कश्मीर में हालात जिस तेजी से खराब हो रहे हैं या किए जा रहे हैं, वह बेहद चिंताजनक है। बुरहान वानी नई पीढ़ी की मिलिटेंसी का एक आइकन था। नौजवानों पर उस का खासा प्रभाव था। उसकी मौत ने एक बार फिर कश्मीर में गुस्से और आक्रोश को हवा दे दी है। मौत ने उसके कद को और बढ़ा दिया है। उसे मारने के बजाय अगर उसे गिरफ्तार किया जाता तो हालात उतने नहीं बिगड़ते। कश्मीरियों ने इतना अधिक गुस्सा नहीं भरता और न ही ऐसे फूटता। जिस तरह की संवेदनशीलता की केंद्र सरकार और राज्य सरकार से उम्मीद थी, वह नहीं दिख रही है।
जो हालात बन रहे हैं, वे बेहद डरावने हैं। इतनी हिंसा, खूनरेजी, पूरे समाज को अमानवीय बना देती है। अभी इस समय जो राजनीतिक शून्य है, उसे जनता का विश्वास जीतकर भरने और सेना के असर को कम करने के बजाय उल्टा काम हो रहा है। कश्मीरी नौजवान गुस्से से लबालब है। उसे रोजगार, सम्मान और उससे बातचीत करने की जरूरत है। उसके गुस्से की शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति की राह बनाने की जरूरत है। हो इसका बिल्कुल उल्टा रहा है। ऐसे कदमों में मिलिटेंसी बढ़ेगी। हुर्रियत पहले से अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। कायदे से जो शून्य है उसे भरने के लिए हुर्रियत अगर मजबूत हो तो मिलिटेंसी को जगह नहीं मिलेगी। अगर हुर्रियत कमजोर होगी तो मिलिटेंसी को बल मिलेगी।
ऐसे माहौल रहे तो आने वाले दिन और हिंसा से भरे होंगे। लोगों का गुस्सा राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों पर है। केंद्र पर ज्यादा क्योंकि कश्मीरियों को पता है कि असल ताकत केंद्र के पास है। वही कमांड करती है तमाम चीजों को। एक के बाद एक इस तरह की वारदातें यह भी बता रही है कि कहीं न कहीं ये आइडिया भी काम कर रहा है कि पीडीपी की सरकार के खिलाफ आक्रोष बढ़े। अभी तक जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी इस पर नहीं बोली है। कश्मीर में आक्रोश और गुस्सो को कम करने के लिए जो रणनीतिक पहल जरूरी थी, वह नहीं है।
(भाषा सिंह से बातचीत पर आधारित)