राजनीति के चौसर पर हरियाणा के बाद अगला बड़ा मैदान महाराष्ट्र है। हाल के लोकसभा चुनावों में केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए को जिन राज्यों में बड़ा झटका लगा था और जहां अरसे से कई मुद्दों पर भारी असंतोष देखने को मिल रहा था, उनमें ये दोनों राज्य प्रमुख थे। हाल में हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चौंका दिया था और लोकसभा चुनावों के बाद बने नैरेटिव को कुछ हद तक पलटने में कामयाब रही थी। इस मायने में अब अगली बड़ी लड़ाई महाराष्ट्र में होनी है, जहां 20 नवंबर को एक ही चरण में वोट पड़ने हैं और 23 नवंबर को नतीजे आने हैं। यूं तो हर चुनाव अपनी इबारत खुद लिखता है मगर लोकसभा चुनाव के नतीजों के संकेत एनडीए या वहां भाजपा-शिंदे शिवसेना-अजित पवार राकांपा की महायुति के लिए बड़ी चुनौती के सबब हैं। संसदीय चुनावों में राज्य में कुल 48 सीटों में महायुति सिर्फ 16 (भाजपा-9, शिंदे गुट-6, अजित गुट-1) पर सिमट गई थी। उस हिसाब से विधानसभा में कुल 288 में महायुति को 100 से भी काफी कम सीटों पर बढ़त मिली थी, भाजपा तो करीब 50 पर ही बढ़त ले पाई थी। लेकिन सवाल है कि विपक्षी इंडिया ब्लॉक की पार्टियां कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) संसदीय चुनावों की अपनी बढ़त को कामयाब रख पाएंगी? हाल में हरियाणा में तो इसका उलटा ही हुआ, जहां संसदीय चुनावों में कांग्रेस आधी (कुल 10 में से पांच) सीटें जीतने और करीब 50 विधानसभा सीटों पर बढ़त हासिल करने के बावजूद राज्य चुनाव में बहुमत नहीं पा सकी। इसलिए चुनौती दोनों तरफ कड़ी है।
इसी चुनौती से पार पाने के लिए महायुति के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की सरकार ने संसदीय चुनावों के बाद कई कल्याणकारी योजनाओं का ऐलान किया। उसमें सबसे बड़ी लड़की बहन योजना है जिसके मद में राज्य की हर महिला को 1,500 रु. महीना भत्ता देने का ऐलान है, जिसकी कुछ किस्तें जारी की जा चुकी हैं। कांग्रेस इसे अपने चुनावी वादे में महालक्ष्मी योजना की नकल बता रही है। दरअसल, पिछले साल कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अपनी गारंटी में ऐसी योजना जोड़ी थी, तो फौरन मध्य प्रदेश में तत्कालीन शिवराज सिंह सरकार ने लाड़ली बहना योजना शुरू की, जिसका लाभ शायद वहां चुनावों में मिला और हरियाणा में भाजपा को उसका लाभ मिला। शायद इसीलिए शिंदे सरकार ने पूरा खजाना खोल दिया है और किसानों को 25 साल तक बिजली मुफ्त देने का वादा कर रही है। लेकिन महायुति की चुनौतियां इतने से कम होती नहीं दिख रही हैं। मराठा आंदोलन, कृषि संकट और दलितों में रोष के अलावा मराठा अस्मिता उसके लिए रोड़ा बन सकते हैं।
महा विकास अघाड़ी के नाना पटोले, शरद पवार और उद्धव ठाकरे
विपक्षी इंडिया ब्लॉक का मुख्य जोर इन्हीं मुद्दों पर है। वह महाराष्ट्र की कई योजनाओं को गुजरात लेकर जाने की बात भी उठा रहा है और भाजपा पर धोखे से पार्टियां तोड़कर सरकार पर काबिज होने का आरोप लगा रहा है। मोटे तौर पर शरद पवार और उद्धव ठाकरे दोनों का जोर मराठा अस्मिता, बेरोजगारी और कृषि संकट पर है। कांग्रेस के राहुल गांधी संविधान बचाओ, याराना पूंजीवाद की आर्थिक नीतियों, जाति जनगणना जैसे मुद्दे उठा रहे हैं। देखना यह होगा कि ये मुद्दे कारगर होते हैं या फिर लोग शिंदे सरकार की मुफ्त योजनाओं को तरजीह देते हैं।
हालांकि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा शायद देश की व्यावसायिक राजधानी कहे जाने वाले महाराष्ट्र को गंवाना नहीं चाहेगी। 2014 में राज्य में सत्ता में आने के बाद से उसने गंवाना गंवारा नहीं समझा। इसलिए 2019 में उद्धव ठाकरे की शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग पर उसने गठबंधन तोड़ दिया था। तब उद्धव ठाकरे ने शरद पवार और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली थी, लेकिन डेढ़ साल बाद ही शिवसेना से शिंदे गुट को तोड़कर उसने सरकार ही नहीं बनाई, बल्कि अपने मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फड़नवीस को उप-मुख्यमंत्री बनाने का सौदा मंजूर कर लिया। बाद में उसने राकांपा से अजित पवार को भी तोड़ लिया। दरअसल मुंबई में देश के लगभग सभी कॉरपोरेट के दफ्तर हैं और बॉलीवुड तो है ही। इसलिए मुंबई में राज करने का मतलब पूंजी के खजाने पर भी राज करने जैसा है। इसी वजह से कई साल से मुंबई महा नगर निगम के चुनाव भी नहीं कराए गए, ताकि उस पर विपक्ष का राज न हो जाए।
फिलहाल, महायुति में सीटों का बंटवारा हो चुका है। भाजपा ने 60 से अधिक उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है, लेकिन इंडिया ब्लॉक में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक चीजें सुलझ नहीं पाई हैं। पहले उम्मीदवारों के ऐलान की भाजपा की रणनीति मध्य प्रदेश, हरियाणा वगैरह में कामयाब रही है, लेकिन हर राज्य का मिजाज और स्थितियां अलग हैं।