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जंजैहली से कमरुघाटी का रोमांचक सफर

जिला मंडी से जंजैहली बस स्टैंड तक की दूरी लगभग 86 किलोमीटर है। किसी भी निजी वाहन या बस द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है। रास्ते में चैलचौक, कांढा, बगस्याड तथा थुनाग आदि छोटे-छोटे स्टेशन आते हैं।
जंजैहली से कमरुघाटी का रोमांचक सफर

कौन नहीं चाहता कि प्रकृति की हसीन वादियों में कुछ समय बिताया जाए। फिर वह स्थान ऐसा हो, जहां आध्यात्मिक शांति के साथ-साथ प्रकृति के खूबसूरत नजारे और रोमांच एक साथ हों तो सोने पे सुहागा जैसी बात होगी। कुछ ऐसे ही अनुभवों से सराबोर करती है हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की जंजैहली घाटी। आजकल यह घाटी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। जंजैहली घाटी ने देशी और विदेषी पर्यटकों के लिए एक अच्छा माहौल तैयार कर लिया है। सैकड़ों की तादात में इस घाटी में पर्यटक आते हैं।

जिला मंडी से जंजैहली बस स्टैंड तक की दूरी लगभग 86 किलोमीटर है। किसी भी निजी वाहन या बस द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है। रास्ते में चैलचौक, कांढा, बगस्याड तथा थुनाग आदि छोटे-छोटे स्टेशन आते हैं। जहां पर आप रूककर इस घाटी के मनोरम दृश्यों से रु-ब-रु होकर अपनी यात्रा में नया जोश भरते हैं। जंजहैली से दो किलोमीटर पीछे पांडव शिला नामक स्थान आता है जहां आप उस भारी भरकम चट्टान के दर्शन कर पाएंगे जो मात्र आपकी हाथ की सबसे छोटी अंगुली से हिलकर अचंभित कर देगी। इस चट्टान को महाभारत के भीम का चुगल (हुक्के की कटोरी में डाला जाने वाला छोटा-सा पत्थर) माना जाता है और इसकी पूजा की जाती है। जब हम जंजैहली पहुंचते हैं तो हम खुद को एक अलग ही दुनिया में पाते हैं। जंजैहली सुंदर और शहर के शोर-शराबे से दूर एक शांत गांव है। जंजैहली बस स्टैंड के साथ ही ढीमकटारू पंचायत की सीमा शुरू हो जाती है। यह पंचायत प्राकृतिक सौंदर्य का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करती है।

जंजैहली से 6 किलोमीटर की दूरी पर एक ौर रमणीक स्थल है भुलाह। जो एक बार देख लें तो भूले से भी न भूले। भुलाह ट्रैकरों, पर्यटकों और श्रद्धालुओं का पहला पड़ाव भी माना जाता है। इसके बाद शिकारी पर्वत की चोटी तक चढ़ाई शुरू हो जाती है। थोड़ा सा मैदानी होने और चारों ओर देवदार, बान आदि के पेड़ों से घिरा होने के कारण इस स्थान की सुंदरता देखते ही बनती है। भुलाह की भौगोलिक सरंचना चंबा जिला के खजियार की याद दिला देती है, जिसे हिमाचल का 'मिनी स्विट्जरलैंड’ भी कहते हैं।

थोड़ा आगे बढ़े तो आता है बूढ़ा केदार। यहां पैदल ही जाना पड़ता है। यह रास्ता चढ़ाई वाला है। किवदंती है कि बूढ़ा केदार में भीम से बचने के लिए नंदी बैल एक बड़ी चट्टान में कूदे और सीधे पशुपतिनाथ मंदिर पहुंचे थे। चट्टान में आज भी बड़ा सा सुराख है, जिसके अंदर जाकर पूजा-अर्चना की जाती है। यहा का शिकारी देवी पर्वत भी प्रसिद्ध है। जंजैहली में इतनी संख्या में पर्यटकों के पहुंचने का एक कारण माता शिकारी देवी के प्रति अटूट आस्था और भक्ति भी है।

भुलाह से आगे शिकारी देवी मंदिर लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर है। शिकारी मंदिर तक पहुंचने के कई रास्ते हैं। लेकिन जंजैहली से मुख्यत: दो रास्ते मंदिर तक जाते हैं। एक बूढ़ा केदार तीर्थ स्थल से तथा दूसरा वाया भुलाह। बड़ी-बड़ी चट्टानों से प्रस्फुटित झरने, कल-कल बहते पननाले का संगीत और लंबे-लंबे देवदार के वृक्षों से सुसज्जित यह नाला सभी को आकर्षित करता है। इस नाले पर गहरे भूरे रंग का जंगली घोंघा पाया जाता है। यह बहुत दुर्लभ है। कल्पना लोक-सा शिकारी देवी मंदिर का स्थान अनोखे अहसास से सराबोर कर देता है। आस-पास की चोटियों से सबसे ऊपर होने के कारण ऐसा लगता है जैसे आकाश झुक गया है। इस जगह की ऊंचाई समुद्रतल 9000 फुट ऊपर है। 

हिमाचल में शिकारी देवी का मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसकी छत नहीं है। कहा जाता है, यह मंदिर पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान बनाया था। एक बात और गौर करने योग्य है कि माता की मूर्तियों पर कभी भी बर्फ  नहीं टिकती। चाहे जितनी भी बर्फ  गिरे यह तुरंत झड़ जाती है। यहां तक आए ही हैं तो कमरुनाग मंदिर और झील देखे बिना मत लौटिए। देवीदहड़ से ही एक रास्ता सीधा कमरुनाग (पांडवों के आराध्य देव) मंदिर तक भी जाता है। शिकारी मंदिर से कमरुनाग मंदिर तक का रास्ता तय करने में 7 से 8 घंटे का समय लग जाता है। इस रास्ते को पैदल ही तय करना पड़ता है। सफर भले ही थका देने वाला हो, मगर रोमांचक सफर में हवा के ठंडे झोंके सारी थकान मिटा देती है।

इसी यात्रा के दौरान सीढ़ीनुमा छोटे-छोटे खेतों के टीलों के ऊपर छोटी-सी पहाड़ी पर व्यवस्थित घर किसी चित्रकार की कल्पना से उभरी हुई तस्वीर मालूम पड़ती है। हम अब टाढ़ाबाई गांव के रास्ते पर चल रहे हैं क्योंकि यह रास्ता समतल और आरामदायक है। अपनी आंखों में ढेर सारा प्राकृतिक सौंदर्य समेट कर, रोमांच से सराबोर जब आप छोटी-बड़ी पहाडिय़ों को लांघकर कमरुनाग मंदिर पहुंचते हैं तो थकान जैसे छुमंतर हो जाती है। पास ही एक झील भी है जिसे 'कमरु झील’ कहा जाता है। इस ऐतिहासिक झील की खास बात यह है कि इस झील में बहुत सा सोना, चांदी, सिक्के अंदर हैं। सदियों से चली आ रही परंपरा के चलते असंख्य भक्त द्वारा यहां श्रद्धानुसार और मन्नत पूरी होने पर फेंके गए हैं।

अब हम जंजैहली की पश्चिम दिशा की तरफ  इसके दूसरे छोर यानी सुंदरनगर की ओर होते हैं। यह 6 किलोमीटर का पूरा रास्ता ही उतराई वाला है। उतर कर हम पहुंचते हैं रोहांडा। रोहांडा में छोटा-सा बस स्टेशन है जो सुंदरनगर-करसोग मार्ग में स्थित है। इस मार्ग द्वारा करसोग, शिमला, काजा, किन्नौर भी जा सकते हैं। यहां से चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय उच्चमार्ग-21 मात्र 35 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां यह धार्मिक और रोमांचक यात्रा संपन्न होती है। हम एक बार फिर मुड़ जाते हैं कांक्रीट के जंगल में गुम हो जाने के लिए। इस सुकून के साथ कि हमने कुछ वक्त प्रकृति के करीब रहकर लंबे वक्त के लिए ऊर्जा इकट्ठी कर ली है।

सही समय

गर्मी का मौसम जंजैहली घाटी को निहारने के लिए अति उत्तम है। लेकिन अप्रैल से अक्टूबर (बर्फ  गिरने से पहले) अंत तक इस वादी में आराम से पहुंचिए।

कैसे पहुंचे

चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग-21 या फिर पठानकोट-जोगिन्द्रनगर मार्ग द्वारा सुंदरनगर या फिर मंडी पहुंचकर यहां से आगे जंजैहली के लिए (86 किलोमीटर) बस या किराये की गाड़ी ले सकते हैं। एक अन्य रास्ता मंडी से ही वाया पंडोह, बाड़ा, कांढा होकर (76 किलोमीटर) भी है जो पहले रास्ते से लगभग 10 किलोमीटर छोटा है लेकिन यह पहले वाले रास्ते से थोड़ा तंग है। इस मार्ग से आप व्यास नदी पर बने पंडोह डैम की खूबसूरती का मजा ले सकते हैं। हवाई मार्ग से भी जंजैहली पहुंचा जा सकता है लेकिन इसके लिए पहले एयरपोर्ट भुंतर (कुल्लू) जाना पड़ेगा फिर वापिस मंडी की ओर आना पड़ेगा।

कहां ठहरें

जंजैहली में लोक निर्माण विभाग, जंगलात महकमे का रेस्ट हाऊस तथा अन्य निजी होटल और सराय भी हैं। इनका किराया भी किफायती है। हर तरह की सुविधा से संपन्न हैं। देर किस बात की है। आइए चलें, दुनिया के शोर-शराबे से दूर जंजैहली घाटी की वादियों में, दो पल सुकून के बिताने।

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