अब मध्य प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों के लिए मतदान होकर जनादेश ईवीएम में बंद हो चुका है। इस बार के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश के जनादेश पर देश की सभी मुख्य राजनैतिक पार्टियों की पैनी नजर है क्योंकि केंद्र की सत्ता के लिए यह अहम है। इसलिए है कि यहां दो प्रमुख राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियों- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है। दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं ने यहां धुंआधार रैलियां और रोड शो किए। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, अनुराग ठाकुर, एसपी सिंह बघेल ने जनसभाएं कीं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष वानती श्रीनिवासन, अलका गुर्जर, भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने प्रेस कॉन्फ्रेंस, मतदाता सम्मेलन और सभाओं को संबोधित किया।
कांग्रेस उम्मीदवारों के समर्थन में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी प्रचार करने के लिए आए। प्रदेश के चारों चरणों के प्रचार में राहुल गांधी के मुकाबले प्रधानमंत्री मोदी ने दोगुनी सभाएं कीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आठ सभाएं और दो रोड शो हुए, वहीं राहुल गांधी ने पांच जनसभाएं कीं। इस दौरान मोदी और राहुल ने एक-दूसरे पर हमले किए। राज्य में सबसे ज्यादा दिलचस्पी अंतिम चरण (13 मई) की आठ सीटों के नतीजों को लेकर है जिनमें तीन रतलाम, धार और खरगोन आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। इन तीनों सीटों पर भाजपा-कांग्रेस में कड़ा मुकाबला है। लगभग पांच महीने पहले विधानसभा चुनावों में भी आदिवासी बहुल सीटों पर कांग्रेस ने भाजपा को पीछे छोड़ दिया था। लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी तीनों सीटों पर आदिवासी वोटरों को लुभाने के लिए दोनों पार्टियों ने पूरी ताकत झोंकी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 मई को धार और खरगोन लोकसभा सीटों की चुनावी सभा में कहा, ‘‘कांग्रेस की नजर आपकी कमाई और आपके आरक्षण पर है। वह आपकी संपत्ति लूटना चाहती है और आपके आरक्षण पर भी डाका डालना चाहती है। तुष्टीकरण के लिए कांग्रेस एससी-एसटी-ओबीसी के हक का आरक्षण धर्म के आधार पर लूट चलाकर बांटना चाहती है।’’
राहुल गांधी
उनकी सभा से ठीक एक दिन पहले 6 मई को अलीराजपुर (रतलाम लोकसभा सीट) और खरगोन लोकसभा सीटों की चुनावी सभा में राहुल गांधी ने कहा, ‘‘मोदी जी से पूछना, आरक्षण क्यों खत्म करना चाहते हो? आप मोदी जी से पूछिए, आपके लोग आदिवासियों पर पेशाब क्यों करते हैं? आप देश को बताइए कि आरक्षण की लिमिट को 50 प्रतिशत से आगे करोगे, हां या ना? मैं आज आपको बताने आया हूं, वे छीनने की बात कर रहे हैं। हम आरक्षण को बढ़ा देंगे।’’
चौथे और अंतिम चरण की लोकसभा सीटों पर प्रत्येक चुनाव में आदिवासी मतदाता बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं। पिछले चुनाव में भी इन तीनों सीटों पर 75 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था और पांच माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में धार और खरगोन में कांग्रेस ने बढ़त बनाई थी। बंपर वोटिंग के लिए पहचाने जाने वाले मालवा-निमाड़ की आदिवासी बहुल रतलाम, धार और खरगोन में इस बार पिछले चुनाव की अपेक्षा कम मतदान हुआ। रतलाम में 72.86 प्रतिशत, धार में 71.50 प्रतिशत और खरगोन में 75.79 प्रतिशत मतदान हुआ है। 2019 के मुकाबले रतलाम में 2.8 प्रतिशत, धार में 3.75 प्रतिशत और खरगोन में 2.03 प्रतिशत मतदान कम हुआ है।
इन सबके बीच राज्य की हॉट सीट और भाजपा के गढ़ वाले इंदौर लोकसभा ने एक अलग ही महत्ता हासिल कर ली है। पहली बार यह भाजपा और कांग्रेस समर्थित ‘नोटा’ के बीच होने वाले चुनावी मुकाबले का गवाह बनेगा। कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम के नाम वापस लेने और उनके भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस ने लोगों से अपील की है कि वे भाजपा को हराने के लिए नोटा का बटन दबाएं। यही वजह है कि इंदौर लोकसभा सीट पर ‘नोटा’ एक उम्मीदवार के तौर पर सामने आया।
जो भी हो, राज्य में चुनाव संपन्न होते ही हर चुनाव की तरह इस बार भी सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस पूरी सीटें जीतने का दावा कर रही हैं। दोनों के दावों के पीछे बेचैनी नजर आ रही है। इस बेचैनी के पीछे चार मुख्य कारण नजर आ रहे हैं। एक, चार चरणों के चुनाव में मतदान प्रतिशत लुढ़क गया है। महिलाओं ने तो पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 12 फीसदी कम वोटिंग की है। बेशक, इसका असर जीत-हार के अंतर पर पड़ सकता है। यही सत्तारूढ़ पार्टी की बेचैनी को बढ़ा रहा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दूसरे चरण की वोटिंग के पहले (25 अप्रैल) को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भाजपा दफ्तर में एक बैठक बुलाई। बैठक में उन्होंने चेताया था कि जिन मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र में मतदान प्रतिशत कम होगा, उनका पद चला जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि बदले में उन विधायकों को मंत्री बनाया जाएगा जिनके क्षेत्र में मतदान प्रतिशत बढ़ेगा। यह बात दीगर है कि यह नहीं बताया गया कि कितने फीसदी कम वोटिंग पर मंत्रियों का पद जा सकता है। उनकी चेतावनी का असर यह हुआ है कि दूसरे और तीसरे चरण में पिछले लोकसभा चुनाव के बराबर वोटिंग हुई।
कांग्रेस नेता के साथ कैलाश विजयवर्गीय
कई मंत्रियों की परफॉर्मेंस इस चरण में भी कमजोर रही है। फिलहाल प्रदेश में भाजपा के 163 विधायक हैं। इनमें मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष को छोड़कर 30 मंत्री हैं। शाह के वोटिंग टेस्ट में प्रदेश के 30 में से नौ मंत्री खरे नहीं उतरे हैं। इन मंत्रियों की विधानसभा सीटों पर संसदीय क्षेत्र के औसत से भी कम मतदान हुआ है जबकि छह मंत्री बाउंड्री लाइन पर खड़े नजर आ रहे हैं। उनकी विधानसभा सीट पर वोटिंग में मामूली कमी हुई है। वहीं, 15 मंत्रियों की इस चुनाव में अच्छी परफॉर्मेंस रही है। मतदान में मंत्रियों की परफॉर्मेंस पर भाजपा क्या निर्णय लेगी यह कह पाना तो मुश्किल है पर शाह की रणनीति का असर दिखा है। अमित शाह की चेतावनी के बाद कई मंत्री अपने-अपने क्षेत्रों में उतरे और युद्धस्तर पर चुनाव प्रबंधन करना शुरू किया।
चौथे और अंतिम चरण के मतदान के ठीक एक दिन पहले मुख्यमंत्री मोहन यादव ने राज्यपाल मंगूभाई पटेल से मुलाकात की। दोनों के बीच करीब 15 मिनट तक हुई इस मुलाकात के कई सियासी अर्थ निकाले जा रहे हैं। मुलाकात के बाद मीडिया से बातचीत में मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्यपाल से गर्मी के मौसम में पेयजल के प्रबंध, गेहूं खरीद को लेकर सरकार और केंद्र सरकार के प्रयासों को लेकर चर्चा हुई।
जानकारों का कहना है कि मोहन सरकार जल्द ही मंत्रिमंडल में कुछ नए चेहरों को शामिल करने जा रही है। जिन मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र में मतदान प्रतिशत कम दर्ज किया गया है, उनके पद पर अब संकट के बादल मंडराते दिखाई दे रहे हैं।
जो भी हो लेकिन मध्य प्रदेश में चुनाव ने दिलचस्प रंग ले लिया है। कांग्रेस भी इस बार पूरी तैयारी से उतरी है और इस बार पार्टी का प्रचार भी दिखाई पड़ रहा है। इससे पहले पार्टी प्रचार में भाजपा को टक्कर नहीं दे पाती थी और कहीं दिखाई नहीं पड़ती थी। लेकिन इस बार स्थिति उलट है। कांग्रेस ने मन बना लिया था कि वह भाजपा को टक्कर देगी और इसका नतीजा भी दिख रहा है।
देखना यह है कि झुलसन भरी गर्मी में दोनों पार्टियों ने जो ताकत झोंकी थी, मतदाता उसका किस पार्टी को सत्ता का ईनाम देते हैं।