राजस्थान में करीब तीन साल बाद यानी 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन, इसके सियासी बुलबुले निकलने शुरू हो गए हैं। राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे के समर्थकों ने हाल में नया मंच बना डाला जिससे संकेत मिलता है कि पार्टी में ‘सबकुछ ठीक नहीं’ है। मंच ऐसे समय वजूद में आया, जब इसी महीने 28 जनवरी को 20 जिलों के 90 निकायों के चुनाव और मार्च-अप्रैल में चार विधानसभा सीटों- राजसमंद, सहाड़ा, वल्लभनगर और सुजानगढ़ में उपचुनाव होने हैं। इसको लेकर 8 जनवरी को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और राजेंद्र राठौर सरीखे अन्य नेताओं के साथ लंबी बैठक की। लेकिन, बैठक में वसुंधरा नहीं पहुंचीं। यह इसलिए भी अहम है कि पिछले साल सचिन पायलट के नेतृत्व में गहलोत से बगावत के दौरान भी वसुंधरा राजे ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। फिर, पार्टी नेतृत्व से उनकी अलग राय भी कोई छुपी हुई नहीं है।
नए हालात गौरतलब है क्योंकि हाल में नड्डा की बैठक के अगले दिन ही राजे समर्थकों ने “वसुंधरा राजे समर्थक राजस्थान मंच” के गठन का ऐलान कर दिया। मंच ने 25 जिलों में जिलाध्यक्ष नियुक्त करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। तो, क्या वसुंधरा बगावत के सुर अख्तियार कर सकती हैं? या फिर यह पार्टी में अपनी दावेदारी मजबूत करने की कवायद है? उनके समर्थक अभी से मांग कर रहे हैं कि वसुंधरा को आगामी चुनाव के लिए बतौर मुख्यमंत्री घोषित किया जाए।
हालांकि आउटलुक से राजस्थान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया कहते हैं, “राज्य में जिस तरह वोटरों का जेनेरेशन बदलता है, उसी तरह नेतृत्व भी बदलना चाहिए। वसुंधरा राजे पार्टी की कद्दावर नेता हैं और उन्होंने दो बार राज्य की सत्ता संभाली है। हमारे पास बतौर सीएम कई अन्य वरिष्ठ नेता हैं। यह पार्टी की मजबूती है।” वसुंधरा समर्थक मंच पर पूनिया कहते हैं, “जिन लोगों ने यह बनाया है, वे पार्टी के लोग नहीं हैं। उनका कोई जनाधार नहीं है। सिर्फ सोशल मीडिया पर तीर-कमान चल रहे हैं।” लेकिन, मंच को लेकर राजे की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। दरअसल बीते साल दिसंबर में राजे के विरोधी माने जाने वाले पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी की भाजपा में वापसी हुई है। घनश्याम तिवाड़ी ने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले राजे से बगावत करके अपनी अलग पार्टी ‘भारत वाहिनी’ बनाई थी और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
आउटलुक से घनश्याम तिवाड़ी कहते हैं, “अभी जो भी गतिविधियां वसुंधरा और उनके समर्थकों कर रहे हैं, उसे बस मैं चुपचाप देख रहा हूं। पार्टी ज्वाइन किए हुए कुछ ही दिन हुए हैं। पार्टी के आलाकमान का जो आदेश होगा, वह स्वीकार्य होगा।” हालांकि सतीश पूनिया का मानना है कि अभी यह कहना जल्दीबाजी होगा कि वसुंधरा ने पार्टी से अलग राह पकड़ ली है। आसन्न उपचुनाव सत्तारूढ़ दल कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए आगामी विधानसभा चुनाव का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। उपचुनाव में भाजपा यह भी दिखाने की कोशिश करेगी कि पार्टी राज्य में वसुंधरा के बिना भी जीत दर्ज कर सकती है। उधर, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अपनी सियासी पकड़ बरकरार रखने की कोशिश करेंगे। जिन सीटों पर उपचुनाव होने हैं उनमें राजसमंद भाजपा के जबकि सहाड़ा, वल्लभनगर और सुजानगढ़ कांग्रेस के खाते में गई थीं।
फिलहाल 200 सदस्य वाली विधानसभा में भाजपा
के 72 विधायकों में 45 से अधिक राजे समर्थक माने जाते हैं। वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मी प्रसाद पंत मानते हैं कि मौजूदा समय में वसुंधरा के बिना भाजपा राजस्थान में मजबूत स्थिति में नहीं है। उधर, वसुंधरा का पार्टी से अलग रुख जुलाई-अगस्त 2020 में कांग्रेस में सचिन पायलट संकट के दौरान भी दिखा था। उस वक्त वसुंधरा ने बस एक ट्वीट किया था, “राजस्थान के लोगों को कांग्रेस के संकट की कीमत चुकानी पड़ रही है। पार्टी और भाजपा नेताओं के नाम पर कीचड़ उछालने की कोशिश करने का कोई मतलब नहीं है।“ इस मसले पर गहलोत सरकार में शिक्षा मंत्री और कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटसरा कहते हैं, “हमारी नजर अभी निकाय चुनाव और उपचुनाव पर है। भाजपा अगले मुख्यमंत्री का सपना देखना छोड़ दे।“
देखना होगा कि वसुंधरा का अगला कदम क्या होता है? क्या वे “अजेय राजस्थान, अजेय भाजपा” के नारों में साथ रहती हैं या अलग राह चुनती हैं?