महामारी कोविड-19 से पस्त हो चुकी दुनिया को बस एक ही इंतजार है। कब आएगा टीका या वैक्सीन? कब मिलेगी थोड़ी राहत? राहत या कहिए उम्मीद की पहली किरण अमेरिकी कंपनी फाइजर और जर्मनी की कंपनी बॉयोएनटेक से दिखी है। दोनों कंपनियों के साझा प्रयास से तैयार हो रही कोविड-19 वैक्सीन ट्रायल के दौरान 90 फीसदी प्रभावी रही है। फाइजर का दावा है कि वह 2021 तक 1.3 अरब डोज तैयार कर लेगी। इस बीच भारत, ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस सहित कई देशों में कोरोना की दूसरी लहर आ गई है और संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अकेले दिल्ली में हर रोज 7500 के करीब संक्रमण के मामले आ रहे हैं।
वायरस अब तक दुनिया में 5.21 करोड़ से ज्यादा लोगों को संक्रमित और 12.69 लाख लोगों को अकाल मौत की गोद में सुला चुका है। भारत में 85.91 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं और 1.27 लाख से ज्यादा अपनी जान गंवा चुके हैं (आंकड़े 10 नवंबर तक के हैं)। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में कोरोना की करीब 190 से ज्यादा वैक्सीन विकसित करने का काम चल रहा है, जिसमें 47 वैक्सीन क्लीनिकल ट्रॉयल (3 नवंबर तक) यानी आदमी पर परीक्षण के स्तर पर पहुंच गई हैं।
भारत में वैक्सीन विकसित करने में कम से कम सात कंपनियां लगी हैं। इनमें सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोवी-शील्ड और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की मदद से भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन के सबसे पहले लोगों तक पहुंचने की उम्मीद है। दोनों कंपनियों की वैक्सीन तीसरे चरण के अहम परीक्षण दौर में पहुंच चुकी हैं। ऐसे में अगले 3-4 महीने में वैक्सीन उपलब्ध होने की बेहतर संभावना है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला का कहना है, “ऑक्सफोर्ड वैक्सीन का भारत में ट्रॉयल जनवरी तक पूरा हो जाएगा।” इसी के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 अक्टूबर को कहा, “जैसे ही वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी, सभी देशवासियों को योजना के साथ चरणबद्ध तरीके से वैक्सीन मुहैया कराई जाएगी।”
प्रधानमंत्री के इस दावे और कंपनियों की तैयारियों के आधार पर केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन दावा कर रहे हैं, “सरकार जुलाई 2021 तक 40-50 करोड़ वैक्सीन डोज प्राप्त कर उसके वितरण की तैयारी कर लेगी। इसके लिए राज्यों को जरूरी योजना बनाने के निर्देश दिए गए हैं। इसे 20-25 करोड़ लोगों तक पहुंचाया जाएगा।” प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के बयानों से साफ है कि सरकार शुरूआती चरण में देश की छठवीं आबादी तक वैक्सीन पहुंचाने पर काम कर रही है। यानी बाकी लोगों को अभी इंतजार करना पड़ेगा।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने इसके लिए करीब 500 अरब रुपये की व्यवस्था की है। यानी खर्च प्रति व्यक्ति 6-7 डॉलर (450-550 रुपये) आएगा। हालांकि सरकार की यह रकम वैक्सीन निर्माताओं को कम नजर आ रही है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने ट्वीट किया, “हिमालय से अंडमान-निकोबार तक सभी लोगों तक अगले एक साल में वैक्सीन लगाने के लिए, क्या भारत सरकार ने 80 हजार करोड़ रुपये का इंतजाम किया है, क्योंकि वैक्सीन खरीदने से लेकर उसके वितरण पर यह खर्च आएगा? यह सरकार के लिए अगली सबसे बड़ी चुनौती है।”
सरकार के इंतजामात पर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के सेंटर ऑफ एडवांस्ड रिसर्च ऐंड वॉयरोलॉजी के पूर्व डायरेक्टर डॉ. टी. जैकब जॉन का कहना है, “केंद्र सरकार जिस तरह कोरोना संक्रमण के मामले में देरी से जगी, उसका वही रवैया वैक्सीन के मामले में भी दिख रहा है। इस समय आम आदमी से लेकर वैक्सीन निर्माता कंपनियों तक, सबको सरकार से स्पष्ट नीति की उम्मीद है। यह भी समझना होगा कि नीतियों में देरी वैक्सीन की उपलब्धता में भी देरी करेगी।”
जहां तक दूसरे देशों में वैक्सीन वितरण को लेकर तैयारी की बात है, तो ज्यादातर देशों ने अभी से उसके लिए रोडमैप तैयार कर लिया है। मसलन, अमेरिकी लॉजिस्टिक कंपनी यूनाइटेड पार्सल सर्विस और जर्मनी की लॉजिस्टिक कंपनी डीएचएल ने वैक्सीन भंडारण के लिए गोदाम बनाना शुरू कर दिया है। खबरों के अनुसार, यूनाइटेड पार्सल सर्विस फुटबाल के मैदान के आकार के दो फ्रीजर फॉर्म बना रही है, जहां 600 डीप फ्रीजर में 48 हजार वैक्सीन वॉयल -80 डिग्री सेंटीग्रेड पर रखे जा सकेंगे। इसके अलावा कंपनी दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी और ब्रिटेन में भी फ्रीजर खरीद रही है।
इसी तरह जर्मनी की कंपनी डीएचएल ने पिछले महीने इंडियानापोलिस में 16 लाख डॉलर के निवेश के साथ नई सुविधा शुरू की है। फेडएक्स भी फ्रीजर, रेफ्रिजरेटेड ट्रक, सेंसर और थर्मल ब्लैंकेट खरीद रही है। प्रमुख दवा कंपनी फाइजर ने यूरोपियन कमीशन के साथ 20 करोड़ वैक्सीन डोज की आपूर्ति का समझौता किया है। इसके अलावा, उसने बेल्जियम में अपनी सप्लाई चेन को भी सक्रिय कर दिया है। कोल्ड चेन के मामले में जहां तक भारत की बात है तो देश में 25,000 से ज्यादा कोल्ड चेन हैं, जो 750 जिलों में मौजूद हैं।
तो, क्या 25,000 से ज्यादा कोल्ड चेन भारत के लिए पर्याप्त नहीं हैं? पल्मोलॉजिस्ट डॉ. प्रशांत गुप्ता का कहना है, “अभी तक यह पता नहीं है कि भारत में जो वैक्सीन इस्तेमाल की जाएगी, उसे सुरक्षित रखने के लिए कितने तापमान की जरूरत होगी।” मसलन, खसरा, रूबेला, कंठमाला जैसे रोगों के लिए वैक्सीन को -50 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर -15 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरूरत होती है, जबकि बीसीजी जैसी वैक्सीन के लिए 2 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 8 डिग्री सेंटीग्रेड की जरूरत होती है। गुप्ता के अनुसार, “भारत में इन वैक्सीन के लिए कोल्ड चेन सिस्टम बना हुआ है। अगर कोविड-19 वैक्सीन को इस तरह के तापमान की जरूरत पड़ी तो ज्यादा समस्या नहीं आएगी। लेकिन इससे भी कम तापमान की जरूरत हुई तो मुश्किल खड़ी हो सकती है।” अभी तक भारत में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी-एस्ट्राजेनेका के सहयोग से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोवी-शील्ड को -2 से -8 डिग्री सेंटीग्रेड पर स्टोर किए जाने की संभावना है।
भारत में अभी अल्ट्राकोल्ड फ्रीजिंग क्षमता वाले फ्रीजर की उपलब्धता काफी कम है। ऐसा माना जा रहा है कि शुरुआत में वैक्सीन अस्पतालों तक पहुंचाई जाएगी। लेकिन देश के ज्यादातर अस्पतालों में अल्ट्राकोल्ड फ्रीजिंग क्षमता वाले फ्रीजर नहीं हैं। कोल्डचेन के अलावा भारी मात्रा में वॉयल, स्टॉपर्स, सिरिंज, गेज, स्वैब्स वगैरह की भी जरूरत पड़ने वाली है। भारत की उत्पादन क्षमता करीब दो अरब वॉयल की है। लांसेट के अध्ययन के अनुसार दुनिया में 2021 तक करीब नौ अरब कोविड-वैक्सीन डोज का उत्पादन होगा।
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के सेंटर फॉर कम्युनिटी डिजीज के पूर्व प्रमुख डॉ. चंद्रकांत एस. पांडव का कहना है, “सबसे बड़ी चुनौती इस बात की है कि सरकार टीका लगाने योग्य लोगों का चयन किस तरह करेगी, क्योंकि अभी तक भारत में जो भी टीकाकरण अभियान चलाया गया है, वह बच्चों के लिए है।” स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन जुलाई 2021 तक 20-25 करोड़ लोगों को वैक्सीन देने की बात कर रहे हैं। ऐसे में वैक्सीन पहले किन लोगों को दी जाएगी, यह बड़ा सवाल है। हालांकि रविवार संवाद कार्यक्रम में स्वास्थ्य मंत्री के इशारे से लगता है कि सबसे पहले ज्यादा जोखिम वालों को वैक्सीन दी जाएगी।
किसे पहले मिलेगी वैक्सीन
वैक्सीन देने की प्राथमिकता कैसे तय की जाएगी। इस पर नीति आयोग के सदस्य और कोविड-19 वैक्सीन के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय विशेषज्ञों के पैनल के प्रमुख डॉ. वी.के. पॉल का कहना है, “किसे वैक्सीन पहले मिलेगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हमें कितनी वैक्सीन की डोज मिलती है। फिलहाल हम विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के रोडमैप पर चलने पर काम कर रहे हैं। अगर सभी के लिए वैक्सीन की उपलब्धता एक साथ नहीं हो पाती है तो सीडीसी के मानकों के आधार पर पहला लक्ष्य यह होगा कि कोरोना से हो रही मौतों को रोका जाए और जिन्हें गंभीर बीमारियां हैं, उन्हें सुरक्षित किया जाए।”
टीकाकरण करने में एक बड़ी चुनौती लाभार्थियों की पहचान और रिकॉर्ड को लेकर भी आने वाली है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार डिजिटल रिकॉर्ड बनाने की तैयारी में है। सूत्रों के अनुसार, इसके लिए आधार का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई विशेषज्ञों की बैठक में एसएमएस आधारित व्यवस्था लागू करने का सुझाव सामने आया है, जिसमें लाभार्थी को उसके मोबाइल नंबर पर एक दिन पहले वैक्सीन लगाने की तिथि, समय और स्थान की जानकारी दी जाएगी। वैक्सीन लग जाने के बाद क्यूआर कोड आधारित डिजिटल सर्टिफिकेट भी जारी किया जाएगा।
प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक में यह सुझाव भी सामने आया कि वैक्सीन को जल्द से जल्द देश के हर नागरिक तक पहुंचाना है। इसलिए इसे सामान्य टीकाकरण अभियान की तरह नहीं चलाया जा सकता है। साफ है कि सरकार टीकाकरण के लिए अस्पतालों के अलावा स्कूल, कॉलेज, कैम्प लगाने जैसे तरीकों का भी इस्तेमाल करने की तैयारी में है।
एक सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि वैक्सीन कितनी प्रभावी होगी। फाइजर का 90 फीसदी प्रभावी होने का दावा राहत देता है। लेकिन पूर्व स्वास्थ्य सचिव के. सुजाता राव सतर्क करती हैं, “2010 में जब एच1एन1 बीमारी फैली थी, तो उस समय वैक्सीन ने बहुत खराब रिस्पांस किया था। वह केवल 50 फीसदी प्रभावी हुई थी। ऐसे में बहुत-सी वैक्सीन बिना इस्तेमाल किए बेकार हो गईं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के पूर्व प्रमुख एन.के.गांगुली का कहना है, “वैक्सीन को कम से कम 70 फीसदी प्रभावी होना चाहिए।”
वैक्सीन राजनीति
भारत में कोई ऐसा मुद्दा जो बड़ी आबादी को प्रभावित करे और उस पर राजनीति नहीं हो, ऐसा होना लगभग नामुमकिन है। कोरोना वैक्सीन भी इससे अछूती नहीं रही है। सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बिहार चुनाव के लिए अपना घोषणा-पत्र जारी करते हुए वादा किया कि अगर राज्य में उसकी सरकार बनती है तो वह राज्य के सभी लोगों को मुफ्त में कोरोना वैक्सीन देगी। इसके बाद विपक्षी दलों ने भाजपा पर तीखे हमले शुरू कर दिए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा, “आप (बीजेपी) बिहार में मुफ्त कोविड-19 टीके का वादा करते हैं, तो क्या अन्य राज्यों के लोग बांग्लादेश या कजाकिस्तान से हैं।” कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, “भारत सरकार ने कोविड वैक्सीन वितरण की घोषणा कर दी है। यह जानने के लिए कि वैक्सीन और झूठे वादे आपको कब मिलेंगे, कृपया अपने राज्य के चुनाव की तारीख देखें।” हालांकि उसके बाद से पुद्दुचेरी, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश की सरकारों ने भी अपने राज्य में मुफ्त वैक्सीन का वादा कर दिया है। जाहिर है, कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहता है।
हालांकि डॉ. पांडव का कहना है, “देश में जो टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है, वह तो पूरी तरह से मुफ्त ही है। ऐसे में कोविड वैक्सीन को लेकर सरकार दोहरा रवैया कैसे अपना सकती है।” लेकिन जब बात वोट की हो तो देश की सीमाओं का अंतर भी खत्म हो जाता है। बिहार चुनाव के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन ने चुनावी रैली में वादा किया था कि वे सभी अमेरिकियों को मुफ्त में कोरोना वैक्सीन दिलाएंगे। इसी तरह जापान की सरकार ने भी सभी नागरिकों को वैक्सीन की एक डोज मुफ्त में देने का ऐलान किया है। जाहिर है, नेता किसी भी देश के हों, सभी कोरोना वैक्सीन के बहाने लोगों को लुभाने की कोशिश में लगे हैं। हालांकि उन्हें भूलना नहीं चाहिए कि जनता उन्हें इसीलिए चुनती है कि ऐसी आपातस्थितियों में नफे-नुकसान का गणित भूलकर वे उनके हितों की रक्षा करें।
(साथ में भावना विज अरोड़ा, ज्योतिका सूद, जीवनप्रकाश शर्मा, लोला नायर)
जून तक वैक्सीन की उम्मीद
कोविड-19 वैक्सीन को विकसित करने में भारत बायोटेक को अहम सफलता मिल गई है। कंपनी की वैक्सीन कोवैक्सीन को नियामक द्वारा तीसरे चरण के परीक्षण की मंजूरी मिल गई है। ऐसे में वैक्सीन की तैयारियों पर भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर साई प्रसाद ने प्रशांत श्रीवास्तव के सवालों के जबाव दिए। प्रमुख अंश:
कोविड वैक्सीन परीक्षण किस स्थिति में है?
ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से हमें तीसरे चरण के परीक्षण की अनुमति मिल गई है। कोवैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रॉयल कंपनी नवंबर की शुरुआत से कर रही है। यह परीक्षण देश के 25 केंद्रों पर किया जा रहा है, जिसमें 26 हजार वालंटियर पर वैक्सीन का परीक्षण होगा। दो महीने से कंपनी इन केंद्रों को वैक्सीन परीक्षण के लिए तैयार कर रही थी।
वैक्सीन आम लोगों को कब मिलेगी?
वैक्सीन परीक्षण के पहले चरण और दूसरे चरण के आंकड़े काफी उत्साहजनक और बेहतरीन हैं। अगर हमें सभी स्वीकृतियां मिल जाती हैं, तो तीसरे चरण के परीक्षण के परिणाम 2021 की दूसरी तिमाही के दौरान आ सकते हैं। इस आधार पर हम उम्मीद कर रहे हैं कि कोवैक्सीन को जून 2021 में लांच कर देंगे। हालांकि यह नियामक की तरफ से दी जाने वाली सभी जरूरी स्वीकृति पर निर्भर करेगा।
वैक्सीन की कीमत क्या होगी?
अभी वैक्सीन की लागत तय नहीं हुई है। अभी हमारा सारा जोर तीसरे चरण में वैक्सीन के परीक्षण और उसे जल्द से जल्द विकसित करने पर है।
स्वीकृति मिलने के बाद भारत बॉयोटेक की उत्पादन क्षमता क्या होगी?
इस वक्त कंपनी करीब 15 करोड़ वैक्सीन डोज तैयार करने की क्षमता रखती है। लेकिन आगे की परिस्थितियों के अनुसार हम उत्पादन 50 करोड़ डोज तक बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं।
वैक्सीन विकसित करने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
हमने कोवैक्सीन का परीक्षण अभी तक 75 से ज्यादा केंद्रों पर तीन लाख से ज्यादा भागीदारों के सहयोग से किया है। अच्छी बात यही है कि परीक्षण के परिणाम काफी बेहतर रहे हैं। अभी तक सबसे ज्यादा चुनौती हमें यही मिली है कि हम महामारी के दौर में अनजान वायरस से लड़ रहे हैं। पहले और दूसरे चरण के परीक्षण से हमें पूरी उम्मीद है कि हम एक सुरक्षित और प्रभावशाली वैक्सीन बना लेंगे। कंपनी कोवैक्सीन को भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी की साझेदारी में विकसित कर रही है।