अपनी पसंद की सरकार चुनना भी इस कदर जानलेवा हो सकता है, आज की युवा पीढ़ी ने संभवतः पहली बार इसका एहसास किया है। पश्चिम बंगाल में कूचबिहार जिले के शीतलकुची में 10 अप्रैल को चौथे चरण के मतदान के समय केंद्रीय सुरक्षा कर्मियों की फायरिंग में चार लोगों की जान चली गई और चार अन्य घायल हो गए। स्थानीय ग्रामीण अभी तक यह नहीं समझ पाए हैं कि ऐसा क्या हो गया था जो लोगों के पैरों पर गोली न मार कर सीधे उनके बदन पर गोली मारने के लिए मजबूर हो गए। एक तरफ लोगों में इस घटना को लेकर रोष है तो दूसरी तरफ कोई भी दल इस घटना का राजनीतिक लाभ लेने में पीछे नहीं दिख रहा है। लेकिन आश्चर्य तब होता है जब नेता लोगों को ऐसी और घटनाएं होने की चेतावनी देते हैं। एक तरफ तृणमूल कांग्रेस और संयुक्त मोर्चा के नेता सुरक्षा बलों की फायरिंग के पीछे भाजपा का हाथ बता रहे हैं, तो दूसरी तरफ प्रदेश भाजपा प्रमुख दिलीप घोष सार्वजनिक रूप से ऐसी और घटनाएं होने की धमकी देते हैं। उन्हीं की पार्टी के राहुल सिन्हा कहते हैं कि सुरक्षाकर्मियों ने चार के बजाय आठ को क्यों नहीं मारा, इसके लिए उन्हें नोटिस दिया जाना चाहिए।
उसके बाद भाजपा के प्रदेश महासचिव सायंतन बसु तो जैसे पर्दे के पीछे चल रहे 'खेल' का खुलासा करते हैं। उन्होंने 12 अप्रैल को जलपाईगुड़ी में एक चुनावी सभा में कहा, “मैं सायंतन बसु साफ-साफ बोल रहा हूं। अगर खेल खेलना चाहते हो तो शीतलकुची जैसा ही खेल होगा। सुबह उन्होंने 18 साल के आनंद बर्मन को मारा था। उसके बाद ज्यादा समय नहीं लगा। छह घंटे के भीतर चार लोगों को मार दिया गया। शोले का डायलॉग था कि तुम एक मारोगे तो हम चार मारेंगे। शीतलकुची में वही हुआ है।”
इससे पहले प्रदेश की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने कहा था कि अगर सुरक्षाकर्मी मतदाताओं को वोट डालने से रोकते हैं तो मतदाता, खासकर महिलाएं उनका घेराव करें। उनके इस बयान पर चुनाव आयोग ने उनके चुनाव प्रचार करने पर 12 अप्रैल की शाम 8 बजे से 13 अप्रैल की शाम 8 बजे तक रोक लगा दी, जिसके विरोध में ममता साढ़े तीन घंटे धरने पर बैठीं। आयोग ने राहुल सिन्हा पर भी 48 घंटे की रोक लगाई है और दिलीप घोष को नोटिस भेजा है। उनके खिलाफ तृणमूल कांग्रेस ने शिकायत दर्ज कराई है और आगे उनके चुनाव प्रचार करने पर रोक लगाने की मांग की है।
294 सीटों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए आठ चरणों में मतदान हो रहे हैं। पहले चार चरणों में 135 सीटों पर मतदान हो चुके हैं। अगले चार चरण के मतदान 17, 22, 26 और 29 अप्रैल को होने हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्धमान जिले के तालित में एक जनसभा में कहा कि चार चरणों में ही भाजपा को सौ से ज्यादा सीटें मिलेंगी। पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि उनकी पार्टी 200 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करेगी। लेकिन हर चरण में जिस तरह से हिंसा बढ़ती जा रही है, उससे लगता है की लड़ाई एकतरफा नहीं है।
कड़े मुकाबले की बात ममता के रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी मानते हैं। अपने वायरल ऑडियो में उन्होंने कहा है, “प्रदेश में एक करोड़ हिंदी भाषी हैं। इनमें 50-55 फीसदी भाजपा के पक्ष में हैं। 27 फीसदी दलित हैं जो काफी हद तक भाजपा के साथ हैं। मतुआ समुदाय का 75 फीसदी वोट भाजपा और 25 फीसदी तृणमूल के साथ है। इसके अलावा उसे ध्रुवीकरण का भी फायदा मिलेगा।”
लेकिन ध्रुवीकरण का फायदा तृणमूल कांग्रेस को भी मिलता दिख रहा है। अभी मुर्शिदाबाद और नदिया समेत कई ऐसे जिलों में मतदान बाकी है जहां अल्पसंख्य आबादी काफी है, जिनके वोट का बड़ा हिस्सा तृणमूल को मिलने की उम्मीद है। शुरुआत में लग रहा था कि संयुक्त मोर्चा में शामिल इंडियन सेकुलर फ्रंट (आइएसएफ) के नेता अब्बास सिद्दीकी अल्पसंख्यक वोट का बड़ा हिस्सा अपनी तरफ खींचने में सफल होंगे। लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए अल्पसंख्यक मतदाता एक बार फिर ममता के पीछे खड़े हो सकते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि शुरू में भाजपा बढ़त बनाती लग रही थी, लेकिन मतदान बीतने के साथ उसकी बढ़त कम होने लगी है।
पश्चिम बंगाल में पहली बार चुनाव में धर्म का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है। भाजपा ममता पर अल्पसंख्यकों को केंद्र में रखकर योजनाएं बनाने के आरोप लगाती रही है। लोगों में भी कुछ हद तक इसका रोष देखा जा सकता है। पश्चिम बंगाल में करीब 30 फीसदी आबादी अल्पसंख्यकों की है। इसलिए चुनाव से पहले तृणमूल से भाजपा में गए शुभेंदु अधिकारी ने 70-30 का फॉर्मूला दिया। इसी के बाद ममता बनर्जी ने अल्पसंख्यकों से अपील की कि वे अपने वोट को बंटने न दें। चुनाव आयोग ने ममता पर 24 घंटे का जो प्रतिबंध लगाया, उसमें एक कारण उनका यह बयान भी था। हालांकि आयोग के संज्ञान लेने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने एक चुनावी सभा में कहा था, “मुझे नहीं मालूम चुनाव आयोग दीदी को नोटिस भेजेगा या नहीं...।”
पश्चिम बंगाल की राजनीति में ऊंची जाति का बोलबाला रहा है। अगड़ी जाति के लोगों की आबादी बड़े शहरों में ज्यादा है, हालांकि कुल हिंदू आबादी में इनका हिस्सा 20 फीसदी और कुल मतदाताओं में 15 फीसदी से भी कम है। ओबीसी वर्ग के लोग सबसे ज्यादा हैं। यहां करीब 23 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति की और 5.5 फीसदी अनुसूचित जनजाति की है। जिस मतुआ समुदाय की बात प्रशांत किशोर वायरल ऑडियो में कह रहे हैं, वे अनुसूचित जाति में आते हैं। उन्हें साथ लेकर ही 2011 में ममता ने वाममोर्चा को हराया था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में यह समुदाय भाजपा के साथ चला गया। मतुआ बांग्लादेश से आए हैं। इसलिए पिछले दिनों प्रधानमंत्री बांग्लादेश गए तो वहां मतुआ समुदाय के मंदिर जाना नहीं भूले। ममता ने भी 2011 में इस समुदाय की श्रद्धेय ‘बड़ो मां’ के पैर सार्वजनिक सभा में छुए थे। उत्तर 24 परगना और नदिया जिलों में इनकी संख्या अधिक है, जहां पांचवें और छठे चरण के चुनाव होने हैं।
सीएए और एनआरसी के नाम पर 2019 में भाजपा इस समुदाय का वोट हासिल करने में कामयाब रही थी, लेकिन इस बार पार्टी दबी जुबान से भी सीएए और एनआरसी की चर्चा नहीं करना चाहती। इसलिए मतुआ वोट भी इस बार बंटे हुए हैं तो ध्रुवीकरण का सहारा लिया जा रहा है। इसी ध्रुवीकरण का नतीजा बढ़ती हिंसा के रूप में सामने आया है।
सत्ता के रंगः शीतलकुची में मारे गए युवकों के शोकाकुल परिजन और (ऊपर) मेयो रोड पर धरने पर बैठीं ममता बनर्जी
शीतलकुची का दौरा करने वाले एक पत्रकार के अनुसार, स्थानीय लोगों का सवाल है कि सीआइएसफ की फायरिंग में चार लोगों की मौत के बाद चुनाव आयोग ने किसी प्रतिनिधि को क्यों नहीं भेजा, जबकि उसी जिले के दिनहाटा में एक भाजपा नेता की मौत के बाद आयोग ने बड़ी तेजी दिखाई थी। मृतकों के परिवार वालों को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी नहीं दी गई है। गांव वालों का कहना है कि यह सच छिपाने का प्रयास है क्योंकि सबको गोली शरीर के ऊपरी हिस्से में मारी गई। बूथ पर लगाए गए सीसीटीवी का फुटेज भी नहीं मिल रहा है। ग्रामीण तो यहां तक कह रहे हैं कि सुरक्षाकर्मियों के लाठी चार्च की मोबाइल पर रिकॉर्डिंग कर रहे युवकों को सीधे गोली मारी गई। जब वे गिर पड़े तो उनका मोबाइल छीन लिया गया।
प्रदेश में अभी आधी से ज्यादा सीटों पर मतदान बाकी है। लेकिन सत्ता के लिए छिड़ी जंग में 10 से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। आम मतदाता काफी आशंकित हैं, खास कर शीतलकुची की घटना के बाद। बमबाजी, फायरिंग और मारपीट की घटनाएं भी रोजाना हो रही हैं। चुनाव आयोग ने सुरक्षाबलों की और कंपनियां तैनात करने का फैसला किया है, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि बाकी चार चरणों में सभी राजनीतिक दल संयम बरतेंगे और पश्चिम बंगाल का यह चुनाव हिंसा का नया रिकॉर्ड नहीं बनाएगा।