उत्तराखंड में इस बार भाजपा की राह आसान नहीं दिखती। 2014 के लोकसभा चुनाव में उसके लिए जीत की जो जमीन मतदान से पहले ही तैयार हो गई थी, वह गुजरते वक्त के साथ छिछली हो चुकी है। तब उसने राज्य की सभी पांचों लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी।
भाजपा को सबसे तगड़ा झटका पूर्व मुख्यमंत्री बी.सी. खंडूड़ी के पुत्र मनीष खंडूड़ी के कांग्रेस में जाने से लगा है। इसका खासतौर पर गढ़वाल में भाजपा को नुकसान हो सकता है। गढ़वाल में बेदाग छवि और सैन्य पृष्ठभूमि वाले खंडूड़ी के प्रभाव को उनके विरोधी भी मानते हैं। ऐसे में उन्होंने भाजपा के बजाय बेटे के लिए चुनाव प्रचार किया तो उसका लाभ कांग्रेस को मिलना तय है। यह चुनाव मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए भी परीक्षा जैसी है। भाजपा को सफलता नहीं मिली तो पार्टी के भीतर उनके विरोधी मुखर हो सकते हैं।
इसके अलावा एयर स्ट्राइक और राष्ट्रवाद के मुद्दे को भुनाने की कोशिश में लगी भाजपा को असहज करने वाले कई और मुद्दे भी कांग्रेस की तरकश में हैं। हिमालय की गोद में बसे इस राज्य में जैविक खेती का शोर तो बहुत है, पर जमीन पर कुछ नजर नहीं आता। पिछली बार हरिद्वार से भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक ने 50 फीसदी से ज्यादा वोट पाकर जीत दर्ज की थी। इस संसदीय क्षेत्र में हरिद्वार जिले की नौ और देहरादून के तीन विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इस सीट पर गन्ना किसान निर्णायक हैं, लेकिन चीनी मिलों पर कई सौ करोड़ रुपये बकाया होने से वे नाराज चल रहे। हरिद्वार-देहरादून हाइवे को फोर लेन बनाने और मुजफ्फरनगर-हरिद्वार हाइवे के अधूरे पड़े काम पर कांग्रेस भी कई बार सरकार को घेर चुकी है।
टिहरी से 2014 में भाजपा की माला राज्यलक्ष्मी शाह 57.55 फीसदी वोट पाकर जीती थीं। संसदीय क्षेत्र में टिहरी जिले के टिहरी सदर, धनोल्टी, प्रताप नगर, देवप्रयाग, घनसाली और उत्तरकाशी के तीन तथा देहरादून के छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। मंडी तक फसल ले जाने की सुविधा नहीं होने के कारण टिहरी, उत्तरकाशी और चकराता के किसानों के लिए लागत निकाल पाना भी मुश्किल है। स्मार्ट सिटी घोषित होने के बावजूद देहरादून शहर में कोई काम नहीं होने का नुकसान भी भाजपा को हो सकता है।
पौड़ी संसदीय क्षेत्र में चमोली, रुद्रप्रयाग की सभी विधानसभा सीटें और टिहरी जिले की नरेंद्र नगर, पौड़ी की समस्त और नैनीताल की एक रामनगर विधानसभा सीट आती है। क्षेत्र के लिहाज से यह राज्य का सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र है। यहां वन्य जीवों से फसल को नुकसान, बाढ़ और आपदा, चारधाम यात्रा के लिए बन रहे ऑल वेदर रोड का अधूरा रहना, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के प्रोजेक्ट में तेजी नहीं आना जैसे मुद्दे चुनाव में परेशानी का सबब बन सकते हैं। सबसे ज्यादा पलायन भी इसी जिले से है।
अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र पूरी तरह पर्वतीय है इसमें चंपावत, बागेश्वर, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जिलों की विधानसभा सीटें आती हैं। यहां से भी बहुत पलायन हुआ है। बागेश्वर-टनकपुर रेल लाइन की मांग वर्षों से लंबित है। जौलजीबी-टनकपुर नेशनल हाइवे का निर्माण भी शुरू नहीं हो सका। नैनीताल संसदीय क्षेत्र में नैनीताल जिले की पांच और ऊधमसिंहनगर की नौ विधानसभा सीटें आती हैं। नैनीताल की अपनी समस्या है। न तो नैनी झील का सुदृढ़ीकरण हो सका और न ही नैनीताल शहर की पेयजल समस्या का समाधान हो सका है। उधमसिंह नगर जिले में राइस मिलें बंद होने और गन्ना किसानों का भुगतान बकाया होने से नाराजगी है।