इस वर्ष क्यूबा क्रांति की 65वीं वर्षगांठ दुनिया भर में मनाई जा रही है। अमेरिका ने 7 फरवरी 1962 को क्यूबा पर, जो आर्थिक प्रतिबंध थोपा था, वह आज तक जारी है। वह फ्लोरिडा के अपने तट से महज नब्बे मील दूर ‘कम्युनिस्ट बवाल’ से बहुत क्षुब्ध था और उसने छोटे-से कैरिबियाई देश को नेस्तनाबूद कर डालने के खयाल से बंदिशें लगा दीं। यकीनन, बंदिशों की वजह से क्यूबा को खाद्य-पदार्थों और दवाइयों से लेकर भारी वाहनों और कई तरह की मशीनों की बेइंतहा किल्लत झेलनी पड़ी, मगर उसने घुटने टेकने से इनकार कर दिया। इन बंदिशों के खिलाफ दुनिया भर में उठी आवाजों से क्यूबा का संकल्प और मजबूत हुआ। एक ब्रितानी टिप्पणीकार ने लिखा, ‘‘हर वसंत में, जैसे घड़ी की सूई घूमती है, बड़ी संख्या में देश बंदिशों के निंदा प्रस्ताव पर पुरजोर समर्थन जताते हैं। नवंबर 2011 में 186 देशों ने प्रतिबंधों का विरोध किया जबकि अमेरिका के पक्ष में सिर्फ इजरायल था।’’
अमेरिका के ये प्रतिबंध राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजनहावर के दौर में थोपे गए और जॉन एफ. केनेडी के दौर में और भी सख्ती बरती गई, लेकिन क्यूबा की राजनीति को अस्थिर करने की अमेरिका की लगातार कोशिशों पर जब-जब दुनिया में आवाज उठी, क्यूबा के लोग उसे 19वीं सदी के अपने महानायक कवि जोस मार्टी के आह्वान की पुष्टि की तरह समझने लगे। मूलनिवासी मार्टी 1895 में स्पेन से क्यूबा की आजादी की लड़ाई में मारे गए थे। उनके विचार नए साल 1959 में क्रांति की जीत के साथ साकार हुए जब ‘पश्चिम के समर्थन और हथियारों’ के बल पर काबिज तानाशाह फुलगेन्सियो बतिस्ता ‘‘बैंक नोटों और कीमती सामान से भरे सूटकेस के साथ भाग खड़ा हुआ।’’
इन आर्थिक प्रतिबंधों पर कई फिल्मों में विचार किया गया है। इधर के दौर में 2011 में प्रतिष्ठित सर्बियाई वृत्त चित्रकार गोरान रादोवानोविक संकटग्रस्त देश के इस संघर्ष की आत्मा और भावना का सुंदर और बेहद विश्वसनीय वृत्तांत लेकर आए। रादोवानोविक ने पचास मिनट की रंगीन फिल्म विद फिदेल, ह्वेयर हैपन्स में यह विचार ताकतवर ढंग से पेश किया कि क्रांति के बीच क्यूबा के लोगों के लिए आजादी से ज्यादा कीमती कुछ भी नहीं था। फिल्म हवाना से 850 किलोमीटर पूर्व में एक बस्ती सिएरा मेस्त्रा में खुलती है। निर्देशक ने प्रतिरोध और अपने देश को फिर हासिल करने के संघर्ष की कहानी बताने के लिए क्रांति की बावनवीं वर्षगांठ के जश्न से एक दिन पहले का दिन चुना। भीड़ में से पात्र उठाए गए, जो दिक्कतों की परवाह किए बिना अपने काम में शिद्दत से जुड़े हैं। एक बूढ़ा आदमी एक मोटरसाइकिल की मरम्मत करते दिखता है, जो कई वसंत पहले धुआंधार चलती थी; दांत का एक नौजवान डॉक्टर मरीजों को दिए अपॉइंटमेंट पूरा करने के लिए तमाम दिक्कतें झेलकर दूरदराज के पहाड़ी इलाके की एक क्लिनिक में पहुंचता है, जिनमें एक का नाम आश्चर्यजनक रूप से व्लादिमीर इल्यीच रोड्रिग्ज है (जिससे बरबस याद आ जाता है कि आज भी केरल और तमिलनाडु की सड़कों पर टहलते हुए गाहे-बगाहे कोई लेनिन या स्टालिन टकरा जाता है); और आखिर में, एक अधेड़ उम्र का विवाहित जोड़ा दिखता है जो अपने पड़ोसियों के साथ रोजाना अपना टेलीफोन साझा करता है।
बकौल रादोवानोविक, “इन लोगों (बूढ़ा आदमी, दांत का डॉक्टर, और दंपती) और सिएरा मेस्त्रा के कई अन्य के भाग्य का चित्रण चरम वैचारिक सुख के दिन किया गया है... और अगले दिन? अगले दिन, अपनी आदत के वश में वे सभी रोजमर्रा की जिंदगी की लय में लौट जाते हैं जो घिसी-पिटी है और बहुत उम्मीद नहीं जगाती। हर कोई इससे वाकिफ है... लेकिन क्रांति जारी है...’’
फिल्म की छवियां गरीबी और दयनीय हालत की दास्तां बयान करती हैं, लेकिन उनमें विद्रोह के बोल भी हैं; कतरा-कतरा जोड़कर सफर जारी रखने की दृढ़ इच्छाशक्ति भी। कुछ भी ठीक-ठाक नहीं है। सार्वजनिक परिवहन खस्ताहाल है, खाने-पीने की चीजों का अभाव है और वे महंगी है, वगैरह-वगैरह, लेकिन देश ठहरता नहीं है। स्कूल, अस्पताल, मनोरंजन केंद्र धीरे-धीरे, लड़खड़ाते हुए आकांक्षित गंतव्य की ओर बढ़ते रहते हैं, जहां पहुंचने में कुछ और पीढ़ियां लग सकती हैं। थोड़ी हंसी-खुशी, थोड़ी उदासी, थोड़ा गुस्सा और ढेर सारी उम्मीद और धैर्य के साथ क्यूबावासी संपूर्णता की राह पर बढ़ रहे हैं।
यह भूलने से काम नहीं चलेगा कि क्यूबा मानव इतिहास का सबसे लंबा युद्ध लड़ रहा है। पिछले कुछ दशकों से हर दिन मानो एक चतुर और बहादुर चींटी का एक खूंखार हाथी के हमलों से बचने का कठिन संघर्ष जारी रहा है। सच है, इस युद्ध में गोलियां नहीं चल रही हैं, लेकिन छोटे-से द्वीप के गले को निशाना बनाकर और भी अधिक भयावह हथियार छोड़े गए हैं। एकाधिक फिल्मकारों ने इस अंतहीन युद्ध की ‘अदृश्य संभावनाओं’ को सामने लाने के लिए अपनी विधा का इस्तेमाल किया है।
रादोवानोविक हमें क्यूबा के सामान्य जीवन की कुछ झलकियां दिखाते हैं, जिनमें तनाव के साथ-साथ कोमलता और करुणा के भाव भी हैं- मसलन, वह दृश्य जहां स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग लेने के बाद घर लौट रहे पुरुषों और महिलाओं द्वारा सड़क के किनारे खोमचेवालों से खरीदे गए व्यंजनों के साथ स्वतंत्रता का स्वाद घुल-मिलकर स्वादिष्ट बन जाता है।
( लेखक प्रतिष्ठित फिल्म समीक्षक और टिप्पणीकार हैं)