राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस विधानसभा चुनाव में अपनी कामयाबी से उत्साहित है, तो भाजपा भी लोकसभा चुनावों के लिए पूरी ताकत से जुट गई है। राज्य में लोकसभा की 25 सीटे हैं और 2014 में भाजपा ने सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी। विश्लेषकों का कहना है कि पिछले दो दशक से लोकसभा चुनावों में उसी पार्टी को बढ़त मिलती रही है, जिसने विधानसभा में जीत हासिल की। हालांकि, पुलवामा के बाद भाजपा अपनी स्थिति में सुधार की उम्मीद कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने चुनाव अभियान में राजस्थान को खास महत्व देते दिखाई दे रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने चुनाव की घोषणा से पहले राजस्थान के टोंक और चुरू से अपने अभियान का आगाज किया था।
भाजपा को लगता है कि पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के बाद सारे मुद्दे गौण हो गए हैं और इस बयार में विरोधी कहीं नहीं ठहरेंगे। लेकिन, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं कि मोदी सरकार ने पिछले चुनावों का कोई भी वादा पूरा नहीं किया। न कालाधन आया, न दो करोड़ लोगों को रोजगार मिला और न ही भ्रष्टाचार पर लगाम लगी। वह कहते हैं कि अब केंद्र से भाजपा की विदाई तय है।
राजस्थान की जनता का मूड भांपने के लिए पहले बीते चुनावों के नतीजों पर गौर करते हैं। 1999 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 153 सीट जीत कर सरकार बनाई थी और भाजपा को 33 सीटें मिली थीं। इसके तुरंत बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 25 में से सिर्फ नौ सीटें ही मिलीं। 2003 के विधानसभा चुनाव में 120 सीटें जीतकर भाजपा सरकार बनाने में सफल रही। जीत का सिलसिला लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा और उसे 21 सीटें मिलीं। 2008 के विधानसभा चुनाव में 96 सीटें जीत कांग्रेस सत्ता में लौटी। इसके तुरंत बाद लोकसभा चुनावों में कांग्रेस 20 सीटें जीती। भाजपा को महज चार सीट मिली।
लेकिन, 2013 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। उस समय मोदी लहर पर सवार भाजपा को 163 सीटों पर जीत मिली थी। इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में तो भाजपा ने सभी 25 सीटें अपने कब्जे में कर लीं। इन्हीं तीन चुनावों ने प्रदेश में जीत और हार के रुझान को परंपरा में बदल दिया। हालांकि, भाजपा का कहना है कि इस बार यह सिलसिला टूट जाएगा।
राज्य में भाजपा नेता और प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ कहते हैं, “कांग्रेस का इन चुनावों में सूपड़ा साफ हो जाएगा, क्योंकि विधानसभा चुनावों के बाद मतदाताओं का नजरिया बदल गया है।” कांग्रेस के प्रदेश महासचिव पंकज मेहता कहते हैं, “बेशक भाजपा जज्बात का सहारा लेने का प्रयास कर रही है। लेकिन राजस्थान में कांग्रेस बेहतर स्थिति में है। कांग्रेस सरकार ने कम समय में उल्लेखनीय कार्य किया है। किसानों की कर्जमाफी हुई है। बेरोजगारों को भत्ता मिलने लगा है। कर्मचारी वर्ग की समस्याओं का निदान किया गया है।” मेहता कहते हैं कि सरकार ने जिस ढंग से गुर्जर आंदोलन का समाधान निकाला है, उसका भी अच्छा संदेश गया है।
जानकारों का कहना है कि दोनों ही प्रमुख दलों में गुटों में खिंची रेखाएं साफ दिखती हैं। कांग्रेस में एक तरफ मुख्यमंत्री गहलोत का धड़ा है, तो दूसरी तरफ उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट का गुट है। इसका कुछ असर चुनावी प्रदर्शन पर पड़ सकता है। राज्य में मध्य प्रदेश की सीमा से लगता झालावाड़ पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का क्षेत्र है। वहां से उनके बेटे दुष्यत सिंह सांसद हैं। झालावाड़ में एक कांग्रेस नेता ने आउटलुक से कहा, “दुष्यंत की हालत खराब है। स्थानीय लोग मौजूदा सांसद से खासे खफा हैं।” हालांकि, वे यह भी कहते हैं कि ऐसा होगा नहीं, क्योंकि कांग्रेस ने इस क्षेत्र से आंखें फेर रखी हैं। वे कहते हैं कि ब्लॉक अध्यक्ष के दो-तीन पद अरसे तक खाली पड़े रहे और पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले नियुक्तियां कीं।
भाजपा भी गुटों में बंटी हुई है। जानकारों के मुताबिक, केंद्रीय नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की जगह नए नेतृत्व को उभारना चाहता है। लेकिन पार्टी अभी कोई जोखिम लेने की हालत में नहीं है। पार्टी प्रवक्ता पंकज मीणा कहते हैं, “पार्टी में कोई मतभेद नहीं है।” लेकिन, विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी में लौटे पूर्व मंत्री किरोड़ी लाल मीणा गुटबाजी पर खुलकर बोल चुके हैं। उन्हें राजे विरोधी माना जाता है। राजस्थान से पांच सांसद केंद्र में मंत्री हैं, लेकिन पार्टी सूत्रों के अनुसार इन पांचों को अपने चुनाव क्षेत्र में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। जबकि पार्टी कार्यकर्ता कहते हैं कि पुलवामा के बाद बने माहौल ने इन मंत्रियों को बड़ी राहत दी है।
मध्य राजस्थान में अजमेर जिले के बड़गांव के सरपंच रामलाल भील कहते हैं कि अभी मोदी के पक्ष में माहौल है। लेकिन बाड़मेर जिले में एक सरपंच कन्हैया लाल कहते हैं कि लोग कांग्रेस को वोट देना चाहेंगे। आदिवासी बहुल बांसवाड़ा जिले में सरपंच धुलेश्वर मईड़ा का कहना है, “अभी किसी का कोई माहौल नहीं है। थोड़े दिन के चुनाव प्रचार के बाद ही कुछ कह सकते हैं कि लोग किस तरफ जा रहे हैं।”