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क्या स्वदेशी लॉबी के शिकार हुए मोदी सरकार के आर्थिक सलाहकार

चीफ इकोनामिक एडवाइजर अरविंद सुब्रमण्यन का इस्तीफा एक सिलसिले का हिस्सा है। असल में देश की आर्थिक...
क्या स्वदेशी लॉबी के शिकार हुए मोदी सरकार के आर्थिक सलाहकार

चीफ इकोनामिक एडवाइजर अरविंद सुब्रमण्यन का इस्तीफा एक सिलसिले का हिस्सा है। असल में देश की आर्थिक नीतियों के मोर्चे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अनुषंगी संगठन स्वदेशी जागरण मंच और वित्त मंत्रालय नीति आयोग में बैठे उदारीकरण के समर्थक एक्सपर्ट्स के बीच रस्साकसी जारी है। इसका पहला नतीजा भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन के कार्यकाल में विस्तार नहीं होने के रूप में सामने आया। वहीं दूसरा घटनाक्रम नीति आयोग पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पानगढ़िया का इस्तीफा इस कड़ी का दूसरा चरण था जबकि अरविंद सुब्रमण्यन का इस्तीफा इसका तीसरा चरण है। हो सकता है आने वाले दिनों में उदारीकरण  की सोच रखने वाले कुछ और नीति निर्धारक इस कतार में जुड़ जाएं।

वैसे अरविंद सुब्रमण्यन अपने नये आइडियाज के लिए भी चर्चित रहे हैं। रघुराम राजन के बाद आर्थिक सर्वे  को नये तरीके से लिखने की उन्होंने कोशिशें की और ट्विन बैलेंस शीट व जैम जैसे फंडे दिये। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने बड़े पैमाने पर सुधारों की भी वकालत की।

यहीं पर पेंच फंसा। उनके पहले अरविंद पानगढ़िया के फैसलों और नीतिगत रुख को लेकर स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री को अपनी आपत्ति दर्ज कराई। उसमें आखिर में दवाइयों की कीमतों को नियंत्रित करने का मुद्दा ज्यादा तूल पकड़ गया और लगातार विरोधी पक्ष के हावी होने के चलते अरविंद पानगढ़िया वापस अपने अध्यापन के काम के लिए कोलंबिया यूनिवर्सिटी चले गये।

उसके बाद अरविंद सुब्रमण्यन अपनी उदारवादी और आर्थिक सुधार समर्थक नीतियों के चलते निशाने पर रहे। यही नहीं जनवरी में नीति आयोग में एक बैठक के दौरान मौजूद लोगों ने उनके प्रेजेंटेशन पर ही सवाल उठाते हुए कह दिया कि भारतीय प्रतिभा के रास्ते और एफडीआई के बिना भी भारत तरक्की कर सकता है ऐसी नीतियों पर आप बात क्यों नहीं करते हैं। आप लोग वाशिंगटन थ्योरी यानी पश्चिमी देशों की आर्थिक नीतियों को ही सभी मुद्दों का हल मानतें है। इस तरह की धारणा भारत के संदर्भ में उचित नहीं है। बेहतर होगा कि हम अपना विकास भारतीय संसाधनों, प्रतिभाओं के जरिये हासिल करें। डिसइनवेस्टमेंट और एफडीआई हर चीज का हल नहीं हो सकता है।

दिलचस्प बात यह है कि भाजपा सांसद और चर्चित नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी अरविंद सुब्रमण्यन के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। उन्होंने उनके द्वारा अमेरिकी सरकार को भारत के खिलाफ सलाह देने का एक पुराना मामला भी उठाया था। हालांकि वित्त मंत्री अरुण जेटली चीफ इकोनामिक एजवाइजर के पक्ष में खड़े होते दिखे। हालांकि अरविंद सुब्रमण्यन को अक्तूबर तक कार्यकाल विस्तार दिया गया था। लेकिन आज जो इस्तीफा सामने आया है उसमें उन्होंने वापस शैक्षिक कार्य में लौटने की बात कही है। यह लगभग उसी तरह का स्पष्टीकरण है जिस तरह की बात अरविंद पानगढ़िया ने कही थी।

 

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