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प्रथम दृष्टि: बड़ी चुनौतियां

सर्वाधिक संसदीय सीटों वाले उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और बंगाल के चुनावी नतीजे ही बहुत हद तक...
प्रथम दृष्टि: बड़ी चुनौतियां

सर्वाधिक संसदीय सीटों वाले उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और बंगाल के चुनावी नतीजे ही बहुत हद तक सत्तारूढ़ और विपक्ष दोनों का भविष्य तय करेंगे

आजादी के बाद देश के संसदीय इतिहास में यह कथन खूब चर्चित रहा है कि दिल्ली में केंद्र की सत्ता की राह लखनऊ से होकर गुजरती है। ऐसा इसलिए कहा गया कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा के सर्वाधिक चुनाव क्षेत्र हैं। 2000 में प्रदेश के पुनर्गठन के बाद भी उत्तर प्रदेश 80 संसदीय सीटों के साथ चुनावी दृष्टिकोण से देश का सबसे प्रभावी सूबा है। उसके बाद 48 सीटों के साथ महाराष्ट्र दूसरे नंबर, 42 सीटों के साथ पश्चिम बंगाल तीसरे नंबर पर और 40 सीटों के साथ बिहार चौथे नंबर पर है। इन चारों राज्यों की लोकसभा में कुल ताकत 210 सांसदों की है।

इन आंकड़ों की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि देश के आम चुनाव में बहुमत पाने के लिए किसी पार्टी या गठबंधन को सिर्फ 272 सीटों पर जीत हासिल करनी है। यानी इन चारों राज्यों की सीटों के अलावा, उसे सरकार बनाने के लिए सिर्फ 62 अतिरिक्त सीटों की जरूररत होती है। 2000 में नए उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उत्तर प्रदेश की पांच और झारखंड राज्य बनने के बाद बिहार की 14 सीटें घट गईं, लेकिन महाराष्ट्र और बंगाल के साथ ये दो बड़े राज्य अपनी संख्याबल के आधार पर अभी भी देश के चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इस बार भी सबकी नजर सबसे पहले 4 जून को इन्हीं राज्यों के चुनाव परिणामों पर रहेंगी।

आम चुनाव 2019 में इन चार राज्यों की कुल 210 में से एनडीए दो-तिहाई से अधिक सीटें जीता, तो भारतीय जनता पार्टी को अपने बलबूते बहुमत प्राप्त हुआ, जिसकी बदौलत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गठबंधन के सहयोगियों पर निर्भर हुए बिना सरकार चला सके और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने जैसे कदम उठा सके। जाहिर है, चुनाव दर चुनाव जिस गठबंधन या पार्टी का इन चार राज्यों में सिक्का चलता है, वही दिल्ली से देश की हुकूमत करता है। इसलिए इस बार भी अगर एनडीए इन ‘बिग ब्रदर’ राज्यों में अपने पिछले प्रदर्शन को बरकरार रख पाता है, तो मोदी के लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का मार्ग बहुत हद तक प्रशस्त हो सकता है, लेकिन क्या वहां इस बार स्थितियां पूर्ववत हैं?

प्रथम दृष्टि, भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती अभी भी बंगाल में मिलती दिख रही है, जहां पार्टी ने पिछले चुनाव में 18 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया था। किसी जमाने में वामपंथियों का अभेद्य किला समझे जाने वाले प्रदेश में माकपा की जगह अब ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का बोलबाला है। भाजपा वहां इस बार तृणमूल, कांग्रेस और वामपंथियों के मत विभाजन की उम्मीद रखकर बेहतर प्रदर्शन करने के लिए मैदान में आई है, लेकिन ममता भी सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर बंगाल में भाजपा का विस्तार रोकने के इरादों के साथ चुनाव प्रचार में डटी हैं। जहां तक बिहार का सवाल है, भाजपा की समस्या पिछले बार के अभूतपूर्व प्रदर्शन को बरकरार रखने की है। पांच वर्ष पूर्व एनडीए ने राज्य की 40 में 39 सीट जीतकर विपक्ष को सकते में डाल दिया। लेकिन, इस बार राजद के नेतृत्व में महागठबंधन को उम्मीद है कि पिछले दस साल में नरेंद्र मोदी से जनता का मोहभंग हो गया है।

महाराष्ट्र में पिछले चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना भाजपा की सहयोगी पार्टी थी, लेकिन अब उद्धव की पार्टी बिखर चुकी है और उसके अधिकांश विधायक और नेता भाजपा का दामन थाम कर वहां सरकार चला रहें हैं। इस चुनाव में उद्धव भी कांग्रेस और शरद पवार की मदद से जोरदार वापसी के लिए प्रयासरत हैं, जबकि भाजपा को उम्मीद है महाराष्ट्र में उनके गठबंधन को बड़ी कामयाबी मिलेगी, जो शायद बिहार और बंगाल में नुकसान होने की स्थिति में भरपाई कर सकेगी। हालांकि भाजपा की सबसे बड़ी उम्मीद सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में ही टिकी है, जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाई। पिछले सात साल में योगी आदित्यनाथ की छवि एक कड़े प्रशासक के रूप में उभरी है और इस चुनाव में उनकी मांग उनके अपने प्रदेश के बाहर भी है।

हालांकि उत्तर प्रदेश में विपक्ष का फोकस मोदी को हटाने पर है, न कि योगी पर।  मोदी को सत्ताच्युत करने का लक्ष्य बनाकर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन में चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन बहुजन समाज पार्टी के अकेले चुनाव लड़ने से चुनाव त्रिकोणीय हो गया है। इस कारण भाजपा-विरोधी मतों के बंटने के आसार दिख रहे हैं, भले ही अधिकतर सियासी जानकार मायावती को इस चुनाव में गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।

एनडीए के लिए इन चार राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करना इसलिए भी जरूरी है कि दक्षिण में तमिलनाडु जैसे बड़े राज्यों में उसकी उपस्थिति नगण्य है। कुलमिलाकर, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और बंगाल ऐसे राज्य हैं, जिनके परिणामों पर बहुत हद तक सत्तारूढ़ दलों और विपक्ष दोनों का चुनावी भविष्य टिका है। इसलिए आउटलुक का यह अंक इन्हीं ‘निर्णायक’ प्रदेशों में हो रहे चुनावों के आकलन पर है।

 

 

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