तरुण गोगोई ने असम में चमत्कार किया। वहां स्थिरता लाए, हिंसा कम की। बोडोलैंड की बगावत रोकी। उन्हें अपने साथ शामिल किया। असम एक ऐसा राज्य है जहां जनसंख्या के हिसाब से मुसलमानों की तादाद काफी ज्यादा है। असम में सांप्रदायिक दंगों की संभावना बहुत अधिक है। लेकिन तरुण गोगोई ने 15 साल तक धर्मनिरपेक्ष सरकार चलाई। मोदी ने गुजरात में क्या किया? क्या कभी सुना कि असम में मुसलमानों का कत्लेआम हुआ हो? ऐसे अल्फाजों का इस्तेमाल हुआ हो जिससे दंगा फैले? कभी सुना है कि असम की सघन मुसलमान आबादी वाली बराक घाटी, डूबरी इलाकों में हिंदू-मुसलमान दंगे हुए ?
असम एक ऐसा राज्य है जहां आर्थिक मसले काफी हैं। ये मसले प्रकृति से जुड़े हैं। वहां की ब्रह्मपुत्र नदी स्त्रीलिंग नहीं बल्कि पुरुषलिंग है। हर साल बाढ़ आती है और फैल जाती है। हर साल चंद महीनों के लिए प्रकृति दुश्मत बनती है लेकिन हर साल असम को फिर से बसाने का काम तरुण गोगोई ने सफलता से किया। लोगों को घर बनाकर दिए। रोजगार दिए। गोगोई हर साल असम फिर से बसाते हैं। वहां आर्थिक प्रगति भी हुई है। आईआईटी खोला गया। असम के रिश्ते पड़ोसी राज्यों से अच्छे करना एक मुश्किल राजनीतिक काम है। चाहे वह मेघालय , त्रिपुरा, मणिपुर या अरुणाचल प्रदेश हो, तरुण गोगोई ने हमेशा कहा कि यह पड़ोसी राज्य हमारे साथी राज्य हैं। असम इन सभी से बड़ा राज्य है लेकिन कभी इन पड़ोसी राज्यों ने असम पर यह आरोप नहीं लगाया कि उसने उनपर हावी होने की कोशिश की। पहाड़ी राज्यों की अपनी दिक्कतें भी होती हैं।
एक ओर असम है जिसने हमेशा अरुणाचल प्रदेश से आने वाले शरणार्थियों को शरण दी है। दूसरी तरफ गुजरात है जहां मुसलमानों का कत्लेआम करवाया गया। आदिवासी निकाले गए। गुजरात में कुल 8 फीसदी आदिवासी हैं, जिन्हें गुजरात से निकाल दिया गया। उनकी जमींने छीन कर पूंजीपतियों को दे दी गईं। गुजरात में इन विस्थापित आदिवासियों की गुजरात में 76 फीसदी हिस्सेदारी थी। इसका मतलब है कि उन्होंने असम को देखा ही नहीं। वहां के धर्मनिरपेक्ष माहौल को, आदिवासियों से समझौतों को, पड़ोसी राज्यों से अच्छे रिश्तों को, ब्रह्मपुत्र की बाढ़ में उजड़े हुए फिर से बसने वाले लोगों को। यह सब तरुण गोगोई ने किया है। तरुण गोगोई अपनी जनता के लिए काम करना चाहते हैं, उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया कि चमत्कार करो और दिल्ली भागो। 12 साल के अंदर खुद तो अहमदाबाद से दिल्ली भाग आए। वो भी गुजरात को इतनी बुरी हालत में छोड़कर। हाल ही में गुजरात में पंचायत और निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की हार बताती है कि वहां सरकार ने ठीक काम नहीं किया।
अरे असम की जनता कोई मूर्ख नहीं है जिसने तीन दफा से असम में तरुण गोगोई को मुख्यमंत्री रखा हुआ है। चुनौतियां तो अनेक हैं। राजनीतिक हैं, आर्थिक हैं और सामाजिक हैं लेकिन तरुण ने हर मुश्किल से पार पाया है। उन्हें समर्थन मिलता चला गया। असम में जितने साल तरुण गोगोई मुख्यमंत्री रहे हैं, उससे कम मोदी गुजरात में मुख्यमंत्री रहे हैं। गोगोई जानते हैं कि जनता को कैसे जोड़ना है। उनके यहां अहम की जगह नहीं बल्कि असम की जनता की जगह है। मोदी ने जो सबक बिहार में नहीं सीखा वो सबक असम सिखाएगा उन्हें।
(लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता हैं)
(आउटलुक की विशेष संवाददाता मनीषा भल्ला से बातचीत पर आधारित )