बिना समझे जो प्रतिक्रियाएं आ रही है वह चिंताजनक भी है। क्योंकि प्रतिक्रिया देने वाला एक पहलू को देख रहा है। अगर हर पहलू को जानकर कुछ टिप्पणी किया जाए तो वह देशहित में भी उचित होगा।
जम्मू-कश्मीर समस्या के दो पहलू हैं। पहला पहलू विदेश नीति यानी भारत की पाकिस्तान नीति से जुड़ा हुआ है दूसरा पहलू भारत के अंदरुनी मामले से जुड़ा है। कश्मीर भारत का एक राज्य है जिसकी कुछ भूमि पाकिस्तान ने अवैध तरीके से कब्जा कर रखी है। आजादी के बाद पाकिस्तान ने इस जमीन को ताकत के बल पर कब्जा किया लेकिन पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य में कब्जा करने में कामयाब नहीं हुआ। उसके बाद 1965 में पाकिस्तान ने फिर प्रयत्न किया उसमें फिर विफल हुआ। 1972 में शिमला समझौते के अंतर्गत यह तय हुआ कि जम्मू-कश्मीर की समस्या का हल वार्ता के जरिए शांतिपूर्वक ढंग से होगा। पाकिस्तान ने एक बार फिर 1990 के दशक में आतंकवाद का सहारा लेकर पाकिस्तान ने कश्मीर के हड़पने के उद्देश्य की पूर्ति करनी चाही। इससे यह साबित होता है कि पाकिस्तान कभी भी वार्ता के जरिए जम्मू-कश्मीर की समस्या का हल ढूढऩे में रूचि नहीं दिखाई।
कश्मीर की जो दूसरी समस्या है अंदरुनी है। जैसे कि कई राज्यों में आंदोलन चले हैं उसी प्रकार जम्मू-कश्मीर में भी हुआ है। भारत की अंदरुनी समस्याओं का हल शक्ति के प्रयोग के साथ-साथ राजनैतिक रूप से भी करना पड़ता है। क्योंकि आज आतंकवाद, नक्सलवाद या किसी तरह की जो हिंसा हुई है या हो रही है उसको रोकने के लिए राजनैतिक इच्छाशिक्त और बल का प्रयोग किए बिना दूर नहीं किया जा सकता। जम्मू-कश्मीर अन्य राज्यों से भिन्न है क्योंकि पाकिस्तान ने यहां जो हस्तक्षेप किया भारत उस हस्तक्षेप को रोकने में कामयाब नहीं हो पाया। इसलिए जम्मू-कश्मीर की अंदरूनी समस्या के हल के लिए पाकिस्तान के हस्तक्षेप को रोकना आवश्यक है।
कई विशेषज्ञ यह मानते हैं कि कश्मीर की अंदरुनी समस्या का समाधान तभी हो सकता है जब पाकिस्तान से समझौता हो। लेकिन मैं इस मत से सहमत नहीं हूं। जिस देश की वजह से समस्या उत्पन्न हुई हो वह कभी समस्या का समाधान नहीं चाहेगा।
पाकिस्तान हमेशा कश्मीर को विवादित बनाए रखना चाहता है। बुरहान की मौत के बाद जो माहौल बना उसमें पाकिस्तान ने और तनाव बढ़ाने की कोशिश की और इस घटना को गैर कानूनी तरीके से की गई हत्या (एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग) करार दिया। इस पूरे घटनाक्रम में पाकिस्तान आग में पानी नहीं बल्कि घी डालने का काम कर रहा है। क्योंकि पाकिस्तान दोहरा रहा है कि कश्मीर का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया जाएगा। इससे एक बात तो साफ तौर पर जाहिर हो रही है कि पाकिस्तान चाहता नहीं है कि कश्मीर का मुद्दा सुलझे और विवादित बयान देकर मामले को उलझाए रखना चाहता है।
भारत को कश्मीर के अंदरुनी समस्या का हल खुद ढूढऩे का प्रयत्न करना चाहिए। कश्मीर के जो वर्तमान हालात हैं सरकार ने सभी राजनीतिक दलों से बात करने का प्रयत्न किया वह सराहनीय है। सभी राजनीतिक दल भी कश्मीर की समस्या को राष्ट्रीय समस्या के रूप में देख रहे है। यह प्रशंसनीय है।
लेकिन जो कट्टरपंथी विचारधाराएं कश्मीर में जोर पकड़ रही है वे केवल आजादी के लिए नहीं है बल्कि उसके पीछे धार्मिक वजहें भी हैं और वहीं विचारधारा पाकिस्तान और अफगानिस्तान में उपद्रव कर रही हैं। इसको रोकने की आवश्यक्ता है। इस कट्टरपंथी विचारधारा को रोकने के लिए भारत के जो इस्लामी स्कॉलर हैं उनको भी भूमिका अदा करनी होगी। कश्मीर में एक चुनी हुई सरकार है और वहां के जो राजनीतिक दल और बुद्घिजीवी हैं उनको भी वार्ता के जरिए इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए। तभी जम्मू-कश्मीर राज्य में अमन, चैन और शांति लौटेगी।
(लेखक भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे हैं विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान डेस्क के प्रमुख भी रहे हैं)