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आतंकवाद : मुस्लिम स्‍कालर्स मॉस काउंसलिंग पर विचार करें

आतंक पर समूची दुनिया के मुस्लिम स्‍कॉलर्स मास काउसलिंग पर विचार करें। उसकी शुरुआत करें। ऐसा करके ही मुस्लिम युवाओं को इस्‍लाम के सच और झूठ का अंतर समझाया जा सकता है। सीरिया और टर्की के नरसंहार के बाद आईएसआईएस जिस तरह से एकजुट होकर पूरी दुनिया को अपने आगोश में ले रहा है, वह आने वाले समय में बहुत भयावह हो सकता है।
आतंकवाद : मुस्लिम स्‍कालर्स मॉस काउंसलिंग पर विचार करें

जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में अमेरिका ने परमाणु बम फेंक सभ्‍यता को तहस-नहस करने की कोशिश की। लेकिन वहां के लोगों ने बाद में इसके प्रतिकार स्‍वरुप हिंसा को अख्तियार नहीं किया बल्कि अपनी मेहनत सेे उस जख्‍म को भूलने की कोशिश की। नतीजा जापान आज मेहनत और र्इमानदारी का पर्याय माना जाता है। जापान ने विक्टिमाइजेशन की कोई खतरनाक तस्‍वीर पेश नहीं की। आईएसआईएस भी विक्टिम यानी प्रताड़ना की एक उपज है। धर्म के नाम पर मिल रही प्रताड़ना को आधार बनाकर वह आज खूंखार एकता का पर्याय बन गया है। समूची दुनिया के मुस्लिम युवा जन्‍नत के नाम में इससे जुड़ने की मंशा पाले हुए हैं। दुनिया में 54 देशों में इस्‍लामिक सत्‍ता है। लिहाजा मुस्लिम स्‍कॉलर, मुस्लिम संस्‍थाएं और खासकर मौलवी अब अगर सामने नहीं आए तो भविष्‍य की तस्‍वीर बेहद शर्मनाक होने वाली है। वह मानवता पर कलंक हो सकती है। मुस्लिम युवाओं को हर हाल में समझाना होगा कि आईएसआईएस में शाामिल होकर इस्‍लाम की शांति नहीं मिल सकती।

आतंक को अपराध की श्रेण्‍ाी में लाने के लिए एक सार्थक बहस अावश्‍यक है। ऐसी गतिविधियों के पीछे अांतकियों की जघन्य मानसिकता को गहनता से जानना और समझना होगा। टेक्नोलॉजी के इस दौर में आतंकी सोशल प्लेटफार्म के जरिये आपस में जुड़ रहे हैं। आतंकियों को कुख्‍यात होना ज्‍यादा पसंद है। वह बेखौफ होकर लोगों को मारने पर अमादा हैं। मीडिया और सोशल मीडिया को भी अपनी जिम्मेदारी सही तरीके से समझनी होगी और अातंकियों को हीरो बनाने से बाज आना होगा। हाल ही में कश्‍मीर में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए हिज्‍बुल कमांडर बुरहान वानी को शहीद बताया जा रहा है। जो सरासर अनुचित है। मीडिया को आतंकियों की नापाक भूमिका पर संवेदनशील होकर ही लिखना होगा।  इराक, अफगानिस्‍तान, टर्की, सीरिया, पाकिस्‍तान सहित अन्‍य मु‍स्लिम देश आतंक से ग्रसित हैं। यहां के व‍िक्टिमाइजेशन को समझने की जरुरत है। अन्‍याय और अत्‍याचार के बाद यहां का अधिकांश युवा खुद दुनिया को आतंक के जरिए थर्राने की कोशिश में लगा है।

इन प्रताड़ित लोगों से विचार-विमर्श आवश्‍यक है। आर्मी पुलिस की बजाए पीपुल्‍स पुलिस भी काउंसलिंग में बेहतर सहयोग कर सकती है। इतिहास में कहते हैं कि तलवारों के बल पर मुस्लिम धर्म का फैलाव हुआ है। बहुत कम समय मेंं दुनिया के अधिकांश देशों में इस धर्म ने अपनी सत्‍ता स्‍थापित कर ली। जमात-ए-इस्‍लामी के संस्‍थापक मौलाना मौदूदी कहते हैं कि दुनिया दो भागों में बंटी हुई है। एक वो जो अल्‍लाह को मानते हैं, दूसरे वो जो शैतान को मानते हैं। मौदूदी साहब को ऐसा कहने के बजाय दुनिया को इंसानियत के नाम पर बांटने की तरकीब सोचनी चाहिए। इस्‍लाम के जानकार, मौलवी और मुस्लिम स्‍कॉलरों से ही पूरी दुनिया को अब आस है।   

 

 

 

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