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एक नास्तिक की मौत

अभिजीत रॉय के पिता ने अपना घर और मातृभूमि पूर्वी पाकिस्तान, अब बांग्लादेश, छोडक़र भारत जाने से इन्कार कर दिया था। अभिजीत के पिता ढाका विश्वविद्यालय में फिजिक्स पढ़ाते थे। खुद अभिजीत ने सिंगापुर की नेशनल युनिवर्सिटी में अध्ययन किया। पेशे से इंजीनियर अभिजीत ने एक मुस्लिम महिला रफीदा अहमद 'बॉन्या (वन्या)’ से प्रेम विवाह किया। वह पैदा तो हिंदू हुए थे लेकिन बड़े होकर नास्तिक बने।
एक नास्तिक की मौत

दुनिया को बेहतर जगह बनाने के लिए संघर्ष रोकने की कोई वजह नहीं होती। यह सबक 18 वर्षीय तृषा ने अपने 'बाबा (पिता)’ से सीखा था। जिनकी उसकी मां से तब नैन लड़े थे जब वह छह वर्ष की थी। और जब उसके बाबा की पिछले हफ्ते ढाका में काट-काटकर जघन्य हत्या कर दी गई तो तृषा ने अपनी अश्रुपूरित श्रद्धाजंलि अर्पित करने के लिए फेसबुक का सहारा लेकर वह घुट्टी में पिलाया हुआ सबक दोहराया। तृषा का दिल टूट चुका है। लेकिन उसने लिखा कि उसके पिता की कथा कही जानी चाहिए और साझा की जानी चाहिए।

यह एक असाधारण कथा है। अभिजीत रॉय के पिता ने अपना घर और मातृभूमि पूर्वी पाकिस्तान, अब बांग्लादेश, छोडक़र भारत जाने से इन्कार कर दिया था। अभिजीत के पिता ढाका विश्वविद्यालय में फिजिक्स पढ़ाते थे। खुद अभिजीत ने सिंगापुर की नेशनल युनिवर्सिटी  में अध्ययन किया। पेशे से इंजीनियर अभिजीत ने एक मुस्लिम महिला रफीदा अहमद 'बॉन्या (वन्या)’  से प्रेम विवाह किया। वह पैदा तो हिंदू हुए थे लेकिन बड़े होकर नास्तिक बने। उनका विश्वास था कि धर्म एक वायरस है। वह मानते थे कि मानवतावाद मनुष्यता को एक करता है जबकि धर्म उसे विभाजित करता है।

हालांकि वह अमेरिका जा बसे थे लेकिन उन्होंने धाराप्रवाह बांग्ला में लिखना जारी रखा। पिछले हफ्ते सिर्फ 43 वर्ष की उम्र में अपनी हत्या के वक्त तक रॉय 10 से ज्यादा किताबें लिख चुके थे। हर किताब कट्टरता, अंधविश्वास, और उग्रता पर सवाल उठाती थी और इनके बदले विज्ञान भावना को स्थापित करने की कोशिश करती थी।

रॉय धार्मिक कट्टरता का विरोध करने के लिए मारे जाने वाले पहले और अंतिम बांग्लादेशी नहीं हैं। अहमद राजिब हैदर 2013 में मारे गए थे, उस जगह के कहीं आसपास ही जहां पिछले हक्रते जहां रॉय मारे गए। इससे भी पहले हुमायूं आजाद ढाका में एक जानलेवा हमले से तो बच गए लेकिन अंतत: म्यूनिक में मारे गए थे। हैदर और आजाद दोनों रॉय की वेबसाइट 'मुक्तमोना (मुक्तमन)’ के लिए लिखा करते थे जो कुछ वर्ष पहले बंद कर दी गई। लेकिन रॉय ने अखबारों में लिखना और पुस्तकें निकालना जारी रखा। इनमे से दो किताबें उस पुस्तक मेले में विमोचित की गईं जिसमें रॉय अपनी पत्नी के साथ अपने मार डाले जाने की धमकी के बावजूद उपस्थित हुए।

गौरतलब है कि रॉय ने अपने लिए कभी कोई सुरक्षा नहीं चाही। हालांकि रॉय जैसे कुछ लोग सहिष्णुता के खिलाफ जोरदार आवाज उठाते रहे हैं, धार्मिक कट्टरता बढ़ती जा रही है - अमेरिका के ईसाईयों में, मुस्लिम जगत में और भारत के हिंदुओं में। मुस्लिम जगत में तो कई जगह राज्य स्वयं मुक्त चिंतकों को उत्पीड़ित करता है। ऐसे कुछ बहुचर्चित मामले निम्नलिखित हैं:

  • रऊफ बदाबी को सऊदी अरब में इस्लाम का 'अपमान’ करने के आरोप में कैद करके सार्वजनिक तौर पर कौड़े लगाए गए। उन्हें अब मृत्युदंड सुनाया गया है।
  • ऐसी ही वजहों से मिस्र में करीम अशरफ को जेल भेजा गया।
  • इसी कारण मोरक्को में कासेम-अल-गजाली को भी कैद मिली।

 हालांकि कुछ मुट्टी भर साहसी लोग दुनिया को बेहतर बनाने के लिए लगातार आवाज उठा रहे हैं और संघर्ष कर रहे हैं लेकिन रॉय की हत्या विचलित करने वाला प्रश्न पूछती है। क्या वे एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं ?

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