इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का जिन्न बोतल में बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा। चाहे जितनी शिद्दत से उसे बंद करने की कोशिश की जाए, उतनी ही मुस्तैदी से बाहर निकल आता है, खासकर हर चुनाव के बाद। इस बार का लोकसभा चुनाव भी अपवाद नहीं है। उम्मीद थी कि 2024 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सहित किसी भी पार्टी के अपने बलबूते स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने और विपक्ष के सम्मानजनक प्रदर्शन के बाद ईवीएम से जुड़े वर्षों पुराने विवाद खत्म हो जाएंगे और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में महती भूमिका निभाने के लिए इस क्रांतिकारी मशीन की शान में सभी राजनैतिक दल में कसीदे पढ़ेंगे। लेकिन, अफसोस, ऐसा न हो सका।
महाराष्ट्र में मतगणना के दौरान घटित एक वाकये के कारण मशीन पर फिर से सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। दरअसल मुबई उत्तर-पश्चिम सीट पर कांटे की टक्कर में शिवसेना (एकनाथ शिंदे) के उम्मीदवार ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी उद्घव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के उम्मीदवार को मात्र 48 वोटों से शिकस्त दी। पराजित उम्मीदवार ने इस निर्णय के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है। इस बीच यह आरोप लगा कि निर्वाचित उम्मीदवार के एक रिश्तेदार ने मतदान केंद्र के भीतर गैर-कानूनी ढंग से मोबाइल फोन का उपयोग किया और कथित रूप से ओटीपी के जरिए ईवीएम को अनलॉक और हैक करने की कोशिश की। मत गणना अधिकारी ने एफआइआर दर्ज कराई और मोबाइल को फॉरेंसिक टेस्ट के लिए भेज दिया गया है। इस घटना के बाद ईवीएम की तरफ विपक्ष ने अपने तमाम असलहे फिर से छोड़ दिए। कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने ईवीएम को ‘ब्लैक बॉक्स’ कहा, जिसकी जांच की अनुमति नहीं है। उनके अनुसार, इसके कारण हमारी चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर गंभीर चिंताएं जताई जा रही हैं।
उद्धव की पार्टी ने भी मतदान केंद्र में घटी कथित घटना के सीसीटीवी फुटेज को सार्वजानिक कराने मांग की। इस विवाद को बहुचर्चित अमेरिकी उद्योगपति एलॉन मस्क के एक ट्वीट ने भी तूल दे दिया। इलेक्ट्रिक कार टेस्ला के निर्माता ने कहा कि चुनावों में ईवीएम का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि किसी आदमी या आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के जरिए इसके हैक होने की संभावना है। जवाब में भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि मस्क का दावा बेबुनियाद है। उन्होंने कहा कि मस्क का सोचने का नजरिया अमेरिका या अन्य स्थानों पर लागू हो सकता है जहां इंटरनेट से जुड़ी वोटिंग मशीन बनाने के लिए रेगुलर कंप्यूटिंग प्लेटफार्म का उपयोग होता है, लेकिन भारत का ईवीएम पूरी तरह सुरक्षित है क्योंकि यह किसी भी नेटवर्क या मीडिया से अलग है। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में उन्हें मस्क के लिए टयूटोरियल चलाने में खुशी होगी।
भारत में वैसे तो चुनावों के दौरान ईवीएम के प्रयोग करने की मांग सबसे पहले सत्तर के दशक में उठी थी, लेकिन इसका पहला प्रयोग नब्बे के दशक में शुरू हुआ। 2004 के बाद देश में होने वाले हर चुनाव में ईवीएम का प्रयोग हो रहा है, लेकिन विवादों से इसका शुरू से ही चोली-दामन का नाता रहा है। तकनीक के जानकारों में इस बाबत कभी एक राय नहीं रही है कि क्या कोई सियासी दल या चुनाव लड़ रहा उम्मीदवार परिणाम को अपने पक्ष में करने के लिए ईवीएम के साथ छेड़छाड़ कर या करवा सकता है? गौरतलब है कि राजनैतिक दलों की राय इस संदर्भ में बदलती रहती है। आम तौर पर जब कोई दल चुनाव जीत जाता है तो उसके पास ईवीएम से कोई शिकायत करने का कारण नहीं होता, लेकिन वही दल अगर चुनाव हार जाता है तो उसे वोटिंग के इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से हजारों शिकायतें होने लगती हैं। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की प्रक्रिया खारिज करने की मांग उस वक्त खास तौर पर जोर पकड़ने लगती है जब कोई गठबंधन या दल प्रचंड बहुमत से चुनाव जीत जाता है।
इस चुनाव के पूर्व हुए चार आम चुनावों में यूपीए और एनडीए ने दो-दो बार जीत हासिल की। यूपीए के दौर में भाजपा आरोप लगा रही थी, तो पिछले दो चुनावों में भाजपा के अपने दम पर बहुमत हासिल करने के कारण ईवीएम के साथ छेड़छाड़ के आरोपों की झड़ी लग गई, लेकिन हर बार चुनाव आयोग ने आरोपों को खारिज किया। यह सर्वविदित है कि ईवीएम की व्यवस्था लागू होने के पूर्व किस तरह की अनियमितताएं सामने आती थीं और चुनाव की पूरी प्रक्रिया संपन्न होने में कई दिन लग जाते थे। इसलिए आज के दौर में अगर चुनावी प्रक्रिया को किसी भी तरह से और बेहतर किया जा सकता है तो सभी दलों की सहमति से उसे जरूर किया जाना चाहिए, लेकिन बिना किसी पुख्ता सबूत के पूरी प्रक्रिया पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा करना उचित नहीं है। अगर इस देश का मतदाता किसी के पक्ष या विरोध में अपना मत डालने का मन बना लेता है तो ईवीएम में छेड़छाड़ कर अंतिम परिणाम प्रभावित नहीं किये जा सकते हैं। कम से कम इस बार के चुनाव परिणामों से तो यही लगता है।