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लोगों की सेहत से खिलवाड़

तमाम वैज्ञानिक तथ्यों और जानकारों की हिदायतों के बावजूद एफएसएसएआइ का खाद्य पदार्थों में अतिरिक्त विटामिन मिलाने का अभियान लोगों की सेहत बर्बाद करेगा और बड़ी कंपनियों को मुनाफा दिलाएगा
नियामकः एफएसएसएआइ ही है देश में खाद्य गुणवत्ता की जिम्मेदार

हर कोई स्वस्थ जीवन और अच्छे भोजन की चाहत रखता है। प्रकृति बहुत ही दयालु है कि वह हमें अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी चीजें मुहैया कराती है। बुरी आदतों या विभिन्न शारीरिक या आर्थिक कारणों से लोगों को अच्छे स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार नहीं मिल पाता है। दुनिया भर में सरकारें जरूरतमंद लोगों को उचित कैलोरी उपलब्ध कराने की खातिर भोजन मुहैया कराती हैं, ताकि कोई भुखमरी या कुपोषण का शिकार न हो। न्यूट्रिशन साइंस की तरक्की के साथ यह भी पाया गया है कि लोग सुप्त भूख से पीड़ित होते हैं, यानी हमारे भोजन में कई बार कुछ सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी रह जाती है, जिसका आभास हमें नहीं होता है लेकिन उस कमी से सामान्य जीवन प्रभावित हो सकता है। ये सूक्ष्म पोषक तत्व आमतौर पर मिनरल (खनिज) और विटामिन होते हैं। ये बहुत ही महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं और शरीर में उत्प्रेरक का काम करते हैं। इन्हें सूक्ष्म पोषक तत्व इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इनकी मात्रा अधिक होने से भोजन जहरीला हो जाता है, जो सेहत के लिए अधिक नुकसानदेह हो सकते हैं। प्रकृति सभी खाद्य पदार्थों में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व उपलब्ध कराती है। संतुलित आहार, यहां तक कि सबसे सस्ते आहार में भी कभी सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी नहीं होती है। यह समस्या लोगों के खाने की बुरी आदतों की वजह से पैदा होती है। ऐसा तब होता है, जब लोग लंबे समय तक अधिक रिफाइंड भोजन या सिर्फ एक ही तरह का खाना खाते हैं। यह या तो खराब भोजन की आदतों या पोषण को लेकर अज्ञानता के कारण होता है और लोग संतुलित भोजन नहीं करते हैं। जब लोग इन कमियों का सामना करते हैं, तो वे इसका तुरंत इलाज ढूंढ़ते हैं और विटामिन सप्लीमेंट पर पैसे खर्च करते हैं। नीति-निर्माता और नियामक अधिकारी अपनी घटिया योजनाओं और जानकारी की कमी को छुपाने के लिए फौरन विटामिन या मिनरल सप्लीमेंट की सिफारिश कर देते हैं।

यह रुझान खासकर तब और अधिक गौरतलब हो जाता है, जब इसमें वाणिज्यिक हित के साथ उनके निहित स्वार्थ सक्रिय भूमिका निभाने लगते हैं, ताकि वे अपनी कंपनी के उत्पाद पौष्टिकता के बहाने बेच सकें और लोगों की सेहत की कीमत पर अधिक मुनाफा कमा सकें। वाणिज्यिक संगठनों के लिए हर संकट एक अवसर की तरह होता है। दुर्भाग्य से, वे अपने उत्पादों के दुष्प्रभावों के बारे में समाज को शिक्षित नहीं करते। आपको किसी भी वाणिज्यिक संगठन का ऐसा कोई शोध या दस्तावेज नहीं मिलेगा, जो खुद के उत्पादों के नकारात्मक प्रभाव को बतलाता हो।

कई कंपनियां प्रयोगशालाओं में इसी तरह के उत्पादों को कृत्रिम रूप से विकसित करने पर पैसा खर्च करती हैं। और, मानव स्वास्थ्य पर इसके दुष्प्रभावों को बताए बिना सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के समाधान के तौर पर इन कृत्रिम उत्पादों को पेश करती हैं। नीति निर्माता भी इन बातों की परवाह नहीं करते, क्योंकि वे लोक कल्याण के नाम पर इन कंपनियों के व्यावसायिक हितों के लिए प्रायोजित बातों को स्वीकार कर लेते हैं। दुनिया भर में नीति-निर्माता और सरकारें इन खतरनाक सूक्ष्म पोषक तत्वों को अच्छी चीजों के रूप में बढ़ावा देती हैं। जब लोग इन उत्पादों के बारे में सवाल पूछते हैं तो उन्हें चुप कराने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं।

हालांकि नीति-निर्माताओं और नियामकों का यह दायित्व है कि वे समाज में नकारात्मक असर वाले हर घटनाक्रम पर नियंत्रण रखें। लेकिन जब नियामक चाहे अज्ञानतावश या लालच में पड़कर वाणिज्यिक हितों के साथ खड़े हो जाते हैं, तो उसका असर खतरनाक होता है और वे इस तरह सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरे में डाल देते हैं।

सार्वजनिक स्वास्थ्य पर विश्व प्रसिद्ध स्वास्थ्य संस्थान जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय के अनुसार, अमेरिका में 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 70 फीसदी लोगों सहित लगभग आधी वयस्क आबादी नियमित रूप से मल्टीविटामिन या दूसरा कोई विटामिन या मिनरल टैबलेट लेती है। वे इस पर हर साल 12 अरब डॉलर से भी अधिक खर्च करते हैं। जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय के न्यूट्रिशन विशेषज्ञों का कहना है कि इस पैसे का बेहतर इस्तेमाल पोषक तत्वों से लैस आहार जैसे फल, सब्जियों, साबुत अनाज और कम वसा वाले डेयरी उत्पादों पर किया जा सकता है।

एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन पत्रिका के “बहुत हो चुका, विटामिन और मिनरल्स सप्लीमेंट पर पैसे बर्बाद करना छोड़ें” शीर्षक वाले एक संपादकीय में जॉन्स हॉपकिंस के शोधकर्ताओं ने तीन हालिया अध्ययनों सहित पूरक आहार के बारे में सबूतों की समीक्षा की। उन्होंने 4,50,000 लोगों पर यह शोध किया। इस शोध के विश्लेषण में पाया गया कि मल्टीविटामिन हृदय रोग या कैंसर के जोखिम को कम नहीं करते हैं। 12 वर्षों तक 5,947 पुरुषों की मानसिक गतिविधियों और उनके द्वारा मल्टीविटामिन के उपयोग पर नजर रखने वाले एक अध्ययन में पाया गया कि मल्टीविटामिन ने यादाश्त या स्मरण शक्ति को कमजोर करने के जोखिम को कम नहीं किया।

शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि मल्टीविटामिन हृदय रोग, कैंसर, मानसिक बीमारी (जैसे यादाश्त और स्मरणशक्ति कम करने) या असामयिक मौत के जोखिम को कम नहीं करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पहले के अध्ययनों से पता चलता है कि विटामिन ई और बीटा-कैरोटीन की खुराक हानिकारक जान पड़ती है, खासतौर पर अधिक खुराक लेने पर। कई सभ्य और विकसित समाजों ने ऐसी स्थितियों में हितों के टकराव का पर्दाफाश करने के लिए बहुत सशक्त प्रणालियां बनाई हैं। लेकिन दुर्भाग्य से, भारत में ऐसी कोई प्रणाली नहीं है, क्योंकि न तो नीति-निर्माता अपना विशेषाधिकार खोना चाहते हैं और न ही अपना स्वार्थ साधने वाली कंपनियां चाहती हैं कि ऐसी प्रणाली मौजूद हो। उनकी साठगांठ की वजह से देश के अज्ञानी लोग पीड़ित होते रहेंगे।

फूड फोर्टिफिकेशन और जोखिम का विश्लेषण

ओस्लो स्थित नॉर्वे इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ इन खतरनाक सिंथेटिक सूक्ष्म पोषक तत्वों से सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए बहुत ही समझदार और जोखिम आधारित तार्किक प्रणाली लेकर आया, जिसे भारत में लागू किया जाना चाहिए। उनके मुताबिक सूक्ष्म पोषक तत्वों के सुरक्षित पैमाने तय किए जाने चाहिए और उन्हीं पैमाने के मुताबिक उनका वर्गीकरण किया जाना चाहिए, यानी खुराक में उनकी अधिकतम मात्रा तय की जानी चाहिए। उनका सुझाव है कि जिसकी अनुशंसित खुराक की मात्रा जरूरत से पांच गुना कम हो, उसे ए श्रेणी में रखा जाए और उसके दुष्प्रभाव को देखते हुए उस पर अधिक नियंत्रण रखा जाए। उन्होंने रेटिनॉल/विटामिन ए, विटामिन डी, नियासिन, फोलेट और सभी मिनरल्स को जोखिम वाली श्रेणी में रखा है।

श्रेणी बी में विटामिन ई, बी6, बी12 और सी जैसे कम दुष्प्रभाव वाले पोषक तत्व हैं, जो मौजूदा जानकारी के हिसाब से कम हानिकारक हैं। उसके बाद विटामिन के, थियामिन, राइबोफ्लेविन, पैंटोथेनिक एसिड और बायोटिन को सी श्रेणी में रखा गया है।

जोखिम विश्लेषण मॉडल एक उपयोगी तरीका है जिसके तहत किसी सूक्ष्म पोषक तत्व के अधिकतम या न्यूनतम जोखिमों का आकलन किया जाता है। इसे खाने के व्यवहार और बीमारी के पैटर्न पर फोर्टिफिकेशन के नतीजों का विश्लेषण करने के लिए भी लागू किया जा सकता है।

घातक है सिंथेटिक फोर्टिफिकेशन

वैश्विक विशेषज्ञों को लगता है कि सिंथेटिक फोर्टिफिकेशन के उदार नियम स्वस्थ भोजन की अवधारणा को विकृत कर सकते हैं और अधिक अस्वास्थ्यकर आहार को बढ़ावा दे सकते हैं। इससे मोटापा और अंगों की विकृति संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

विटामिन की विषाक्तता

यह बात वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है कि विटामिन का अत्यधिक सेवन विषाक्त होता है। फोर्टिफिकेशन के रूप में भोजन में विटामिन मिलाने से उन लोगों में विषाक्त असर हो सकता है जिनमें विटामिन और मिनरल की कमी नहीं है। स्वास्थ्यवर्धक और विटामिन युक्त भोजन लेने वाले लोगों को फोर्टिफाइड भोजन से नुकसान हो सकता है। ऐसे में बहुत से नागरिकों को स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न परेशानियों के लिए इलाज कराना पड़ सकता है और दवाइयां लेनी पड़ सकती हैं। डॉक्टरों की सलाह के बिना फोर्टिफाइड भोजन के सेवन से जटिलता बढ़ सकती है और यहां तक कि बीमारियों की गलत पहचान हो सकती है क्योंकि अवांछित विटामिन लेने से बीमारी के सटीक लक्षण धुंधले पड़ सकते हैं।

उदाहरण के लिए, एफएसएसएआइ भोजन में विटामिन ए फोर्टिफिकेशन पर बहुत जोर दे रही है। विटामिन ए मिलाने से जनस्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। अगर विटामिन ए की मात्रा (बच्चों में 12,500 आइयू- इंटरनेशनल यूनिट और वयस्कों में 33,000 आइयू) तय सीमा से बढ़ती है तो कई बदलाव दिख सकते हैं। इनमें सबसे पहले त्वचा पर झिल्ली बनने लगती है। सूखे होठ सबसे आम लक्षण होते हैं। इसके बाद खुश्की और नाक बहने की शिकायत होने लगती है। आंखों में भी शुष्कता की समस्या हो सकती है। त्वचा संबंधी समस्याओं में शुष्कता, लाल निशान और हथेलियों और पैर के तलवों में छाले की समस्या हो सकती है। बाल टूटने और नाखूनों में विकार भी दिख सकता है। मस्तिष्क में दबाव बढ़ने पर सिरदर्द और उबकाई की समस्या भी संभव है। हाइपरविटामिनोसिस ए से बोन मिनरल डेंसिटी कम हो सकती है और फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ सकता है। संभवतः यह विटामिन ए के तत्वों के एक्टिव होने के कारण होता है। इससे जीन पर भी असर पड़ सकता है।

नवजात शिशु और छोटे बच्चों को हड्डियों के दर्द की शिकायत हो सकती है और कभी-कभी निचली हड्डियों में विकार पैदा हो सकता है। लगातार और अत्यधिक विटामिन ए लेने से वयस्कों में हड्डियों से संबंधित समस्याएं पैदा हो सकती हैं। 72,000 रजोनिवृत्त महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन के नतीजों के विश्लेषण से पता चला कि कम से कम 2000 आइयू का रोजाना सेवन करने वाली महिलाओं को हिप फ्रैक्चर का खतरा उन महिलाओं से दोगुना होता है जो रोजाना 500 आइयू से कम विटामिन ए का सेवन करती हैं। रेटिना संक्षेपण जमा होने से रेटिना को नुकसान हो सकता है। विटामिन ए सप्लीमेंट की ज्यादा मात्रा देने से हाइपरविटामिनोसिस की समस्या हो सकती है। लोगों में विटामिन ए से विषाक्तता का प्रभाव उनकी आयु, लिवर की कार्यशीलता, विटामिन ए की मात्रा और इसे लेने की अवधि पर निर्भर होता है। डब्ल्यूएचओ भी कहता है कि अनाज में विटामिन नहीं मिलाए जाने चाहिए क्योंकि इसके साइड इफेक्ट होते हैं। डॉक्टरों के अनुसार, विटामिन ए की कमी 20-30 ग्राम गाजर या स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हरी सब्जियां खाने से पूरी की जा सकती है। बनावटी और नुकसानदायक फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने से पहले प्रत्येक विटामिन का विस्तृत अध्ययन किया जाना चाहिए।

कृत्रिम फोर्टिफिकेशन अर्थशास्त्र और पर्यावरण के लिए खराब

एफएसएसएआइ उपभोक्ताओं को सुरक्षित, स्वच्छ और शुद्ध खाद्य वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने में विफल रही है। लेकिन खाद्य वस्तुओं में कृत्रिम फोर्टिफिकेशन को लेकर उसके उत्साह को देखकर तर्कसंगत सोच रखने वाले लोगों के मन में गंभीर संदेह पैदा होता है। अदालतों और संसद द्वारा बार-बार हिदायत के बावजूद एफएसएसएआइ खाद्य वस्तुओं में मिलावट रोकने में सक्षम नहीं हुआ है। ऐसे में क्या हम मिलावटी फोर्टिफाइड खाद्य वस्तुओं की ओर बढ़ रहे हैं? एफएसएसएआइ इसके बारे में कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाई है।

एक अन्य चिंता की बात है कि एफएसएसएआइ का आदेश समूची फूड इंडस्ट्री को बर्बाद कर देगा। यह ज्ञात तथ्य है कि विटामिन समय के साथ खराब हो जाते हैं। खाद्य वस्तुओं में विटामिन में किसी भी बदलाव से कानूनी समस्या पैदा हो सकती है और इंस्पेक्टरों के हाथों उत्पीड़न बढ़ सकता है क्योंकि यह पता लगाना आसान नहीं है कि मिलाए गए विटामिन में खराबी क्यों आई। यह कंपनी द्वारा सप्लाई किए घटिया विटामिन के कारण है, या फिर सूर्य की अत्यधिक रोशनी पड़ने के कारण अथवा लंबे समय से रखे रहने या किसी अन्य कारण से है।

फोर्टिफाइड फूड की सैंपलिंग का तरीका तय किए बगैर और उद्योग की इस चिंता का समाधान किए बगैर खाद्य पदार्थों में जहरीले और अवांछित एडिटिव्स मिलाने के लिए एफएसएसएआइ के प्रयासों से गंभीर चिंता पैदा होती है। यह ठीक है कि सभी फोर्टिफाइड फूड्स को पैक किया जाना चाहिए, लेकिन इससे समाज के कमजोर वर्ग के लोगों के लिए खाद्य वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। जबकि उनके लिए सस्ती कीमत पर पौष्टिक खाद्य वस्तुएं सुलभ कराना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। समाज के उच्च वर्ग के लिए सभी खाद्य वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। किसी भी पौष्टिक तत्व की कमी को दूर करने के लिए उनके पास साधन भी उपलब्ध हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि फोर्टिफिकेशन किसके लिए है? पैकेजिंग का एक और पहलू यह है कि इसकी अनिवार्यता से देश में प्लास्टिक कचरे की भी समस्या पैदा होगी।

विषाक्त और कृत्रिम फोर्टिफिकेशन से फायदा किसे

एफएसएसएआइ के इस कदम से फायदा सिर्फ विटामिन निर्माताओं को होगा। इसे पूरी दुनिया में विटामिन कार्टेल भी कहा जाता है। नीति निर्धारण स्तर पर कुछ एनजीओ को भी फायदा हो सकता है। यह चौंकाने वाली बात है कि इंडियन मेडिकल काउंसिल और देश के जाने-माने विशेषज्ञ इन कमेटियों में नहीं थे। फैसले लेने से पहले इन दस्तावेजों को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? इन जहरीले तत्वों को समर्थन देने वाले एनजीओ की फंडिंग की भी जांच की जानी चाहिए। यह सिर्फ भारत में ही नहीं हो रहा है। जनस्वास्थ्य और कल्याण के मामले में कई बार तकनीकी तथ्यों को नजरअंदाज कर दिया गया। इससे देश में समस्या पैदा हुई है। इससे देश में नीति निर्धारकों की कुशलता पर भी सवाल खड़ा होता है। देश में ऐसी नीतियों के लिए कौन कहता है और किससे सहमति मिलती है, इसकी जांच सर्वोच्च स्तर पर होनी चाहिए।

(लेखक फूड टेक्नोलॉजी और एग्री बिजनेस के एक्सपर्ट हैं)

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