बीते 20 फरवरी को पेरिस में हुई फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की बैठक में पाकिस्तान को तगड़ा झटका लगा। एफएटीएफ ने पाकिस्तान को मौजूदा ग्रे लिस्ट में बाहर नहीं किया। एफएटीएफ के इस निर्णय से पाकिस्तान की उन आशाओं को गहरा धक्का पहुंचा, जिसमें उसे उम्मीद थी कि वह इस सूची से बाहर आ जाएगा। अपनी स्थिति सुधारने के लिए पाकिस्तान लगातार दावा करता रहा है कि वह आतंकवादी लिंक और आतंकी फंडिंग में लिप्त अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अतिरिक्त श्रम कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अपने प्रयासों को बढ़ावा देने की पाकिस्तान की कूटनीति बुरी तरह विफल रही क्योंकि, तुर्की के अलावा दूसरे किसी देश ने पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया।
पाकिस्तान के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक चीन की भूमिका थी, जो शायद पाकिस्तान की उम्मीदों के विपरीत थी। यह जानते हुए भी कि पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में बना ही हुआ है, चीन, भारत, सऊदी अरब, अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देशों के साथ हो लिया। यह संयोग ही था कि एफएटीएफ चेयरमैन, जियांगमिन लिन इस बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे। लिन ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि उसने आतंकी फंडिंग या आतंकी खतरे से जुड़े अन्य कामों को रोकने के लिए पर्याप्त काम नहीं किया है। इस बैठक का कठोर सार यह भी है कि पाकिस्तान को इस ग्रे लेबल से छुटकारा पाने के लिए जून 2020 तक एफएटीएफ की प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है।
बदली हुई नई परिस्थिति ने हमारे जैसे कई निष्पक्ष मित्रों को आश्चर्यचकित किया। चीन ने भी स्पष्ट रूप से अपना रुख बदल लिया और दूसरे देशों के समर्थन में आ गया जिससे पाकिस्तान की यथास्थिति बनी रही। हालांकि चीन, पाकिस्तान को तसल्ली देने में भी पीछे नहीं रहा। यह तब दिखाई दिया जब 20 फरवरी, को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी द्विपक्षीय रणनीतिक सहकारी साझेदारी को और मजबूत करने के लिए सहमति व्यक्त की। इसी कड़ी में, चीन ने आतंक रोकने के लिए पाकिस्तान के भारी प्रयास की भी प्रशंसा की।
ऐसा लगता है कि चीन ऐसा लगता है कि चीन टैरर फंडिंग जैसे संवेदनशील मुद्दे पर पाकिस्तान का खुलकर समर्थन करना नहीं चाहता है। संभवतः वह इस मामले पर अंतरराष्ट्रीय सहमति का हिस्सा बनना चाहता है। यही कारण है कि हम देखते हैं कि एफएटीएफ को ध्यान में रखते हुए, चीन ने अपने पुराने संबंध खराब होने के डर से पाकिस्तान के साथ अपनी गर्मजोशी कम नहीं की है। इसलिए उसने डैमेज कंट्रोल किया, लेकिन तब तक क्षति हो चुकी थी। भारतीय डिप्लोमेसी ने सभी देशों के साथ मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ जनमत बनाने के लिए बहुत मेहनत की। अधिकारी यह समझाने में सफल रहे कि पाकिस्तान आतंकी गतिविधि को सहयोग करता है। इसके अलावा पाकिस्तान का हाफिज सईद और उसके सहयोगियों को गिरफ्तार करने, सजा देने वाला खेल भी नहीं चल पाया क्योंकि बहुत सी दूसरी बातें भी थीं जो एफएटीएफ की जरूरतों को पूरा नहीं करती थीं। हाफिज सईद की दोष पर 22 फरवरी को पाकिस्तान के अखबार ‘डॉन’ में एक बड़ा दिलचस्प लेख छपा। इसे प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी और स्तंभकार परवेज हुडभॉय ने लिखा था। परवेज ने लिखा, एंटी टेरर कोर्ट ने हाफिज को सजा इसलिए नहीं दी कि वो इसके हकदार थे बल्कि इसलिए दी कि यह उस डिजाइन का हिस्सा था जिससे पाकिस्तान को एफएटीएफ द्वारा ब्लैकलिस्ट किए जाने में मदद मिल सके। यहां तक कि सुरक्षा विश्लेषक ने भी हाफिज की सजा की टाइमिंग पर सवाल उठाया है।
इस घटनाक्रम में एक महत्वपूर्ण बात यह हुई कि सऊदी अरब भी पाकिस्तान के खिलाफ चला गया। पाकिस्तान हमेशा दावा करता रहा है कि रियाद उसका सच्चा दोस्त है। लेकिन यह गलत साबित हुआ। सऊदी की आर्थिक मदद के चलते ही पाकिस्तान सऊदी के प्रभुत्व के अधीन है। यदि ऐसे में सऊदी हाथ खींचता है, तो पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो सकती है।
एफएटीएफ की घोषणा के बाद चीन के बदले हुए रुख को देखते हुए, पाकिस्तानी हुकुमत और मीडिया सकते में है क्योंकि पाकिस्तानियों के लिए यह विश्वास करना मुश्किल है कि चीन उनसे दूर जा सकता है। कुछ लोग तो पाकिस्तान पर शुतुरमुर्ग की तरह व्यवहार करने का आरोप भी लगा रहे हैं। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि जून 2020 में एफएटीएफ की सूची से बाहर आने के लिए पाकिस्तान में और नाटकीयता देखने को मिल सकती है। इस बीच पाकिस्तान के विदेश मंत्री, शाह महमूद कुरैशी ने तालिबान को अफगानिस्तान के साथ सहमति बनाने में मदद करने के लिए तथाकथित रचनात्मक भूमिका के बारे में याद दिलाया है। यह रिमाइंडर स्पष्ट रूप से अमेरिका को सिर्फ यह बताने के लिए है कि पाकिस्तान एफएटीएफ प्रतिबंधों से बाहर आने में मदद करे।
जाहिर सी बात है पेरिस का यह निर्णय पाकिस्तान को महीनों परेशान करेगा और इससे उबरने में उसे वक्त लगेगा। विशेषज्ञ इसमें एक और महत्वपूर्ण पहलू यह उजागर कर रहे हैं कि इससे पाकिस्तान की दोहरी नीति भी सबके सामने आएगी। भारत में चल रहे एनआरसी, सीएए और एनपीए के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों पर पाकिस्तान ने सहयोग का रुख अख्तियार किया है। जबकि उनके खुद के देश में नेशनल डेटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी (एनएडीआरए) के कठोर नियमों ने असंख्य अफगानी शरणार्थियों के जीवन में भारी परेशानी पैदा की है। एक अनुमान के मुताबिक 2017 में 3,57,000 अफगानी नागरिकों को पाकिस्तान ने शरण देने से इनकार कर दिया था। तब से अफगानी लोगों को देश से बाहर धकेलने की प्रवृत्ति आज तक जारी है। यहां यह जानना प्रासंगिक है कि पाकिस्तान उन 30 देशों में से एक है जो नागरिकता के अधिकार तो प्रदान करता है, लेकिन ठीक इसी के साथ यह कानून पाकिस्तान में पैदा हुए किसी अफगानी बच्चे को नागरिकता से वंचित रखता है। यहां महत्वपूर्ण यह है कि 2018 में इमरान खान के सत्ता संभालने के तुरंत बाद, उन्होंने वादा किया था कि उनकी सरकार उन अफगान नागरिकों को भी नागरिकता देने के बारे में विचार करेगी, जिनका जन्म और पालन पोषण पाकिस्तान में हुआ है। हालांकि आइएसआइ के दबाव में इस घोषणा को वापस ले लिया गया। जानकार सूत्रों का मानना है कि पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर अफगान शरणार्थियों का विस्थापन, पाकिस्तान में रूसियों के खिलाफ चल रही बरसों पुरानी जिहाद का नतीजा है, जिसके कारण पूर्वी पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों का निर्मम दमन हुआ जिसके कारण बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
यहां यह बताना उचित है कि नागरिकता कानूनों को लागू करने के लिए प्रत्येक देश के पास अपने आंतरिक सुरक्षा प्रतिमानों को परिभाषित करने के लिए विशेषाधिकार है और भारत पर भी यही नियम लागू होता है। भारत नागरिकता संबंधी कानूनों को अपने अधिकारों के भीतर ही प्रवर्तन से जुड़े डेटा को एकत्र कर रहा है, समेट रहा है और विश्लेषण कर रहा है। इस संदर्भ में अच्छा हो यदि पाकिस्तान धर्मनिरपेक्षता और नागरिकता के अधिकारों पर भारत को सलाह देने से पहले अपनी आत्मा की खोज करे।
इसके अलावा पाकिस्तान को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह पूरी तरह से धार्मिक कट्टरता के अधीन है। आतंकवाद हमेशा राज्य द्वारा पोषित धार्मिक अतिवाद के ऐसे रुझानों से लाभान्वित हुआ है, फिर चाहे वह तानाशाह परवेज मुशर्रफ ही क्यों न हो जिन्होंने अपनी छवि अपनी बहुत ही उदार छवि गढ़ी थी।
इस बीच भारत अपने एजेंडे पर बना हुआ है। अब यह स्वीकार किया जा सकता है कि एफएटीएफ पाकिस्तान पर कठोर रूप से कम हो रहा है। अब इस बात की संभावना है कि भात की अमेरिका से नजदीकी देखते हुए पाकिस्तान भारत में सॉफ्ट टारगेट को निशाना बनाने के लिए नई योजना बनाएं। चूंकि क्योंकि पाकिस्तान को लग रहा है कि भारत में नागरिकता कानून और आंतरिक विवादास्पद विचारों पर बहस चल रही है, इसलिए उसे विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा की सेंध लगाना आसान होगा। पाकिस्तान में दिख रही शांति अनिष्ट की सूचक है क्योंकि रावलपिंडी के केन्टोनमेंट इलाके और इस्लामाबाद के राजनैतिक हलकों में हताशा साफ झलक रही है।
(लेखक रिटायर्ड आइपीएस अधिकारी, सुरक्ष विश्लेषक और मॉरिशस के प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं। व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)