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आपदा, असंतोष का अंतरा

इतिहास के पन्नों में ऐसे वर्ष ढूंढे शायद ही मिलें, जब किसी एक ही वजह से पूरी या कम से कम दो-तिहाई दुनिया त्राहिमाम कर उठी हो।
नए नागरिकता कानून के विरोध की ऐसी मिसाल कायम की जो लोकतंत्रिक विरोध के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया

इतिहास के पन्नों में ऐसे वर्ष ढूंढे शायद ही मिलें, जब किसी एक ही वजह से पूरी या कम से कम दो-तिहाई दुनिया त्राहिमाम कर उठी हो। महामारियों के इतिहास में भी ऐसा वक्त शायद ही उतर आया हो, जब एक ही महामारी ने लगभग सभी महादेशों में कुछेक महीनों के अंतराल में ही ऐसा तांडव मचाया कि न सिर्फ विकास, उन्नति और वैज्ञानिक शोध-परख, बल्कि प्रकृति पर विजय के ऊंचे-ऊंचे दावों की पोल खोल दी हो। वर्ष के शुरू होते ही कोविड-19 के संक्रमण की आंधी में जिंदगियां, रोजगार, अर्थव्यवस्‍था सब कुछ ध्वस्त होने लगा तो लोगों और सरकारों के होश फाख्ता हो गए। वर्ष खत्म होने तक भी उसका आतंक तारी है लेकिन उतनी ही तेजी से वैक्सीन का ईजाद कर दुनिया ने अपने लिए उम्मीद भी बंधाई है। यह अलग बात है कि कोरोनावायरस ने म्युटेट होकर फिर इम्तिहान की शर्तें कड़ी कर दी हैं। लेकिन उम्मीद यही करनी चाहिए कि इन शर्तों पर भी दुनिया खरी उतरेगी।

वर्ष 2020 अपने देश में हताशा-निराशा, टूटन, विरोध प्रदर्शनों का ऐसा गवाह रहा है, जो शायद ही कभी, और इस दौर में भी शायद ही कहीं देखने को मिला। कोविड-19 महामारी के बड़े सबक में यह भी रहा है कि दुनिया में जिसने इसकी कम परवाह की, उसे उतना ही झेलना पड़ा। बेशक, बीमारी की शुरुआत चीन से हुई, लेकिन पहले इटली, स्पेन, ब्रिटेन जैसे देशों को लापरवाही की कीमत भुगतनी पड़ी। बाद में तो वहां के लोग ऐसी तबाही झेले और झेल रहे हैं जिसकी कोई मिसाल शायद ही मिले, जहां के हुक्मरान इसे कोई मर्ज ही मानने से इनकार करते रहे। इनमें अमेरिका, भारत, ब्राजील संक्रमण और उससे होने वाली मौत के आंकड़ों में दुनिया में सबसे ऊपर तीन स्‍थानों पर हैं।

अलबत्ता, अपने देश में सिर्फ महामारी की तबाही, देश के स्वास्‍थ्य ढांचे और उस पर काबू पाने के तरीके ने और ज्यादा कहर बरपाया। मार्च के मध्य तक सरकार मानने को ही तैयार नहीं थी कि कोई खतरा है। सत्तारूढ़ पार्टी अमेरिकी राष्ट्रपति की आगवानी में नमस्ते ट्रंप जैसे आयोजन और मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार में टूट करवाने में ही व्यस्त रही। जब पानी सिर से ऊपर उठने लगा तो अचानक बेहद सख्त देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान करके सब कुछ ठप कर दिया गया। नतीजतन, रोजगार के अभाव में शहरों से ऐसा पलायन हुआ, जो आज तक दुनिया में कहीं नहीं देखा गया। आवागमन के सारे साधन बंद होने से लोग पैदल सैकड़ों, हजारों किमी. चलने को मजबूर हुए। उन्हें जगह-जगह पुलिसिया लाठी, बैरीकेड, यहां तक कि सड़कों पर खोदे गए गड्ढों का सामना करना पड़ा। यहीं नहीं, पहले ही सात तिमाहियों से ढहती अर्थव्यवस्‍था ठप हो गई, जिसकी वृद्घि दर 24 अंकों तक शून्य से नीचे चली गई, जो दुनिया में और कहीं नहीं देखा गया। बेरोजगारी दर 45 वर्षों में सबसे अधिक हो गई। करोडों लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा।

यही नहीं, यह वर्ष विरोध प्रदर्शनों, केंद्र-राज्य टकराहटों, राज्यों के अधिकार क्षेत्र में केंद्र के हस्तक्षेप, संस्‍थाओं की बदहाली की भी ऐसी मिसाल दे गया है, जो देश की आगे की सियासत की दिशा तय करेगा। वर्ष शुरू हुआ नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के देशव्यापी विरोध से, जिसकी अनूठी मिसाल दिल्ली के शाहीनबाग का धरना बना, और खत्म हुआ 2020 के तीन नए कृषि कानूनों के किसान विरोध से। किसान महीने भर से ज्यादा कड़ाके की ठंड में दिल्ली को लगभग चारों दिशाओं से घेरे बैठे हैं। ऐसा नजारा इतिहास में 19वीं सदी के प्रारंभ में शायद बनारस में दर्ज है जब वहां निगम कर के खिलाफ लाखों लोग अंग्रेज रेजिडेंट के दफ्तर-घर को घेरकर बैठ गए थे और अंततः सरकार को निगम कर वापस लेना पड़ा था। तब भी लोगों को वहीं खाना बनाते, गाते-बजाते देखकर अंग्रेज हतप्रभ थे। लेकिन इस बार क्या होता है, यह तो अब अगले वर्ष ही दिखेगा। हालांकि सरकार ने आपदा को अवसर में बदलने का आह्वान किया है। देखना है अवसर कैसा मंजर लेकर आता है।                 

हरिमोहन मिश्र

 

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