुआ है। कश्मीर कृषि विभाग के मुताबिक अखरोट, सेब, बादाम, चेरी और केसर का सालाना करीब 7,000 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। शोपियां के सेब उत्पादक राशिद मोहम्मद ने बताया कि फोन सेवाएं ठप रहने से दो महीने तक दिल्ली में आजादपुर मंडी के आढ़तियों से संपर्क नहीं कर सके। नेफेड ने खरीद का आश्वासन दिया, लेकिन दिल्ली भेजने के लिए ट्रक ही नहीं मिले। 800 से 900 रुपये में बिकने वाला 15-17 किलो सेब का एक बक्सा 450 से 500 रुपये में बिका।

शोपियां में ही कूरियर सेवा चलाने वाले जोरावर मीर ने कहा, “इंटरनेट सेवा बंद होने से कारोबार रुक गया है। लोग ऑनलाइन खरीदारी नहीं कर पा रहे हैं।” कारपेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन सिद्धनाथ सिंह के मुताबिक, कश्मीर में तकरीबन 25 से 40 हजार कारपेट कारीगर सालाना 300 से 400 करोड़ रुपये का कारोबार करते हैं। कर्फ्यू जैसे हालात में लोगों के पास कच्चा माल नहीं है, ऐसे में लोग कारपेट तैयार ही नहीं कर पाए। पहले से जो कारपेट बना रखे थे, उन्हें भी बाजारों में नहीं भेज पाए।

 

-- कारोबार ठपः लुधियाना से घाटी में अगस्त से ही गर्म कपड़ों की आपूर्ति बंद है

 

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