देश में बीते 12 सालों में एक छोटा सा तबका स्वास्थ्यवर्धक खानपान की ओर ध्यान देने लगा है तो एक बहुत बड़े तबके की भीड़ फास्ट-फूड रेस्तरां में बढ़ती जा रही है। बर्गर-पिज्जा और मैगी से तो ग्रामीण भारत तक परिचित हो चुका है। इन दस सालों में हमारा नाश्ता, दोपहर का खाना और रात के खाने की थाली बदल चुकी है। सुबह के नाश्ते में जहां पराठे, पोहे, चिड़वा, दूध, घी-मक्खन या सब्जी-रोटी होती थी वहीं अब ज्यादातर घरों में इसकी जगह सीरियल्स, तरह-तरह की ब्रैड, उसपर लगाने वाले लेप ने ले ली है। हर जगह ऐसा नहीं है लेकिन खानपान में अब भारत पहले दस साल जैसा नहीं रहा। दोपहर के खाने में फास्ट-फूड का चलन बढ़ गया है। मैंने कभी नहीं सुना था कि लोग रात के खाने में पिज्जा खा रहे हैं। दाल,सब्जी,रायता,चावल,रोटी और सलाद वाली परंपरागत थाली के लिए जगह कम हो रही है। इसकी एक वजह वक्त की कमी भी है। होम-डिल्वरी सुविधा ने भी रसोईघर से दूरी बढ़ा दी है।
दूसरी ओर जीवनशैली बीमारियां बढऩे से कुछ लोग बिना कीटनाशक वाला जैविक खाना ही खाना चाहते हैं। ऐसे समुदाय बढ़ रहे हैं जो परंपरागत बीजों, और भोजन को बढ़ावा दे रहे हैं। महानगरों में ऐसे समुदायों की बाकायदा बैठकें और वर्कशॉप होती हैं। इन्ही सालों में अब मध्यम वर्ग की हैसियत वाले बाजारों में भी विदेशी सब्जियां मिलने लगी हैं। लाल-पीली शिमला मिर्च, ब्रोकली, बेबीकॉर्न, स्वीट-कॉर्न, सोया पनीर आदि। फलों में किवी, विदेशी खरबूजा, अरब देशों की खजूर और ऐवोकाडो जैसे फल आसानी से दिख जाते हैं। इनके अलावा चाइनीज और थाई भोजन आदि में इस्तेमाल होने वाले मसाले भी आसानी से मिलने लगे हैं। आज देखें तो हमारी रसोई में परंपरागत मसालों में जीरा के अलावा किसी मसाले का ज्यादा प्रयोग नहीं होता है। ठेठ गांवों को छोड़ दें तो मुझे नहीं लगता कि अब लोग लौंग के धुंए का छौंक लगाते हैं। कुल मिलाकर जीरा बचा है भारतीय नमकदानी में। ऐसा कौन सा मसाला नहीं है जो बाजार में नहीं मिल रहा। राजमा, शाही पनीर, बिरयानी, चिकेन, मटन न जाने क्या-क्या। इससे भी एक कदम आगे दाल, सब्जी, स्नैक्स सब रेडी टू ईट (फटाफट खाद्य)मिलने लगे हैं। लाओ और गरम करो। ऐसी चपातियां मिलने लगी हैं जिन्हें कई दिन तक फ्रीजर में रखा जा सकता है। मुझे याद है हमारे घर में हमारी मां जब बिरयानी बनाती थी तो आसपास के दस घरों में खुशबू फैल जाती थी। वह खुद सिलबट्टे पर मसाले पीसा करती थीं। कुछ चीजें खत्म हो गई हैं और हम उनका इस्तेमाल भी नहीं जानते। नई-नई फूड चेन खुल गई हैं, जहां युवाओं का जमावड़ा लगा रहता है। हम नींबू पानी, लस्सी, कांजी और सत्तू जैसे परंपरागत पेयजलों की बजाय एनर्जी ड्रिंक पीने लगे हैं।
शाइम कुरैशी
भारत में रेडिसन में मास्टर शेफ और दुबई के मिलेनियम एंड कॉपथॉम होटल में शेफ दि क्यूसिन