वह पिछले सात सालों से कोलकाता टीवी और एनई बांग्ला के लिए इंवेस्टिगेटिव प्रोग्राम बना रहे हैं। गौतम बताते हैं ‘जैसे अगर किसी पुलिसकर्मी ने बैज नहीं लगाया है तो हमने उसे शूट कर लिया क्योंकि प्रत्येक पुलिसकर्मी के लिए बैज लगाना अनिवार्य होता है। रात के ड्यूटी में हमने तमाम पुलिस थानों का दौरा किया तो पुलिसकर्मी सोए हुए मिले। हमने वो भी शूट किया, उच्च न्यायालय में मैं दीवारें फांदते हुए हथियार लेकर घुस गया, मेरे साथी ने वो शूट किया। किसी ने न मुझे देखा न रोका। मैं आसानी से बाहर भी आ गया। फिर महिलाओं की कई गिरफ्तारियों में महिला पुलिस नहीं होती। हमने इन तमाम मुद्दों पर बेहतरीन फिल्में बनाईं।‘ इसके अलावा सोनागाची जैसे इलाकों में महिलाओं की तस्करी और कोलकाता में तमाम सामाजिक मुद्दों पर भी गौतम ने फिल्में बनाईं। गौतम इसी प्रकार जनता के मौलिक अधिकारों से जुड़े अहम मुद्दों पर छोटी फिल्में दिखा पुलिस और प्रशासन की नींद तोड़े हुए थे। वह बताते हैं ‘ एक जगह पुलिस एक बूढ़े आदमी की पिटाई कर रही थी, मुझसे रहा नहीं गया। मैं बीच-बचाव के लिए कूद गया तो पुलिस ने उस आदमी को छोड़ मुझे पीटना शुरू कर दिया। वह मुझे बालों से नोचती हुई ले गई। जबकि पुलिस जानती थी कि सब शूट हो रहा है। ‘ गौतम के अनुसार ‘पुलिस वालों ने मुझे देखते ही बोला आज इसे पीटेंगे।’
गौतम पर आज 15 केस हैं। जिनके लिए उन्हें सात अलग-अलग अदालतों में जाना पड़ता है। कमाई का बड़ा हिस्सा अपने खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने में दे रहे हैं। वह कहते हैं ‘मैं अदालतों में जाकर थक गया हूं। मानवाधिकार हनन वाले कार्यक्रमों में जाकर अपनी व्यथा बताते-बताते थक गया हूं बावजूद इसके सच दिखाने का मेरा हौसला कभी पस्त नहीं होता। मैं ऐसा करता रहूंगा।’