आखिरकार वह झूठा साबित हुआ, लेकिन पिछले हफ्ते मैं बुरी तरह आतंकित हो उठा था। हल्के बुखार और गले में खरास से फौरन मेरा दिमाग चकराने लगा कि कहीं हमारे घर के रक्षा कवच को भेदकर घातक कोविड-19 वायरस तो अंदर नहीं घुस आया। सतर्कतावश जांच कराई गई और सौभाग्य से, मेरे परिवार के तीनों सदस्य निगेटिव पाए गए। जांच सही आने से फौरी राहत मिली, लेकिन उस अति सूक्ष्म मगर घातक दुश्मन ने मुझे निरंतर चौकस बनाए रखा, जिसकी तबाही जारी है और जो हमारे सामान्य जीवन को बंधक बनाए हुए है।
कोविड-19 की तबाही से कई तरह के उथल-पुथल के दौर से गुजर रहे हर किसी की तरह मैं भी एक या अनेक वैक्सीन के फटाफट आविष्कार पर दांव लगाए बैठा हूं। महीनों की लाचारी के बाद हमारी उम्मीदें और नजरें उन करीब 45 संभावित वैक्सीन पर बेसब्री से टिकी हुई हैं, जिनके दुनिया भर में कई चरणों के क्लीनिकल परीक्षण जारी हैं। इसके अलावा 156 अन्य संभावित वैक्सीन क्लीनिकल परीक्षण के दौर में हैं और जानकार लोग हमें बता रहे हैं कि इस भयावह महामारी से छुटकारे का टीका आने वाले महीनों में जरूर ईजाद कर लिया जाएगा।
यह तो बिलाशक खुशखबरी है, लेकिन दुखदायी खबर यह है कि घातक महामारी को परास्त करने की हमारी चुनौतियां वैक्सीन के ईजाद के साथ ही खत्म नहीं हो जाएंगी। दरअसल, इसके साथ कई चुनौतियों की शुरुआत भी हो सकती है क्योंकि उन करोड़ों लोगों को निष्पक्ष और सबको एक समान वैक्सीन मुहैया कराना विशालकाय और बेहद पेचीदे काम को अंजाम देना होगा, जिन्हें उसकी तत्काल जरूरत है। बेशक, संख्या विशाल है और वैक्सीन को लैब से लोगों तक पहुंचाने का वक्त बहुत कम है। इसलिए लाजिमी सवाल तो यही है कि क्या देश इस महती कार्य के लिए तैयार है।
दरअसल वैक्सीन के ईजाद के बाद कितने बड़े पैमाने पर महती कार्य हमारा इंतजार कर रहा है, इसकी थोड़ी विस्तार से चर्चा हमारी समझ साफ करने में मददगार होगी। देश में टीकाकरण कार्यक्रम के तहत हर साल तकरीबन 2.6 करोड़ नवजात शिशुओं और 3 करोड़ गर्भवती महिलाओं को टीके लगाए जाते हैं। पोलियो, खसरा और डिपथिरिया जैसे संक्रामक रोगों के लिए हर साल करोड़ों लोगों को टीका लगाया जाता है। देश में वैक्सीन को लैब से लोगों तक पहुंचाने के लिए तमाम इंतजामात भी मौजूद हैं, कम तापमान पर वैक्सीन के भंडारण के लिए कोल्ड चेन से लेकर स्वास्थ्यकर्मियों तक।
लेकिन अब तक जो करने में हम सक्षम रहे हैं, वह कोविड के प्रकोप को फैलने से रोकने के लिए काफी नहीं भी हो सकता है। वजह यह है कि कुछ अधिक करोड़ लोगों के टीकाकरण की दरकार होगी। एक अनुमान के मुताबिक, केंद्र सरकार कथित तौर पर प्राथमिकता के स्तर पर करीब 30 करोड़ लोगों को टीका मुहैया कराने की सोच रही है। इसका मतलब है कि कई गुना ज्यादा स्वास्थ्यकर्मियों की जरूरत होगी, जिन्हें सिरिंज, वॉयल और गॉज जैसी जरूरी चीजों से लैस करके तैयार करना होगा। फिर, कथित तौर पर कुछ वैक्सीन को -80 डिग्री सेल्सियस तापमान में रखने की जरूरत हो सकती है, जिसका मतलब है कि देश में मौजूदा 27,000 कोल्ड चेन की व्यवस्था बुरी तरह नाकाफी होगी। यह कोल्ड चेन वैक्सीन को लैबोरेटरी से भंडारण कक्षों, अस्पतालों और ट्रकों के जरिए अंततः असली गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए जरूरी है। यही नहीं, कोविड वैक्सीन की खोज में हमें अभी और अनिश्चितताओं से मुकाबिल होना पड़ सकता है। मसलन, वैक्सीन की एक ही डोज काफी होगी या दूसरी डोज की भी जरूरत होगी। एक अनुमान के मुताबिक, वैक्सीन के अगर दो डोज जरूरी हुए तो दुनिया भर में 15 अरब डोज की दरकार होगी। इतने डोज तैयार करने में मौजूदा क्षमता के हिसाब से वर्षों लगेंगे, कम से कम 2024 तक।
ये तमाम और ऐसे ही कुछ दूसरे मसले हमें असली सवाल के सामने ला खड़ा करते हैं : आपको या मुझे कब मिलेगी वैक्सीन? जिस पखवाड़े बिहार चुनाव के नतीजे सुर्खियों में छाए हुए हैं, जो बेशक हमारी आवरण कथा है, हमने इस अंक में इसका जवाब तलाशने की कोशिश भी की है कि आखिर कितनी जल्दी हमें कोविड वैक्सीन उपलब्ध होगी। यकीनन महामारी को हराना कम महत्वपूर्ण नहीं है।