छत्तीसगढ़ में गजराज पर आफत आन पड़ी है। जून के एक ही हफ्ते में यहां छह हाथियों की मौत ने वन्यप्राणी सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक गर्भवती हथिनी की मौत के साथ शुरू हुआ यह सिलसिला, खूंखार माने जाने वाले गणेश हाथी की मौत तक थमा नहीं है। इससे सरकार और समाज पर अंगुलियां उठ रही हैं। कोयला और दूसरे खनिज पदार्थों के खनन के साथ आदिवासियों को वन पट्टे देने से यहां जंगल सिकुड़ रहा है और भारी-भरकम वन्यजीव हाथी के स्वच्छंद विचरण में बाधा आ रही है। हाथी भोजन की तलाश में गांवों की ओर रुख करते हैं और इंसानों के साथ उनका संघर्ष शुरू हो जाता है। हाथियों को धान की फसल और महुआ लुभाता है। किसान और आदिवासी फसलों की रक्षा के लिए पटाखे फोड़कर या कंडे पर मिर्च का धुआं करके उन्हें भागते हैं।
छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाके सरगुजा-जशपुर और कोरबा में हाथियों का निवास है। महासमुंद, धमतरी और गरियाबंद जिले में हाथियों का झुंड ओडिशा से आता है। इस झुंड के हाथी भटक कर कभी-कभार राजधानी रायपुर की सीमा में भी आ जाते हैं। 41 फीसदी से अधिक वन क्षेत्र वाले सरगुजा-जशपुर और कोरबा जिले में घने जंगल हैं, इन्हीं इलाकों में कोयला खदानें भी हैं। कोयला खदानों के कारण जंगल कट रहे हैं और हाथियों के सामने भोजन का संकट खड़ा हो रहा है। एक वयस्क हाथी रोजाना 300 से 400 किलो तक फल-पत्ते और दूसरी चीजें खा जाता है। उसे एक दिन में डेढ़ सौ लीटर पानी की भी जरूरत होती है। इस कारण हाथी ऐसी जगह की तलाश करते हैं, जहां उन्हें निरंतर भोजन और पानी मिल सके।
वन्यजीवों के जानकार प्राण चड्डा बताते हैं कि 1986 के पहले तक छत्तीसगढ़ में हाथी नहीं थे। 1986 में सूखा पड़ने के कारण हाथी ओडिशा और झारखंड से सरगुजा होते हुए मध्य प्रदेश के सीधी तक जा पहुंचे। तब सरकार ने चार हाथियों को पकड़कर बांधवगढ़ नेशनल पार्क में रख दिया था, लेकिन हाथियों का दल पार्क में घुसकर उन्हें निकाल लाया। छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक आर.के. सिंह कहते हैं, “मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने हाथियों को राज्य से खदेड़ने की नीति अपनाई। 2000 तक इस इलाके में हाथी नहीं आए, इसके बाद फिर आने लगे।” ये झारखंड से निकलकर छत्तीसगढ़ होते ओडिशा चले जाते थे। चारा-पानी के कारण कुछ सरगुजा के जंगलों में रुक गए, सरकार ने भी उन्हें नहीं भगाया। 2002 में राज्य में 22 हाथी थे। वर्तमान में इनकी संख्या 300 तक पहुंच गई है। हाथी को बुद्धिमान और संवेदनशील वन्य प्राणी कहा जाता है। इसकी सूंघने की क्षमता जबर्दस्त होती है। यह जिस रास्ते आता है, उसी रास्ते चला भी जाता है लेकिन चारा इसके लिए महत्वपूर्ण होता है। जहां उसे फल, पत्ते और पानी मिल जाता है, वह वहीं रुक जाता है।
राज्य में हाथियों की बढ़ती संख्या के साथ समस्याएं भी बढ़ने लगीं। खेती और वनोपज संग्रहण के लिए जाने वाले आदिवासियों के साथ उनका टकराव होने लगा। राज्य के सरगुजा और जशपुर इलाके में विचरण करने वाले हाथियों के लिए बादलखोल और तिमोरपिंगला को एलिफेंट रिजर्व बनाया गया है। कोरबा के लेमरू को भी हाथियों के लिए रिजर्व बनाने का प्रस्ताव है।
हाथियों के संरक्षण के लिए काम करने वाले नितिन सिंघवी का कहना है कि हाथी को बांध कर नहीं रखा जा सकता। राज्य के वन विभाग के प्रमुख सचिव मनोज पिंगुआ का भी कहना है कि हाथियों को स्वतंत्र विचरण से नहीं रोका जा सकता। वन विशेषज्ञों का कहना है कि हाथियों के स्वच्छंद विचरण के लिए कम से कम दो हजार वर्ग किलोमीटर जगह चाहिए, उतना एरिया छत्तीसगढ़ के पास उपलब्ध नहीं है। दूसरी समस्या अलग-अलग जगह फैले हाथियों के झुंड को रिजर्व एरिया में लाने की है।
हाथी विचरण करते गांव आते हैं या फिर जंगलों में झुंड से बिछड़ जाते हैं, तो उनके लिए खतरा बढ़ जाता है। एक तो हाथी फसल को नुकसान पहुंचाते हैं या फिर लोगों को पटककर मार देते हैं। दांत के लिए हाथियों का शिकार भी किया जाता है। कहावत है, मरा हाथी भी सवा लाख का। हाथी का दांत लाखों रुपये में बिकता है। राज्य में हाथी दांत की तस्करी के भी मामले सामने आते रहे हैं। हाथी को मारने के लिए बिजली का करंट, कीटनाशक या फिर दूसरी जहरीली चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। जून में सूरजपुर में दो मादा हाथियों की मौत हो गई। इनमें से एक हथिनी गर्भवती थी। इसके बाद बलरामपुर में एक हथिनी का शव बरामद किया गया। जिन इलाकों में इनके शव मिले, वह वन्यजीवों के शिकार के लिए कुख्यात रहे हैं। वन विभाग के अधिकारी मानते हैं कि सरगुजा इलाके में दो हाथियों को मारा गया है, क्योंकि उनके दांत गायब थे। 20 माह की गर्भवती हथिनी की मृत्यु हार्टअटैक से बताई जा रही है। पशु चिकित्सक डॉ. महेंद्र पांडे ने भी दो हाथियों को जहर देकर मारने की आशंका जताई है। नितिन सिंघवी का कहना है कि 11 मई को भी प्रतापपुर रेंज में एक हाथी की मौत हो गई, जिसकी जानकारी विभाग को नहीं है या फिर मौत को वह दबा रहा है। कोरबा वनमंडल के ग्राम कठराडेरा में 14 जून को एक हाथी बेहोश पाया गया, जिसका अभी इलाज चल रहा है। सवाल है कि सरकार हाथियों की सुरक्षा के लिए हर साल दो करोड़ रुपये खर्च करती है, साथ ही, उसने हाथी मित्र दल भी बना रखा है। इसके अलावा वन रक्षकों को भी हाथियों की सुरक्षा का जिम्मा दिया है, फिर हाथी बेमौत क्यों मारे जा रहे हैं? एक वन अधिकारी का कहना है कि हाथियों की सुरक्षा के लिए अधिक फंड की आवश्यकता है, साथ ही अलग स्टाफ भी होना चाहिए।
धरमजयगढ़ एरिया में दो हाथी बिजली के नंगे तार से चिपक कर मर गए। बिजली का तार अवैध तरीके से खंभे से ले जाया गया था। राज्य के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी अरुण पांडे का कहना है कि इस इलाके में दस साल में 47 हाथियों की मौत करंट से हो चुकी है। किसानों के साथ बिजली कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दायर कर जेल भेजा है। इस मुद्दे पर वन और बिजली विभाग में विवाद की स्थिति है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार, 2009 से 2017 के बीच बिजली के तारों के संपर्क में आने से 461 हाथियों की मौत हुई। कर्नाटक में सबसे अधिक 106 हाथी करंट लगने से मरे, जबकि ओडिशा में 90, असम में 70 और पश्चिम बंगाल में 48 हाथियों की मौत करंट से हुई।
सरकार ने हाथियों की मौत की जांच के लिए एक टीम बना दी है, जो अपनी रिपोर्ट एक महीने में देगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने घटना की समीक्षा के बाद चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन अतुल शुक्ल समेत हाथियों की मृत्यु वाले इलाके के डीएफओ को हटा दिया। पर क्या इससे हाथियों का शिकार रुक जाएगा। गणेश हाथी से तो वन विभाग ही परेशान था। गणेश 19 लोगों को मौत के घाट उतर चुका था। विभाग उसे बांधकर रखना चाहता था, क्योंकि उसकी निगरानी में दिक्कत हो रही थी, लेकिन कोर्ट ने इसकी अनुमति नहीं दी।
केरल में एक हथिनी की हत्या के बाद देश भर में हड़कंप मच गया। कई स्वयंसेवी संगठनों के साथ आम लोग भी विरोध में आ गए, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी इसका संज्ञान लिया। लेकिन छत्तीसगढ़ में छह हाथियों की मौत के बाद भी शांति बनी रही। पूर्व मंत्री महेश गागड़ा और भाजपा के प्रदेश मंत्री अनुराग सिंहदेव ने मामले को उठाया। राज्य के प्रमुख सचिव वन मनोज पिंगुआ का कहना है कि हर साल कुछ हाथी प्राकृतिक रूप से मरते हैं, पर एक हफ्ते में छह हाथियों की मौत से सरकार चिंतित है।
छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक अरुण पांडे के अनुसार, राज्य में अधिकांश हाथियों की मृत्यु करंट लगने से हो रही है। विद्युत मंडल को सप्लाई लाइन की ऊंचाई बढ़ाने को कहा गया है, जिससे तार हाथियों की पहुंच से दूर हो। वन विभागीय अमले के जरिए भी गांव-गांव में किसानों को जमीन पर खुला तार न छोड़ने की ताकीद की जा रही है, जिससे हाथियों की मौत रोकी जा सके। इस बार भी दो हाथियों की मृत्यु बिजली करंट से हुई। दो कीटनाशक खाने से मर गए। एक हाथी हार्ट अटैक और एक कीचड़ में फंसकर मर गया।
हाथियों के रहवास में इंसान की दखलंदाजी और मानव आबादी में हाथियों के प्रवेश से होने वाली समस्या के समाधान और हाथियों के संरक्षण के लिए भारत सरकार ने 1992 में हाथी परियोजना शुरू की। इसके तहत हाथियों के स्थायी रहवास के प्रावधान किए गए और देश भर में 31 एलिफेंट रिजर्व बनाए गए। इसके बाद भी इंसान और हाथियों के बीच द्वंद्व नहीं थम रहा। हाथियों की मौत का सिलसिला चल ही रहा है। देश भर में 27 हजार के करीब हाथी हैं। हर पांच साल में इनकी गणना होती है। गिनती में हाथियों की संख्या प्रत्येक पांच साल में घट रही है। इसका बड़ा कारण अवैध शिकार को माना जा रहा है। ओडिशा और असम में ट्रेन से कटकर हाथी मर जाते हैं। कुछ राज्यों में जहर देकर भी हाथियों को मार दिया जाता है। हाथी को दुर्लभ वन्य प्राणियों की श्रेणी में रखा गया है, ऐसे में, इनको बचाए रखना सबकी जिम्मेदारी है। हाथियों से छेड़छाड़ की जगह उन्हें स्वच्छंद खाने-पीने का माहौल देना होगा। इसके लिए जंगलों को बचाए रखना होगा। यह तभी संभव है, जब सरकार हाथी कॉरिडोर वाले इलाके में खदान अनुमति न दे, पेड़ों की कटाई रोके, और जंगलों में बसे लोगों को निकालकर उन्हें नई जगह बसाए।
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केरल में हथिनी की हत्या
केरल के मलप्पुरम में गर्भवती हथिनी की, फल में पटाखे खिलाकर हत्या कर दी गई। 27 मई को भूखी गर्भवती हथिनी खाने की तलाश में जंगल से भटक कर रिहायशी इलाके में पहुंच गई थी। हथिनी सड़क पर टहल रही थी, तभी किसी ने उसे पटाखे से भरा अनानास खिला दिया था, जिससे उसका मुंह फट गया था। गर्भवती हथिनी की वेल्लियार नदी में खड़े-खड़े मौत हो गई थी। केरल के एक अधिकारी ने इस घटना की जानकारी सोशल मीडिया पर पोस्ट की, तब यह मामला सामने आया। केरल के दो गैर सरकारी संगठनों ने हत्यारों की जानकारी देने पर डेढ़ लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की थी। इस मामले में कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
उत्तराखंड से हाथी हिमाचल में घुसे
हर वर्ष मार्च और अप्रैल में उत्तराखंड के राजाजी नेशनल पार्क से हाथियों का झुंड पांवटा साहिब के कर्नल शेरजंग नेशलन पार्क सिंबलवाला से होकर हरियाणा के कलेसर नेशनल पार्क की ओर जाता है। इस दौरान हाथी किसानों की फसलों को नुकसान पंहुचाते हैं। लॉकडाउन के चलते हाथी शहरी इलाकों में पहुंच गए। बीते दिनों पांवटा साहिब के शहरी इलाकों में हाथियों ने जमकर तांडव मचाया। हाथियों ने एक व्यक्ति की गोशाला तोड़कर दो गायों को भी मार डाला था।
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भारत में हाथियों की कुल संख्या
वर्ष संख्या
2007 27,682
2012 29,391
2017 27,312
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राज्यवार हाथियों की संख्या
राज्य संख्या
कर्नाटक 6,049
असम 5,719
केरल 3,054
उत्तराखंड 1,779
ओडिशा 1,954
पश्चिम बंगाल 500
झारखंड 555
(स्रोतः लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार)