तकरीबन 86 साल बाद बिहार के दो सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र-उत्तर में मिथिलांचल और पूर्व में कोसी का इलाका फिर से जुड़ गए। 1934 के विनाशकारी भूकंप में अंग्रेजों के बनाए रेलवे पुल के ध्वस्त होने के दशकों बाद अब फिर उस पर ट्रेन दौड़ने लगी है। कोसी की सहायक नदी तिल्युगा पर बने इस नए पुल ‘कोसी महासेतु’ से इन दो भू-भागों के बीच की दूरी लगभग 275 किलोमीटर कम हो गई। 516 करोड़ रुपये की लागत से बने इस पुल का बनना नदी के दोनों मुहानों पर बसे उन लाखों लोगों के लिए किसी सपने के सच होने से कम नहीं है, जिनका सदियों से समान संस्कृति और मातृभाषा का नाता है। जाहिर है, एनडीए बिहार में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में इसे अपनी बड़ी उपलब्धियों में शुमार करेगा।
अंग्रेजों ने 1886 में इस नदी पर छोटी लाइन का रेल पुल बनाया था, जो 48 साल बाद भूकंप के दौरान ढह गया था। आजादी के बाद सरकारें आईं और गईं, लेकिन स्थानीय लोगों के आवागमन की समस्या का हल करने के लिए कोई वैकल्पिक पुल नहीं बन सका। अब परिदृश्य बदल गया है।
लगातार चौथी जीत की उम्मीद लिये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चुनावी समर में उतरने के साथ इस पुल को बिहार में एनडीए सरकार की विकास की राजनीति के नए प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल, इस पुल का शिलान्यास 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था, जब नीतीश केंद्र में रेल मंत्री थे। और सत्रह साल बाद जब वे मुख्यमंत्री हैं तो इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। मोदी ने 18 सितंबर को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए पुल पर चलने वाली पहली ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर कहा, “गंगा, कोसी और सोन जैसी नदियों के विस्तार के कारण बिहार के कई इलाके दशकों तक कटे रहे और लोगों को एक से दूसरी जगह जाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी। लेकिन, दृढ़ संकल्प और नीतीश कुमार जैसे सहयोगी के साथ क्या कुछ संभव नहीं है? कोसी महासेतु इसका एक उदाहरण है।“
हालांकि यह पुल आगामी 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को तीन चरणों में होने वाले बिहार चुनाव के लिए नीतीश के कई तुरुप के इक्कों में में महज एक है। जद (यू)-भाजपा गठबंधन के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में फिर से सत्ता में वापसी के लिए उनके पास जनता के बीच जाकर अपनी कार्य क्षमता सिद्ध करने के लिए कई बड़ी परियोजनाओं की फेहरिस्त है, जो पूरी हो गई हैं या भविष्य में पूरा करने का इरादा है। एनडीए सरकार की परियोजनाओं में पटना में बहुप्रतीक्षित मेट्रो रेल पर काम शुरू हो चुका है, जबकि दरभंगा को नए हवाई अड्डे और नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के रूप में दोहरी सौगात मिली है।
केंद्र के साथ मिलकर नीतीश सरकार ने बिहार के लिए चुनाव पूर्व राजकीय खजाने का मुंह खोल दिया है। 25 सितंबर को चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव की घोषणा और आदर्श आचार संहिता लागू होने के पूर्व दोनों सरकारों ने 93,010 करोड़ रुपये की राशि से बनने वाली विभिन्न योजनाओं की घोषणा कर दी है।
पिछले कुछ हफ्तों में मुख्यमंत्री ने 72,309 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन या शिलान्यास किया है, जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार को 18,701 करोड़ रुपये की योजनाओं का तोहफा दिया है। इसके अलावा, केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 1,742 करोड़ रुपये की सड़क परियोजनाओं की भी शुरुआत की है। इनमें दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन द्वारा बनाई जा रही 13,365 करोड़ की पटना मेट्रो राज्य की जद (यू)-भाजपा सरकार, जिसे अक्सर ‘डबल इंजन की सरकार' कहा जाता है, की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है। नीतीश के मुताबिक, 32.49 किलोमीटर लंबी यह परियोजना पांच साल में पूरी होगी, लेकिन कम से कम एक रूट पर ट्रेनें तीन साल में दौड़ने लगेंगी। केंद्र और राज्य इसमें कुल लागत का 20-20 प्रतिशत वहन करेंगे जबकि शेष 60 प्रतिशत राशि के लिए जापान इंटरनेशनल कॉपरेशन एजेंसी (जेआइसीए) से ऋण लिए जाएंगे।
दरभंगा में एक नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को मंजूरी देकर केंद्र ने वहां के लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांग को भी पूरा किया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत 1,264 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी दी। बिहार में फिलहाल एक एम्स कार्यरत है, लेकिन उत्तर बिहार के लोगों को गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। 15-20 सुपर स्पेशियलिटी विभाग और 750 बेड वाले नए एम्स से उन्हें भविष्य में बहुत लाभ मिलेगा। दरभंगा में एक नए हवाई अड्डे का निर्माण कार्य भी पूरा हो चुका है। 8 नवंबर को स्पाइस जेट दिल्ली, मुंबई और बेंगलूरू से दरभंगा के लिए अपनी उड़ानें शुरू करेगा, जिससे इस क्षेत्र के लोगों के लंबे इंतजार का अंत होगा। हाल में बुकिंग शुरू होने के बाद से दरभंगा के लिए फ्लाइट टिकट बुक करने के लिए मारामारी हो रही है। इसे भी बिलाशक एनडीए सरकार की बड़ी उपलब्धियों में गिना जा रहा है।
राज्य की राजधानी पटना में नीतीश ने हाल ही में अत्याधुनिक सुविधाओं से लैश एक अंतर-राज्य बस टर्मिनल (आइएसबीटी) का उद्घाटन किया है। प्रति दिन डेढ़ लाख यात्रियों की क्षमता वाले 25 एकड़ में फैले इस बस टर्मिनल को देश में सबसे बड़ा माना जा रहा है। इसके अलावा कई अन्य परियोजनाएं हैं, जो आने वाले समय में बड़ी आबादी को लाभान्वित करेंगी। पटना और हाजीपुर के बीच मौजूदा गांधी सेतु के समानांतर गंगा नदी पर 14 किलोमीटर लंबा एक चार लेन का पुल साढ़े तीन साल में पूरा होने की उम्मीद है। इसका बजट 1794.37 करोड़ रुपये है। सरकार ने सीतामढ़ी, सिवान और वैशाली जिलों में तीन नए मेडिकल कॉलेजों की भी घोषणा की है, जिनकी कुल लागत 1636 करोड़ रुपये है।
राजनैतिक जानकारों का मानना है कि एम्स, हवाई अड्डे और आइएसबीटी जैसी बड़ी परियोजनाएं उस राज्य में नीतीश को विकास पुरुष के रूप में स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जो बुनियादी ढांचे के मामले में देश में सबसे निचले पायदान पर है। बिहार की राजनीति के जानकार एन.के. चौधरी का मानना है कि नीतीश ने लगातार चुनावों में अपना विकास कार्ड खेला है, और इसका उन्हें फायदा भी मिला है, लेकिन कमजोर विपक्ष और जाति आधारित सियासत सहित कई अन्य कारक हैं, जिन्होंने उनकी जीत में योगदान दिया है।
हालांकि विपक्ष नीतीश की विकास परियोजनाओं से संबंधित घोषणाओं से अप्रभावित है। राजद नेता तेजस्वी प्रसाद यादव का कहना है कि बिहार को 2014 में विशेष श्रेणी का दर्जा नहीं मिला और 2015 में प्रधानमंत्री द्वारा 1.25 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा के बाद भी कुछ नहीं हुआ।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का कहना है कि 263 करोड़ रुपये का एक पुल उद्घाटन के महज 29 दिन बाद गिर गया, जबकि 509 करोड़ रुपये की लागत से बने एक अन्य पुल तक पहुंचने वाली सड़क उद्घाटन के एक दिन पहले ही पानी में बह गई। तेजस्वी का मानना है कि नीतीश सरकार सभी मामलों, खासकर नौकरी के अवसर पैदा करने और कोविड महामारी से निपटने में पूर्णतः विफल रही है। वे कहते हैं, “अगर हमारी सरकार सत्ता में आती है, तो हम 10 लाख सरकारी नौकरियां देंगे। यह पहली फाइल होगी जिस पर हम हस्ताक्षर करेंगे।” हालांकि उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का कहना है कि बिहार के लिए प्रधानमंत्री के पैकेज पर सवाल उठाने वाले लोगों को यह बताना चाहिए कि 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के राज्य के लिए घोषित किए गए 5,700 करोड़ रुपये के पैकेज का क्या हुआ? वे बताते हैं, “आजादी के 53 साल बाद, गंगा नदी पर चार पुल बनाए गए थे, लेकिन एनडीए ने 17 पुल बनाए हैं। कांग्रेस-राजद सरकार ने कोसी नदी पर केवल एक पुल बनाया जबकि एनडीए सरकार छह बना चुकी है।”
नीतीश अपनी उपलब्धियों के बारे में कहते हैं कि उन्होंने पहले जो भी वादा किया, उसे पूरा किया है। वे कहते हैं, “हमने जो कुछ भी किया है वह चारों ओर दिखाई दे रहा है। अगर लोग हमें इस बार एक और जनादेश देते हैं तो हम उनकी सेवा करना जारी रखेंगे क्योंकि लोगों की सेवा करना ही हमारा धर्म है।” नीतीश को हालांकि यह जानने के लिए मत गणना के दिन 10 नवंबर तक इंतजार करना होगा कि क्या उन्हें बिहार की सेवा करने का एक और मौका मिलेगा या इस बार उनकी कुर्सी पर कोई और काबिज होगा।
बिहार को 2014 में विशेष श्रेणी का दर्जा नहीं मिला और 2015 में प्रधानमंत्री के 1.25 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का क्या हुआ? हमारी सरकार आती है, तो हम 10 लाख सरकारी नौकरियां देंगे
तेजस्वी प्रसाद यादव, राजद नेता