Advertisement

'अपराध और असहिष्णुता की मारी-उत्तर प्रदेश की नारी'

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के 3 साल पूरे हो चुके हैं। वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान...
'अपराध और असहिष्णुता की मारी-उत्तर प्रदेश की नारी'

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के 3 साल पूरे हो चुके हैं। वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए बड़े-बड़े वादे किए थे। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे को प्रमुखता से अपनी चुनावी जनसभाओं में उठाया था। लेकिन 3 साल बाद महिलाओं के विरुद्ध अपराध की घटनाएं अक्सर अखबार की सुर्खियां बटोर रही हैं। चाहे बलात्कार हो या महिलाओं के खिलाफ कोई अन्य अपराध हर मामले में उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय औसत से आगे नजर आता है। यही नहीं महिलाओं के खिलाफ अपराध की संख्या में साल दर साल बढ़ोतरी हो रही है। देश में एक तिहाई दहेज हत्या तो उत्तर प्रदेश में हो रही हैं। इसके बावजूद सरकार हाथ पर हाथ रख कर बैठी है, यह चिंता का विषय है।

उत्तर प्रदेश में महिलाओं की स्थिति समझने के लिए हमें तीन बिंदुओं को समझना होगा। पहला सामाजिक ताना-बाना, दूसरा प्रदेश में महिलाओं के प्रति अपराध की स्थिति और तीसरा महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र मेंं प्रगति और उनके स्वास्थ्य की स्थिति। प्रदेश के सामाजिक ढांचे में आज भी महिला का स्थान दोयम दर्जे के नागरिक का है। महिलाओं को दहेज प्रथा, गर्भ / भ्रूण हत्या, पारिवारिक हिंसा और पुरुष के वर्चस्व का शिकार होना पड़ता है। पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के पश्चात भी किसी भी पद के लिए चुनी गई महिला को अपने अधिकार और कर्तव्य के निर्वहन हेतु पुरुषों के निर्देश का पालन करना होता है। आज भी समाज में बड़े तबके में बेटी के जन्म का समारोह नहीं मनाया जाता। सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे 2014 के अनुसार प्रदेश में 10 वर्ष से 19 वर्ष की आयु की करीब 21 लाख बच्चियों की शादी कर दी जाती है। प्रदेश में लड़कियों के विवाह की औसत आयु 19.4 वर्ष है। इन किशोरियों के करीब 10 लाख पैदा हुए बच्चों में से 10.1% बच्चे काल के गाल में समा गए। साथ ही 46% कम उम्र में शादी की गई किशोरियों ने माना कि उनके साथ परिवार में मारपीट एवं गाली गलौज की जाती है।

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में वर्ष 2018 में 7277 महिलाओं की दहेज को लेकर हत्या हुई, तो प्रदेश में 2521 महिलाओं की हत्या हुई। यानी पूरे देश में 34.6 प्रतिशत दहेज हत्याएं उत्तर प्रदेश से हैं। वर्ष 2017 के मुकाबले प्रदेश में दहेज हत्याएं 2.3% ज्यादा हुई। जनगणना सर्वे के अनुसार उत्तर प्रदेश में वर्ष 1981 में प्रत्येक 1000 लड़कों पर 935 लड़कियों का अनुपात था जो वर्ष 2011 में घटकर 1000 लड़कों पर 902 लड़कियों का रह गया। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार 2015-16 में पूरे देश में 1000 लड़कों पर 919 लड़कियों का अनुपात था, उत्तर प्रदेश में यह अनुपात 1000 लड़कों पर 903 लड़कियों का है। केंद्र सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार देश में 2011-12 में महिला श्रम भागीदारी दर 31.2% थी जो वर्ष 2017-18 में घटकर 23.3% रह गई। उत्तर प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में देखें तो प्रत्येक 1000 महिलाओं पर सिर्फ 253 महिला ही कामकाजी हैं जबकि पूरे देश का औसत प्रत्येक 1000 पर 331 महिलाओं का है।

प्रदेश में महिलाओं के विरुद्ध अपराध जिस तेजी से बढ़ रहे हैं और सरकार हाथ पर हाथ रख कर बैठी है वह भी चिंता का विषय है। वर्ष 2018 में देश में 3,78,277 महिलाओं के विरुद्ध अपराध के मामले दर्ज किए गए। अकेले उत्तर प्रदेश में 59,445 मामले दर्ज हुए जो देश में हुए कुल मामलों का 15.7% है। देश में महिलाओं के अपहरण के 75,333 मामले दर्ज हुए और अकेले उत्तर प्रदेश में 16,784 मामले दर्ज हुए। देश में 33,977 बलात्कार के मामले दर्ज हुए जिनमें से 4,322 मामले उत्तर प्रदेश के हैं। 

देश में सामूहिक बलात्कार के साथ हत्या के 296 मामले दर्ज हुए। उनमें से 41 मामले उत्तर प्रदेश के हैं। देश में पास्को एक्ट के तहत 21,848 मुकदमे दर्ज हुए, इनमें से उत्तर प्रदेश के 2,125 मामले हैं। एसिड अटैक के देश में दर्ज 136 मामलों में से 32 मामले अकेले उत्तर प्रदेश से हैं। पूरे देश में महिलाओं से छेड़छाड़ एवं महिलाओं की मर्यादा को ठेस पहुंचाने के 90,039 मामले दर्ज हुए। इनमें से उत्तर प्रदेश के 12,977 मामले हैं जोकि कुल दर्ज मामलों का 11.8% है।

वर्ष 2019 को तो प्रदेश में महिलाओं के विरुद्ध अपराध के लिए ही जाना जाएगा। जिस तरह से प्रदेश में सत्ताधारी दल के नेताओं पर बलात्कार के मामले दर्ज हुए और सत्ता पक्ष के उन नेताओं को सरकार द्वारा पूर्ण संरक्षण मिला, वह सत्ता पक्ष का असली चेहरा दिखलाता है। इससे स्पष्ट होता है कि भाजपा के लिए,"बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" सिर्फ एक नारा भर है। सरकार जब ताकतवर नेताओं को बलात्कार के मामले में शरण देगी तो निश्चित ही आम आदमी पर इसका बुरा असर पड़ेगा और वह भी अपराध करने की प्रवृत्ति से बाज नहीं आएगा। सरकार को कानून का पालन करने हेतु सबसे पहले ताकतवर लोगों बाध्य करना चाहिए जिससे आम नागरिकों के लिए वह नजीर बने।

वर्ष 2017 के घोषणा पत्र में भाजपा ने प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा हेतु 3 महिला पुलिस बटालियन अवंतीबाई, झलकारी बाई और उदा देवी के नाम पर बनाने की बात कही थी, परंतु आज तक इन बटालियनों के गठन को लेकर कोई सुगबुगाहट प्रदेश सरकार के स्तर पर नहीं है। घोषणा पत्र में यह भी वादा किया गया था कि प्रदेश में 1000 महिला पुलिस अफसरों का विशेष जांच दल महिलाओं की सुरक्षा हेतु बनाया जाएगा परंतु सरकार इस पर भी खामोश है। प्रदेश में 100 फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना का भी वादा था जिसकी घोषणा मुख्यमंत्री जी ने कुछ ही दिनों पहले की है, लेकिन इस घोषणा को अमलीजामा कब तक पहनाया जाएगा यह कहना मुश्किल है।

यह बात किसी से छुपी नहीं है कि उत्तर प्रदेश में पुलिस बल के पास संसाधनों की कमी है। साथ ही पुलिस की कार्यप्रणाली भी महिला को लेकर बेहतर नहीं है। देश में महिलाओं के विरुद्ध अपराध में प्रदेश अव्वल नंबर पर है उसके बाद भी प्रदेश सरकार पुलिस की कार्यप्रणाली को सुधारने और पुलिस बल को बेहतर साधन मुहैया कराने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है। 

केंद्र सरकार ने राज्यसभा के समक्ष रखी गई एक रिपोर्ट में माना है कि देश में यदि 1445 व्यक्तियों पर एक डॉक्टर का अनुपात है तो उत्तर प्रदेश में 3692 व्यक्तियों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। यह इस बात का प्रतीक है कि उत्तर प्रदेश में स्वास्थ सेवाओं की स्थिति क्या है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार प्रदेश में प्रति व्यक्ति 452 रुपए सालाना स्वास्थ्य पर खर्च किए जाते हैं जो कि अन्य राज्यों के मुकाबले 70% कम है। इस बात से समझा जा सकता है कि प्रदेश की सरकार स्वास्थ्य के मामलों में कितनी गंभीर है।

पूरे देश में उत्तर प्रदेश मातृ मृत्यु दर के मामले में नंबर दो पर है। प्रत्येक एक लाख महिलाओं में से 258 की मौत हो जाती है। शिशु मृत्यु दर के मामले में उत्तरप्रदेश पूरे देश में एक नंबर पर है। पूरे देश में जन्म के समय 1000 में से 32 शिशु मृत्यु को प्राप्त करते हैं, उत्तर प्रदेश में यह दुगना यानी 64 है। 

महिलाओं में खून की कमी कुपोषण और शारीरिक एवं मानसिक शोषण की वजह से प्रदेश में 46.3 प्रतिशत 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अपनी उम्र के मुकाबले कम लंबाई के हैं जबकि पूरे देश का औसत 38.4% है। महिलाओं में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी की बात करें तो प्रदेश में वर्ष 2016 में 21,376, वर्ष 2017 में 22,737 और वर्ष 2018 में 24,181 महिलाओं को कैंसर हुआ।

वर्ष 2011 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई मासिक स्वास्थ्य स्कीम के अंतर्गत किशोरियों में मासिक स्वच्छता प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाना, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली किशोरियों को उच्च गुणवत्ता वाले सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराना और पर्यावरण अनुकूल तरीके से सैनिटरी नैपकिन का सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करना इस स्कीम का मुख्य लक्ष्य है। केंद्र सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के समेकित बाल विकास सेवाएं विभाग द्वारा प्रदेश के 75 जिलों की सभी ग्राम पंचायतों में एक सर्वेक्षण कराया गया जिसके अनुसार 11 से 14 वर्ष की 5 लाख 13 हजार बच्चियों ने वर्ष 2018 19 में स्कूल जाना छोड़ दिया क्योंकि स्कूलों में समुचित रूप से शौचालय का प्रबंध नहीं था। 

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की मृत्यु दर 5 देशों में सबसे ज्यादा है। ये देश भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, कांगो और इथोपिया हैं। इन देशों में पूरे विश्व में हुई मौतों का 50% हिस्सा है और भारतवर्ष में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की मृत्यु दर में उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा हिस्सा है।

वर्ष 2013 में भारत सरकार ने देश में महिलाओं की सुरक्षा एवं संरक्षा को बढ़ाने के लक्ष्य हेतु निर्भया निधि की स्थापना की। केंद्र सरकार द्वारा आवंटित 119 करोड़ में से उत्तर प्रदेश सरकार ने 39 करोड़ ही उपयोग किए। महिलाओं को बेहतर व्यवस्था देने हेतु देश में वन स्टॉप सेंटर स्कीम लागू की गई। इस स्कीम में उत्तर प्रदेश को 41 करोड़ आवंटित हुए और प्रदेश सरकार कुल 5 करोड़ 40 लाख रुपए ही इस्तेमाल कर पाई। इससे पता चलता है कि प्रदेश सरकार महिलाओं की बेहतरी करने हेतु योजनाओं को लेकर कितनी गंभीर है।

वर्ष 2019 में नीति आयोग की स्कूल क्वालिटी इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार 76.6% अंकों के साथ केरल स्कूली शिक्षा के मामले में नंबर एक पर है तो उत्तर प्रदेश 36.4 अंकों के साथ सबसे निचले पायदान पर है। इससे स्पष्ट होता है कि प्रदेश में शिक्षा के ढांचे में कितनी कमियां हैं जिनकी वजह से प्रदेश के नौनिहालों को बुनियादी शिक्षा मिलने में अनेकों कठिनाईयां हैं। एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2018 के अनुसार 8 वर्ष से 10 वर्ष के 32.4%, 11 से 13 वर्ष के 60.1% और 14 से 16 वर्ष के 74.8% बच्चे ही कक्षा दो की पुस्तकें पढ़ सकते हैं। 

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पूरे देश में साक्षरता दर 74.04% है, उत्तर प्रदेश की मात्र 69.72% है। इसमें पुरुषों की औसत साक्षरता दर 77.28% है और महिलाओं की साक्षरता दर 57.18 प्रतिशत है। छात्रों को शिक्षा देने, शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षा के क्षेत्र में मूलभूत ढांचे को लेकर यूपी सरकार के प्लानिंग डिपार्टमेंट की रिपोर्ट के अनुसार देश के प्रमुख 15 राज्यों में उत्तर प्रदेश का बारहवांं स्थान है।

प्रत्येक 1 लाख बच्चों पर यदि देश में 17 हाई स्कूल हैं तो वही उत्तर प्रदेश में मात्र 9 हाई स्कूल हैं। इस मामले में उत्तर प्रदेश 15 प्रमुख राज्यों में 14वे स्थान पर है। वहीं सेकेंडरी स्कूल के मामले में देश में 1 लाख बच्चों पर 38 स्कूल है तो वहीं उत्तर प्रदेश में मात्र 27 स्कूल है। इस मामले में 15 प्रमुख राज्यों में यूपी की आठवां स्थान है। प्राइमरी स्कूलों के मामले में यूपी की स्थिति थोड़ी बेहतर है। देश में 1 लाख बच्चों पर 63 प्राइमरी स्कूल है तो उत्तर प्रदेश में 74 प्राइमरी स्कूल हैं। यह स्थिति उस राज्य की है जो पूरे देश में 5 से 14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों की जनसंख्या में 21% योगदान देता है।

प्राथमिक विद्यालयों में यदि शिक्षकों के पदों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में इन स्कूलों में 8,69,691 पदों पर नियुक्ति हो सकती है परंतु प्रदेश में कुल चार लाख 49 हजार 114 पद ही भरे गए हैं, 3,85,577 पद यानी कि 43.9% शिक्षकों के पद अभी भी रिक्त हैं, जो कि पूरे देश में सबसे ज्यादा अनुपात है। यह बात सूचना के अधिकार के इस्तेमाल का इस्तेमाल करके एक प्रश्न के उत्तर में केंद्र सरकार ने उपलब्ध कराई है।

वर्ष 2020-21 के प्रदेश के बजट में सरकार ने मिड डे मील योजना के लिए 2660 करोड़ रुपए का आवंटन किया है। हमने प्रदेश में मिड डे मील की योजनाओं में हाल ही में अनेकों घोटालों का जिक्र समाचार पत्रों में होते हुए देखा है। इतने बड़े प्रदेश में सिर्फ मिड डे मील योजना में जो बजट आवंटित किया गया है वह ऊट के मुंह में जीरे के समान है। पूरे देश में शिक्षा के मामले में प्रदेश सबसे निचले पायदान पर है और उपरोक्त आंकड़ों को देखने के पश्चात पता चलता है कि प्रदेश में महिलाओं की शिक्षा और चिकित्सा के मामले में सरकार कितनी गंभीर है?

प्रजातंत्र में कोई भी पार्टी चुनाव में किए गए वादों के दम पर ही शासन में आती है। भाजपा ने भी वर्ष 2017 में प्रदेश की महिलाओं से अनेकों वादे किए थे जो भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में अंकित है। शिक्षित एवं स्वस्थ महिला ऐसे परिवार का निर्माण करती है जो प्रगतिशील समाज की रचना मे योगदान देता है। यदि सरकार प्रदेश में महिलाओं के प्रति गंभीरता पूर्वक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेगी तो उत्तर प्रदेश प्रत्येक क्षेत्र मे आगे बढ़ेगा। 

(लेखक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad