नई दिल्ली। विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने व्यवस्था के प्रश्न के नाम पर यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि गत छह और आठ अप्रैल को दो समाचार पत्रों में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के हवाले खबर दी थी कि वर्ष 2010 से 2014 के बीच राज्यसभा चैनल पर 1700 करोड़ रूपए खर्च किए गए हैं। उन्होंने कहा कि यह खबर पूरी तरह से तथ्यहीन है क्योंकि न तो कैग ने इस तरह की कोई रिपोर्ट दी है और न ही इस अवधि में इस चैनल पर इतना खर्च हुआ।
आजाद ने कहा कि इस अवधि के दौरान राज्यसभा चैनल पर करीब 146 करोड़ रूपए खर्च हुए। उन्होंने कहा कि राज्यसभा चैनल की स्थापना करने का निर्णय सभापति की अध्यक्षता वाली सामान्य उद्देश्य वाली समिति ने किया था। लिहाजा यह पूरे सदन का फैसला था। उन्होंने कहा कि इस खबर के जरिए पूरे सदन की छवि खराब की गई है। उन्होंने कहा कि इस मामले में उन सहित 60 हस्ताक्षर वाला एक विशेषाधिकार हनन नोटिस दिया गया है। उसे स्वीकार कर चर्चा कराई जानी चाहिए। जदयू के शरद यादव ने विशेषाधिकार का नोटिस स्वीकार करने का अनुरोध करते हुए कहा कि इस पर सदन में चर्चा कराई जानी चाहिए। सपा के नरेश अग्रवाल ने इन खबरों के पीछे कोई साजिश होने का आरोप लगाते हुए कहा कि विशेषाधिकार हनन नोटिस पर चर्चा कराने की मांग की, जिसका भाकपा के डी. राजा ने भी समर्थन किया।
संसदीय कार्य मंत्राी एम वेंकैया नायडू ने कहा कि इस मामले में अभी सदन के समक्ष पूरे तथ्य नहीं रखे गए हैं। हमें इस मुद्दे पर विचार करते समय सदन की छवि को ध्यान में रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस खबर में एक चैनल के कामकाज पर मीडिया के एक वर्ग ने अपनी राय रखी है। मीडिया को अपनी राय व्यक्त करने की आजादी है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर गौर करते समय हमें प्रेस की आजादी के पहलू को भी ध्यान में रखना होगा। उन्होंने आसन से अनुरोध किया कि इस मुद्दे पर कोई भी फैसला करते समय इन सब पक्षों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
उपसभापति पी.जे. कुरियन ने कहा कि इस मामले में विशेषाधिकार हनन का नोटिस सभापति को मिला है। सभापति इस नोटिस पर विचार करते समय सभी पहलूओं को ध्यान में रखेंगे।